Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "कथाए" to "कथाएँ"
Line 463: Line 463:  
'''<big>बुद्ध</big>'''  
 
'''<big>बुद्ध</big>'''  
   −
बौद्ध मत के अनुसार सत्यज्ञान (बोध) – प्राप्त महापुरुष,जिनको बुद्ध कहा जाता है,अनेक हुए हैं। वर्तमान बौद्ध मत ('धर्मचक्र') के प्रवर्तक गौतमबुद्ध का बोध प्राप्त करने से पूर्व का नाम सिद्धार्थ था। इनका जन्म कपिलवस्तु में शाक्यगण-प्रमुख राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। जगत के जीवों के दु:खों से द्रवित होकर तीस वर्ष की युवावस्था में सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा,पुत्र राहुल और राजप्रासाद के सुख-आराम को छोड़कर शांति की खोज में निकल पड़े। कई वर्षतक घोर तप करने पर भी उन्हें शांति नहीं मिली। अन्त में गया के समीप पिप्पलिवन में एक पीपल के नीचे जब वे ध्यानमग्न थे,उन्हें बोध (ज्ञान) प्राप्त हुआ। उन्होंने अपना प्रथम उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। अब वे 'बुद्ध' कहलाने लगे और जिस वृक्ष के नीचे उन्हें बोध प्राप्त हुआ था वह'बोधिवृक्ष' कहलाया। दार्शनिक वाद- विवाद में न पड़कर वेदु:खनिवृत्ति के मार्ग पर बल देते थे। उन्होंने चार आर्य सत्यों, अष्टांग मध्यम मार्ग, अहिंसा और करुणा का उपदेश दिया। अपने बताये मार्ग का प्रचार करने के लिए उन्होंने अनुयायी भिक्षुओं और भिक्षुणियों का संघ स्थापित किया। उनके उपदेशों का व्यापक प्रभाव पड़ा और बौद्धमत भारत तथा अन्य अनेक देशों में फैल गया। अस्सी वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका देहान्त हुआ। जातक ग्रंथों में बुद्ध के पूर्व-जन्मों की कथाएँ हैं। बौद्ध मतानुसार आगे भविष्य में भी अनेक बुद्ध होंगे।  
+
बौद्ध मत के अनुसार सत्यज्ञान (बोध) – प्राप्त महापुरुष,जिनको बुद्ध कहा जाता है,अनेक हुए हैं। वर्तमान बौद्ध मत ('धर्मचक्र') के प्रवर्तक गौतमबुद्ध का बोध प्राप्त करने से पूर्व का नाम सिद्धार्थ था। इनका जन्म कपिलवस्तु में शाक्यगण-प्रमुख राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। जगत के जीवों के दु:खों से द्रवित होकर तीस वर्ष की युवावस्था में सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा,पुत्र राहुल और राजप्रासाद के सुख-आराम को छोड़कर शांति की खोज में निकल पड़े। कई वर्षतक घोर तप करने पर भी उन्हें शांति नहीं मिली। अन्त में गया के समीप पिप्पलिवन में एक पीपल के नीचे जब वे ध्यानमग्न थे,उन्हें बोध (ज्ञान) प्राप्त हुआ। उन्होंने अपना प्रथम उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। अब वे 'बुद्ध' कहलाने लगे और जिस वृक्ष के नीचे उन्हें बोध प्राप्त हुआ था वह'बोधिवृक्ष' कहलाया। दार्शनिक वाद- विवाद में न पड़कर वेदु:खनिवृत्ति के मार्ग पर बल देते थे। उन्होंने चार आर्य सत्यों, अष्टांग मध्यम मार्ग, अहिंसा और करुणा का उपदेश दिया। अपने बताये मार्ग का प्रचार करने के लिए उन्होंने अनुयायी भिक्षुओं और भिक्षुणियों का संघ स्थापित किया। उनके उपदेशों का व्यापक प्रभाव पड़ा और बौद्धमत भारत तथा अन्य अनेक देशों में फैल गया। अस्सी वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका देहान्त हुआ। जातक ग्रंथों में बुद्ध के पूर्व-जन्मों की कथाएँँ हैं। बौद्ध मतानुसार आगे भविष्य में भी अनेक बुद्ध होंगे।  
    
'''<big>जिनेन्द्र</big>'''
 
'''<big>जिनेन्द्र</big>'''
Line 471: Line 471:  
'''<big>गोरखनाथ</big>'''  
 
'''<big>गोरखनाथ</big>'''  
   −
महान् योगी, ज्ञानी तथा सिद्ध पुरुष गुरु गोरखनाथ प्रसिद्ध योगी मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे। भारत के अनेक भागों – यथा उत्तर प्रदेश, बंगाल, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र इत्यादि प्रांतों – के अतिरिक्त नेपाल में भी इनके मठ पाये जाते हैं। इन्होंने हठयोग की साधना का प्रचार किया, मन के निग्रह पर बल दिया और भारतीय साधना तथा साहित्य को बहुत प्रभावित किया। गोरखनाथ जी की चमत्कारिक योग-सिद्धियों से संबंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।  
+
महान् योगी, ज्ञानी तथा सिद्ध पुरुष गुरु गोरखनाथ प्रसिद्ध योगी मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे। भारत के अनेक भागों – यथा उत्तर प्रदेश, बंगाल, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र इत्यादि प्रांतों – के अतिरिक्त नेपाल में भी इनके मठ पाये जाते हैं। इन्होंने हठयोग की साधना का प्रचार किया, मन के निग्रह पर बल दिया और भारतीय साधना तथा साहित्य को बहुत प्रभावित किया। गोरखनाथ जी की चमत्कारिक योग-सिद्धियों से संबंधित अनेक कथाएँँ प्रचलित हैं।  
    
'''<big>पाणिनी</big>'''
 
'''<big>पाणिनी</big>'''

Navigation menu