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=== द्वारिका धाम ===
 
=== द्वारिका धाम ===
चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शांकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया ।महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण,भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया। कृष्ण ने पापी कांस का वध मथुरा में किया, उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकरमथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँउन्होंने सुदूढ़दुर्ग का निर्माण कियाऔरद्वारिका की स्थापना की। कृष्णा के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी।आज द्वारिका एक छोटा नगरअवश्य है, परन्तुअपनेअन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिरमें स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुईथी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिरहै। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर)पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये।  
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चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया। महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण, भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया था। कृष्ण ने पापी कंस का वध मथुरा में किया था । उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकर मथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँ उन्होंने सुदृढ़दुर्ग का निर्माण किया और द्वारिका की स्थापना की। कृष्ण के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी। आज द्वारिका एक छोटा नगर अवश्य है, परन्तु अपने अन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिर में स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुई थी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिर है। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर) पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये।  
    
=== जगन्नाथ पुरी ===
 
=== जगन्नाथ पुरी ===
जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में गांगा सागर तट पर स्थित पावन तीर्थ स्थान है। यह शैव, वैष्णव तथा बौद्ध सम्प्रदाय के भक्तों का श्रद्धा-कन्द्र है। यह चारपावन धामों तथा 51शक्तिपीठोंमें सेएक है। पुराणोंमेंपुरुषोत्तम तीर्थ नाम से इसका वर्णन किया गया है। स्कन्द व ब्रह्मपुराण के अनुसारइसकी जगन्नाथ मन्दिर गांगवंशीय राजा अनंग भीमदेव ने 12वीं शताब्दी में बनवाया। 16वीं शताब्दी में बंगाल के मुसलमान शासक हुसेनशाह तथा पठान काला पहाड़ ने पुरी के मन्दिर को क्षतिग्रस्त किया। मराठों ने जगन्नाथ मन्दिर की व्यवस्था के लिए वार्षिक 27 हजार रुपये की राशि अनुदान के रूप में स्वीकृत की। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की काष्ठ-मूर्तियाँ मन्दिरमें प्रतिष्ठित हैं। इन मूर्तियों को रथयात्रा केअवसर पर निकाल कर रथोंमें स्थापित कर समुद्रतट-स्थित मौसी जी के मन्दिर में 10 दिन रखा जाता है। यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मूतियों की वापसीभी बड़ेधूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ सम्पन्न होती है। इस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहाँ किसी प्रकार के जाति-भेद को कोई स्थान नहीं है। इस संबंध में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हो गयी है : <blockquote>'''"जगन्नाथ का भात, जगत् पसारे हाथ, पूछे जात न पात।"'''</blockquote>जगन्नाथपुरी में कई पवित्र स्थल स्नान के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनमें महोदधि, रोहिणीकुण्ड, शवेत गांग, लोकनाथ सरोवर तथा चक्रतीर्थ प्रमुख हैं। गुंडीचा मन्दिर (मौसी का मन्दिर),श्री लोकनाथ मन्दिर, सिद्धि-विनायक मन्दिर यहाँ के अन्य मन्दिर हैं। जगन्नाथपुरी से 18 कि.मी. दूर साक्षी गोपाल मन्दिर है,इसके दर्शन के बिना जगन्नाथपुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।आदि शांकराचार्य ने इस पवित्र स्थान की यात्रा की और गोवर्धन पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य और रामानन्द ने भी इस क्षेत्र की यात्रा की। रामानन्द जी के प्रमुख शिष्य कबीर ने समता का संदेश प्रचारित किया। आज भी बड़ी संख्या कबीरपंथी पुरी में रहते हैं तथा भगवान्ज गन्नाथ की रथयात्रा में बढ़चढ़कर भागीदारी करते हैं। मलूक दास, चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ पधारे। 
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जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में गंगासागर तट पर स्थित पावन तीर्थ स्थान है। यह शैव, वैष्णव तथा बौद्ध सम्प्रदाय के भक्तों का श्रद्धा-कन्द्र है। यह चारपावन धामों तथा 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराणों में पुरुषोत्तम तीर्थ नाम से इसका वर्णन किया गया है। स्कन्द व ब्रह्मपुराण के अनुसार जगन्नाथ मन्दिर गांगवंशीय राजा अनंग भीमदेव ने 12वीं शताब्दी में बनवाया। 16वीं शताब्दी में बंगाल के मुसलमान शासक हुसेनशाह तथा पठान काला पहाड़ ने पुरी के मन्दिर को क्षतिग्रस्त किया। मराठों ने जगन्नाथ मन्दिर की व्यवस्था के लिए वार्षिक 27 हजार रुपये की राशि अनुदान के रूप में स्वीकृत की। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की काष्ठ-मूर्तियाँ मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। इन मूर्तियों को रथयात्रा के अवसर पर निकाल कर रथों में स्थापित कर समुद्रतट-स्थित मौसी जी के मन्दिर में 10 दिन रखा जाता है। यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मूतियों की वापसी भी बड़े धूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ सम्पन्न होती है। इस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहाँ किसी प्रकार के जाति-भेद को कोई स्थान नहीं है। इस संबंध में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हो गयी है : <blockquote>'''"जगन्नाथ का भात, जगत् पसारे हाथ, पूछे जात न पात।"'''</blockquote>जगन्नाथपुरी में कई पवित्र स्थल स्नान के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनमें महोदधि, रोहिणीकुण्ड, शवेत गांग, लोकनाथ सरोवर तथा चक्रतीर्थ प्रमुख हैं। गुंडीचा मन्दिर (मौसी का मन्दिर), श्री लोकनाथ मन्दिर, सिद्धि-विनायक मन्दिर यहाँ के अन्य मन्दिर हैं। जगन्नाथपुरी से 18 कि.मी. दूर साक्षी गोपाल मन्दिर है, इसके दर्शन के बिना जगन्नाथपुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। आदि शंकराचार्य ने इस पवित्र स्थान की यात्रा की और गोवर्धन पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य और रामानन्द ने भी इस क्षेत्र की यात्रा की। रामानन्द जी के प्रमुख शिष्य कबीर ने समता का संदेश प्रचारित किया। आज भी बड़ी संख्या कबीरपंथी पुरी में रहते हैं तथा भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में बढ़चढ़कर भागीदारी करते हैं।  
    
