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<blockquote>श्रीरामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः ।</blockquote><blockquote>मार्कण्डेयो हरिशचन्द्रः प्रह्लादो नारदो धुवः ।। १२ ।।</blockquote>'''भगवान श्रीराम, भरत, कृष्ण, भीष्म, धर्मराज युधिष्ठिर अर्जुन. ऋषि मार्कण्डेय. हरिश्चन्द्र, प्रहलाद, नारद, ध्रुव संत तथा ।।१२ ।।'''
 
<blockquote>श्रीरामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः ।</blockquote><blockquote>मार्कण्डेयो हरिशचन्द्रः प्रह्लादो नारदो धुवः ।। १२ ।।</blockquote>'''भगवान श्रीराम, भरत, कृष्ण, भीष्म, धर्मराज युधिष्ठिर अर्जुन. ऋषि मार्कण्डेय. हरिश्चन्द्र, प्रहलाद, नारद, ध्रुव संत तथा ।।१२ ।।'''
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<blockquote>हनुमान जनको व्यासो वशिष्ठश्च शुको बलिः।</blockquote><blockquote>दधीचि विश्वकर्माणौ पृथुवाल्मीकिभागर्गवाः ।। 13 ।।</blockquote>'''हनुमान, जनक, व्यास, वशिष्ठ, शुक देव, राजा बलि, दधीचि, विश्वकर्मा, पृथ, वाल्मीकि, भाग्गव (परशुराम) ॥ 13।।'''<blockquote>भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा ।</blockquote><blockquote>शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥ १४ ॥</blockquote>'''भगीरथ, एकलव्य मनु, धन्वन्तरि.. शिबि तथा रन्तिदेव की कीर्ति पुराणों में गाई गई है । । १५।।'''<blockquote>बुद्धा जिनेन्द्रा गोरक्षः पाणिनिश्च पत०जलि ।</blockquote><blockquote>शंकरो मध्वनिम्बाकौं श्रीरामानुजवल्लभौ । । १५।।</blockquote>'''बुद्ध के सभी अवतार, सभी तीर्थकर, गुरु गोरखनाथ, पाणिनि, पंतजलि, शंकाराचार्य, मध्वार्चा, निम्बाक्काचार्य. रामनुजाचार्य तथा बल्लभाचार्य, ।। १५।।'''<blockquote>झुलेलालोऽथ चैतन्यः तिरुवल्लुवरस्तथा।</blockquote><blockquote>नायन्मारालवाराश्च कंबश्च बसवेश्वरः ।। १६।।</blockquote>'''झूलेलाल, महाप्रभु चैतन्य, तिरुवल्लु वर, नायन्मार तथा आलवार सन्तपरम्मरा, कंब, बसवेश्वर तथा ।। १६।।'''<blockquote>देवलो रविवासश्च कबीरो गुरुनानकः ।</blockquote><blockquote>नरसिस्तुलसीदासो दशमेशो दुढव्रतः ॥ १७ ॥</blockquote>'''महर्षि देवल, सन्त रविदास, कबीर, गुरुनानक, नरसी मेहता, तुलसीदास, दृढव्रती गुरुगोविन्दसिंह, ।। १७।।'''<blockquote>श्रीमत् शंकरदेवश्च बन्धू सायण-माधवौ ।</blockquote><blockquote>ज्ञानेश्वरस्तुकारामो रामदासा: पुरन्दरः ।। १८ ।।</blockquote>'''आसाम के वैष्णव सन्त श्रीमत् शंकरदेव, सायणाचार्य, माधवाचार्य संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, समर्थगुरु रामदास, पुरन्दरदास ।। १८ ।।'''<blockquote>बिरसा सहजानन्दो रामानन्दस्तथा महान् ।</blockquote><blockquote>वितरन्तु सदैवेते दैवीं सद्गुणसम्पदम् ।। १९।।</blockquote>'''बिरसामुण्डा, स्वामी सहजानन्द, रामानन्द आदि महान पुरुष सदैव समाज को श्रेष्ठ गुण प्रदान करें । १९।।'''<blockquote>भरतर्षिः कालिदासः श्रीभोजो जकणस्तथा।</blockquote><blockquote>सूरदासस्त्यागराजो रसखानश्च सत्कविः । । २० ।।