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# हीनताबोध का रोग चित्तगत हैं । ये संस्कार आज की पीढी को जन्म से प्राप्त हुए है । चित्तशुद्धि होने पर ये संस्कार मिट सकते हैं। अतः चित्तशुद्धि के उपाय करने की आवश्यकता है। चित्तशुद्धि मनोबल और विवेक से भी परे हैं। सत्संग, स्वाध्याय, सदाचार और शुद्ध आहार का चित्त के साथ सम्बन्ध है। परन्तु इनके साथ ध्यान भी आवश्यक है। अंग्रेजीयत से मुक्ति का संकल्प लेकर यदि यह सब किया जाय तो हम इस रोग से मुक्त हो सकते हैं।  
 
# हीनताबोध का रोग चित्तगत हैं । ये संस्कार आज की पीढी को जन्म से प्राप्त हुए है । चित्तशुद्धि होने पर ये संस्कार मिट सकते हैं। अतः चित्तशुद्धि के उपाय करने की आवश्यकता है। चित्तशुद्धि मनोबल और विवेक से भी परे हैं। सत्संग, स्वाध्याय, सदाचार और शुद्ध आहार का चित्त के साथ सम्बन्ध है। परन्तु इनके साथ ध्यान भी आवश्यक है। अंग्रेजीयत से मुक्ति का संकल्प लेकर यदि यह सब किया जाय तो हम इस रोग से मुक्त हो सकते हैं।  
 
# इन सबके आधार पर धार्मिक और यूरोपीय ज्ञानधारा का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय, तो यूरोपीय ज्ञान, यूरोपीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली, जीवनव्यवस्था की कमियाँ समझ में आने लगेंगी। फिर हम उन पर तरस खायेंगे और अपने आप पर हँसेंगे। अर्थात् यह कार्य शिक्षकों का है, विश्वविद्यालयों का है।  
 
# इन सबके आधार पर धार्मिक और यूरोपीय ज्ञानधारा का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय, तो यूरोपीय ज्ञान, यूरोपीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली, जीवनव्यवस्था की कमियाँ समझ में आने लगेंगी। फिर हम उन पर तरस खायेंगे और अपने आप पर हँसेंगे। अर्थात् यह कार्य शिक्षकों का है, विश्वविद्यालयों का है।  
# समाज के जो श्रेष्ठ लोग हैं उन्हें पहल करनी होगी। उदाहरण के लिये उच्चशिक्षित लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में नहीं भेजेंगे तो सामान्य लोग भी नहीं भेजेंगे । अत्यन्त धनवान लोग अंग्रेजी वेशभूषा और खानपान का त्याग करेंगे तो मध्यम वर्गीय लोग भी करेंगे। फिल्मों के नट्नटियाँ यदि संस्कारयुक्त व्यवहार करने लगेंगे तो अशिक्षित लोग भी संस्कारवान बनेंगे। अधिकारी वर्ग मातृभाषा का आग्रह आरम्भ करेगा तो कर्मचारी भी उनका अनुसरण करेगा।  
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# समाज के जो श्रेष्ठ लोग हैं उन्हें पहल करनी होगी। उदाहरण के लिये उच्चशिक्षित लोग अपने बच्चोंं को अंग्रेजी माध्यम में नहीं भेजेंगे तो सामान्य लोग भी नहीं भेजेंगे । अत्यन्त धनवान लोग अंग्रेजी वेशभूषा और खानपान का त्याग करेंगे तो मध्यम वर्गीय लोग भी करेंगे। फिल्मों के नट्नटियाँ यदि संस्कारयुक्त व्यवहार करने लगेंगे तो अशिक्षित लोग भी संस्कारवान बनेंगे। अधिकारी वर्ग मातृभाषा का आग्रह आरम्भ करेगा तो कर्मचारी भी उनका अनुसरण करेगा।  
 
# भारत गरीब नहीं है तो भी अपने आपको गरीब मानता है, पिछडा हुआ नहीं है तो भी वैसा मानता है, अज्ञानी नहीं है तो भी अज्ञानी मानता है, दुर्जन नहीं है तो भी अपने आपको सज्जन नहीं मानता क्योंकि वह पराये मापदण्डों से अपना मूल्यांकन करता हैं। हमें चाहिये कि हम अपने मापदण्ड निश्चित करें, अपने आप पर लागू करें और यूरोप पर भी लागू करें तब बात हमारी समझ में आयेगी।  
 
# भारत गरीब नहीं है तो भी अपने आपको गरीब मानता है, पिछडा हुआ नहीं है तो भी वैसा मानता है, अज्ञानी नहीं है तो भी अज्ञानी मानता है, दुर्जन नहीं है तो भी अपने आपको सज्जन नहीं मानता क्योंकि वह पराये मापदण्डों से अपना मूल्यांकन करता हैं। हमें चाहिये कि हम अपने मापदण्ड निश्चित करें, अपने आप पर लागू करें और यूरोप पर भी लागू करें तब बात हमारी समझ में आयेगी।  
 
# भारत जब हीनताबोध से मुक्त होगा तभी उसका आत्मविश्वास जागृत होगा। आत्मविश्वास से प्रेरित अध्ययन और व्यवहार उसके विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे । भारत भारत बनेगा तो अपने आप विश्व के लिये उदाहरण प्रस्तुत करेगा । फूल जिस प्रकार होने से ही सुगन्ध बिखेरता है, सूर्य जैसे होने से ही प्रकाश फैलाता है उस प्रकार भारत भारत होने से ही ज्ञान के प्रकाश को फैलाकर अज्ञानजनित, मोहजनित भ्रान्तियों को दूर करता है। उसे कोई अलग से अभियान छेडने की आवश्यकता नहीं रहती।
 
# भारत जब हीनताबोध से मुक्त होगा तभी उसका आत्मविश्वास जागृत होगा। आत्मविश्वास से प्रेरित अध्ययन और व्यवहार उसके विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे । भारत भारत बनेगा तो अपने आप विश्व के लिये उदाहरण प्रस्तुत करेगा । फूल जिस प्रकार होने से ही सुगन्ध बिखेरता है, सूर्य जैसे होने से ही प्रकाश फैलाता है उस प्रकार भारत भारत होने से ही ज्ञान के प्रकाश को फैलाकर अज्ञानजनित, मोहजनित भ्रान्तियों को दूर करता है। उसे कोई अलग से अभियान छेडने की आवश्यकता नहीं रहती।

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