लोक शिक्षा के माध्यम

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समाज का व्यवहार नित्य गतिमान प्रवाह की तरह

होता है। वह अनेक बातों से प्रभावित होता है।

परिणामस्वरूप उसमें परिवर्तन भी होता रहता है। यह

परिवर्तन सही दिशा में हो या गलत दिशा में यह उसे

RRR

प्रभावित करने वाले तत्त्वों पर निर्भर करता है क्योंकि

सर्वसामान्य लोग “महाजनो येन गतः स पन्‍्था:' के स्वभाव

वाले होते हैं । कब कौन महाजन हो जायेगा इसकी निश्चिति

कुछ कम ही होती है ।

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पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा

वैसे भी मन का स्वभाव पानी जैसा होता है । पानी . परन्तु उसकी गति बहुत धीमी रहती

के समान वह नीचे की ओर अधिक सरलता से बहता है, है ।

ऊपर की ओर ले जाने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा लगानी

होती है । २. सभा, सम्मेलन, रेली

हम वर्तमान स्थिति को ही लें । प्रसार माध्यम आज रेलियों में मानस का प्रदर्शन होता है जिससे शेष

बहुत प्रभावी बन गये हैं । इन्हें प्रचार माध्यम कहना भी... समाज तक भावना और विचार पहुँचाये जाते हैं । रैलियों में

अनुपयुक्त नहीं होगा । इन प्रचार माध्यमों में जो विज्ञापन... प्रदर्शित विचारों और भावनाओं के प्रति सहानुभूति, समर्थन

आते हैं वे लोकमानस को बहुत प्रभावित करते हैं । लोगों. अथवा आशंका और विरोध भी जाग्रत होता है । समाजमन

का अर्थव्यवहार उनके ही हाथों में चला गया है । तात्पर्य... कुछ मात्रा में उद्देलित होता है ।

यह है कि लोक को प्रभावित करने का कार्य बुद्धि से सम्मेलनों में अधिकतर भावनाओं को आवाहन किया

अधिक मन के स्तर पर चलता है । इस दृष्टि से लोकशिक्षा ... जाता है जबकि सभायें विचारप्रधान होती हैं । विचार के

के माध्यम क्या रहे हैं और क्या हो सकते हैं इसका विचार. क्षेत्र में गोष्ठियाँ, परिचर्चायें, शोधपत्र आदि के माध्यम से

करें । समाजमन को दिशा देने का प्रयास होता है । प्रभावी

; वक्तृत्व, आकर्षक व्यक्तित्व और शुद्ध चरित्र इसके माध्यम

१. अखबार, टीवी तथा संचार माध्यम होते हैं । त्वरित प्रभाव प्रथम दो का होता है, दीर्घकालीन

विज्ञापन का उल्लेख ऊपर आया ही है। साथ ही... चरित्र का होता है । विगत सौ वर्षों में सभाओं के भाषणों

अखबार में छपने वाले, भावनाओं को आन्दोलित करने... से ही श्री अरविन्द, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि

वाले लेख, टीवी की विभिन्न चैनलों पर प्रदर्शित होने वाले... ने लोकमानस को आन्दोलित किया था । जिसमें इन तीनों

धारावाहिक और फिल्में विभिन्न प्रकार के फैशन शो, आज... आयामों का योगदान था ।

का बहुत प्रचलित सोशल मिडिया, इण्टरनेट ये जनमानस .

को जकड लेने वाले माध्यम FL AS at aga yet FPA AA, AT

परन्तु ये विचार प्रेरक नहीं हैं, विचार को स्थगित कर देने यह बहुत व्यापक, निरन्तर चलनेवाला और प्रभावी

वाले हैं । इनका प्रभाव भारी होने पर भी तत्काल होता है।.... माध्यम है । लोक में रामायण और भागवत की कथा बहुत

बाढ़ की तरह वह आता है और जाता है, स्थायी प्रभाव... प्रसिद्ध है। देश में ऐसा एक भी स्थान नहीं होगा जहाँ

नहीं Sled | परन्तु वह निरन्तर चलता रहने के कारण... अपनी अपनी प्रादेशिक भाषा में भी ये कथायें न होती हों ।

मानस को क्षुब्ध ही बनाये रखता है । इस स्थिति में अच्छी... “रामादिवत्‌ वर्तितव्यं न रावणादिवत्‌' अर्थात्‌ 'राम के समान

या बुरी कोई शिक्षा इससे नहीं हो सकती, परन्तु नुकसान... व्यवहार करना चाहिये, रावण के समान नहीं" यह सर्व

यह है कि क्षुब्धता की स्थिति निरन्तर बनी रहती है । इन... कथाओं का सार है । जनसामान्य के चरित्र को गढने वाली

माध्यमों का प्रभाव लगता तो बहुत अधिक है । इसलिये... और उसकी रक्षा करने वाली ये कथायें वास्तव में