</blockquote>'''नाट्यशास्त्र के आदि गुरु भरत ऋषि, संस्कृत के विद्वान कालिदास, महाराजा भोज, जकण, महात्मा सूरदास, त्यागराज,रसखान जैसे श्रेष्ठ कवि तथा।। २० ।।'''<blockquote>रविवर्मा भातखण्डे भाग्यचन्द्रः स भूपतिः।</blockquote><blockquote>कलावन्तश्च विख्याता स्मरणीया निरन्तरम् ।। २१  ।।</blockquote>'''महान चित्रकार रविवर्मा, वर्तमान संगीत कला के विख्यात उद्धारक भातखण्डे, मणिपुर के राजा भाग्यचन्द्र आदि विख्यात कलाकार सर्वदा स्मरणीय हैं। ।।२१ ।।'''<blockquote>अगस्त्यः कम्बुकौण्डिन्यौ राजेन्द्रश्चोलवं शजः ।</blockquote><blockquote>अशोकः पुष्यमित्रश्च खारवेलः सुनीतिमान् । २२  ।।</blockquote>'''अगस्त्य, कम्बु, कौण्डिन्य, चोलवंशज राजेन्द्र, अशोक, पुष्यमित्र तथा खारवेल नीतिज्ञ हैं ।। २२ । ।'''<blockquote>चाणक्य-चन्द्रगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहन: ।</blockquote><blockquote>समुद्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेन्द्रो बप्परावलः ।। २३।।</blockquote>'''चाणक्य, चन्द्रगुप्त, विक्रमादित्य, शालिवाहन. समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन, शैलेन्द्र, बेप्पारावल तथा।। २३।।'''<blockquote>लाचिद् भास्करवर्मा च यशोधर्मा च हुणजित् ।</blockquote><blockquote>श्रीकृष्णदेवरायश्च ललितादित्य उद्बल: ॥ २४ ॥</blockquote>'''लाचिद् बड़फुंकन, भास्करवर्मा, हूणविजयी यशोध्मा श्रीकृष्णदेवराय तथा ललितादित्य जैसे वलशाली।। २४ ।।'''<blockquote>मुसुनूरिनायकौ तौ प्रतापः शिवभूपतिः ।</blockquote><blockquote>रणजित्सिंह इत्येते वीरा विख्यातविक्रमाः । । २५ ।।</blockquote>'''प्रोलय नायक, कप्पयनायक, महाराणाप्रताप, महाराज शिवाजी तथा रणजीत सिंह, इस देश में ऐसे विख्यात पराक्रमी वीर हुए हैं।। २५।।'''<blockquote>वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः सुश्रुतस्तथा।</blockquote><blockquote>चरको भास्कराचा्यों वराहमिहिरः सुधी:।। २६ ।।</blockquote>'''हमारे बुद्धिमान वैज्ञानिक कपिलमुनि, कणाद् ऋषि सुश्रुत चरक, भास्काराचार्य तथा वराहमिहिर। । २६ ।।'''<blockquote>नागार्जुनो भरद्वाज आर्यभट्टो बसुर्बुधः ।</blockquote><blockquote>ध्येयो वेड्टरामश्च विज्ञा रामानुजादयः ॥ २७ ॥</blockquote>'''नागार्जुन, भरद्वाज, आर्यभट्ट, जगदीशचन्द्र बसु चन्द्रशेखर वेंकट रमन तथा राजमानुजम् जैसे प्रतिभावान वैज्ञानिक स्मरणीय हैं।। २७  ।।'''<blockquote>रामकृष्णो दयानन्दो रवीन्द्रो राममोहनः ।</blockquote><blockquote>रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानन्द उद्यशाः।। २८ ।।</blockquote>'''रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानन्द. रवीन्द्रनाथ टैगोर राज राममोहनराय, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि अरविन्द स्वामी विवेकानन्द तथा।। २८ ।।'''<blockquote>दादाभाई गोपबन्धुः तिलको गान्धिरादृता।</blockquote><blockquote>रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रह्मण्यभारती।। २९ ।। ।</blockquote>'''दादाभाई नौरोजी. गोपबंध दवास महात्मा गॉँधी,  बालगंगाधर तिलक. महर्षि रमण, महामना मालवीय तथा सुब्रह्मण्य भारती आदरणीय हैं॥