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==== २. ज्ञानात्मक हल ढूंढने की प्रवृत्ति ====
 
==== २. ज्ञानात्मक हल ढूंढने की प्रवृत्ति ====
विश्व को संकटों से मुक्त करना है तो भारत को अग्रसर होना होगा, पथप्रदर्शक बनना होगा इसमें न तो विश्व को सन्देह है न भारत को । भारत को सन्देह होना भी नहीं चाहिये । परन्तु आज भारत जैसा है वैसा तो पथप्रदर्शक नहीं बन सकता । आज भारत स्वयं पश्चिम की छाया में जी रहा है, यूरोप बनने की आकांक्षा पाल रहा है, प्रयास कर रहा है। स्वयं के लिये और विश्व के लिये भारत को बदलना पडेगा। भारत को भारत बनना होगा । ऐसा करके ही वह अपनी भूमिका निभा सकेगा।
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विश्व को संकटों से मुक्त करना है तो भारत को अग्रसर होना होगा, पथप्रदर्शक बनना होगा इसमें न तो विश्व को सन्देह है न भारत को । भारत को सन्देह होना भी नहीं चाहिये । परन्तु आज भारत जैसा है वैसा तो पथप्रदर्शक नहीं बन सकता । आज भारत स्वयं पश्चिम की छाया में जी रहा है, यूरोप बनने की आकांक्षा पाल रहा है, प्रयास कर रहा है। स्वयं के लिये और विश्व के लिये भारत को बदलना पड़ेगा। भारत को भारत बनना होगा । ऐसा करके ही वह अपनी भूमिका निभा सकेगा।
    
भारत भारत बने इसका अर्थ क्या है ? वह कैसे होगा ? भारत को क्या करना होगा ?  
 
भारत भारत बने इसका अर्थ क्या है ? वह कैसे होगा ? भारत को क्या करना होगा ?  
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# परन्तु ऐसा बोलने की और करने की हिम्मत हम नहीं कर सकते हैं । तुरन्त ही प्रतितर्क आरम्भ हो जाते हैं । अंग्रेजी में क्या बुराई है ? यूरोपीय वेश पहनने से क्या हम धार्मिक नहीं रहते ? पित्झा खाने से क्या हम भ्रष्ट हो जायेंगे ? खानपान, वेशभूषा, शिष्टाचार तो बाह्य बातें हैं । अन्दर से तो हम धार्मिक ही हैं। हमें अंग्रेजी से भय कैसा ?  
 
# परन्तु ऐसा बोलने की और करने की हिम्मत हम नहीं कर सकते हैं । तुरन्त ही प्रतितर्क आरम्भ हो जाते हैं । अंग्रेजी में क्या बुराई है ? यूरोपीय वेश पहनने से क्या हम धार्मिक नहीं रहते ? पित्झा खाने से क्या हम भ्रष्ट हो जायेंगे ? खानपान, वेशभूषा, शिष्टाचार तो बाह्य बातें हैं । अन्दर से तो हम धार्मिक ही हैं। हमें अंग्रेजी से भय कैसा ?  
 
# परन्तु यह झूठा तर्क है। हमारे अन्दर बैठा हुआ अंग्रेजी हमें ऐसा बोलने के लिये बाध्य करता है। यह तो घोर हीनताबोध का ही लक्षण है। स्थिति ऐसी है कि हम तो नहीं समझेंगे परन्तु कोई हमें इस स्थिति से बलपूर्वक उबारे तभी हम बाहर आ सकते है।  
 
