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वीरशैव सम्प्रदाय के संस्थापक श्री बसवेश्वर ने कर्नाटक तथा आन्ध्र में अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्तों और मान्यताओं का प्रचार किया। यह सम्प्रदाय मानव समाज में किसी प्रकार का भेदभाव स्वीकार नहीं करता। बाल्यावस्था से ही बसवेश्वर के अन्त:करण में प्रखर शिवभक्ति का उदय हुआ था। भगवान् वीर महेश्वर में इनकी आस्था अडिग थी। पिता नादिराज और माता मदाम्बिका के घर इनका कलियुगाब्द 42 वीं शती (ई० 11वीं सदी) में कर्नाटक में बागवाड़ी ग्राम में जन्म हुआ। संगमनाथ नामक संन्यासी ने इनका लिंगधारण संस्कार करवाया। ये कुछकाल तक कल्याण के राजा विज्जल के मंत्री भी रहे थे।  
 
वीरशैव सम्प्रदाय के संस्थापक श्री बसवेश्वर ने कर्नाटक तथा आन्ध्र में अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्तों और मान्यताओं का प्रचार किया। यह सम्प्रदाय मानव समाज में किसी प्रकार का भेदभाव स्वीकार नहीं करता। बाल्यावस्था से ही बसवेश्वर के अन्त:करण में प्रखर शिवभक्ति का उदय हुआ था। भगवान् वीर महेश्वर में इनकी आस्था अडिग थी। पिता नादिराज और माता मदाम्बिका के घर इनका कलियुगाब्द 42 वीं शती (ई० 11वीं सदी) में कर्नाटक में बागवाड़ी ग्राम में जन्म हुआ। संगमनाथ नामक संन्यासी ने इनका लिंगधारण संस्कार करवाया। ये कुछकाल तक कल्याण के राजा विज्जल के मंत्री भी रहे थे।  
 
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<blockquote>'''देवलो रविदासश्च कबीरो गुरुनानक: । नरसिस्तुलसीदासो दशमेशो दूढ़व्रत: ॥१७॥''' </blockquote>'''<big>देवल</big>'''  
 
<blockquote>'''देवलो रविदासश्च कबीरो गुरुनानक: । नरसिस्तुलसीदासो दशमेशो दूढ़व्रत: ॥१७॥''' </blockquote>'''<big>देवल</big>'''  
  
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