२९ ॥'''<blockquote>सुभाषः प्रणवानन्दः क्रान्तिवीरो विनायक:।</blockquote><blockquote>ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरु: तथा ॥ ३० ॥</blockquote>'''नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, प्रणवानन्द, क्रान्तिवीर विनायक दामोदर सावरकर, ठक्कर बाप्पा, भीमराव अम्बेडकर, ज्योतिराव फुले , नारायण गुरु तथा ॥ ३०॥'''<blockquote>संघशक्तिप्रणेतारौ केशवो माधवस्तथा ।</blockquote><blockquote>स्मरणीयाः सदैवैते नवचैतन्यदायकाः ॥ ३१  ॥</blockquote>'''संघ-शक्ति के प्रणेता प.पू केशवराव बलिराम हेडगेवार तथा माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, हिन्दू समाज में नवीन चेतना प्रदान करने वाले महापुरुष सदैव स्मरणीय हैं ॥३१ ॥'''<blockquote>अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरणसंसक्तहृदयाः</blockquote><blockquote>अनिर्दिष्टा वीरा अधिसमरमुद्ध्वस्तरिपवः ।</blockquote><blockquote>समाजोद्धर्तारः सुहितकरविज्ञाननिपुणाः</blockquote><blockquote>नमस्तेभ्यो भूयात् सकलसुजनेभ्यः प्रतिदिनम् ।॥ ३२ ॥</blockquote>'''प्रभुचरण में अनुरक्त रहने वाले अनेक भक्त जो शेष रह गए, देश की अस्मिता और अखण्डता पर प्रहार करने वाले शत्रुओं युद्ध में परास्त करने वाले बहुत से वीर जिनके नामों का उल्लेख नहीं हो पाया, तथा अन्य समाजोद्धारक, समाज के हितचिन्तक तथा निपुण वैज्ञानिक एवं सभी श्रेष्ठजनों को प्रतिदिन हमारे प्रणाम समर्पित हों॥३२॥'''<blockquote>इदमेकात्मतास्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत् !</blockquote><blockquote>स राष्ट्रधर्मनिष्ठावान् अखण्डं भारतं स्मरेत् ॥ ३३ ॥</blockquote>'''इस एकात्मता स्तोत्र का जो सदा श्रद्धापूर्वक पाठ करेगा, राष्ट्रधर्म में निष्ठावान वह (व्यक्ति) अखण्ड भारत का स्मरण करे गा॥ ३३ ॥'''
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<blockquote>हनुमान जनको व्यासो वशिष्ठश्च शुको बलिः।</blockquote><blockquote>दधीचि विश्वकर्माणौ पृथुवाल्मीकिभागर्गवाः ।। १३ ।।</blockquote>'''हनुमान, जनक, व्यास, वशिष्ठ, शुक देव, राजा बलि, दधीचि, विश्वकर्मा, पृथ, वाल्मीकि, भाग्गव (परशुराम) ॥ 13।।'''<blockquote>भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा ।</blockquote><blockquote>शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥ १४ ॥</blockquote>'''भगीरथ, एकलव्य मनु, धन्वन्तरि.. शिबि तथा रन्तिदेव की कीर्ति पुराणों में गाई गई है । । १५।।'''<blockquote>बुद्धा जिनेन्द्रा गोरक्षः पाणिनिश्च पत०जलि ।</blockquote><blockquote>शंकरो मध्वनिम्बाकौं श्रीरामानुजवल्लभौ । । १५।।</blockquote>'''बुद्ध के सभी अवतार, सभी तीर्थकर, गुरु गोरखनाथ, पाणिनि, पंतजलि, शंकाराचार्य, मध्वार्चा, निम्बाक्काचार्य. रामनुजाचार्य तथा बल्लभाचार्य, ।। १५।।'''<blockquote>झुलेलालोऽथ चैतन्यः तिरुवल्लुवरस्तथा।</blockquote><blockquote>नायन्मारालवाराश्च कंबश्च बसवेश्वरः ।। १६।।</blockquote>'''झूलेलाल, महाप्रभु चैतन्य, तिरुवल्लु वर, नायन्मार तथा आलवार सन्तपरम्मरा, कंब, बसवेश्वर तथा ।। १६।।'''