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अधिकांश भारतवासियों की ऐसी मान्यता रही है कि ब्रिटिश शासनने भारत को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से चौपट कर दिया है। परन्तु कुछ लोग इस सोच से सहमत नहीं हैं। १९४७ में स्वतन्त्रता मिलने के बाद भी वे असहमत ही रहे हैं। ऐसे आधुनिकों में जवाहरलालजी एक थे। यद्यपि सार्वजनिक रूप से वे ऐसे कथनों का आमना सामना करने से स्वंय को बचाते थे, परन्तु १९२८ के आसपास के दिनों में व्यक्तिगत रूप से वे अपने विचार व्यक्त करते रहे थे। महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा, 'आपने कहीं पर कहा है कि भारत को पाश्चात्यों से सीखने लायक कुछ भी नहीं है, उसने तो पहले से ही सयानेपन के शिखर सर
 
अधिकांश भारतवासियों की ऐसी मान्यता रही है कि ब्रिटिश शासनने भारत को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से चौपट कर दिया है। परन्तु कुछ लोग इस सोच से सहमत नहीं हैं। १९४७ में स्वतन्त्रता मिलने के बाद भी वे असहमत ही रहे हैं। ऐसे आधुनिकों में जवाहरलालजी एक थे। यद्यपि सार्वजनिक रूप से वे ऐसे कथनों का आमना सामना करने से स्वंय को बचाते थे, परन्तु १९२८ के आसपास के दिनों में व्यक्तिगत रूप से वे अपने विचार व्यक्त करते रहे थे। महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा, 'आपने कहीं पर कहा है कि भारत को पाश्चात्यों से सीखने लायक कुछ भी नहीं है, उसने तो पहले से ही सयानेपन के शिखर सर
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कर लिए हैं। मैं आपके इस दृष्टिकोण से निश्चित रूप से सहमत नहीं हूँ। मेरे मतानुसार पश्चिम, विशेष कर औद्योगिक संस्कृति भारत को जीतने में समर्थ है। हाँ उसमें सुधार और परिवर्तन अवश्य होंगे। आपने औद्योगिकरण की कुछ कमियों की आलोचना तो की पर उसके लाभ तथा उत्तम पहलू को अनदेखा भी किया है। लोग कमियां समझते ही हैं फिर भी आदर्श राज्य व्यवस्था एवं सामाजिक सिद्धान्तों के द्वारा उसका निवारण सम्भव है ही। पश्चिम के कुछ बुद्धिजीवियों का मन्तव्य है कि ये कमियां औद्योगिकरण की नहीं हैं परन्तु पूंजीवादी प्रणाली की शोषणवृत्ति की पैदाइश है। आपने कहा है कि पूंजीपति एवं मजदूरों के बीच संघर्ष नहीं होना चाहिए। मैं मानता हूँ कि पूंजीवादी प्रथा में ऐसा संघर्ष अनिवार्य है। २७ पश्चिमी आधुनिकता विषयक सोच ही उस प्रकार की हैऐसा पंद्रह वर्ष बाद गांधीजी को नेहरूने बताया।२८ अपने पत्र में नेहरू ने यह भी टिप्पणी की कि, 'क्यों गाँवों को सत्य एवं अहिंसा के साथ जोडना चाहिए ? गाँव तो सामान्य रूप से बौद्धिक एवं सांस्कृतिक रूप से पिछडे हुए हैं। पिछड़ेपन के वातावरण में विकास सम्भव नहीं है। संकुचित सोच रखनेवाले लोग अधिकांशतः झूठे एवं हिंसापूर्ण ही होते हैं।' २९
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पश्चिम का सम्पूर्ण ज्ञान एवं विविध तथ्यों विषयक सिद्धांतीकरण किसी मूल तथ्यों का साररूप हो यह माना जा सकता है। यह केवल मानवता या समाजविद्या जैसी विद्या तक सीमित न रहकर भौतिक विज्ञान के लिए भी कहा जा सकता है। उनमें एक, मानव नृवंशशास्त्र है। मानववंश विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो केवल गैर यूरोपीय और विजित लोगों के विषय में ही है। यह तथा इसके अनुषांगिक अन्य शास्त्र गैर यूरोपीय लोगों ने जो संज्ञा दी उसे केवल एक बीज समझ कर मूल्यांकन करते हैं। प्रोफेसर क्लाउड़ लेवी इस शास्त्र का वर्णन इस प्रकार करते हैं -
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'नृवंशशास्त्र कोई ऐसा शास्त्र या विज्ञान नहीं है जो
    
==References==
 
==References==
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