चारों ओर इण्टरनेट, सी.डी., वॉट्सएप, सन्देश आदि की... लोकशिक्षा का श्रेष्ठ माध्यम सिद्ध हुई हैं । उसी प्रकार से

भरमार चलती है परन्तु लोकप्रबोधन करने में इनका प्रभाव... उपनिषद्‌ कथा और महाभारत कथा भी कहीं कहीं होती हैं ।

जितना माना जाता है उससे बहुत कम है । हमारे तत्त्वदर्शन के जो प्रमुख ग्रन्थ हैं उनमें अनन्य है

अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में जो लेख छपते हैं श्रीमदूभगवदूगीता । इसका अध्ययन विद्यालयीन शिक्षा की

उनके माध्यम से कुछ मात्रा में विचारपरिवर्तन होता है। मुख्य धारा में तो नहीं होता परन्तु धार्मिक सांस्कृतिक

निरन्तर व्यक्त किये जाने वाले विचारों से परिवर्तन होता है... संगठन, अध्यात्मप्रवण संस्थायें और अनेक स्थानों पर

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व्यक्तिगत रूप में भी इसकी कक्षायें

चलती हैं और अध्ययन अध्यापन का कार्य होता है ।

अनेक स्थानों पर विशाल सत्संगों का आयोजन होता

है । भजन, कीर्तन और कथा इनके मुख्य अंग हैं ।

सामूहिक जप, नामस्मरण और अखण्ड पाठ का भी

बहुत प्रचलन है । लोग अपने अपने घरों में बैठकर भी

सामूहिक जपसाधना में सहभागी बनते हैं ।

इन सबका व्यक्तियों के अन्तःकरणों पर तो प्रभाव

होता ही है, साथ ही इनकी तरंगें वातावरण को भी प्रभावित

करती हैं जिस का प्रभाव शेष समाज पर भी होता है ।

४. उत्सव, मेले और यात्रायें

इतिहास में दर्ज है कि लोकमान्य तिलक ने

सार्वजनिक गणेशोत्सव का प्रारम्भ लोकमानस में राष्ट्रीयता

जागृत करने के उद्देश्य से किया और वे उसमें यशस्वी भी

हुए । लोगों के हृदयों को जोड़ने वाले, उन्हें उद्वेलित करने

वाले और दिशा देने वाले ऐसे कई उत्सव देशभर में मनाये

जाते हैं। कहीं छठपूजा, कही दुर्गापूजा, कहीं कृष्ण

जन्माष्टमी, कहीं ओणम आदि अनेक निमित्त और अनेक

स्वरूपों में लोकजागरण का कार्य होता रहता है । आज के

समय में योग शिक्षा और गर्भसंस्कार का भी प्रचलन होने

लगा है ।

लोकशिक्षा में मेलों का स्थान अनन्य साधारण है ।

स्थानिक से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक इन मेलों की

व्याप्ति है । मेलों में केन्द्रवर्ती स्थान मन्दिर का है । दर्शन,

नदीस्नान, कथाश्रवण, धर्मसभा, सत्संग, मेलों के मुख्य

अंग हैं। बारह वर्ष पर लगने वाला कुम्भ का मेला

लोकशिक्षा का अत्यन्त प्रभावी केन्द्र है । लोकन्यवहार को

दिशा देनेवाले, मोडनेवाले, सारे निर्णय कुम्भ मेले की

धर्मसभा में होते हैं। कुम्भ का धार्मिक वातावरण

सम्प्रदायनिष्ठ कम और समाजनिष्ठ अधिक है । लोकव्यवहार

की परिष्कृति ही इसका परिणाम है ।

इस प्रकार अनेकविध और sae तीर्थयात्रायें

लोकमानस को परिष्कृत करने का कार्य प्राचीन काल से

करती रही है । राष्ट्रीय एकात्मता को बनाये रखने का ये

श्ड्ढ

भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप

बहुत बडा माध्यम सिद्ध हुई है। राज्य भले कितने ही

अधिक हों, राज्य भले ही किसी का भी हो हिमालय से

faa तक यह राष्ट्र एक है की श्रद्दा अटूट रखने में इन

यात्राओं का बहुमूल्य योगदान रहा है ।

५. साधु, सन्त, संन्यासी

ये सब चलते फिरते मूतिमन्त लोकविद्यापीठ ही हैं ।

भिक्षा के निमित्त से सम्पर्क, सदुपदेश और दान देने की

प्रेरणा, त्याग और तपश्चर्या से संयम की प्रेरणा और कथा

के माध्यम से सदुपदेश इनका मुख्य काम रहा है । धर्म ही

जीवन का आधार है और लोकहित धर्म का बड़ा साधन है

यह इनके उपदेश का सार है । धर्म को व्यक्तिगत व्यवहार

और विभिन्न कथाओं के माध्यम से व्याख्यातित करना और

उसे प्रासंगिक बनाते रहना उनका काम है। aed a