<blockquote>देवलो रविवासश्च कबीरो गुरुनानकः ।</blockquote><blockquote>नरसिस्तुलसीदासो दशमेशो दुढव्रतः ॥ १७ ॥</blockquote>'''महर्षि देवल, सन्त रविदास, कबीर, गुरुनानक, नरसी मेहता, तुलसीदास, दृढव्रती गुरुगोविन्दसिंह, ।। १७।।'''<blockquote>श्रीमत् शंकरदेवश्च बन्धू सायण-माधवौ ।</blockquote><blockquote>ज्ञानेश्वरस्तुकारामो रामदासा: पुरन्दरः ।। १८ ।।</blockquote>'''आसाम के वैष्णव सन्त श्रीमत् शंकरदेव, सायणाचार्य, माधवाचार्य संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, समर्थगुरु रामदास, पुरन्दरदास ।। १८ ।।'''<blockquote>बिरसा सहजानन्दो रामानन्दस्तथा महान् ।</blockquote><blockquote>वितरन्तु सदैवेते दैवीं सद्गुणसम्पदम् ।। १९।।</blockquote>'''बिरसामुण्डा, स्वामी सहजानन्द, रामानन्द आदि महान पुरुष सदैव समाज को श्रेष्ठ गुण प्रदान करें । १९।।'''<blockquote>भरतर्षिः कालिदासः श्रीभोजो जकणस्तथा।</blockquote><blockquote>सूरदासस्त्यागराजो रसखानश्च सत्कविः । । २० ।।</blockquote>'''नाट्यशास्त्र के आदि गुरु भरत ऋषि, संस्कृत के विद्वान कालिदास, महाराजा भोज, जकण, महात्मा सूरदास, त्यागराज,रसखान जैसे श्रेष्ठ कवि तथा।। २० ।।'''<blockquote>रविवर्मा भातखण्डे भाग्यचन्द्रः स भूपतिः।</blockquote><blockquote>कलावन्तश्च विख्याता स्मरणीया निरन्तरम् ।। २१  ।।</blockquote>'''महान चित्रकार रविवर्मा, वर्तमान संगीत कला के विख्यात उद्धारक भातखण्डे, मणिपुर के राजा भाग्यचन्द्र आदि विख्यात कलाकार सर्वदा स्मरणीय हैं। ।।२१ ।।'''<blockquote>अगस्त्यः कम्बुकौण्डिन्यौ राजेन्द्रश्चोलवं शजः ।</blockquote><blockquote>अशोकः पुष्यमित्रश्च खारवेलः सुनीतिमान् । २२  ।।</blockquote>'''अगस्त्य, कम्बु, कौण्डिन्य, चोलवंशज राजेन्द्र, अशोक, पुष्यमित्र तथा खारवेल नीतिज्ञ हैं ।। २२ । ।'''<blockquote>चाणक्य-चन्द्रगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहन: ।</blockquote><blockquote>समुद्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेन्द्रो बप्परावलः ।। २३।।</blockquote>'''चाणक्य, चन्द्रगुप्त, विक्रमादित्य, शालिवाहन. समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन, शैलेन्द्र, बेप्पारावल तथा।। २३।।'''<blockquote>लाचिद् भास्करवर्मा च यशोधर्मा च हुणजित् ।</blockquote><blockquote>श्रीकृष्णदेवरायश्च ललितादित्य उद्बल: ॥ २४ ॥</blockquote>'''लाचिद् बड़फुंकन, भास्करवर्मा, हूणविजयी यशोध्मा श्रीकृष्णदेवराय तथा ललितादित्य जैसे वलशाली।। २४ ।।'''<blockquote>मुसुनूरिनायकौ तौ प्रतापः शिवभूपतिः ।</blockquote><blockquote>रणजित्सिंह इत्येते वीरा विख्यातविक्रमाः । । २५ ।।</blockquote>'''प्रोलय नायक, कप्पयनायक, महाराणाप्रताप, महाराज शिवाजी तथा रणजीत सिंह, इस देश में ऐसे विख्यात पराक्रमी वीर हुए हैं।। २५।।'''<blockquote>वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः सुश्रुतस्तथा।</blockquote><blockquote>चरको भास्कराचा्यों वराहमिहिरः सुधी:।। २६ ।।