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# मनुष्य के अलावा अन्य सभी पदार्थ, प्राणी, वनस्पति की स्वतन्त्रता सीमित है। यह सीमा परमात्मा ने स्वयं निश्चित की है। उदाहरण के लिये पंचमहाभूतों में प्राणशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति आदि नहीं होती। परन्तु अपनी सीमित स्वतन्त्रता के अनुसार उनका जो स्वभाव बनता है उसी के अनुसार वे व्यवहार करते हैं । उनके स्वभाव के विपरीत वे स्वयं व्यवहार नहीं करते परन्तु उनके लिये विपरीत व्यवहार करने की बाध्यता निर्माण की जाती है तब उनकी स्वतन्त्रता नष्ट होती है और वे दुःखी होते हैं । उनके दुःख की तरंगे वातावरण में प्रसृत होती हैं तब वातावरण भी दुःख का अनुभव करवाने वाला बनता है।  
 
# मनुष्य के अलावा अन्य सभी पदार्थ, प्राणी, वनस्पति की स्वतन्त्रता सीमित है। यह सीमा परमात्मा ने स्वयं निश्चित की है। उदाहरण के लिये पंचमहाभूतों में प्राणशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति आदि नहीं होती। परन्तु अपनी सीमित स्वतन्त्रता के अनुसार उनका जो स्वभाव बनता है उसी के अनुसार वे व्यवहार करते हैं । उनके स्वभाव के विपरीत वे स्वयं व्यवहार नहीं करते परन्तु उनके लिये विपरीत व्यवहार करने की बाध्यता निर्माण की जाती है तब उनकी स्वतन्त्रता नष्ट होती है और वे दुःखी होते हैं । उनके दुःख की तरंगे वातावरण में प्रसृत होती हैं तब वातावरण भी दुःख का अनुभव करवाने वाला बनता है।  
 
# मनुष्य को विचार, वाणी, भावना, बुद्धि, संस्कार क्षमता अनुभूति आदि की असीम स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है। इसके चलते उसका सामर्थ्य भी बहुत है। इस सामर्थ्य से उसे सबकी स्वतन्त्रता की हानि नहीं करनी चाहिये, उल्टे रक्षा करनी चाहिये ऐसा उसके लिये विधान है।
 
# मनुष्य को विचार, वाणी, भावना, बुद्धि, संस्कार क्षमता अनुभूति आदि की असीम स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है। इसके चलते उसका सामर्थ्य भी बहुत है। इस सामर्थ्य से उसे सबकी स्वतन्त्रता की हानि नहीं करनी चाहिये, उल्टे रक्षा करनी चाहिये ऐसा उसके लिये विधान है।
# मनुष्य कितने प्रकार से सृष्टि की स्वतन्त्रता का नाश करता है ? सिंह, बाघ आदि प्राणियों को मुक्त विहार अच्छा लगता है। उन्हें पिंजड़े में बन्द करना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है। इनका तथा खरगोश, हिरन, हाथी जैसे प्राणियों का शौक के लिये, आहार के लिये शिकार करना उनकी स्वतन्त्रता का तो क्या जीवन का ही नाश है इसलिये हिंसा भी है। प्रदर्शन के लिये, शृंगार के लिये, शौक के लिये तितली, मोर, तोता आदि पशुपक्षियों को पालतू बनाकर पिंजड़े में बन्द करना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है।  
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# मनुष्य कितने प्रकार से सृष्टि की स्वतन्त्रता का नाश करता है ? सिंह, बाघ आदि प्राणियों को मुक्त विहार अच्छा लगता है। उन्हें पिंजड़़े में बन्द करना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है। इनका तथा खरगोश, हिरन, हाथी जैसे प्राणियों का शौक के लिये, आहार के लिये शिकार करना उनकी स्वतन्त्रता का तो क्या जीवन का ही नाश है इसलिये हिंसा भी है। प्रदर्शन के लिये, शृंगार के लिये, शौक के लिये तितली, मोर, तोता आदि पशुपक्षियों को पालतू बनाकर पिंजड़़े में बन्द करना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है।  
 
# कुक्कुटयुद्ध, साँढयुद्ध, महिषयुद्ध आदि मनोरंजन के लिये उन्हें लडाना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है इसलिये हिंसा है। मक्खी, मच्छर, कीडों, मकोडों को बेतहाशा मारना उनके जीवन के अधिकार को नष्ट करना है। फूलों को कली हो तब तोडना, कच्चे फलों को तोडना, रास्ते चौडे करने हेतु वृक्षों को काटना, शोभा के लिये वृक्षों को बोनसाई करना उनकी स्वतन्त्र सत्ता का अपमान है।  
 
# कुक्कुटयुद्ध, साँढयुद्ध, महिषयुद्ध आदि मनोरंजन के लिये उन्हें लडाना उनकी स्वतन्त्रता का नाश है इसलिये हिंसा है। मक्खी, मच्छर, कीडों, मकोडों को बेतहाशा मारना उनके जीवन के अधिकार को नष्ट करना है। फूलों को कली हो तब तोडना, कच्चे फलों को तोडना, रास्ते चौडे करने हेतु वृक्षों को काटना, शोभा के लिये वृक्षों को बोनसाई करना उनकी स्वतन्त्र सत्ता का अपमान है।  
 
# इसी प्रकार से मनुष्य सृष्टि की स्वतन्त्रता को बाधित करता है। परन्तु क्या वह मनुष्य को छोडता है ? नहीं, वह दूसरे मनुष्य को अपना दास बनाना चाहता है, अपने अधीन बनाना चाहता है, उससे अपना काम करवाना चाहता है। परन्तु जब हर मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपने अधीन बनाना चाहता है तब संघर्ष निर्माण होता है । एक वर्ग दूसरे वर्ग को, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को अपने अधीन बनाना चाहता है तब युद्ध होते हैं। विश्व का इतिहास ऐसे युद्धों के कथानकों से भरा हुआ है। अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा और दूसरों की स्वतन्त्रता का नाश यही दुनिया का दस्तूर बना हुआ है।  
 
# इसी प्रकार से मनुष्य सृष्टि की स्वतन्त्रता को बाधित करता है। परन्तु क्या वह मनुष्य को छोडता है ? नहीं, वह दूसरे मनुष्य को अपना दास बनाना चाहता है, अपने अधीन बनाना चाहता है, उससे अपना काम करवाना चाहता है। परन्तु जब हर मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपने अधीन बनाना चाहता है तब संघर्ष निर्माण होता है । एक वर्ग दूसरे वर्ग को, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को अपने अधीन बनाना चाहता है तब युद्ध होते हैं। विश्व का इतिहास ऐसे युद्धों के कथानकों से भरा हुआ है। अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा और दूसरों की स्वतन्त्रता का नाश यही दुनिया का दस्तूर बना हुआ है।  

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