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३६. भारत में वर्तमान में सामान्य लोग इन दो विरोधी बातों में फंसे हुए हैं । वे पुण्य कमाने के लिए तीर्थयात्रा पर जाते हैं जहां दर्शन और प्रसाद दोनों बिकते हैं । वे मानते हैं कि तीर्थयात्रा में जितना अधिक कष्ट है उतना ही पुण्य अधिक प्राप्त होता है फिर भी यात्रा में सुविधा ढूंढते हैं । तीर्थयात्रा और सैर कि खिचड़ी हो गई है ।
 
३६. भारत में वर्तमान में सामान्य लोग इन दो विरोधी बातों में फंसे हुए हैं । वे पुण्य कमाने के लिए तीर्थयात्रा पर जाते हैं जहां दर्शन और प्रसाद दोनों बिकते हैं । वे मानते हैं कि तीर्थयात्रा में जितना अधिक कष्ट है उतना ही पुण्य अधिक प्राप्त होता है फिर भी यात्रा में सुविधा ढूंढते हैं । तीर्थयात्रा और सैर कि खिचड़ी हो गई है ।
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३७. परस्त्री माता समान है और पराया धन मिट्टी के समान है ऐसी दृढ़ धारणा के कारण स्त्रीपुरुष सम्बन्धों में तथा अथर्जिन में शील का रक्षण सहज होता है । परन्तु अभारतीय दृष्टि में कामसंबंध और अधथार्जन में नैतिकता की आवश्यकता नहीं है । केवल कानून का ही बंधन पर्याप्त है । ऐसे समाज में शिलरक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जाता ।
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३७. परस्त्री माता समान है और पराया धन मिट्टी के समान है ऐसी दृढ़ धारणा के कारण स्त्रीपुरुष सम्बन्धों में तथा अथर्जिन में शील का रक्षण सहज होता है । परन्तु अधार्मिक दृष्टि में कामसंबंध और अधथार्जन में नैतिकता की आवश्यकता नहीं है । केवल कानून का ही बंधन पर्याप्त है । ऐसे समाज में शिलरक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जाता ।
    
=== मान्यता और व्यवहार में विरोध ===
 
=== मान्यता और व्यवहार में विरोध ===

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