</blockquote>'''हमारे बुद्धिमान वैज्ञानिक कपिलमुनि, कणाद् ऋषि सुश्रुत चरक, भास्काराचार्य तथा वराहमिहिर। । २६ ।।'''<blockquote>नागार्जुनो भरद्वाज आर्यभट्टो बसुर्बुधः ।</blockquote><blockquote>ध्येयो वेड्टरामश्च विज्ञा रामानुजादयः ॥ २७ ॥</blockquote>'''नागार्जुन, भरद्वाज, आर्यभट्ट, जगदीशचन्द्र बसु चन्द्रशेखर वेंकट रमन तथा राजमानुजम् जैसे प्रतिभावान वैज्ञानिक स्मरणीय हैं।। २७  ।।'''<blockquote>रामकृष्णो दयानन्दो रवीन्द्रो राममोहनः ।</blockquote><blockquote>रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानन्द उद्यशाः।। २८ ।।</blockquote>'''रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानन्द. रवीन्द्रनाथ टैगोर राज राममोहनराय, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि अरविन्द स्वामी विवेकानन्द तथा।। २८ ।।'''<blockquote>दादाभाई गोपबन्धुः तिलको गान्धिरादृता।</blockquote><blockquote>रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रह्मण्यभारती।। २९ ।। ।</blockquote>'''दादाभाई नौरोजी. गोपबंध दवास महात्मा गॉँधी,  बालगंगाधर तिलक. महर्षि रमण, महामना मालवीय तथा सुब्रह्मण्य भारती आदरणीय हैं॥२९ ॥'''<blockquote>सुभाषः प्रणवानन्दः क्रान्तिवीरो विनायक:।</blockquote><blockquote>ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरु: तथा ॥ ३० ॥</blockquote>'''नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, प्रणवानन्द, क्रान्तिवीर विनायक दामोदर सावरकर, ठक्कर बाप्पा, भीमराव अम्बेडकर, ज्योतिराव फुले , नारायण गुरु तथा ॥ ३०॥'''<blockquote>संघशक्तिप्रणेतारौ केशवो माधवस्तथा ।</blockquote><blockquote>स्मरणीयाः सदैवैते नवचैतन्यदायकाः ॥ ३१  ॥</blockquote>'''संघ-शक्ति के प्रणेता प.पू केशवराव बलिराम हेडगेवार तथा माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, हिन्दू समाज में नवीन चेतना प्रदान करने वाले महापुरुष सदैव स्मरणीय हैं ॥३१ ॥'''<blockquote>अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरणसंसक्तहृदयाः</blockquote><blockquote>अनिर्दिष्टा वीरा अधिसमरमुद्ध्वस्तरिपवः ।</blockquote><blockquote>समाजोद्धर्तारः सुहितकरविज्ञाननिपुणाः</blockquote><blockquote>नमस्तेभ्यो भूयात् सकलसुजनेभ्यः प्रतिदिनम् ।॥ ३२ ॥</blockquote>'''प्रभुचरण में अनुरक्त रहने वाले अनेक भक्त जो शेष रह गए, देश की अस्मिता और अखण्डता पर प्रहार करने वाले शत्रुओं युद्ध में परास्त करने वाले बहुत से वीर जिनके नामों का उल्लेख नहीं हो पाया, तथा अन्य समाजोद्धारक, समाज के हितचिन्तक तथा निपुण वैज्ञानिक एवं सभी श्रेष्ठजनों को प्रतिदिन हमारे प्रणाम समर्पित हों॥३२॥'''<blockquote>इदमेकात्मतास्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत् !</blockquote><blockquote>स राष्ट्रधर्मनिष्ठावान् अखण्डं भारतं स्मरेत् ॥ ३३ ॥</blockquote>'''इस एकात्मता स्तोत्र का जो सदा श्रद्धापूर्वक पाठ करेगा, राष्ट्रधर्म में निष्ठावान वह (व्यक्ति) अखण्ड भारत का स्मरण करे गा॥ ३३ ॥'''
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।। भारतमाता की जय ।।
    
