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३३. दो विरोधी प्रतिमानों का तीसरा आयाम है अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में धारणा । एक स्वयं के दुःखों के लिए दूसरों को जिम्मेदार मानता है, दूसरा अपने आपको । भारत में कर्म और कर्मफल का सिद्धान्त सर्वस्वीकृत है । अपना भाग्य अपने ही कर्मों पर निर्भर करता है ऐसी आम धारणा है । अपना भाग्यविधाता व्यक्ति स्वयं है, जबकि दूसरा प्रतिमान अपने सुख को अपने कारण और अपना दुःख दूसरों के कारण है ऐसा मानता है । उसकी यह धारणा जन्म और पुनर्जन्म में विश्वास करने और नहीं करने के कारण बनती है । भारत जन्मजान्मांतर में विश्वास करता है, यूरोअमेरिकी जीवनदृष्टि नहीं करता ।
 
३३. दो विरोधी प्रतिमानों का तीसरा आयाम है अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में धारणा । एक स्वयं के दुःखों के लिए दूसरों को जिम्मेदार मानता है, दूसरा अपने आपको । भारत में कर्म और कर्मफल का सिद्धान्त सर्वस्वीकृत है । अपना भाग्य अपने ही कर्मों पर निर्भर करता है ऐसी आम धारणा है । अपना भाग्यविधाता व्यक्ति स्वयं है, जबकि दूसरा प्रतिमान अपने सुख को अपने कारण और अपना दुःख दूसरों के कारण है ऐसा मानता है । उसकी यह धारणा जन्म और पुनर्जन्म में विश्वास करने और नहीं करने के कारण बनती है । भारत जन्मजान्मांतर में विश्वास करता है, यूरोअमेरिकी जीवनदृष्टि नहीं करता ।
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३४. कामनाओं की पूर्ति ही एकमात्र लक्ष्य होता है तब छोटे बड़े सभी तत्त्व अथर्जिन के साधन ही हो जाते हैं । यहाँ शिक्षा अथर्जिन के लिए होती है, धर्माचरण सुखप्राप्ति के लिए होता है, दानदाक्षिणा भी कुछ भौतिक लाभ की प्राप्ति के लिए होते हैं । सारे भौतिक अभौतिक पदार्थों का मूल्य पैसे से ही आँका जाता है । यहाँ समाजसेवा भी व्यवसाय है ।
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३४. कामनाओं की पूर्ति ही एकमात्र लक्ष्य होता है तब छोटे बड़े सभी तत्त्व अर्थार्जन के साधन ही हो जाते हैं । यहाँ शिक्षा अर्थार्जन के लिए होती है, धर्माचरण सुखप्राप्ति के लिए होता है, दानदाक्षिणा भी कुछ भौतिक लाभ की प्राप्ति के लिए होते हैं । सारे भौतिक अभौतिक पदार्थों का मूल्य पैसे से ही आँका जाता है । यहाँ समाजसेवा भी व्यवसाय है ।
    
३५. परन्तु भारत में ज्ञान पवित्र है, भक्ति पवित्र है, अन्न पवित्र है, जल पवित्र है । इनका मूल्य पैसे से आँका नहीं जाता है । ये सब अर्थ से परे हैं । इन्हें दान में  दिया जाता है और कृपा के रूप में मांगा जाता है । समाज की सेवा ईश्वर की सेवा है ।
 
३५. परन्तु भारत में ज्ञान पवित्र है, भक्ति पवित्र है, अन्न पवित्र है, जल पवित्र है । इनका मूल्य पैसे से आँका नहीं जाता है । ये सब अर्थ से परे हैं । इन्हें दान में  दिया जाता है और कृपा के रूप में मांगा जाता है । समाज की सेवा ईश्वर की सेवा है ।
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३६. भारत में वर्तमान में सामान्य लोग इन दो विरोधी बातों में फंसे हुए हैं । वे पुण्य कमाने के लिए तीर्थयात्रा पर जाते हैं जहां दर्शन और प्रसाद दोनों बिकते हैं । वे मानते हैं कि तीर्थयात्रा में जितना अधिक कष्ट है उतना ही पुण्य अधिक प्राप्त होता है फिर भी यात्रा में सुविधा ढूंढते हैं । तीर्थयात्रा और सैर कि खिचड़ी हो गई है ।
 
३६. भारत में वर्तमान में सामान्य लोग इन दो विरोधी बातों में फंसे हुए हैं । वे पुण्य कमाने के लिए तीर्थयात्रा पर जाते हैं जहां दर्शन और प्रसाद दोनों बिकते हैं । वे मानते हैं कि तीर्थयात्रा में जितना अधिक कष्ट है उतना ही पुण्य अधिक प्राप्त होता है फिर भी यात्रा में सुविधा ढूंढते हैं । तीर्थयात्रा और सैर कि खिचड़ी हो गई है ।
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३७. परस्त्री माता समान है और पराया धन मिट्टी के समान है ऐसी दृढ़ धारणा के कारण स्त्रीपुरुष सम्बन्धों में तथा अथर्जिन में शील का रक्षण सहज होता है । परन्तु अधार्मिक दृष्टि में कामसंबंध और अधथार्जन में नैतिकता की आवश्यकता नहीं है । केवल कानून का ही बंधन पर्याप्त है । ऐसे समाज में शिलरक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जाता ।
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३७. परस्त्री माता समान है और पराया धन मिट्टी के समान है ऐसी दृढ़ धारणा के कारण स्त्रीपुरुष सम्बन्धों में तथा अर्थार्जन में शील का रक्षण सहज होता है । परन्तु अधार्मिक दृष्टि में कामसंबंध और अधथार्जन में नैतिकता की आवश्यकता नहीं है । केवल कानून का ही बंधन पर्याप्त है । ऐसे समाज में शिलरक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जाता ।
    
=== मान्यता और व्यवहार में विरोध ===
 
=== मान्यता और व्यवहार में विरोध ===

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