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बंगाल में यूरोपीय विचारों का गहरा प्रवेश होने के फलस्वरूप बंगाली मानस शताब्दियों लंबी नींद में से जाग उठा है । बंगाली समाज में एक बेचैनी भरी हलचल प्रारंभ हो गई है । परिवर्तन और प्रगति की आकांक्षा सब ओर दिखाई दे रही है । पुराने रीति-रिवाजों और व्यवस्थाओं से असंतुष्ट लोग सुधार के लिए छटपटा रहे हैं । पहले ही युवकों की एक टोली हिंदू समाज से पूरी तरह नाता तोड़ने, यहाँ तक कि हिंदू नामों का परित्याग करने की इच्छा व्यक्त कर चुकी है । आशंका होने लगी है कि कहीं क्रांति का यह ज्वार अपने साथ उस सब अच्छाई को भी बहाकर न ले जाए जो हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है । इस सर्वनाश को टालने एवं भावी सुधारों की जड़ों को राष्ट्रीय भूमि में बनाए रखने की दृष्टि से मेरा सुझाव है कि देश व समाज के प्रभावशाली सदस्य मिलकर एक ऐसी संस्था की स्थापना करें, जिसका मुख्य कार्य बंगाल के शिक्षित लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना रहेगा । राष्ट्रीय भाव को विकसित किए बिना कोई भी राष्ट्र महानता के शिखर पर नहीं पहुँच सकता । समूचा इतिहास इस सत्य का साक्षी है ।
 
बंगाल में यूरोपीय विचारों का गहरा प्रवेश होने के फलस्वरूप बंगाली मानस शताब्दियों लंबी नींद में से जाग उठा है । बंगाली समाज में एक बेचैनी भरी हलचल प्रारंभ हो गई है । परिवर्तन और प्रगति की आकांक्षा सब ओर दिखाई दे रही है । पुराने रीति-रिवाजों और व्यवस्थाओं से असंतुष्ट लोग सुधार के लिए छटपटा रहे हैं । पहले ही युवकों की एक टोली हिंदू समाज से पूरी तरह नाता तोड़ने, यहाँ तक कि हिंदू नामों का परित्याग करने की इच्छा व्यक्त कर चुकी है । आशंका होने लगी है कि कहीं क्रांति का यह ज्वार अपने साथ उस सब अच्छाई को भी बहाकर न ले जाए जो हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है । इस सर्वनाश को टालने एवं भावी सुधारों की जड़ों को राष्ट्रीय भूमि में बनाए रखने की दृष्टि से मेरा सुझाव है कि देश व समाज के प्रभावशाली सदस्य मिलकर एक ऐसी संस्था की स्थापना करें, जिसका मुख्य कार्य बंगाल के शिक्षित लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना रहेगा । राष्ट्रीय भाव को विकसित किए बिना कोई भी राष्ट्र महानता के शिखर पर नहीं पहुँच सकता । समूचा इतिहास इस सत्य का साक्षी है ।
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यह राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था सर्वप्रथम हमारी राष्ट्रीय शारीरिक फ्रीडाओं व व्यायामों को पुनरुब्जीवित करने की दिशा में गंभीर प्रयास करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू संगीत की शिक्षा देने के लिए एक आदर्श विद्यालय की स्थापना करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू चिकित्सा- शाख्र (आयुर्वेद) का विद्यालय स्थापित करेगी, जहाँ हिंदू वैद्यक शास्त्र एवं ओषधि विज्ञान को सभी वर्तमान विकृतियों एवं न्यूनताओं से शुद्ध करके सिखाया जाएगा । इस हिंदू चिकित्सा विद्यालय में ऐसे व्यक्ति को शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, जिसे अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों प्रकार के बैद्यक शास्त्रों का ज्ञान हो।
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यह राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था सर्वप्रथम हमारी राष्ट्रीय शारीरिक फ्रीडाओं व व्यायामों को पुनरुब्जीवित करने की दिशा में गंभीर प्रयास करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू संगीत की शिक्षा देने के लिए एक आदर्श विद्यालय की स्थापना करेगी । राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था हिंदू चिकित्सा- शास्त्र (आयुर्वेद) का विद्यालय स्थापित करेगी, जहाँ हिंदू वैद्यक शास्त्र एवं ओषधि विज्ञान को सभी वर्तमान विकृतियों एवं न्यूनताओं से शुद्ध करके सिखाया जाएगा । इस हिंदू चिकित्सा विद्यालय में ऐसे व्यक्ति को शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, जिसे अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों प्रकार के बैद्यक शास्त्रों का ज्ञान हो।
    
राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था यूरोपीय संस्कृत विद्वानों द्वारा भारत के अतीत के संबंध में किए गए अनुसंधानों को बंगाली भाषा के माध्यम से प्रकाशित करेगी । भौतिक, बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राचीन भारत के वैभव एवं उपलब्धियों का जो वर्णन उन्होंने किया है, उसे विशेष रूप से प्रकाश में लाया जाएगा ।... राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था संस्कृत की प्रगति को अपनी शक्ति भर पूरा प्रोत्साहन देगी । वह महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन की व्यवस्था करेगी । इस कार्य में बंगाल
 
राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था यूरोपीय संस्कृत विद्वानों द्वारा भारत के अतीत के संबंध में किए गए अनुसंधानों को बंगाली भाषा के माध्यम से प्रकाशित करेगी । भौतिक, बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राचीन भारत के वैभव एवं उपलब्धियों का जो वर्णन उन्होंने किया है, उसे विशेष रूप से प्रकाश में लाया जाएगा ।... राष्ट्रीयता संचारिणी संस्था संस्कृत की प्रगति को अपनी शक्ति भर पूरा प्रोत्साहन देगी । वह महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन की व्यवस्था करेगी । इस कार्य में बंगाल
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बेसिक शिक्षा की समीक्षा
 
बेसिक शिक्षा की समीक्षा
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उपर्युक्त मूल सिद्धांती के आधार पर बेसिक शिक्षा का प्रयोग देश में प्रारंभ हुआ । अनेक शिक्षा-शाख्ियों ने शिक्षा-शाख्त्र की दृष्टि से इस प्रयोग की समीक्षा प्रारंभ की । डॉ. कालूलाल श्रीमाली ने वर्धा शिक्षा योजना पर डॉक्टेेट स्तर का कार्य किया । डॉ. एम. एस. पटेल ने “महात्मा गांधी का शिक्षा-दर्शन' (नवजीवन पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित) नामक शोध ग्रंथ लिखा। अन्य शिक्षा अनुसंधानों में भी बेसिक शिक्षा पर गंभीरता से विचार किया गया । सभी अनुसंधानकर्ताओं ने बेसिक शिक्षा के उपर्युक्त सिद्धांतों की समीक्षा की और उनका विश्लेषण वर्तमान शिक्षा-शाख्र के संदर्भ में किया । इन अनुसंधानों में यह बताया गया कि बेसिक शिक्षा का दर्शन समयानुकूल है, इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष सबल है । इसका समाज-शास्त्रीय पक्ष पुष्ठ है और इसमें आर्थिक पक्ष की उपेक्षा नहीं की गई है । बेसिक शिक्षा को बाल-केंद्रित शिक्षा बताया गया है । इसे गतिशील शिक्षा कहा गया है और इसमें सहकारिता के गुण को उजागर किया गया है ।
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उपर्युक्त मूल सिद्धांती के आधार पर बेसिक शिक्षा का प्रयोग देश में प्रारंभ हुआ । अनेक शिक्षा-शाख्ियों ने शिक्षा-शाख्त्र की दृष्टि से इस प्रयोग की समीक्षा प्रारंभ की । डॉ. कालूलाल श्रीमाली ने वर्धा शिक्षा योजना पर डॉक्टेेट स्तर का कार्य किया । डॉ. एम. एस. पटेल ने “महात्मा गांधी का शिक्षा-दर्शन' (नवजीवन पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित) नामक शोध ग्रंथ लिखा। अन्य शिक्षा अनुसंधानों में भी बेसिक शिक्षा पर गंभीरता से विचार किया गया । सभी अनुसंधानकर्ताओं ने बेसिक शिक्षा के उपर्युक्त सिद्धांतों की समीक्षा की और उनका विश्लेषण वर्तमान शिक्षा-शास्त्र के संदर्भ में किया । इन अनुसंधानों में यह बताया गया कि बेसिक शिक्षा का दर्शन समयानुकूल है, इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष सबल है । इसका समाज-शास्त्रीय पक्ष पुष्ठ है और इसमें आर्थिक पक्ष की उपेक्षा नहीं की गई है । बेसिक शिक्षा को बाल-केंद्रित शिक्षा बताया गया है । इसे गतिशील शिक्षा कहा गया है और इसमें सहकारिता के गुण को उजागर किया गया है ।
    