<nowiki>---------------</nowiki>*----------------*--------------
 
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=== <big><u>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</u></big> ===
 
=== <big><u>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</u></big> ===
[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-012.jpg|center|thumb]]
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[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-012.jpg|center|thumb]]<blockquote>'''<big>ॐ सच्चिदानन्दरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने। ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमाङ्गल्यमूर्तये ।।१।।</big>''' </blockquote>'''अर्थ :-'''  ऊँ ज्योतिर्मय स्वरूप वाले, विश्व का कल्याण करने वाले, सच्चिदानन्द-स्वरूप परमात्मा को नमस्कार है ॥ १ ॥  
<blockquote>'''ऊँ सच्चिदानन्दरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने। ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमाडगिल्यमूर्तये।१ ॥''' </blockquote>'''अर्थ :-'''  ऊँ ज्योतिर्मय स्वरूप वाले, विश्व का कल्याण करने वाले, सच्चिदानन्द-स्वरूप परमात्मा को नमस्कार है ॥ १ ॥  
      
'''व्याख्या : -'''    ॐ परब्रह्मवाचक शब्द है जो प्रणव मंत्र भी कहलाता है। इसे सृष्टि का आदि नाद माना जाता है। यही शब्दब्रह्म है जो सम्पूर्ण आकाश में अव्यक्त रूप में व्याप्त है। पुराणों और स्मृतियों के अनुसार यह ब्रह्मा के मुँहसेनिकला हुआ। प्रथम शब्द है जो बड़ा मांगलिक माना जाता है और वेदपाठ या किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में तथा समापन के समय प्रयुक्त होता है। मन्त्र का आरम्भ भी ॐ से किया जाता है। ॐ त्रिदेव – ब्रह्मा,विष्णु और महेश का द्योतक है ,जिसमें अ = ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता),उ = विष्णु (पालनकर्ता), और म् = महेश (संहारकर्ता) का संकेतक माना जाता है। शुभ का द्योतक होने से भारत में स्वीकृति-वाचक "हाँ" या "बहुत अच्छा" अथवा “ठीक है" के अर्थ में भी 'अं%' कहने की प्रथा रही है। सच्चिदानन्द – सत् चित्(ज्ञानस्वरूप) आनन्दस्वरूप ब्रह्य।
 