# परन्तु यह झूठा तर्क है। हमारे अन्दर बैठा हुआ अंग्रेजी हमें ऐसा बोलने के लिये बाध्य करता है। यह तो घोर हीनताबोध का ही लक्षण है। स्थिति ऐसी है कि हम तो नहीं समझेंगे परन्तु कोई हमें इस स्थिति से बलपूर्वक उबारे तभी हम बाहर आ सकते है।  
# कोई तानाशाह बेरहमी से घोषणा करे कि आज से, इसी क्षण से अंग्रेजी और अंग्रेजी के सभी चिह्न इस देश में प्रतिबन्धित हैं और उसे अपने पास रखने वाले को कठोर दण्ड मिलेगा तभी हम मानेंगे। रोयेंगे, चिल्लायेंगे, विरोध करेंगे, आन्दोलन करेंगे, चुनाव में मत नहीं देंगे परन्तु तानाशाही के आदेश को मानना पडेगा। हमारी नई पीढी अंग्रेजी और अंग्रेजीयत से 'वंचित' रहेगी । तब एक या दो पीढियों के बाद हम हीनताबोध के रोग से मुक्त होंगे । इझरायेलने हिब्रू को लेकर ऐसा किया ही था।  
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# कोई तानाशाह बेरहमी से घोषणा करे कि आज से, इसी क्षण से अंग्रेजी और अंग्रेजी के सभी चिह्न इस देश में प्रतिबन्धित हैं और उसे अपने पास रखने वाले को कठोर दण्ड मिलेगा तभी हम मानेंगे। रोयेंगे, चिल्लायेंगे, विरोध करेंगे, आन्दोलन करेंगे, चुनाव में मत नहीं देंगे परन्तु तानाशाही के आदेश को मानना पड़ेगा। हमारी नई पीढी अंग्रेजी और अंग्रेजीयत से 'वंचित' रहेगी । तब एक या दो पीढियों के बाद हम हीनताबोध के रोग से मुक्त होंगे । इझरायेलने हिब्रू को लेकर ऐसा किया ही था।  
 
# या विभिन्न पंथों के धर्माचार्य अपने अनुयायिओं को कठोर प्रतिज्ञा करवायें कि अंग्रेजी और अंग्रेजीयत् का अनुसरण करने वाला धर्मद्रोही माना जायेगा, उसे पाप लगेगा और वह घोर नर्क में जायेगा। तब धर्म के भय से लोग अंग्रेजी को छोडेंगे ।  
 
# या विभिन्न पंथों के धर्माचार्य अपने अनुयायिओं को कठोर प्रतिज्ञा करवायें कि अंग्रेजी और अंग्रेजीयत् का अनुसरण करने वाला धर्मद्रोही माना जायेगा, उसे पाप लगेगा और वह घोर नर्क में जायेगा। तब धर्म के भय से लोग अंग्रेजी को छोडेंगे ।  
 
# या कोई चमत्कार हो कि एक दिन सुबह होते ही लोग जागें तब वे अंग्रेजी और अंग्रेजीयत को सर्वथा भूल गये हों, जैसे मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है और पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती। या भूतप्रेत की बाधाओं को झाडफूंक के उपायों से दूर भगानेवाला कोई हमें अंग्रेजी की बाधा से मुक्त करे।  
 
# या कोई चमत्कार हो कि एक दिन सुबह होते ही लोग जागें तब वे अंग्रेजी और अंग्रेजीयत को सर्वथा भूल गये हों, जैसे मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है और पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती। या भूतप्रेत की बाधाओं को झाडफूंक के उपायों से दूर भगानेवाला कोई हमें अंग्रेजी की बाधा से मुक्त करे।  
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# स्वतन्त्रता का अर्थ है अपने तन्त्र से अर्थात् अपनी व्यवस्था से रहना, अपनी जिम्मेदारी से अपनी सारी वयवस्थायें करना । परन्तु व्यवहार में तो ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य स्वतन्त्र रह नहीं सकता। उसे अपना जीवन चलाने के लिये सृष्टि के अनेक पदार्थों पर निर्भर रहना पडता है, इतना ही नहीं तो अन्य मनुष्यों से भी अनेक प्रकार की सहायता की आवश्यकता पडती है । ऐसी स्थिति में हर मनुष्य की स्वतन्त्रता की रक्षा कैसे होगी ?  
 
# स्वतन्त्रता का अर्थ है अपने तन्त्र से अर्थात् अपनी व्यवस्था से रहना, अपनी जिम्मेदारी से अपनी सारी वयवस्थायें करना । परन्तु व्यवहार में तो ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य स्वतन्त्र रह नहीं सकता। उसे अपना जीवन चलाने के लिये सृष्टि के अनेक पदार्थों पर निर्भर रहना पडता है, इतना ही नहीं तो अन्य मनुष्यों से भी अनेक प्रकार की सहायता की आवश्यकता पडती है । ऐसी स्थिति में हर मनुष्य की स्वतन्त्रता की रक्षा कैसे होगी ?  
 