गांधीजी के सत्य एवं अहिंसा की दृष्टि से भी बेसिक शिक्षा पर विचार किया गया है और इसे सत्यान्वेषी शिक्षा कहा गया है । केवल पुस्तकीय शिक्षा बालकों को सत्य और वास्तविकता से दूर रखती है । जीवन का प्रत्यक्ष सत्य अनुभव बेसिक शिक्षा में संभव है। इसमें बालक के आत्मविश्वास को जगा दिया जाता है । आत्मबल के अभाव में बालक कायर बन जाता है और कायर पुरुष हिंसक व्यापार करता है। बेसिक शिक्षा में अहिंसा के प्रयोग के अवसर विद्यमान हैं ।
 
गांधीजी के सत्य एवं अहिंसा की दृष्टि से भी बेसिक शिक्षा पर विचार किया गया है और इसे सत्यान्वेषी शिक्षा कहा गया है । केवल पुस्तकीय शिक्षा बालकों को सत्य और वास्तविकता से दूर रखती है । जीवन का प्रत्यक्ष सत्य अनुभव बेसिक शिक्षा में संभव है। इसमें बालक के आत्मविश्वास को जगा दिया जाता है । आत्मबल के अभाव में बालक कायर बन जाता है और कायर पुरुष हिंसक व्यापार करता है। बेसिक शिक्षा में अहिंसा के प्रयोग के अवसर विद्यमान हैं ।
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अनिवार्यता एवं माध्यम का प्रश्न
 
अनिवार्यता एवं माध्यम का प्रश्न
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बेसिक शिक्षा के पहले सिद्धांत को संसार भर में मान्यता प्राप्त है । संयुक्त राज्य अमेरिका में हाई स्कूल तक की शिक्षा अनिवार्य है । संसार के सभी देशों में किसी-न- किसी स्तर तक शिक्षा सार्वभौम, निःशुल्क एवं अनिवार्य है । उसका द्वितीय सिद्धांत भी शिक्षा-शाख्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । कोई भी सभ्य देश अपने देश में शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं बनाता । भारत में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में अस्वाभाविक प्रक्रिया बहुत दिनों तक चलती रही । शिक्षा के क्षेत्र में आज तक जितने आयोग और समितियाँ नियुक्त हुई हैं, उन सबने मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का समर्थन किया है । तब कौन कहेगा कि गांधीजी इस बात पर गलत थे ? किंतु आश्चर्य है कि स्वतंत्र भारत में हमारा अंग्रेजी-मोह बढ़ा है, घटा नहीं । आज की अंग्रेजी को शासन में, समाज में और शिक्षालयों में वह स्थान मिला हुआ है जो उसे नहीं मिलना चाहिए । धार्मिक समाज की शिक्षा गांधीवाद के विपरीत चल रही है । आज हमारे देश के विद्वान्‌ अंग्रेजी में लेख लिखने या
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बेसिक शिक्षा के पहले सिद्धांत को संसार भर में मान्यता प्राप्त है । संयुक्त राज्य अमेरिका में हाई स्कूल तक की शिक्षा अनिवार्य है । संसार के सभी देशों में किसी-न- किसी स्तर तक शिक्षा सार्वभौम, निःशुल्क एवं अनिवार्य है । उसका द्वितीय सिद्धांत भी शिक्षा-शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । कोई भी सभ्य देश अपने देश में शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं बनाता । भारत में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में अस्वाभाविक प्रक्रिया बहुत दिनों तक चलती रही । शिक्षा के क्षेत्र में आज तक जितने आयोग और समितियाँ नियुक्त हुई हैं, उन सबने मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का समर्थन किया है । तब कौन कहेगा कि गांधीजी इस बात पर गलत थे ? किंतु आश्चर्य है कि स्वतंत्र भारत में हमारा अंग्रेजी-मोह बढ़ा है, घटा नहीं । आज की अंग्रेजी को शासन में, समाज में और शिक्षालयों में वह स्थान मिला हुआ है जो उसे नहीं मिलना चाहिए । धार्मिक समाज की शिक्षा गांधीवाद के विपरीत चल रही है । आज हमारे देश के विद्वान्‌ अंग्रेजी में लेख लिखने या
    
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