'''व्याख्या : -'''    ॐ परब्रह्मवाचक शब्द है जो प्रणव मंत्र भी कहलाता है। इसे सृष्टि का आदि नाद माना जाता है। यही शब्दब्रह्म है जो सम्पूर्ण आकाश में अव्यक्त रूप में व्याप्त है। पुराणों और स्मृतियों के अनुसार यह ब्रह्मा के मुँहसेनिकला हुआ। प्रथम शब्द है जो बड़ा मांगलिक माना जाता है और वेदपाठ या किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में तथा समापन के समय प्रयुक्त होता है। मन्त्र का आरम्भ भी ॐ से किया जाता है। ॐ त्रिदेव – ब्रह्मा,विष्णु और महेश का द्योतक है ,जिसमें अ = ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता),उ = विष्णु (पालनकर्ता), और म् = महेश (संहारकर्ता) का संकेतक माना जाता है। शुभ का द्योतक होने से भारत में स्वीकृति-वाचक "हाँ" या "बहुत अच्छा" अथवा “ठीक है" के अर्थ में भी 'अं%' कहने की प्रथा रही है। सच्चिदानन्द – सत् चित्(ज्ञानस्वरूप) आनन्दस्वरूप ब्रह्य।
 
[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-013.jpg|center|thumb]]
 
[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-013.jpg|center|thumb]]
<blockquote>'''प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥2 ॥  
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<blockquote>'''<big>प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।</big>'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥२ ॥  
    
प्रकृति सृष्टी का मुल उपादान कारण , जो संख्या दर्शन के अनुसार जड़ (अचेतन)<sub>,</sub> अमूर्त (निराकार) और त्रिगुणात्मक है, प्रकृति के नाम से ज्ञात है। उसके तीन गुण हैं – सत्व,रज और तम,जिनकी साम्यावस्था में सब कुछ अमूर्त रहता है। किन्तु चेतन तत्व (ईश्वर या आत्मा) के सान्निध्य में जड़ प्रकृति में चेतनाभास उत्पन्न हो जाने से वह साम्य भंग हो जाता है और तीनों गुण एक दूसरे को दबाकर स्वयं प्रभावी होने का प्रयत्न करने लगते हैं। इसके साथ ही सृष्टि का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। अद्वैत दर्शन में सृष्टि को मायाजनित विवर्त (मिथ्या आभास) माना जाता है। वस्तुत: भारतीय विचारधारा में प्रकृति और माया एक ही शक्ति के दो नाम हैं।  
 
प्रकृति सृष्टी का मुल उपादान कारण , जो संख्या दर्शन के अनुसार जड़ (अचेतन)<sub>,</sub> अमूर्त (निराकार) और त्रिगुणात्मक है, प्रकृति के नाम से ज्ञात है। उसके तीन गुण हैं – सत्व,रज और तम,जिनकी साम्यावस्था में सब कुछ अमूर्त रहता है। किन्तु चेतन तत्व (ईश्वर या आत्मा) के सान्निध्य में जड़ प्रकृति में चेतनाभास उत्पन्न हो जाने से वह साम्य भंग हो जाता है और तीनों गुण एक दूसरे को दबाकर स्वयं प्रभावी होने का प्रयत्न करने लगते हैं। इसके साथ ही सृष्टि का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। अद्वैत दर्शन में सृष्टि को मायाजनित विवर्त (मिथ्या आभास) माना जाता है। वस्तुत: भारतीय विचारधारा में प्रकृति और माया एक ही शक्ति के दो नाम हैं।  
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घटनाओं के पूर्व और पश्चात् के अनुक्रम का बोध कराने वाला प्रत्यय, जिसका गति या परिवर्तन से अविच्छेद्य सम्बन्ध है। भारतीय तत्व दर्शियों ने काल को चक्रीय (पुनरावर्ती) बताया है, जिसके अनुसार सत्ययुग, त्रेतायुग,द्वापरयुग, और कलियुग का बारम्बार पुनरावर्तन होता रहता है। इस प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य का कालचक्र पुन: पुन: अपने को दुहराता रहता है। भारत में काल-गणना निमेष (पलक-झपकने) के भी अत्यंत सूक्ष्म अंश से लेकर कल्प (सृष्टि की अवधि) पर्यन्त बृहत् स्तर तक की गयी है। उपर्युक्त चार युगोंका एक महायुग (43,20,000 वर्ष) और 1000 महायुगों का एक कल्प होता है जो पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक दिन और एक बार की सृष्टि की अवधि है। सृष्टि कल्प के ही बराबर प्रलयकाल होता है और तत्पश्चात् पुन: सृष्टि।
 
