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{{One source|date=August 2019}}भारतीय समाजव्यवस्था के दो मूल आधार हैं। एक है आश्रमव्यवस्था और दूसरा है वर्णव्यवस्था। आश्रमव्यवस्था के विषय में हमने पूर्व में चर्चा की है । इस अध्याय में वर्णव्यवस्था की चर्चा करेंगे।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १)-
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{{One source|date=August 2019}}धार्मिक समाजव्यवस्था के दो मूल आधार हैं। एक है आश्रमव्यवस्था और दूसरा है वर्णव्यवस्था। आश्रमव्यवस्था के विषय में हमने पूर्व में चर्चा की है । इस अध्याय में वर्णव्यवस्था की चर्चा करेंगे।<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-
 
अध्याय ‌‍९, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
 
अध्याय ‌‍९, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
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अनुलोम विवाह का अर्थ है ब्राह्मण वर्ण का पुरुष क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र स्त्री से विवाह कर सकता है, क्षत्रिय वर्ण का पुरुष वैश्य या शुद्र स्त्री के साथ विवाह कर सकता है, वैश्य वर्ण का पुरुष शुद्र स्त्री के साथ विवाह कर सकता है। इस सीमित रूप में वर्णव्यवस्था लचीली है। दो भिन्न भिन्न वर्गों के स्त्री और पुरुष की संतानों को वर्णसंकर कहते हैं । महाभारत में ऐसे वर्णसंकरों के अनेक प्रकार बताए गए हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन वर्णसंकरों के भी व्यवसाय आग्रहपूर्वक निश्चित किए गए हैं । यदि मनुष्य व्यवसाय बदल देता है तो उसका वर्ण भी बदल जाता है। आचार छोड़ने की तनिक भी अनुमति नहीं है।
 
अनुलोम विवाह का अर्थ है ब्राह्मण वर्ण का पुरुष क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र स्त्री से विवाह कर सकता है, क्षत्रिय वर्ण का पुरुष वैश्य या शुद्र स्त्री के साथ विवाह कर सकता है, वैश्य वर्ण का पुरुष शुद्र स्त्री के साथ विवाह कर सकता है। इस सीमित रूप में वर्णव्यवस्था लचीली है। दो भिन्न भिन्न वर्गों के स्त्री और पुरुष की संतानों को वर्णसंकर कहते हैं । महाभारत में ऐसे वर्णसंकरों के अनेक प्रकार बताए गए हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन वर्णसंकरों के भी व्यवसाय आग्रहपूर्वक निश्चित किए गए हैं । यदि मनुष्य व्यवसाय बदल देता है तो उसका वर्ण भी बदल जाता है। आचार छोड़ने की तनिक भी अनुमति नहीं है।
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जो विचारधारा समाज को जीवमान इकाई मानती है और समाज तथा व्यक्ति के बीच अंग और अंगी का सम्बन्ध बताती है वहाँ समाज अंगी होता है और व्यक्ति अंग होता है। व्यक्ति समाज की शाश्वतता, सुस्थिति और सुदृढ़ता के लिए अपने आपको सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ समायोजित करेगा । व्यक्ति अपना जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित करेगा और अपने आपको धन्य मानेगा। ऐसे समाज में ही वर्णव्यवस्था का प्रयोजन रहता है। जिस समाज में व्यक्ति को ही स्वतंत्र और सर्वोपरि मानता है और समाज को केवल करार की व्यवस्था ही माना जाता है वहाँ वर्णव्यवस्था का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। आज भारत में वर्णव्यवस्था की जो उपेक्षा, तिरस्कार और दुरवस्था दिखाई देती है वह व्यक्तिकेन्द्री समाजरचना के कारण ही है । भारतीय समाज को एक बार निश्चित हो जाने की आवश्यकता है कि उसे करार वाली जीवनव्यवस्था चाहिए कि कुटुंबभावना वाली। यदि हम कुटुंबभावना वाली समाजव्यवस्था को चाहते हैं तो हमें वर्णव्यवस्था को स्वीकार करना होगा।
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जो विचारधारा समाज को जीवमान इकाई मानती है और समाज तथा व्यक्ति के बीच अंग और अंगी का सम्बन्ध बताती है वहाँ समाज अंगी होता है और व्यक्ति अंग होता है। व्यक्ति समाज की शाश्वतता, सुस्थिति और सुदृढ़ता के लिए अपने आपको सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ समायोजित करेगा । व्यक्ति अपना जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित करेगा और अपने आपको धन्य मानेगा। ऐसे समाज में ही वर्णव्यवस्था का प्रयोजन रहता है। जिस समाज में व्यक्ति को ही स्वतंत्र और सर्वोपरि मानता है और समाज को केवल करार की व्यवस्था ही माना जाता है वहाँ वर्णव्यवस्था का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। आज भारत में वर्णव्यवस्था की जो उपेक्षा, तिरस्कार और दुरवस्था दिखाई देती है वह व्यक्तिकेन्द्री समाजरचना के कारण ही है । धार्मिक समाज को एक बार निश्चित हो जाने की आवश्यकता है कि उसे करार वाली जीवनव्यवस्था चाहिए कि कुटुंबभावना वाली। यदि हम कुटुंबभावना वाली समाजव्यवस्था को चाहते हैं तो हमें वर्णव्यवस्था को स्वीकार करना होगा।
    
