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१. इस लेख का शीर्षक ही अतार्किक है । यन्त्र निर्जीव होता है। उसके लिये संस्कृति आप्रस्तुत है। वह प्रकृति के अधीन होता है । संस्कृति मनुष्य के लिये होती है। परन्तु यन्त्र से जुड़कर जिसका प्रादुर्भाव होता है वह संस्कृति नहीं अपितु विकृति ही होती है ऐसा आजतक का विश्व का अनुभव कह रहा है। विकृति शीर्षक ही होना चाहिये यन्त्रविकृति से विनाश ।
 
१. इस लेख का शीर्षक ही अतार्किक है । यन्त्र निर्जीव होता है। उसके लिये संस्कृति आप्रस्तुत है। वह प्रकृति के अधीन होता है । संस्कृति मनुष्य के लिये होती है। परन्तु यन्त्र से जुड़कर जिसका प्रादुर्भाव होता है वह संस्कृति नहीं अपितु विकृति ही होती है ऐसा आजतक का विश्व का अनुभव कह रहा है। विकृति शीर्षक ही होना चाहिये यन्त्रविकृति से विनाश ।
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३. मनुष्य के हाथ की कुशलता और बुद्धि की निर्माणक्षमता ने प्रारम्भ काल से ही अनेक यन्त्रों का आविष्कार किया है । यन्त्रनिर्माण की प्रक्रिया तो अभी भी चल ही रही है । परन्तु यन्त्रों के दो प्रकार हैं। एक होते हैं मनुष्य को काम करने में सहायता करने वाले, मनुष्य का कष्ट और परिश्रम कम करनेवाले और बदलेमें किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाने वाले यन्त्र । दूसरे होते है मनुष्य के स्थान पर काम करनेवाले, मनुष्य को बेरोजगार और बेकार बनाने वाले और कष्ट कम करनेके बदले में दूसरे प्रकार से अपरिमित हानि पहुँचाने वाले यन्त्र । एक प्रकार के यन्त्र सभ्यता और संस्कृति का विकास करने में सहायता करते हैं । दूसरे प्रकार के विकृति निर्माण कर विनाश की ओर ले जाते हैं । अतः यन्त्रों के प्रयोग में विवेक की बहुत आवश्यकता है ।
 
३. मनुष्य के हाथ की कुशलता और बुद्धि की निर्माणक्षमता ने प्रारम्भ काल से ही अनेक यन्त्रों का आविष्कार किया है । यन्त्रनिर्माण की प्रक्रिया तो अभी भी चल ही रही है । परन्तु यन्त्रों के दो प्रकार हैं। एक होते हैं मनुष्य को काम करने में सहायता करने वाले, मनुष्य का कष्ट और परिश्रम कम करनेवाले और बदलेमें किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाने वाले यन्त्र । दूसरे होते है मनुष्य के स्थान पर काम करनेवाले, मनुष्य को बेरोजगार और बेकार बनाने वाले और कष्ट कम करनेके बदले में दूसरे प्रकार से अपरिमित हानि पहुँचाने वाले यन्त्र । एक प्रकार के यन्त्र सभ्यता और संस्कृति का विकास करने में सहायता करते हैं । दूसरे प्रकार के विकृति निर्माण कर विनाश की ओर ले जाते हैं । अतः यन्त्रों के प्रयोग में विवेक की बहुत आवश्यकता है ।
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४. पदार्थ विज्ञान के नियमों के ज्ञान, मानवीय और प्राकृतिक ऊर्जा और ऊर्जा और पदार्थों का विनियोग कर कृषि के, वस्त्र बनाने के, परिवहन के, मकान बनाने के काम में आ सकें ऐसे अगणित यन्त्र मनुष्य ने बनाये । ये सब उसके मददगार थे । मनुष्य मुख्य था । आज विद्युत, भाँप, पेट्रोल, अणु आदि ऊर्जा का प्रयोग कर उनसे संचालित होने वाले राक्षसी आकार प्रकार के यन्त्रों से जो केन्द्रीकृत उत्पादन हो रहा है उसमें मनुष्य बेचारा बन गया है, स्वयं संसाधन बन गया है और यन्त्रों द्वारा संचालित हो रहा है ।  
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४. पदार्थ विज्ञान के नियमों के ज्ञान, मानवीय और प्राकृतिक ऊर्जा और ऊर्जा और पदार्थों का विनियोग कर कृषि के, वस्त्र बनाने के, परिवहन के, मकान बनाने के काम में आ सकें ऐसे अगणित यन्त्र मनुष्य ने बनाये । ये सब उसके सहायतागार थे । मनुष्य मुख्य था । आज विद्युत, भाँप, पेट्रोल, अणु आदि ऊर्जा का प्रयोग कर उनसे संचालित होने वाले राक्षसी आकार प्रकार के यन्त्रों से जो केन्द्रीकृत उत्पादन हो रहा है उसमें मनुष्य बेचारा बन गया है, स्वयं संसाधन बन गया है और यन्त्रों द्वारा संचालित हो रहा है ।  
    
५. मनुष्य की काम करने की कुशलता और स्वतन्त्रता का, मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का और पर्यावरण का ऐसे तीन प्रकार से यन्त्रों का इस प्रकार का प्रयोग विनाशक है । ये तीनों अधिक से अधिक विनाशक गति को चालना देने वाले, गति को बढाने वाले ही हैं ।
 
५. मनुष्य की काम करने की कुशलता और स्वतन्त्रता का, मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का और पर्यावरण का ऐसे तीन प्रकार से यन्त्रों का इस प्रकार का प्रयोग विनाशक है । ये तीनों अधिक से अधिक विनाशक गति को चालना देने वाले, गति को बढाने वाले ही हैं ।

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