घटनाओं के पूर्व और पश्चात् के अनुक्रम का बोध कराने वाला प्रत्यय, जिसका गति या परिवर्तन से अविच्छेद्य सम्बन्ध है। भारतीय तत्व दर्शियों ने काल को चक्रीय (पुनरावर्ती) बताया है, जिसके अनुसार सत्ययुग, त्रेतायुग,द्वापरयुग, और कलियुग का बारम्बार पुनरावर्तन होता रहता है। इस प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य का कालचक्र पुन: पुन: अपने को दुहराता रहता है। भारत में काल-गणना निमेष (पलक-झपकने) के भी अत्यंत सूक्ष्म अंश से लेकर कल्प (सृष्टि की अवधि) पर्यन्त बृहत् स्तर तक की गयी है। उपर्युक्त चार युगोंका एक महायुग (43,20,000 वर्ष) और 1000 महायुगों का एक कल्प होता है जो पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक दिन और एक बार की सृष्टि की अवधि है। सृष्टि कल्प के ही बराबर प्रलयकाल होता है और तत्पश्चात् पुन: सृष्टि।
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[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-014 - Copy (2).jpg|center|thumb]]<blockquote>                                  '''<big>रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्। ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ़यां वन्दे भारतमातरम् ॥३॥</big>''' </blockquote>राजर्षियों रूपी रत्नों से समृद्ध ऐसी भारतमाता की मैं वन्दना करता हूँ ॥३॥
<blockquote>                                  '''रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्। ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ़यां वन्दे भारतमातरम् ॥3 ॥''' </blockquote>राजर्षियों रूपी रत्नों से समृद्ध ऐसी भारतमाता की मैं वन्दना करता हूँ ॥3 ॥
      
[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-015.jpg|center|thumb]]
 
[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-015.jpg|center|thumb]]
<blockquote>'''महेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालय: । ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिशचारावलिस्तथा ।4 ।''' </blockquote>'''<big><u>महेन्द्र पर्वत</u> : -</big>'''
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<blockquote>'''<big>महेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालय: । ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिशचारावलिस्तथा ।।४।।</big>''' </blockquote>'''<big><u>महेन्द्र पर्वत</u> : -</big>'''
    
उत्कल प्रदेश (उड़ीसा) के गंजाम जिले में पूर्वी घाट काउत्तुंग शिखर। इस पर्वत पर चार विशाल ऐतिहासिक मन्दिर विद्यमानहैं। चोल राजा राजेन्द्र ने 11 वीं शताब्दी में यहाँएक जयस्तम्भ स्थापित किया था। स्थानीय लोगों की ऐसी श्रद्धा है कि सप्त चिरंजीवियों में से एक, परशुराम, इस पर्वत पर विचरण करते हैं। इस पर्वत से महेन्द्र—तनय नामक दो प्रवाह निकलते हैं।  
 
उत्कल प्रदेश (उड़ीसा) के गंजाम जिले में पूर्वी घाट काउत्तुंग शिखर। इस पर्वत पर चार विशाल ऐतिहासिक मन्दिर विद्यमानहैं। चोल राजा राजेन्द्र ने 11 वीं शताब्दी में यहाँएक जयस्तम्भ स्थापित किया था। स्थानीय लोगों की ऐसी श्रद्धा है कि सप्त चिरंजीवियों में से एक, परशुराम, इस पर्वत पर विचरण करते हैं। इस पर्वत से महेन्द्र—तनय नामक दो प्रवाह निकलते हैं।  
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