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मोक्ष एक ऐसा लक्ष्य है. जिसकी अपेक्षा की, तो वह नहीं मिलता परन्तु अपेक्षा किए बिना यदि प्रामाणिकतापूर्वक मार्ग पर चलते रहे तो सहज ही मोक्ष मिल जाता है ।
 
मोक्ष एक ऐसा लक्ष्य है. जिसकी अपेक्षा की, तो वह नहीं मिलता परन्तु अपेक्षा किए बिना यदि प्रामाणिकतापूर्वक मार्ग पर चलते रहे तो सहज ही मोक्ष मिल जाता है ।
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दुःख से मुक्ति तो हम हमेशा चाहते ही हैं परन्तु दुःख किसे मानते हैं वह अपने अपने स्तर के अनुसार, अपनी अपनी स्थिति के अनुसार, अपनी अपनी शक्ति के अनुसार तय होता है। किसी एक व्यक्ति को जिससे सुख मिलता है वही दूसरे के लिए दुःख देने वाला होता है। अतः मुक्ति की धारणा भी सबकी भिन्न भिन्न होती है । फिर भी जाने अनजाने सबकी यात्रा तो मुक्ति की ओर ही होती है।  
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दुःख से मुक्ति तो हम सदा चाहते ही हैं परन्तु दुःख किसे मानते हैं वह अपने अपने स्तर के अनुसार, अपनी अपनी स्थिति के अनुसार, अपनी अपनी शक्ति के अनुसार तय होता है। किसी एक व्यक्ति को जिससे सुख मिलता है वही दूसरे के लिए दुःख देने वाला होता है। अतः मुक्ति की धारणा भी सबकी भिन्न भिन्न होती है । तथापि जाने अनजाने सबकी यात्रा तो मुक्ति की ओर ही होती है।  
    
'''सीधी सादी बात कही जाय तो मोक्ष की चिंता न कर शेष तीनों पुरुषार्थ अर्थात्‌ काम, अर्थ और धर्म पुरुषार्थों को समुचित आचरण में लाया जाय तो मोक्ष अपने आप हमारे लिए सुलभ हो जाता है।'''
 
'''सीधी सादी बात कही जाय तो मोक्ष की चिंता न कर शेष तीनों पुरुषार्थ अर्थात्‌ काम, अर्थ और धर्म पुरुषार्थों को समुचित आचरण में लाया जाय तो मोक्ष अपने आप हमारे लिए सुलभ हो जाता है।'''

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