परावृत्त करने का भी काम वे करते हैं ।

संन्यासियों का एक वर्ग मठों का संचालन करने

वाला है। इन मठों में शाख्रों का अध्ययन होता है,

लोककल्याण के अनेकविध काम होते हैं । जिनमें समाज के

अनेक लोग जुड़ते हैं । मठों में संन्यासियों की शिक्षा होती

है।

गत एक सौ वर्षों में अनेक धार्मिक सांस्कृतिक

संगठन भी कार्यरत हुए हैं जो विभिन्न माध्यमों से

लोकशिक्षा का कार्य कर रहे हैं ।

संन्यासियों का एक वर्ग ऐसा है जो पूर्णरूप से

निवृत्तिमार्गी है । वह अनिकेत है । वह भिक्षाटन करता है ।

पहाड़ों में रहकर तपश्चर्या और मोक्षसाधना करता है । इनकी

तपश्चर्या वातावरण को शुभ तरंगों से भर देती है और

लोकमन को अशान्ति और उत्तेजना से बचाती है ।

६. मन्दिर

जिस प्रकार शास्त्रशिक्षा अथवा ब्रह्मचर्याश्रम में शिक्षा

विद्यालय संस्था में केन्द्रित हुई है, संस्कारशिक्षा गृहसंस्था

में केन्द्रित हुई है उसी प्रकार से लोकशिक्षा मन्दिर संस्था में

केन्द्रित हुई है । मन्दिर सम्प्रदायों के होकर भी सम्प्रदायों से

परे जाना सिखाते हैं । मन्दिर लोगों की श्रद्धा के, आस्था

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पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा

के, सत्प्रवृत्ति के केन्द्र हैं। समाज की पवित्रता की रक्षा... ९. कला और साहित्य

करने वाले हैं । सहस्राब्दियों से मन्दिरों ने संस्कृति रक्षा का जिनकी रुचि कुछ परिष्कृत है उनके लिये साहित्य,

दायित्व निभाया है । भारत में तो वे शिक्षा के भी संरक्षक

; संगीत और चित्रकला भी शिक्षा का ही माध्यम हैं । रसवृत्ति

रहे हैं । निर्माण करना, उसे परिष्कृत करना, चित्तवृत्तियों को

संस्कारित करना साहित्य और संगीत का काम है । अपने

पी सांस्कृतिक काम के साथ अनेक जातियों ने संगीत को जोड़ा है । नौका

; विगत एक सौ हर अनेक सामाजिक सांस्कृतिक चलाने वाले, पत्थर तोड़नेवाले, धान की कटाई करनेवाले,

संगठन भी विकसित हुए हैं जो सीधा सीधा लोकशिक्षा का काम करते करते गीत जाते हैं । उनके भाव उसमें व्यक्त

काम करते हैं । सामाजिक चेतना जागृत करना और उसे . होते हैं। गाते गाते, सुनते सुनते, सुनकर सीखते सीखते

सही रूप में ढालना इनका मुख्य कार्य रहा है। ये अन्य व्यक्तियों के भी भाव परिष्कृत होते हैं। इस

समाजसेवा का ही कार्य करते हैं । भावपरिष्कृति का परिणाम उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के

८. नुक्कड नाटक आदि मानस पर होता है |

यहाँ कुछ प्रचलित माध्यमों का उल्लेख किया गया

wes किस ens ~~ का लेकर सा है। अन्यान्य लोग ser पद्धति से लोकमानस को

नाटक ‘ उन

3 sai प्रभावित करने का, शिक्षित करने का और परिष्कृत करने

स्थान पर लगाई जाती हैं । कुछ भित्तिपत्र सार्वजनिक रः प्रभावित करे को, शिक्षित कल का और वर्कित कर

लगाये जाते हैं । नारे या सूत्र बनाकर प्रचलित किये का उपाय करते ही हैं । यह एक अत्यन्त व्यापक और

पर लगाये र

हैं हैं, रिस्तर चलने । विद्यालयीन शिक्षा की

जाते हैं । किसी एक विचार पर गीत तैयार किय जाते हैं, रन्तर चलने वाला काम है । विद्यालयीन शिक्षा की तरह

नाटकों . नौटंकी आदि यह किसी निश्चित ढाँचे में बँधा हुआ नहीं है यह जीवन की

नाटकों का मंचन होता है, कीर्तन, नौटंकी आदि का सभी गतिविधियों के साथ जुडा रहता है ।

ee ees ae ‘ a on विस लोकशिक्षा के अभाव में विद्यालयीन शिक्षा या

कनाट्य a a PRAT FTP At कुटम्ब की शिक्षा व्यक्तित्व के साथ समरस नहीं होती ।

आये हैं । कठपुतली जैसे खेल भी कथा ही बताते हैं । साथ ही लोक ही शिक्षा की प्रयोगभूमि भी है ।

७. सामाजिक संगठन