Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 112: Line 112:  
विशेष बात यह है कि ब्रिटिश मुलाकातियों या विशेषज्ञों द्वारा जिस किसी भी भारतीय पद्धति का विवरण किया गया है वह सब उस समय की ब्रिटिश पद्धतियों में सुधार करने हेतु था। अमुक पद्धतियाँ कितनी लाभकारी हैं यह सूचित करने हेतु उसका विवरण किया गया। लगभग १७७० के आसपास बंगाल के ब्रिटिश कमाण्डर इन चीफ की ओर से ब्रिटिश रोयल सोसायटी को विस्तार से दी गई जानकारी एक पत्र के रूप में थी। उसमें प्रमुख रूप से - इलाहाबाद के गरम जलवायु को ध्यान में रखकर कृत्रिम बर्फ के उत्पादन की प्रक्रिया बताई गई थी। ऐसे उदाहरण तो अनेक हैं। उदाहरण के तौर पर बोर्ड ऑव् एग्रीकल्चर, लन्दनको, ब्रिटनमें १७९५ में प्रारम्भ हुए बीज तथा बीजांकुरण विषयक प्रयोगों के लिए उपयोगी, दक्षिण भारत में होनेवाले कुछेक बीजप्रयोगों का विवरण भेजा गया था। भारतीय चूना एवं कपडे के रंगों के घटक तथा उसकी समग्र पद्धति तथा लोहे के उत्पादन की पद्धति का निरूपण ब्रिटन __ में अपनाई जानेवाली तत्कालीन पद्धति में सुधार लाने हेतु भेजा गया था। जब ब्रिटन में लगभग सन् १८०० के आसपास साधारण बच्चों की शिक्षा हेतु प्रयास प्रारम्भ किए गए तब भारत में सत्रहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी के दौरान प्रचलित 'प्रमुख छात्र पद्धति' (Monitor System) की ओर कुछ यूरोपीयों का ध्यान गया था। ब्रिटन को प्रारम्भ में इसी पद्धति पर निर्भर रहना पड़ा था।२० ।
 
विशेष बात यह है कि ब्रिटिश मुलाकातियों या विशेषज्ञों द्वारा जिस किसी भी भारतीय पद्धति का विवरण किया गया है वह सब उस समय की ब्रिटिश पद्धतियों में सुधार करने हेतु था। अमुक पद्धतियाँ कितनी लाभकारी हैं यह सूचित करने हेतु उसका विवरण किया गया। लगभग १७७० के आसपास बंगाल के ब्रिटिश कमाण्डर इन चीफ की ओर से ब्रिटिश रोयल सोसायटी को विस्तार से दी गई जानकारी एक पत्र के रूप में थी। उसमें प्रमुख रूप से - इलाहाबाद के गरम जलवायु को ध्यान में रखकर कृत्रिम बर्फ के उत्पादन की प्रक्रिया बताई गई थी। ऐसे उदाहरण तो अनेक हैं। उदाहरण के तौर पर बोर्ड ऑव् एग्रीकल्चर, लन्दनको, ब्रिटनमें १७९५ में प्रारम्भ हुए बीज तथा बीजांकुरण विषयक प्रयोगों के लिए उपयोगी, दक्षिण भारत में होनेवाले कुछेक बीजप्रयोगों का विवरण भेजा गया था। भारतीय चूना एवं कपडे के रंगों के घटक तथा उसकी समग्र पद्धति तथा लोहे के उत्पादन की पद्धति का निरूपण ब्रिटन __ में अपनाई जानेवाली तत्कालीन पद्धति में सुधार लाने हेतु भेजा गया था। जब ब्रिटन में लगभग सन् १८०० के आसपास साधारण बच्चों की शिक्षा हेतु प्रयास प्रारम्भ किए गए तब भारत में सत्रहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी के दौरान प्रचलित 'प्रमुख छात्र पद्धति' (Monitor System) की ओर कुछ यूरोपीयों का ध्यान गया था। ब्रिटन को प्रारम्भ में इसी पद्धति पर निर्भर रहना पड़ा था।२० ।
   −
हिन्दुस्तानी बस्ती का अधिकांश भाग खेती एवं पशुपालन पर निर्भर था। जबकि अधिकांश प्रदेशों में आधे से अधिक जनसंख्या खेती के व्यवसाय में ही थी। पूर्व में उल्लेख हुआ है उसके अनुसार खेती के उपकरण आधुनिक युक्तिपूर्वक तैयार करके उपयोग में लाए जाते थे। खेती की पद्धतियों में बहुत वैविध्य दिखाई देता था। जैसे कि बीज का चयन, उसकी देखभाल, विविध उर्वरक, बुआई, तथा सिंचन इत्यादि पद्धतियों की विभिन्न विकसित एवं युक्तिपूर्ण पद्धतियाँ अपनाकर भारत का किसान प्रचुर मात्रा में फसल
+
हिन्दुस्तानी बस्ती का अधिकांश भाग खेती एवं पशुपालन पर निर्भर था। जबकि अधिकांश प्रदेशों में आधे से अधिक जनसंख्या खेती के व्यवसाय में ही थी। पूर्व में उल्लेख हुआ है उसके अनुसार खेती के उपकरण आधुनिक युक्तिपूर्वक तैयार करके उपयोग में लाए जाते थे। खेती की पद्धतियों में बहुत वैविध्य दिखाई देता था। जैसे कि बीज का चयन, उसकी देखभाल, विविध उर्वरक, बुआई, तथा सिंचन इत्यादि पद्धतियों की विभिन्न विकसित एवं युक्तिपूर्ण पद्धतियाँ अपनाकर भारत का किसान प्रचुर मात्रा में फसल प्राप्त करता था। १८०३ के ब्रिटिश अहवाल के अनुसार इलाहाबाद वाराणसी क्षेत्र की खेती की उपज एवं ब्रिटन की खेती की उपज की तुलना करने पर ब्रिटन में गेहूँ की पैदावार से यहाँ तीन गुना अधिक पैदावार दर्ज की गई थी। तमिलनाडु के चेंगलपट्ट जिले में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार १७७० के लगभग की धान की प्रति हेक्टर औसत पैदावार ३ से ४ टन थी। जब कि जिले की उत्तम प्रकार की जमीन में यह पैदावार ६ टन जितनी थी। उल्लेखनीय है कि विश्व में आज भी धान का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन प्रति हेक्टर ६ टन ही दर्ज किया गया है।
 +
 