# भारत ने इसे व्यवहार्य बनाने के लिये अनेक नीति निर्देश निश्चित किये हैं। उदाहरण के लिये सृष्टि के साथ का व्यवहार प्रेम, कृतज्ञता, शोषण नहीं अपितु दोहन और रक्षण के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। एक मनुष्य दूसरे का सहयोग स्नेह, वात्सल्य, सख्य, दया, आदर, श्रद्धा आदि के आधार पर करता है तभी स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। अन्यथा वह विवशता बन जाती है। विवशता से, भय से, लोभ लालच से किसी का काम करना गुलामी है।  
 
# भारत ने इसे व्यवहार्य बनाने के लिये अनेक नीति निर्देश निश्चित किये हैं। उदाहरण के लिये सृष्टि के साथ का व्यवहार प्रेम, कृतज्ञता, शोषण नहीं अपितु दोहन और रक्षण के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। एक मनुष्य दूसरे का सहयोग स्नेह, वात्सल्य, सख्य, दया, आदर, श्रद्धा आदि के आधार पर करता है तभी स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। अन्यथा वह विवशता बन जाती है। विवशता से, भय से, लोभ लालच से किसी का काम करना गुलामी है।  
# एक राष्ट्र अपने स्वभाव के अनुसार अपनी व्यवस्थायें बनाता है और स्वतन्त्रता पूर्वक रहता है। परन्तु विश्व में ऐसे कई राष्ट्र हैं जो दूसरे राष्ट्रों की स्वतन्त्रता का नाश करने पर तुले रहते हैं । इस कारण से होने वाले आक्रमणों और युद्धों के वर्णनों से इतिहास के पृष्ठ भरे पडे है।  
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# एक राष्ट्र अपने स्वभाव के अनुसार अपनी व्यवस्थायें बनाता है और स्वतन्त्रता पूर्वक रहता है। परन्तु विश्व में ऐसे कई राष्ट्र हैं जो दूसरे राष्ट्रों की स्वतन्त्रता का नाश करने पर तुले रहते हैं । इस कारण से होने वाले आक्रमणों और युद्धों के वर्णनों से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े है।  
 
# स्वतन्त्रता के अनेक आयाम हैं। एक है राजकीय स्वतन्त्रता। व्यक्तियों, समाजों, राष्ट्रों के लिये आर्थिक, साम्प्रदायिक, सामाजिक, शासनिक ऐसे अनेक प्रकार हैं। आज भारत में व्यक्तियों की भी आर्थिक स्वतन्त्रता छिन गई है और विश्व में भारत की स्वतन्त्रता दाँव पर लगी हुई है। कहने को तो भारत सार्वभौम प्रजासत्ताक स्वतन्त्र राष्ट्र है परन्तु सम्पूर्ण राष्ट्र यूरोअमेरिकी तन्त्र से चलता है, उसके प्रभाव से ग्रस्त है।  
 
# स्वतन्त्रता के अनेक आयाम हैं। एक है राजकीय स्वतन्त्रता। व्यक्तियों, समाजों, राष्ट्रों के लिये आर्थिक, साम्प्रदायिक, सामाजिक, शासनिक ऐसे अनेक प्रकार हैं। आज भारत में व्यक्तियों की भी आर्थिक स्वतन्त्रता छिन गई है और विश्व में भारत की स्वतन्त्रता दाँव पर लगी हुई है। कहने को तो भारत सार्वभौम प्रजासत्ताक स्वतन्त्र राष्ट्र है परन्तु सम्पूर्ण राष्ट्र यूरोअमेरिकी तन्त्र से चलता है, उसके प्रभाव से ग्रस्त है।  
 
# शासन, प्रशासन, संविधान, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, समाजव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, कानून, उद्योगतन्त्र सबके सब यूरोअमेरिकी तन्त्र से ही चल रहे हैं । यह हमारे स्वभाव से, सिद्धान्त से और परम्परा से विरुद्ध है तो भी चल रहा है।  
 
# शासन, प्रशासन, संविधान, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, समाजव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, कानून, उद्योगतन्त्र सबके सब यूरोअमेरिकी तन्त्र से ही चल रहे हैं । यह हमारे स्वभाव से, सिद्धान्त से और परम्परा से विरुद्ध है तो भी चल रहा है।  

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