यहाँ ऐसी समाजव्यवस्था चाहिए, अनेक प्रकार से वह लाभदायी है, ऐसा मानकर ही सारे विषयों का ऊहापोह किया गया है यह स्पष्ट है।
 
यहाँ ऐसी समाजव्यवस्था चाहिए, अनेक प्रकार से वह लाभदायी है, ऐसा मानकर ही सारे विषयों का ऊहापोह किया गया है यह स्पष्ट है।
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ब्राह्मणों का एक काम यजन और याजन का है । अभी भी वह काम जन्म से ब्राह्मण हैं वे कर रहे हैं । परन्तु स्वयं यजन करना नहीवत्‌ हो गया है । यज्ञ करवाते हैं परन्तु कुल मिलाकर यज्ञ का प्रचलन ही समाज में कम हो गया है । जो भी बचा है वह ब्राह्मणों के जिम्मे है । परन्तु अधिकांश वे अब पौरोहित्य करते हैं। मन्दिरों में पूजारी का काम भी उनका ही है । समारोहों में भोजन बनाने का काम भी ब्राह्मणों का ही होता था । ये दोनों काम अब अन्य वर्णों के लोग करने लगे हैं फिर भी ब्राह्मणों का वर्चस्व अभी समाप्त नहीं हुआ है । परन्तु अब पौरोहित्य हो या पूजारी का काम, वेद्पठन हो या भोजन बनाने का काम, ब्राह्मणों के लिये यह अथार्जिन हेतु व्यवसाय बन गया है ।
 
ब्राह्मणों का एक काम यजन और याजन का है । अभी भी वह काम जन्म से ब्राह्मण हैं वे कर रहे हैं । परन्तु स्वयं यजन करना नहीवत्‌ हो गया है । यज्ञ करवाते हैं परन्तु कुल मिलाकर यज्ञ का प्रचलन ही समाज में कम हो गया है । जो भी बचा है वह ब्राह्मणों के जिम्मे है । परन्तु अधिकांश वे अब पौरोहित्य करते हैं। मन्दिरों में पूजारी का काम भी उनका ही है । समारोहों में भोजन बनाने का काम भी ब्राह्मणों का ही होता था । ये दोनों काम अब अन्य वर्णों के लोग करने लगे हैं फिर भी ब्राह्मणों का वर्चस्व अभी समाप्त नहीं हुआ है । परन्तु अब पौरोहित्य हो या पूजारी का काम, वेद्पठन हो या भोजन बनाने का काम, ब्राह्मणों के लिये यह अथार्जिन हेतु व्यवसाय बन गया है ।
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भारत को सनातन राष्ट्र कहा गया है और भारत के हिन्दू धर्म को सनातन धर्म । सनातन का अर्थ है जो स्थान और काल में निरन्तर बना रहता है । इस सनातनता का ही प्रताप है कि अभी भी ऐसे ब्राह्मण बचे हैं जो शुद्धि और पवित्रता की रक्षा करते हैं, बिना शुल्क लिये अध्यापन करते हैं, वेदाध्ययन का दायित्व सम्हालते हैं । अभी भी वे ज्ञान की गरिमा को कम नहीं होने देते हैं । भारतीय समाज की आशा अभी उनके कारण ही समाप्त नहीं हुई है।
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भारत को सनातन राष्ट्र कहा गया है और भारत के हिन्दू धर्म को सनातन धर्म । सनातन का अर्थ है जो स्थान और काल में निरन्तर बना रहता है । इस सनातनता का ही प्रताप है कि अभी भी ऐसे ब्राह्मण बचे हैं जो शुद्धि और पवित्रता की रक्षा करते हैं, बिना शुल्क लिये अध्यापन करते हैं, वेदाध्ययन का दायित्व सम्हालते हैं । अभी भी वे ज्ञान की गरिमा को कम नहीं होने देते हैं । धार्मिक समाज की आशा अभी उनके कारण ही समाप्त नहीं हुई है।
    
== क्षत्रिय वर्ण ==
 
== क्षत्रिय वर्ण ==

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