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→‎व्यवहार के विभिन्न आयाम: लेख सम्पादित किया
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इस प्रकार रचना का संबंध निर्माण से है। व्यवस्था का संबंध सुविधा और आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ है । उदाहरण के लिए हम नगर में, विद्यालय में, कार्यालय में या घर में प्रकाश और पानी की व्यवस्था करते हैं । किसी कार्यक्रम में लोगोंं को बैठने की व्यवस्था करते हैं । सबको सुनाई दे इस प्रकार से ध्वनि की व्यवस्था करते हैं । सबके लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं, सब में अर्थव्यवस्था होती है, राज्यव्यवस्था होती है, शिक्षा व्यवस्था होती है । धर्म व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था आदि भी बहुत बड़ी व्यवस्थाएँ हैं । व्यवस्थाएँ आवश्यकता की पूर्ति के लिए तो होती ही हैं साथ ही सब कुछ ठीक बना रहे, अतः भी होती हैं ।  
 
इस प्रकार रचना का संबंध निर्माण से है। व्यवस्था का संबंध सुविधा और आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ है । उदाहरण के लिए हम नगर में, विद्यालय में, कार्यालय में या घर में प्रकाश और पानी की व्यवस्था करते हैं । किसी कार्यक्रम में लोगोंं को बैठने की व्यवस्था करते हैं । सबको सुनाई दे इस प्रकार से ध्वनि की व्यवस्था करते हैं । सबके लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं, सब में अर्थव्यवस्था होती है, राज्यव्यवस्था होती है, शिक्षा व्यवस्था होती है । धर्म व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था आदि भी बहुत बड़ी व्यवस्थाएँ हैं । व्यवस्थाएँ आवश्यकता की पूर्ति के लिए तो होती ही हैं साथ ही सब कुछ ठीक बना रहे, अतः भी होती हैं ।  
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प्रक्रिया किसी भी पदार्थ की बनावट के साथ सम्बंधित होती है । उदाहरण के लिए रोटी बनाते समय विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का एक निश्चित क्रम बना होता है । वस्त्र बनाने की एक निश्चित पद्धति होती है । भवन स्चना में जो विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ हैं, उनका निश्चित क्रम और एक दूसरे के साथ सम्बंध होता है । प्रक्रिया का पदार्थ की बनावट पर परिणाम होता है । उदाहरण के लिए घड़ा बनाते समय मिट्टी को ठीक तरह से गूँधा नहीं गया या ठीक तरह से भट्टी में पकाया नहीं गया तो घड़ा कच्चा रह जाता है । वस्त्र बनाते समय यदि धागे को पक्का नहीं बनाया गया तो वस्त्र अच्छा नहीं बनता। कपड़ा रंगने के समय यदि प्रक्रिया ठीक से नहीं हुई तो कपड़े का रंग कच्चा रह जाता है और पानी में भिगोते समय उतर जाता है या दूसरे कपड़े पर बैठ जाता है । भवन बनाते समय ईंटों को और प्लास्टर को पानी से सींचा नहीं गया तो दीवारें कच्ची रह जाती हैं । अध्यापन करते समय छात्र को ठीक से समझ में आया कि नहीं, यह देखा नहीं गया तो ठीक से अध्यापन नहीं होता । एक वस्तु में जितने भी पदार्थ होते हैं उनकी मिलावट ठीक मात्रा में और ठीक पद्धति से नहीं हुई तो वस्तु अच्छी नहीं बनती । इसका अर्थ है कि प्रक्रिया का अत्यंत महत्व है ।  
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प्रक्रिया किसी भी पदार्थ की बनावट के साथ सम्बंधित होती है । उदाहरण के लिए रोटी बनाते समय विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का एक निश्चित क्रम बना होता है । वस्त्र बनाने की एक निश्चित पद्धति होती है । भवन रचना में जो विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ हैं, उनका निश्चित क्रम और एक दूसरे के साथ सम्बंध होता है । प्रक्रिया का पदार्थ की बनावट पर परिणाम होता है । उदाहरण के लिए घड़ा बनाते समय मिट्टी को ठीक तरह से गूँधा नहीं गया या ठीक तरह से भट्टी में पकाया नहीं गया तो घड़ा कच्चा रह जाता है । वस्त्र बनाते समय यदि धागे को पक्का नहीं बनाया गया तो वस्त्र अच्छा नहीं बनता। कपड़ा रंगने के समय यदि प्रक्रिया ठीक से नहीं हुई तो कपड़े का रंग कच्चा रह जाता है और पानी में भिगोते समय उतर जाता है या दूसरे कपड़े पर बैठ जाता है । भवन बनाते समय ईंटों को और प्लास्टर को पानी से सींचा नहीं गया तो दीवारें कच्ची रह जाती हैं । अध्यापन करते समय छात्र को ठीक से समझ में आया कि नहीं, यह देखा नहीं गया तो ठीक से अध्यापन नहीं होता । एक वस्तु में जितने भी पदार्थ होते हैं उनकी मिलावट ठीक मात्रा में और ठीक पद्धति से नहीं हुई तो वस्तु अच्छी नहीं बनती । इसका अर्थ है कि प्रक्रिया का अत्यंत महत्व है ।  
    
हम शारीरिक और मानसिक रूप से जो- जो भी करते हैं, वह सारी क्रियाएँ हैं । तत्व के व्यावहारिक स्वरूप का यह बहुत बड़ा आयाम है, शरीर से हम बहुत सारी क्रियाएँ करते हैं उदाहरण के लिए चलना, उठना, बैठना, पकड़ना, फेंकना, बोलना, गाना इत्यादि। मानसिक रूप से हम विचार करते हैं, इच्छाएँ करते हैं और विभिन्न प्रकार के भावों का अनुभव करते हैं । हमारी पसंद-नापसंद होती है । इन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का बनावट, रचना, व्यवस्था आदि सभी पर बहुत बड़ा परिणाम होता है । सम्पूर्ण विश्व के समग्र व्यवहार में रचना, व्यवस्था, प्रक्रिया और क्रिया की बहुत बड़ी भूमिका है । अतः इन सभी बातों के लिए बहुत सजग और कुशल रहना चाहिए।
 
हम शारीरिक और मानसिक रूप से जो- जो भी करते हैं, वह सारी क्रियाएँ हैं । तत्व के व्यावहारिक स्वरूप का यह बहुत बड़ा आयाम है, शरीर से हम बहुत सारी क्रियाएँ करते हैं उदाहरण के लिए चलना, उठना, बैठना, पकड़ना, फेंकना, बोलना, गाना इत्यादि। मानसिक रूप से हम विचार करते हैं, इच्छाएँ करते हैं और विभिन्न प्रकार के भावों का अनुभव करते हैं । हमारी पसंद-नापसंद होती है । इन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का बनावट, रचना, व्यवस्था आदि सभी पर बहुत बड़ा परिणाम होता है । सम्पूर्ण विश्व के समग्र व्यवहार में रचना, व्यवस्था, प्रक्रिया और क्रिया की बहुत बड़ी भूमिका है । अतः इन सभी बातों के लिए बहुत सजग और कुशल रहना चाहिए।

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