= मोक्षदायिनी सप्त पुरी =
 
= मोक्षदायिनी सप्त पुरी =
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=== अयोध्या ===
 
=== अयोध्या ===
भगवान श्रीराम का जन्म-स्थानअयोध्या सरयू के तटपर स्थित अति प्राचीन नगर है। स्वयं मनु ने इस नगर को स्थापित किया।" स्कन्दपुराण के अनुसार यह सुदर्शन पर बसी है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति को समझाते हुए स्कन्द पुराण कहता है कि अयोध्या शत्रुद्वारा अविजित है। अत: अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है।" सूष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की यात्रा की और ब्रह्मकुण्ड की स्थापना की। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
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भगवान श्रीराम का जन्म-स्थान अयोध्या सरयू के तट पर स्थित अति प्राचीन नगर है। स्वयं मनु ने इस नगर को स्थापित किया। स्कन्दपुराण के अनुसार यह सुदर्शन पर बसी है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति को समझाते हुए स्कन्द पुराण कहता है कि अयोध्या शत्रु द्वारा अविजित है। अत: अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है। सूष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की यात्रा की और ब्रह्मकुण्ड की स्थापना की। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
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" श्री राम-जन्मभूमि होने का श्रेय पाने के कारण अयोध्या साकेत हो गयी। मर्यादापुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के समस्त प्राणी उनके दिव्य धाम को चले गये, तब श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे पुन: बसाया।अयोध्या के इतिहास से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या सम्राट विक्रमादित्य की बसायी हुई है।  
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श्री राम-जन्मभूमि होने का श्रेय पाने के कारण अयोध्या साकेत हो गयी। मर्यादापुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के समस्त प्राणी उनके दिव्य धाम को चले गये, तब श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे पुन: बसाया।अयोध्या के इतिहास से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या सम्राट विक्रमादित्य की बसायी हुई है। उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये । सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया। यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है। यह कसौटी के ८४ स्तम्भों के ऊपर आधारित था। मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने सन १५२८ ई. में इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया और इसके अवशेषों से अधूरी मस्जिद (बिना मीनार के तीन गुम्बद) बनवा दी। रामभक्तों ने जन्म-स्थान परपूजा का अधिकार कभी नहीं छोड़ा और न ही उस पर विधर्मियों के अधिकार को स्वीकार किया। अत: सतत संघर्ष करते रहे। इस संघर्ष में 7 युद्धों में तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
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उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये । सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया। यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है। यह कसौटी के ८४ स्तम्भों के ऊपर आधारित था। मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने सन १५२८ ई. में इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया और इसके अवशेषों से अधूरी मस्जिद (बिना मीनार के तीन गुम्बद)बनवा दी। रामभक्तों ने जन्म-स्थान परपूजा का अधिकार कभी नहीं छोड़ा और न ही उस पर विधर्मियों के अधिकार को स्वीकार किया। अत: सतत संघर्ष करते रहे।इस संघर्ष में 7 युद्धों में तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
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इसी संघर्ष की कड़ी में संवत २०४६ वि. में देवोत्थान एकादशी को नये मन्दिर के निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्य सम्पन्न हुआ। सन २०४७ को देवोत्थान एकादशी को मन्दिर-निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक रूप में कार्य सेवा का श्रीगणेश हुआ। अयोध्या न केवल वैष्णव सम्प्रदाय वरन् शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन सभी मतमतान्तरों का पवित्र स्थान है। दशम गुरु श्री गोविन्दसिंह ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का प्रयास किया था।  
 