 +
सन् १८०० के आसपास देखी जाने वाली खर्च एवं उपभोग प्रणाली से भी कुछ तुलना एवं सन्तुलन बिठाया जा सकता है। इसके लिए १८०६ में दर्ज की गई बेलारी एवं कुडाप्पा जिले की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। पूरा जनसमाज तीन भागों में बँटा है। उच्च वर्ग, मध्यम कक्षा के निर्वाहक साधनों से परिपूर्ण मध्यम वर्ग, निकृष्ट साधनों से निर्वाह करनेवाला निम्न वर्ग। बेलारी जिले में उच्च वर्ग में समाविष्ट लोगों की संख्या २,५९,५६८ थी। मध्यम वर्ग की ३,७२,८७७ एवं निम्न वर्ग की संख्या २,१८,६८४ थी। इन वर्गों का प्रति परिवार वार्षिक औसत उपभोक्ता खर्च ६९:३७:३० के अनुपात में था। सभी परिवारोमें अनाज का उपभोग समान था। परन्तु अनाज की गुणवत्ता एवं भिन्नता के कारण उपभोक्ता खर्च का अनुपात भिन्न दिखाई देता है। उपभोग की सामग्री की सूची में २३ वस्तुओं के नाम थे, जिसमें घी, एवं खाद्यतेल का अनुपात लगभग ३:१:१ था, जबकि दाल तथा अनाज ८:३:३ के अनुपात में खर्च होता था।२१
 +
 
 +
==== १०. ====
 +
अठारहवीं शताब्दी के मध्य के भारतीय समाज की राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिति को १७६७-१७७४ के दौरान तमिलनाडु के चेंगलपट्ट जिले के ब्यौरेवार सर्वेक्षण के द्वारा समझा जा सकता है।२२ जबकि यह ब्रिटिशरों के द्वारा बहुत विस्तार से किया गया प्रथम सर्वेक्षण था। उस समय वे हिन्दुस्तान की तत्कालीन सामाजिक स्थिति, उत्पादन प्रणालियों एवं औद्योगिक ढाँचे के आन्तर्सम्बन्धों से लगभग अनजान थे। इसलिए यह सम्भव है कि यह सर्वेक्षण एक अनुमानित स्थिति ही हो जिसमें प्रवर्तमान बहुत सी वास्तविकताओं एवं तत्कालीन स्थिति ध्यान में न आई हो। इसका सटीक उदाहरण नमक पकाने वाले लोगों की संख्या का ही है जो केवल ३९ जितना ही बताया गया है। जबकि वास्तव में केवल चेंगलपट्ट जिले का ही १०० कि.मी. लम्बा समुद्रकिनारा है, जिसके आसपास लगभग २००० हेक्टर में नमक पकाने के अगर स्थित थे। ऐसा भी हो सकता है कि सर्वेक्षण में केवल नमक पकाने में व्यस्त एवं देखभाल रखनेवालों की ही गणना की गई हो, समग्र उत्पादन प्रक्रिया के साथ सम्बन्धित लोगों की गणना न की गई हो।
 +
 
 +
निम्न लिखित सारिणी में जो निरूपण दिया गया है उससे चेंगलपट्ट क्षेत्र के सम्पूर्ण समाज की तत्कालीन (१७७० के आसपास) स्थिति को समझने में सहायता मिलने की सम्भावना है। यह चित्र तत्कालीन भारतीय समाज की अठारहवीं शताब्दी के अन्त भाग की स्थिति को भी दर्शाता है।
 +
 
 +
==== १. १८८० बस्तियों में वितरित भूमि, ('कणी' में) ====
 +
 
 +
==== (१ कणी लगभग आधे हैक्टर से अधिक भूमि के बराबर है) ====
 +
[[File:Capture१०१ .png|none|thumb|303x303px]]
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu