Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 587: Line 587:     
कलियुगाब्द 47 वीं शताब्दी (ई० 16वीं) के कर्नाटक के महान् संत कवि, जिनके भजन कर्नाटकमें जन-जन की जिह्वा पर हैं। ये मध्य सम्प्रदाय के वैरागी कृष्णभक्त थे। इन्होंने भारत की तीर्थयात्रा की थी और विभिन्न क्षेत्रों में कुछ काल तक निवास करते हुए वहाँ के देवताओं पर भक्तिरसयुक्त पदों की रचना की थी। बड़ी संख्या में लिखे इनके पदों में से आज थोड़े ही उपलब्ध हैं। ये ‘दसिरपदगलू' के नाम से प्रसिद्ध हैं।  
 
कलियुगाब्द 47 वीं शताब्दी (ई० 16वीं) के कर्नाटक के महान् संत कवि, जिनके भजन कर्नाटकमें जन-जन की जिह्वा पर हैं। ये मध्य सम्प्रदाय के वैरागी कृष्णभक्त थे। इन्होंने भारत की तीर्थयात्रा की थी और विभिन्न क्षेत्रों में कुछ काल तक निवास करते हुए वहाँ के देवताओं पर भक्तिरसयुक्त पदों की रचना की थी। बड़ी संख्या में लिखे इनके पदों में से आज थोड़े ही उपलब्ध हैं। ये ‘दसिरपदगलू' के नाम से प्रसिद्ध हैं।  
 
+
[[File:4.PNG|center|thumb]]
 
<blockquote>'''बिरसा सहजानन्दो रामानन्दस्तथा महान्। वितरन्तु सदैवैते दैवीं सद्गुणसम्पदम् ॥19 ॥''' </blockquote>
 
<blockquote>'''बिरसा सहजानन्दो रामानन्दस्तथा महान्। वितरन्तु सदैवैते दैवीं सद्गुणसम्पदम् ॥19 ॥''' </blockquote>
  
1,192

edits

Navigation menu