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इसी संघर्ष की कड़ी में संवत २०४६ वि. में देवोत्थान एकादशी को नये मन्दिर के निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्य सम्पन्न हुआ। सन २०४७ को देवोत्थान एकादशी को मन्दिर-निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक रूप में कार्य सेवा का श्रीगणेश हुआ। तत्कालीन मुस्लिमपरस्त सरकार ने लाख रुकावटें खड़ीं की परन्तु रामभक्तों के ज्वार को न रोक सकी। सरकार ने खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली उक्ति को चरितार्थ कर निहत्थे रामभक्तों पर गोली बरसायी जिससेअनेक बलिदान हुए और सैकड़ों घायल होकर राम-मन्दिर निर्माण के लिए होने वाली कार सेवा' में भाग लेने को उत्सुक हैं। अयोध्या न केवल वैष्णव सम्प्रदाय वरन् शैव,शाक्त, बौद्ध, जैन सभी मतमतान्तरों का पवित्र स्थानहै। दशम गुरु श्री गोविन्दसिंह ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का प्रयास किया था।  
      
यहाँ पर हनुमानगढ़ी मन्दिर, कनक भवन, सीता रसोई, नागेश्वर मन्दिर, दर्शनेश्वर शिव मन्दिर आदि धार्मिक स्थान विद्यमान हैं। रामघाट, स्वर्गद्वार, ऋणमोचन,जानकी घाट, लक्ष्मण घाट आदि सरयू-तट पर बने घाट हैं जहाँ डुबकी लगाकर तीर्थयात्री धन्य हो उठता है।  
 
यहाँ पर हनुमानगढ़ी मन्दिर, कनक भवन, सीता रसोई, नागेश्वर मन्दिर, दर्शनेश्वर शिव मन्दिर आदि धार्मिक स्थान विद्यमान हैं। रामघाट, स्वर्गद्वार, ऋणमोचन,जानकी घाट, लक्ष्मण घाट आदि सरयू-तट पर बने घाट हैं जहाँ डुबकी लगाकर तीर्थयात्री धन्य हो उठता है।  
    
