Difference between revisions of "विक्रम और बेताल - ज्ञान का उचित उपयोग"

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मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारो  भाई  की बातेंं  सुन रही थी । चारो भाईयो ने तय किया की हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारो भाई वन में पहुँच गए। बड़े भाई ने एक हडडी लेकर आया और नेत्र बंद करके हडडी को स्पर्श किया उसी छण वह हडडी के ढाचे में रूपांतरित हो गई। दूसरे भाई ने हडडी  के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया । तो मालूम  पड़ा की वह शेर का कंकाल है। तीसरे भाई ने कहा की अब मैं इस शेर में जान डालूँगा । दूसरे भाई ने कहा की तुम इस शेर में जान मत डालो। तीसरे भाई ने कहा की तुम सभी ने भी अपनी विद्या का प्रदर्शन किया । मैं अपनी विद्या का प्रयोग क्यू ना करु ?।
 
मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारो  भाई  की बातेंं  सुन रही थी । चारो भाईयो ने तय किया की हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारो भाई वन में पहुँच गए। बड़े भाई ने एक हडडी लेकर आया और नेत्र बंद करके हडडी को स्पर्श किया उसी छण वह हडडी के ढाचे में रूपांतरित हो गई। दूसरे भाई ने हडडी  के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया । तो मालूम  पड़ा की वह शेर का कंकाल है। तीसरे भाई ने कहा की अब मैं इस शेर में जान डालूँगा । दूसरे भाई ने कहा की तुम इस शेर में जान मत डालो। तीसरे भाई ने कहा की तुम सभी ने भी अपनी विद्या का प्रदर्शन किया । मैं अपनी विद्या का प्रयोग क्यू ना करु ?।
  
तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी छण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा की इस विद्या का प्रयोग मनुष्य के उपर करना चाहिए । तीनों भाई पहले भाई के बात से सहमत हो गये । पहला भाई ने वन से मनुष्य की हडडी लेकर आया और उसे एक ढाचे का स्वरुप दे दिया। दूसरे भाई ने उस में रक्त मांस का उपयोग कर शारीर का निर्माण कर दिया। शारीर निर्माण होते ही सभी उस शारीर को ध्यान से देखने लगे। वह निर्जीव शारीर एक सुन्दर महिला का था।  
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तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी छण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा की इस विद्या का प्रयोग मनुष्य के उपर करना चाहिए । तीनों भाई पहले भाई के बात से सहमत हो गये । पहला भाई ने वन से मनुष्य की हडडी लेकर आया और उसे एक ढाचे का स्वरुप दे दिया। दूसरे भाई ने उस में रक्त मांस का उपयोग कर शारीर का निर्माण कर दिया। शारीर निर्माण होते ही सभी उस शारीर को ध्यान से देखने लगे। वह निर्जीव शारीर एक सुन्दर महिला का था। चौथे भाई ने उस स्त्री के शारीर में जन दल दिया |  
 
 
   
 
  
 
  [[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]
 
  [[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]

Revision as of 14:47, 20 September 2020

विक्रम ने बेताल को वृक्ष से पकड़कर अपने कंधे पर बैठाकर ले जा रहा था । बेताल ने विक्रम से कहा अभी कुटी तक पहुचने में बहुत समय लगेगा और तब तक मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ। तुमने कहानी के मध्य में कुछ भी बोला तो मैं उड़ जाऊंगा। बेताल ने कहानी सुनाना आरम्भ किया ।

एक गाँव में एक बुढ़ा किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था। उसका ऐसा मानना था की काम ही करना सबसे अच्छा है उसकी पत्नी उसके काम में सहायता करती थी। उसके चार बेटे थे। वह बहुत आलसी थे दिन भर गाँव में घुमा करते थे या फिर घर में सोते हुए रहते थे ।

एक दिन किसान ने क्रोध में आकर अपने बेटो से कहा की अगर कुछ काम नहीं करना है तो घर छोड़ कर चले जाओ। किसान के बेटे घर छोड़ कर चले गए और चारो गाँव के शिवजी के मंदिर के पास जा कर बातें करने लगे की अब हम सब शिक्षा ग्रहण करने के लिए चारो अलग अलग दिशाओ में जायेगे और चार वर्ष के बाद हम इसी शिव मंदिर में मिलेगे ।

चार वर्ष बाद चारो भाई शिक्षा ग्रहण करके इसी शिव मंदिर में वापस मिलें। चारो भाई अपने - अपने शिक्षा की चर्चा करने लगे। पहले भाई ने कहा की मैंने कंकाल को जोड़ने की शिक्षा ग्रहण की है। दूसरे भाई ने कहा की मैंने कंकाल के ऊपर मास और रक्त भर द्वारा शारीर निर्माण कर सकता हूँ। तीसरे भाई ने कहा मैं बेजान शारीर में प्राण डाल सकता हूँ । चौथे भाई ने कहा की मैंने व्यक्ति को अपनी एक चुटकी से निर्जीव बना सकता हूँ ।

मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारो भाई की बातेंं सुन रही थी । चारो भाईयो ने तय किया की हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारो भाई वन में पहुँच गए। बड़े भाई ने एक हडडी लेकर आया और नेत्र बंद करके हडडी को स्पर्श किया उसी छण वह हडडी के ढाचे में रूपांतरित हो गई। दूसरे भाई ने हडडी के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया । तो मालूम पड़ा की वह शेर का कंकाल है। तीसरे भाई ने कहा की अब मैं इस शेर में जान डालूँगा । दूसरे भाई ने कहा की तुम इस शेर में जान मत डालो। तीसरे भाई ने कहा की तुम सभी ने भी अपनी विद्या का प्रदर्शन किया । मैं अपनी विद्या का प्रयोग क्यू ना करु ?।

तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी छण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा की इस विद्या का प्रयोग मनुष्य के उपर करना चाहिए । तीनों भाई पहले भाई के बात से सहमत हो गये । पहला भाई ने वन से मनुष्य की हडडी लेकर आया और उसे एक ढाचे का स्वरुप दे दिया। दूसरे भाई ने उस में रक्त मांस का उपयोग कर शारीर का निर्माण कर दिया। शारीर निर्माण होते ही सभी उस शारीर को ध्यान से देखने लगे। वह निर्जीव शारीर एक सुन्दर महिला का था। चौथे भाई ने उस स्त्री के शारीर में जन दल दिया |