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योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय।  
 
योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय।  
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शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं।अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामर्थ्यों, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है। खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है।
 
शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं।अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामर्थ्यों, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है। खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है।
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[[Yoga and Its Four Paths|यह लेख]] भी देखें।
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==References==
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<references />
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[[Category:Education Series]]

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