=== मथुरा ===
 
=== मथुरा ===
यमुना के दायें" किनारे पर स्थित पावन नगरी है। इसकी स्थापना भगवान राम के छोटे भाईशत्रुघ्न ने त्रेतायुग में लवणासुर को मार कर की थी। कालान्तर में यह नगर यादवों के द्वारा शासित हुआ। सत्ययुग में इसका नाम मथुरा या मधुवन था'। नारद के निर्देशानुसार ध्रुव ने यहीं पर तपस्यारत रहकर भगवत्-प्राप्ति की। बाद में मधु नामक राक्षस ने मथुरा या मधुपुरी नामक नगर बसाया। इसी मधु और उसके पुत्र लवणासुर को मार कर शत्रुघ्न ने इसे पुन: बसाया। यदुवंशी राजा उग्रसेन के शासन-काल में मथुरा का वैभव शिखर परथा, परन्तु उनके बेटे कंस नेअपने पूर्वजों के पुण्य को मिट्टी में मिला दिया तथा जनता को संत्रस्त किया। भगवान् श्रीकृष्ण ने कस को मार कर मथुरा का उद्धार किया। यहीं पर कस किले में लीलाधरश्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य ने श्रीकृष्ण-जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर बनवाया जिसे मुगलशासन के समय धर्मान्ध औरंगजेब ने ध्वस्त कर वहाँ एक मस्जिद बनवा दी ।   
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यमुना के दायें किनारे पर स्थित पावन नगरी मथुरा है। इसकी स्थापना भगवान राम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने त्रेतायुग में लवणासुर को मार कर की थी। कालान्तर में यह नगर यादवों के द्वारा शासित हुआ। सत्ययुग में इसका नाम मथुरा या मधुवन था। नारद के निर्देशानुसार ध्रुव ने यहीं पर तपस्यारत रहकर भगवत्-प्राप्ति की। बाद में मधु नामक राक्षस ने मथुरा या मधुपुरी नामक नगर बसाया। इसी मधु और उसके पुत्र लवणासुर को मार कर शत्रुघ्न ने इसे पुन: बसाया। यदुवंशी राजा उग्रसेन के शासन-काल में मथुरा का वैभव शिखर पर था, परन्तु उनके बेटे कंस ने अपने पूर्वजों के पुण्य को मिट्टी में मिला दिया तथा जनता को संत्रस्त किया। भगवान श्रीकृष्ण ने कंस  को मार कर मथुरा का उद्धार किया। यहीं पर कंस किले में लीलाधर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य ने श्रीकृष्ण-जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर बनवाया जिसे मुगलशासन के समय धर्मान्ध औरंगजेब ने ध्वस्त कर वहाँ एक मस्जिद बनवा दी ।   
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यद्यपि मथुरा में अनेक मन्दिर और तीर्थस्थल हैं परन्तु कसकिला (जन्मस्थान) पर बनी मस्जिद आज भी हिन्दू स्वाभिमान को चुनौती तथा परतंत्रता की कालिमायुक्त यादगार है। अत: जन्मस्थान को मुक्त कराने के प्रयासों में तीव्रता आ गयी हैं। मथुरा में अनेकघाट तथा प्राचीन मन्दिरहैं।द्वारिकाधीश जी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मथुरा के चार कोनों पर चार शिवमन्दिर-भूतेश्वर, रंगेश्वर, पिपलेश्वर तथा गोकणोश्वर विराजमान हैं। वाराह मन्दिर, श्रीराधाविहारी मन्दिर, चामुण्डा मन्दिर (शक्तिपीठ) श्रीराम मन्दिर अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। मथुरा के पास ही वृंदावन का पावन क्षेत्र हैं जहाँ अनेक मन्दिर तथा श्रीकृष्ण व राधा से सम्बन्धित स्थल हैं। वराहपुराण', भागवत, महाभारत, बौद्धग्रन्थों में मथुरा का वर्णन आया है। यह मोक्षदायिनीपुरी हैतथा सब प्रकार के पापों का शमन करनेवाली नगरी हैं।  
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मथुरा में अनेकघाट तथा प्राचीन मन्दिरहैं। द्वारिकाधीश जी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मथुरा के चार कोनों पर चार शिवमन्दिर-भूतेश्वर, रंगेश्वर, पिपलेश्वर तथा गोकणोश्वर विराजमान हैं। वाराह मन्दिर, श्रीराधाविहारी मन्दिर, चामुण्डा मन्दिर (शक्तिपीठ) श्रीराम मन्दिर अन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मथुरा के पास ही वृंदावन का पावन क्षेत्र है जहाँ अनेक मन्दिर तथा श्रीकृष्ण व राधा से सम्बन्धित स्थल हैं। वराहपुराण, भागवत, महाभारत, बौद्धग्रन्थों में मथुरा का वर्णन आया है। यह मोक्षदायिनीपुरी है तथा सब प्रकार के पापों का शमन करनेवाली नगरी हैं।  
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=== हरिद्वार(माया) ===
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=== हरिद्वार (माया) ===
पावन क्षेत्र हरिद्वार को मायुपरी या गंगाद्वार नाम से भी जाना जाता है। मुसलमान इतिहासकार इस तीर्थ को गांगद्वार,वैष्णव हरिद्वार तथा शैव हरिद्वार के नाम से पुकारते हैं। टीम कोयराट ने, जिसने जहांगीर के शासनकाल में यहां की यात्रा की, इसे "शिव की राजधानी' बताया। चीनी यात्री हवेनसांग ने भीअपने यात्रा-वृत्तांत में हरिद्वार का वर्णन किया है। पवित्र गांग ३२० कि.मी. की पर्वत-क्षेत्र की यात्रा करने के बाद यहीं पर मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। यहाँ अनेक नवीन-प्राचीन आश्रम, मन्दिर तथा तीर्थक्षेत्र हैं।विल्वकेश्वर, नीलकण्ठ, गांगद्वार, कनखल तथा कुशावर्त प्रमुख तीर्थक्षेत्र हैं। दक्ष प्रजापति ने कनखल में ही वह इतिहास-प्रसिद्ध यज्ञ किया था जिसका सती के यज्ञागिन में जल जाने पर शिवगणों ने विध्वंस कर दिया था। हरिद्वार में कुंभ का मेला प्रति 12 वें वर्ष लगता है। हरिद्वार में भारत में विकसित सभी पंथ-सम्प्रदायों के पवित्र स्थान विराजमान हैं। यहाँ के हरि की पौड़ी तथा अन्य घाटोंपर गांगास्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।' हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र में सप्तसरोवर, मनसादेवी, भीमगोड़ा, ऋषिकेश आदि तीर्थ स्थापित हैं। भारत की सांस्कृतिक व धार्मिक सम्पदा का दिग्दर्शन कराने वाला सात मंजिला 'भारत माता मन्दिर’ निवर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्दजी के अथक प्रयासों से बन चुका है। तार्किक व वैज्ञानिक स्तर पर धार्मिक मूल्यों के संरक्षण में रत शान्तिकुंज’ और ‘ब्रह्मवर्चस' हरिद्वार में ही हैं।  
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पावन क्षेत्र हरिद्वार को मायापुरी या गंगाद्वार नाम से भी जाना जाता है। मुसलमान इतिहासकार इस तीर्थ को गंगद्वार, वैष्णव हरिद्वार तथा शैव हरिद्वार के नाम से पुकारते हैं। टीम कोयराट ने, जिसने जहांगीर के शासनकाल में यहां की यात्रा की, इसे "शिव की राजधानी' बताया। चीनी यात्री हवेनसांग ने भी अपने यात्रा-वृत्तांत में हरिद्वार का वर्णन किया है। पवित्र गँगा ३२० कि.मी. की पर्वत-क्षेत्र की यात्रा करने के बाद यहीं पर मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। यहाँ अनेक नवीन-प्राचीन आश्रम, मन्दिर तथा तीर्थक्षेत्र हैं। विल्वकेश्वर, नीलकण्ठ, गांगद्वार, कनखल तथा कुशावर्त प्रमुख तीर्थक्षेत्र हैं। दक्ष प्रजापति ने कनखल में ही वह इतिहास-प्रसिद्ध यज्ञ किया था जिसका सती के यज्ञागिन में जल जाने पर शिवगणों ने विध्वंस कर दिया था। हरिद्वार में कुंभ का मेला प्रति 12 वें वर्ष लगता है। हरिद्वार में भारत में विकसित सभी पंथ-सम्प्रदायों के पवित्र स्थान विराजमान हैं। यहाँ के हरि की पौड़ी तथा अन्य घाटोंपर गांगास्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र में सप्तसरोवर, मनसादेवी, भीमगोड़ा, ऋषिकेश आदि तीर्थ स्थापित हैं। भारत की सांस्कृतिक व धार्मिक सम्पदा का दिग्दर्शन कराने वाला सात मंजिला 'भारत माता मन्दिर’ निवर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्दजी के अथक प्रयासों से बन चुका है। तार्किक व वैज्ञानिक स्तर पर धार्मिक मूल्यों के संरक्षण में रत "शान्तिकुंज" और "ब्रह्मवर्चस" हरिद्वार में ही हैं।  
    
