राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन का स्वरूप (स्वतन्त्रता पूर्व)

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१. सन्‌ १८६६ में उठा राष्ट्रीय स्वर : राजनारायण बसु

(योगी श्रीअरविंद के नाना श्री राजनारायण की गणना अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करनेवाली प्रारंभिक बंगाली पीढ़ी में होती है । उन्होंने सन्‌ १८४५ में हिंदू कॉलेज, कोलकत्ता से अपनी शिक्षा पूर्ण की । कुछ समय तक वे भी हिंदू संस्कृति एवं परंपरा से संबंध-विच्छेद के प्रवाह में बहे; किंतु सौभाग्य से उन्हें रवींदट्रनाथ ठाकुर के पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर के ऋषितुल्य व्यक्तित्व ने आकर्षित कर लिया । देवेन्द्र बाबू के प्रभाव में आकर उन्होंने बंगाल की युवा पीढ़ी पर अंग्रेजी शिक्षा के दुष्परिणामों की गहरी समीक्षा की और राष्ट्रीय पुनर्जागरण के गंभीर प्रयास की आवश्यकता अनुभव की । इस प्रयास का आरंभ करने की दृष्टि से उन्होंने एक नई संस्था की स्थापना का विचार किया । इसका नामकरण उनहोंने सोचा “सोसाइटी फॉर द प्रोमोशन ऑफ नेशनल फीलिंग अमंग दि एजुकेटेड नोटिव्ज ऑफ बंगाल' (शिक्षित बंगालियों में राष्ट्रीय भावना संचारिणी संस्था) । सन्‌ १८६६ में उन्होंने इस प्रस्तावित संस्था की भावभूमि की स्पष्ट कल्पना देने के लिए एक प्रॉस्पेक्टस या उद्देश्यावली प्रकाशित की । उसी के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं ।)

बंगाल में यूरोपीय विचारों का गहरा प्रवेश होने के फलस्वरूप बंगाली मानस शताब्दियों लंबी नींद में से जाग उठा है । बंगाली समाज में एक बेचैनी भरी हलचल प्रारंभ हो गई है । परिवर्तन और प्रगति की आकांक्षा सब ओर दिखाई दे रही है । पुराने रीति-रिवाजों और व्यवस्थाओं से असंतुष्ट लोग सुधार के लिए छटपटा रहे हैं । पहले ही युवकों की एक टोली हिंदू समाज से पूरी तरह नाता तोड़ने, यहाँ तक कि हिंदू नामों का परित्याग करने की इच्छा व्यक्त कर चुकी है । आशंका होने लगी है कि कहीं क्रांति का यह ज्वार अपने साथ उस सब अच्छाई को भी बहाकर न ले जाए जो हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है । इस सर्वनाश को टालने एवं भावी सुधारों की जड़ों को राष्ट्रीय भूमि में बनाए रखने की दृष्टि से मेरा सुझाव है कि देश व समाज के प्रभावशाली सदस्य मिलकर एक ऐसी संस्था की स्थापना करें, जिसका मुख्य कार्य बंगाल के शिक्षित लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना रहेगा । राष्ट्रीय भाव को विकसित किए बिना कोई भी राष्ट्र महानता के शिखर पर नहीं पहुँच सकता । समूचा इतिहास इस सत्य का साक्षी है ।

यह राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था सर्वप्रथम हमारी राष्ट्रीय शारीरिक फ्रीडाओं व व्यायामों को पुनरुब्जीवित करने की दिशा में गंभीर प्रयास करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू संगीत की शिक्षा देने के लिए एक आदर्श विद्यालय की स्थापना करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू चिकित्सा- शाख्र (आयुर्वेद) का विद्यालय स्थापित करेगी, जहाँ हिंदू वैद्यक शास्त्र एवं ओषधि विज्ञान को सभी वर्तमान विकृतियों एवं न्यूनताओं से शुद्ध करके सिखाया जाएगा । इस हिंदू चिकित्सा विद्यालय में ऐसे व्यक्ति को शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, जिसे अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों प्रकार के बैद्यक शास्त्रों का ज्ञान हो।

राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था यूरोपीय संस्कृत विद्वानों द्वारा भारत के अतीत के संबंध में किए गए अनुसंधानों को बंगाली भाषा के माध्यम से प्रकाशित करेगी । भौतिक, बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राचीन भारत के वैभव एवं उपलब्धियों का जो वर्णन उन्होंने किया है, उसे विशेष रूप से प्रकाश में लाया जाएगा ।... राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था संस्कृत की प्रगति को अपनी शक्ति भर पूरा प्रोत्साहन देगी । वह महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन की व्यवस्था करेगी । इस कार्य में बंगाल