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# ज्ञान के व्यवहार में दो पक्ष होते हैं। एक सिद्धान्त का और दसरा व्यवहार का । सिद्धान्त का पक्ष समझ स्पष्ट करने के लिये और व्यवहार का पक्ष क्रियात्मक योजना बनाने के लिये होता है।
 
# ज्ञान के व्यवहार में दो पक्ष होते हैं। एक सिद्धान्त का और दसरा व्यवहार का । सिद्धान्त का पक्ष समझ स्पष्ट करने के लिये और व्यवहार का पक्ष क्रियात्मक योजना बनाने के लिये होता है।
 
# ज्ञानात्मक हल ढूँढने के लिये शास्त्रग्रन्थों को और लोकपरम्पराओं को आधार मानना चाहिये । साथ ही सद्यस्थिति का सम्यक् आकलन भी करना चाहिये । यह सब करते समय उदार, निष्पक्षपाती, करुणापूर्ण अन्तःकरण युक्त परन्तु निश्चयी भी होना चाहिये । करुणा ऐसी नहीं हो सकती कि असत्य के प्रति कठोर न हो सके और उदार ऐसे नहीं कि अपना है इसलिये दण्ड न दे अथवा मृदु दण्ड दे।  
 
# ज्ञानात्मक हल ढूँढने के लिये शास्त्रग्रन्थों को और लोकपरम्पराओं को आधार मानना चाहिये । साथ ही सद्यस्थिति का सम्यक् आकलन भी करना चाहिये । यह सब करते समय उदार, निष्पक्षपाती, करुणापूर्ण अन्तःकरण युक्त परन्तु निश्चयी भी होना चाहिये । करुणा ऐसी नहीं हो सकती कि असत्य के प्रति कठोर न हो सके और उदार ऐसे नहीं कि अपना है इसलिये दण्ड न दे अथवा मृदु दण्ड दे।  
# ज्ञानात्मक हल ढूँढ सके ऐसे लोगों को तैयार करना एक आवश्यकता है और समस्त प्रजा सत्य और धर्म का आग्रह रखनेवाली हो यह दसरा पक्ष है। इन दोनों पक्षों की शिक्षा की व्यवस्था करने से संकटों का ज्ञानात्मक निवारण सम्भव होता है।
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# ज्ञानात्मक हल ढूँढ सके ऐसे लोगोंं को तैयार करना एक आवश्यकता है और समस्त प्रजा सत्य और धर्म का आग्रह रखनेवाली हो यह दसरा पक्ष है। इन दोनों पक्षों की शिक्षा की व्यवस्था करने से संकटों का ज्ञानात्मक निवारण सम्भव होता है।
    
==== ३. पवित्रता की रक्षा ====
 
==== ३. पवित्रता की रक्षा ====
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# शुद्धता भौतिक है, पवित्रता मानसिक। उसका सम्बन्ध अन्तःकरण के साथ है । जीवन के व्यवहारों में अन्तःकरण की प्रवृत्तियों का प्रभाव और महत्त्व अधिक होते हैं। अन्तःकरण का प्रभाव भौतिक पदार्थों पर भी होता है। इसलिये शुद्धता के साथ साथ, शुद्धता से भी अधिक पवित्रता की चिन्ता करनी चाहिये।  
 
# शुद्धता भौतिक है, पवित्रता मानसिक। उसका सम्बन्ध अन्तःकरण के साथ है । जीवन के व्यवहारों में अन्तःकरण की प्रवृत्तियों का प्रभाव और महत्त्व अधिक होते हैं। अन्तःकरण का प्रभाव भौतिक पदार्थों पर भी होता है। इसलिये शुद्धता के साथ साथ, शुद्धता से भी अधिक पवित्रता की चिन्ता करनी चाहिये।  
 
# वर्तमान जगत में शुद्धता और पवित्रता का यह अन्तर विचार में ही नहीं लिया जाता है। इसका कारण सृष्टि को भी केवल भौतिक मानने में है। उदाहरण के लिये पर्यावरण की बात करते समय हम पंचमहाभूतों का ही विचार करते हैं । परन्तु सृष्टि पंचमहाभूतों के साथ साथ सत्त्व, रज और तम ऐसे तीन गुणों की भी बनी है। इन तीन गुणों से मन, बुद्धि और अहंकार बने हैं। इनकी शुद्धि और पवित्रता भी पर्यावरण के विचार का हिस्सा है, वह अधिक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है । वायु की शुद्धि से भी विचारों की शुद्धि अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जानी चाहिये।  
 