=== काशी ===
 
=== काशी ===
पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित, भगवान् शांकर की महिमा से मण्डित काशी (वाराणसी) को विश्व का प्राचीनतम नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ परशक्तिपीठ है, ज्योतिर्लिग है तथा यह सप्तपुरियों में से एक है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण", नारद पुराण", महाभारत, रामायण, स्कन्द पुराण' आदि ग्रन्थों में काशी का वैभव-वर्णन श्रद्धा के साथ किया गया है। वरणा व असी नदी के मध्य स्थित होने के कारण इसका वाराणसी नाम प्रसिद्ध हुआ। बौद्धतीर्थ सारनाथ पास में ही स्थित है। विभिन्न विद्याओं के अध्ययन-केन्द्र, सभी पंथ-सम्प्रदायों के तीर्थ स्थल तथा भगवत्प्राप्ति के परम उपयुक्त क्षेत्र के रूप में काशी की प्रतिष्ठा है। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन पंथों के उपासक काशी को पवित्र मानकर यात्रा-दर्शन करने यहाँ आते हैं। सातवें तथा तेइसवें तीर्थकरों का यहाँ आविर्भाव हुआ। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं पास के सारनाथ में दिया। आदि शांकराचार्य नेअपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ कीथी। कबीर, रामानन्द, तुलसी सदृश संतों ने काशी कोअपनी कर्मभूमि बनाया। काशी में शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन की प्राचीन परम्परा रही है। भारत की सांस्कृतिक एकता को अक्षुण्ण रखने में काशी ने भारी योगदान किया है। यहाँ परतीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केन्द्र हैं। प्रसिद्ध ज्योतिर्लिग काशी विश्वनाथ मन्दिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर उसके भग्नावशेषों पर मस्जिद बनवायी। कालान्तर में महारानी अहिल्याबाई ने मस्जिद के पास ही नवीन विश्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी । महाराज रणजीत सिंह ने मन्दिर पर स्वणाँच्छादित शिखर चढ़ाया। काशी विश्वनाथ के मूल स्थान कोमुक्त कराने के प्रयास तेज हो गये हैं। मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, केदारघाट, हनुमान घाट प्रमुख घाट हैं। हजारों मन्दिरों की नगरी काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जा सकती है।  
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पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित, भगवान् शांकर की महिमा से मण्डित काशी (वाराणसी) को विश्व का प्राचीनतम नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ परशक्तिपीठ है, ज्योतिर्लिग है तथा यह सप्तपुरियों में से एक है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, नारद पुराण, महाभारत, रामायण, स्कन्द पुराण आदि ग्रन्थों में काशी का वैभव-वर्णन श्रद्धा के साथ किया गया है। वरणा व असी नदी के मध्य स्थित होने के कारण इसका वाराणसी नाम प्रसिद्ध हुआ। बौद्धतीर्थ सारनाथ पास में ही स्थित है। विभिन्न विद्याओं के अध्ययन-केन्द्र, सभी पंथ-सम्प्रदायों के तीर्थ स्थल तथा भगवत्प्राप्ति के परम उपयुक्त क्षेत्र के रूप में काशी की प्रतिष्ठा है। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन पंथों के उपासक काशी को पवित्र मानकर यात्रा-दर्शन करने यहाँ आते हैं। सातवें तथा तेइसवें तीर्थकरों का यहाँ आविर्भाव हुआ। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की थी। कबीर, रामानन्द, तुलसी सदृश संतों ने काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। काशी में शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन की प्राचीन परम्परा रही है। भारत की सांस्कृतिक एकता को अक्षुण्ण रखने में काशी ने भारी योगदान किया है। यहाँ पर तीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केन्द्र हैं। प्रसिद्ध ज्योतिर्लिग काशी विश्वनाथ मन्दिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर उसके भग्नावशेषों पर मस्जिद बनवायी। कालान्तर में महारानी अहिल्याबाई ने मस्जिद के पास ही नवीन विश्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी । महाराज रणजीत सिंह ने मन्दिर पर स्वर्णआच्छादित शिखर चढ़ाया। काशी विश्वनाथ के मूल स्थान को मुक्त कराने के प्रयास तेज हो गये हैं। मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, केदारघाट, हनुमान घाट प्रमुख घाट हैं। हजारों मन्दिरों की नगरी काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जा सकती है।  
    