# वर्तमान जगत में शुद्धता और पवित्रता का यह अन्तर विचार में ही नहीं लिया जाता है। इसका कारण सृष्टि को भी केवल भौतिक मानने में है। उदाहरण के लिये पर्यावरण की बात करते समय हम पंचमहाभूतों का ही विचार करते हैं । परन्तु सृष्टि पंचमहाभूतों के साथ साथ सत्त्व, रज और तम ऐसे तीन गुणों की भी बनी है। इन तीन गुणों से मन, बुद्धि और अहंकार बने हैं। इनकी शुद्धि और पवित्रता भी पर्यावरण के विचार का हिस्सा है, वह अधिक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है । वायु की शुद्धि से भी विचारों की शुद्धि अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जानी चाहिये।  
# एक कुम्हार अपने चाक को, या एक रिक्षेवाला अपनी रिक्षा को केवल इसलिये पवित्र नहीं मानता कि उससे उसे रोजी मिलती है। वह इसे इसलिये पवित्र मानता है क्योंकि उससे वह लोगों की आवश्यकता की पूर्ति कर पायेगा। आज यदि कलियुग के या पश्चिम के प्रभाव से इस बात का विस्मरण हुआ है तो उसे पुनःस्मरण में लाना होगा।  
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# एक कुम्हार अपने चाक को, या एक रिक्षेवाला अपनी रिक्षा को केवल इसलिये पवित्र नहीं मानता कि उससे उसे रोजी मिलती है। वह इसे इसलिये पवित्र मानता है क्योंकि उससे वह लोगोंं की आवश्यकता की पूर्ति कर पायेगा। आज यदि कलियुग के या पश्चिम के प्रभाव से इस बात का विस्मरण हुआ है तो उसे पुनःस्मरण में लाना होगा।  
 
# भारत के सांसद और विधायक, भारत के प्रशासकीय अधिकारी, भारत के उद्योजक, भारत के अध्यापक अपने कार्य के साथ पवित्रता की भावना जोड लें तो कैसा परिवर्तन होगा इसकी हम कल्पना कर सकते हैं। ये सब समस्त प्रजा पर परिणाम करनेवाले क्षेत्र हैं। आज उनमें से पवित्रता की भावना निष्कासित हो गई है। इसके क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं यह भी हम देख रहे हैं । हम भुगत भी रहे हैं। अतः भारत के मानस में पवित्रता की भावना को, पवित्रता की दृष्टि को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा।  
 
# भारत के सांसद और विधायक, भारत के प्रशासकीय अधिकारी, भारत के उद्योजक, भारत के अध्यापक अपने कार्य के साथ पवित्रता की भावना जोड लें तो कैसा परिवर्तन होगा इसकी हम कल्पना कर सकते हैं। ये सब समस्त प्रजा पर परिणाम करनेवाले क्षेत्र हैं। आज उनमें से पवित्रता की भावना निष्कासित हो गई है। इसके क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं यह भी हम देख रहे हैं । हम भुगत भी रहे हैं। अतः भारत के मानस में पवित्रता की भावना को, पवित्रता की दृष्टि को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा।  
 
# पवित्र पदार्थ, पवित्र विचार, पवित्र व्यक्ति दूसरों को भी पवित्र बनाते हैं। पवित्रता का यह प्रभाव है। पवित्र अन्तःकरण से किया गया कार्य अधिक प्रभावी होता है क्योंकि उसका प्रभाव अन्तःकरण के स्तर पर होता है। इसलिये भारत में आज अन्तःकरण की पवित्रता की चिन्ता करनी चाहिये । उससे ही हम विश्वस्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।  
 