=== द्वारिकापुरी ===
 
=== द्वारिकापुरी ===
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=== कांचीपुरम ===
 
=== कांचीपुरम ===
उत्तर भारत में जो स्थान काशी को प्राप्त हैं. दक्षिण भारत में वही स्थान कांचीवरम् या कांची पुरम् को प्राप्त है। इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। कांची पुरम् तमिलनाडु के चिंगल पेठ जिले में मद्रास से लगभग ४० कि. मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पल्लव राजाओं की राजधानी रही है। प्राचीन काल से शैव, वैष्णव, जैन तथा बौद्ध मतावलम्बी लोगों का यह प्रधान तीर्थ क्षेत्र रहा है। इस नगर के शिवकांची व विष्णुकांची नाम के दोभाग हैं। इस नगर में १०८ शिवस्थल माने गये हैं। कामाक्षी, एकाम्बर नाथ, कलासनाथ, राजसिंहेश्वर, वरदराज नामक यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहाँ कामकोटि पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य के तत्त्वज्ञान का उद्गम-स्थान कांचीवरम् ही है। बौद्ध विद्वानों- नागार्जुन, बुद्धघोष, दिडनाग आदि का निवास भी कांची में था। ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची को भगवान् शिव का नेत्र", माना गया है। कांची ५१ शक्ति पीठों में से भी एक है। यहाँ सती का ककाल गिरा था। कामाक्षी मन्दिर को शक्तिपीठ माना गया हैं। यहाँ ब्रह्माजी ने भी तपस्या की थी तथा भगवती लक्ष्मी का साक्षात्कार किया था।
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उत्तर भारत में जो स्थान काशी को प्राप्त हैं. दक्षिण भारत में वही स्थान कांचीवरम् या कांची पुरम् को प्राप्त है। इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। कांची पुरम् तमिलनाडु के चिंगल पेठ जिले में मद्रास से लगभग ४० कि. मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पल्लव राजाओं की राजधानी रही है। प्राचीन काल से शैव, वैष्णव, जैन तथा बौद्ध मतावलम्बी लोगों का यह प्रधान तीर्थ क्षेत्र रहा है। इस नगर के शिवकांची व विष्णुकांची नाम के दोभाग हैं। इस नगर में १०८ शिवस्थल माने गये हैं। कामाक्षी, एकाम्बर नाथ, कलासनाथ, राजसिंहेश्वर, वरदराज नामक यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहाँ कामकोटि पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य के तत्त्वज्ञान का उद्गम-स्थान कांचीवरम् ही है। बौद्ध विद्वानों- नागार्जुन, बुद्धघोष, दिडनाग आदि का निवास भी कांची में था। ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची को भगवान् शिव का नेत्र माना गया है। कांची ५१ शक्ति पीठों में से भी एक है। यहाँ सती का कंकाल गिरा था। कामाक्षी मन्दिर को शक्तिपीठ माना गया हैं।
    
=== अवन्तिका ===
 
=== अवन्तिका ===
क्षिप्रा नदी के दायें तट पर बसा मध्य प्रदेश का यह प्रसिद्ध नगर द्वादश ज्योतिर्लिगों में महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता हैं। वर्तमान समय में इसे उज्जैन या उज्जयिनी कहते हैं। कनकश्रृंग, कुशस्थली, कुमुदवती, विशाला नाम सेभी यह नगरजाना जाता रहा है।भगवती सती का ऊध्र्व ओष्ठ यहाँ पर गिरा था। अत: यहाँ क्षिप्रा नदी के तट पर शक्तिपीठ की स्थापना की गयी । भगवान् शंकर ने त्रिपुरासुर-वध यहीं किया था। आचार्यश्रेष्ठ सांदीपनि का आश्रम उज्जयिनी में ही था जहाँ कृष्ण ने सुदामा के साथ विभिन्न विद्याओं में कुशलता प्राप्त की। प्रति बारहवें वर्ष जब सूर्य मेष राशि में तथा बृहस्पति सिंह राशि में आते हैं तो महान् पर्व कुंभ का आयोजन यहाँ पर किया जाता है।"इस महापर्व पर सम्पूर्ण देश के श्रद्धालुओं का बृहत्समागम होता है। सन्तमण्डली एकत्रित होकर समाज में हो रहे विकास व परिवर्तन का विश्लेषण करती है और जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए मार्गदर्शन करती है। मौर्यकाल में उज्जयिनी मालवा प्रदेश की राजधानीथी। सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्रऔर पुत्री संघमित्रा ने यहीं प्रव्रज्या धारण की। यह कई महाप्रतापी सम्राटों की राजधानी भी रही।भर्तृहरि, विक्रमादित्य, भोज ने इसके वैभव को बढ़ाया। कालिदास, वररूचि,भर्तृहरि, भारविआदिश्रेष्ठ कवि-लेखकों, भाषाशास्त्रियों तथा प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का कार्यक्षेत्र अवन्तिका रही है। भगवान् बुद्ध के समय में अवन्तिका राजगृह से पेठाणा जाने वाले व्यापारिक मार्ग की विश्राम-स्थली थी। महाभारत स्कन्दपुराण, शिवपुराण, अग्निपुराण में उज्जयिनी की महिमा का वर्णन किया गया है।" महाकाल यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर है। हरसिद्धिदेवी, गोपाल मन्दिर, गढ़कालिका, कालमैरव, सिद्धवट, सांदीपनि आश्रम, यन्त्रमहल, भर्तृहरि गुफा यहाँ के महत्वपूर्ण स्थल हैं।   
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क्षिप्रा नदी के दायें तट पर बसा मध्य प्रदेश का यह प्रसिद्ध नगर द्वादश ज्योतिर्लिगों में महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता हैं। वर्तमान समय में इसे उज्जैन या उज्जयिनी कहते हैं। कनकश्रृंग, कुशस्थली, कुमुदवती, विशाला नाम से भी यह नगर जाना जाता रहा है।भगवती सती का ऊध्र्व ओष्ठ यहाँ पर गिरा था। अत: यहाँ क्षिप्रा नदी के तट पर शक्तिपीठ की स्थापना की गयी । भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर-वध यहीं किया था। आचार्यश्रेष्ठ सांदीपनि का आश्रम उज्जयिनी में ही था जहाँ कृष्ण ने सुदामा के साथ विभिन्न विद्याओं में कुशलता प्राप्त की। प्रति बारहवें वर्ष जब सूर्य मेष राशि में तथा बृहस्पति सिंह राशि में आते हैं तो महान पर्व कुंभ का आयोजन यहाँ पर किया जाता है। इस महापर्व पर सम्पूर्ण देश के श्रद्धालुओं का बृहत्समागम होता है। सन्तमण्डली एकत्रित होकर समाज में हो रहे विकास व परिवर्तन का विश्लेषण करती है और जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए मार्गदर्शन करती है। मौर्यकाल में उज्जयिनी मालवा प्रदेश की राजधानी थी। सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ने यहीं प्रव्रज्या धारण की। यह कई महाप्रतापी सम्राटों की राजधानी भी रही।भर्तृहरि, विक्रमादित्य, भोज ने इसके वैभव को बढ़ाया। कालिदास, वररूचि, भर्तृहरि, भारवि आदि श्रेष्ठ कवि-लेखकों, भाषाशास्त्रियों तथा प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का कार्यक्षेत्र अवन्तिका रही है। भगवान् बुद्ध के समय में अवन्तिका राजगृह से पेठाणा जाने वाले व्यापारिक मार्ग की विश्राम-स्थली थी। महाभारत स्कन्दपुराण, शिवपुराण, अग्निपुराण में उज्जयिनी की महिमा का वर्णन किया गया है। महाकाल यहाँ का सबसे प्रमुख मन्दिर है। हरसिद्धिदेवी, गोपाल मन्दिर, गढ़कालिका, कालमैरव, सिद्धवट, सांदीपनि आश्रम, यन्त्रमहल, भर्तृहरि गुफा यहाँ के महत्वपूर्ण स्थल हैं।   
    