# पवित्र पदार्थ, पवित्र विचार, पवित्र व्यक्ति दूसरों को भी पवित्र बनाते हैं। पवित्रता का यह प्रभाव है। पवित्र अन्तःकरण से किया गया कार्य अधिक प्रभावी होता है क्योंकि उसका प्रभाव अन्तःकरण के स्तर पर होता है। इसलिये भारत में आज अन्तःकरण की पवित्रता की चिन्ता करनी चाहिये । उससे ही हम विश्वस्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।  
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# रात्रि में उचित समय पर उचित पद्धति से पर्याप्त नींद लेना और प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में जगना भी प्राणशक्ति के विकास के लिये आवश्यक है । कितनी छोटी छोटी बातों का हमने त्याग किया है और उसका कितना खामियाजा भुगत रहे हैं इसका हमें लेश मात्र ज्ञान नहीं है।  
 
# रात्रि में उचित समय पर उचित पद्धति से पर्याप्त नींद लेना और प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में जगना भी प्राणशक्ति के विकास के लिये आवश्यक है । कितनी छोटी छोटी बातों का हमने त्याग किया है और उसका कितना खामियाजा भुगत रहे हैं इसका हमें लेश मात्र ज्ञान नहीं है।  
 
# ये तो शारीरिक स्तर की भौतिक बातें हई। परन्तु इनके साथ हमें अपने इतिहास को जानना चाहिये, अपने पूर्वजों को जानना चाहिये, अपने महापुरुषों को जानना चाहिये और अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करना चाहिये।  
 
# ये तो शारीरिक स्तर की भौतिक बातें हई। परन्तु इनके साथ हमें अपने इतिहास को जानना चाहिये, अपने पूर्वजों को जानना चाहिये, अपने महापुरुषों को जानना चाहिये और अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करना चाहिये।  
# हमारे पूर्वज विश्व के सभी देशों में गये हैं और जहाँ गये वहाँ के लोगों का भला किया है। हम उनके सीधे वारिस हैं। हम क्यों ऐसा नहीं कर सकते ? हममें क्या कमी है ? हम जहाँ जायेंगे वहाँ अपने साथ शुभभावना लेकर जायेंगे और जीतेंगे। ऐसी भावना का विकास करना चाहिये ।  
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# हमारे पूर्वज विश्व के सभी देशों में गये हैं और जहाँ गये वहाँ के लोगोंं का भला किया है। हम उनके सीधे वारिस हैं। हम क्यों ऐसा नहीं कर सकते ? हममें क्या कमी है ? हम जहाँ जायेंगे वहाँ अपने साथ शुभभावना लेकर जायेंगे और जीतेंगे। ऐसी भावना का विकास करना चाहिये ।  
 
# हमारा इतिहास यदि इतना समृद्ध है, ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में हमने यदि इतनी सिद्धि प्राप्त की है तो हम विजयी ही होंगे ऐसा विश्वास हमें जाग्रत करना है। हम प्रयास करें और यशस्वी न हों ऐसा हो ही नहीं सकता।  
 
# हमारा इतिहास यदि इतना समृद्ध है, ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में हमने यदि इतनी सिद्धि प्राप्त की है तो हम विजयी ही होंगे ऐसा विश्वास हमें जाग्रत करना है। हम प्रयास करें और यशस्वी न हों ऐसा हो ही नहीं सकता।  
 
# ऐसा मनोभाव स्थिर करने के लिये हमें अपने आपको कसना होगा । हमारी बुद्धि, हमारा साहस, हमारा बल कसा जाने की आवश्यकता है। विद्यालयों और महाविद्यालयों की परीक्षाओं में हम आसान प्रश्नों के उत्तर लिखकर उत्तीर्ण न हों । गणित जैसे विषयों में सौ प्रतिशत से कम अंकों से हम सन्तुष्ट न हों । जीवन की परीक्षा में भी हम मुसीबतों से बचकर चलने का प्रयास न करें। तभी हम विजीगीषु मनोवृत्ति का विकास कर सकते हैं।  
 
# ऐसा मनोभाव स्थिर करने के लिये हमें अपने आपको कसना होगा । हमारी बुद्धि, हमारा साहस, हमारा बल कसा जाने की आवश्यकता है। विद्यालयों और महाविद्यालयों की परीक्षाओं में हम आसान प्रश्नों के उत्तर लिखकर उत्तीर्ण न हों । गणित जैसे विषयों में सौ प्रतिशत से कम अंकों से हम सन्तुष्ट न हों । जीवन की परीक्षा में भी हम मुसीबतों से बचकर चलने का प्रयास न करें। तभी हम विजीगीषु मनोवृत्ति का विकास कर सकते हैं।  

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