= द्वादश ज्योतिर्लिंग =
 
= द्वादश ज्योतिर्लिंग =
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=== श्रीनगर ===
 
=== श्रीनगर ===
वर्तमान जम्मू-कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। आद्य शांकराचार्य ने इस क्षेत्र की यात्रा कीऔर एक पहाड़ी पर शिवलिंग स्थापित किया। इस पहाड़ी का नाम शांकराचार्य पर्वत और मन्दिर शांकराचार्य मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। शांकराचार्य पर्वत की तलहटी में शांकराचार्य द्वारा स्थापित मठ भी है। पास में एक मस्जिद भी हैं जो मन्दिर के ध्वंसावशोष से बनी है। स्थानीय जनता इसे काली मन्दिर का स्थान मानती है और लोग मस्जिद के कोने में स्थित जलस्रोत की पूजा कर सन्तुष्टिप्राप्त करते हैं। श्रीनगर में हरिपर्वत पर निर्मित एक परकोटे में मन्दिर और गुरुद्वारा बने हैं। सैन्य-सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण इनकी पवित्रता अभी तक अक्षुण्ण है। श्रीनगर के आसपास अनेक तीर्थ स्थल बिखरे पड़े हैं। जिनमें क्षीरभवानी, अनन्त नाग, मार्तण्डमन्दिर(मट्टन),पुंछ(बूढ़ेअमरनाथ) आदि प्रमुख हैं।श्रावण मास मेंअमरनाथ जाने वाली यात्रा (छड़ी साहब) यहीं से प्रारम्भ होती है।  
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वर्तमान जम्मू-कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। आद्य शंकराचार्य ने इस क्षेत्र की यात्रा की और एक पहाड़ी पर शिवलिंग स्थापित किया। इस पहाड़ी का नाम शकराचार्य पर्वत और मन्दिर शंकराचार्य मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। शंकराचार्य पर्वत की तलहटी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ भी है। पास में एक मस्जिद भी हैं जो मन्दिर के ध्वंसावशोष से बनी है। स्थानीय जनता इसे काली मन्दिर का स्थान मानती है और लोग मस्जिद के कोने में स्थित जलस्रोत की पूजा कर सन्तुष्टिप्राप्त करते हैं। श्रीनगर में हरिपर्वत पर निर्मित एक परकोटे में मन्दिर और गुरुद्वारा बने हैं। सैन्य-सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण इनकी पवित्रता अभी तक अक्षुण्ण है। श्रीनगर के आसपास अनेक तीर्थ स्थल बिखरे पड़े हैं। जिनमें क्षीरभवानी, अनन्त नाग, मार्तण्डमन्दिर(मट्टन),पुंछ(बूढ़ेअमरनाथ) आदि प्रमुख हैं।श्रावण मास मेंअमरनाथ जाने वाली यात्रा (छड़ी साहब) यहीं से प्रारम्भ होती है।  
    
=== वाराहमूल (बारामूला) ===
 
=== वाराहमूल (बारामूला) ===
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=== यमुनोत्री व गंगोत्री ===
 
=== यमुनोत्री व गंगोत्री ===
देवापग, पतित-पावनी गंगा का उद्गम गंगोत्री है। गांगोत्री शिखर समुद्रतल से लगभग ६५०० मीटर ऊँचा है। यहाँ सदैव हिमपात होता रहता है, अत: सारा प्रदेश हिमाच्छादित रहता है। पर्वतीय ढालों पर हिमानियाँ फिसलती हैं। ऐसी ही एक हिमानी गांगोत्री के नाम से जानी जाती है तथा इसके पिघलने से गंगा सदा स्वच्छ जल से आपूरित रहती है। यहाँ का मुख्य मन्दिर आदि शांकराचार्य द्वारा स्थापित है। इस मन्दिरमें गांगा मैया की भव्य प्रतिमा है। पास में ही सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड तथा भागीरथ शिला है। जाड़ोंमें जब शीत का प्रकोप बहुत बढ़ जाता हैं तो पुजारी गंगा जी लिए बन्द हो जाता है। गंगोत्री के समान ही यमुनोत्री पवित्र शिखरहै। यह यमुना का उद्गम स्थान हैं। यद्यपि सारा क्षेत्र हिमाचछादित है. हिमानियों का सर्वत्र प्रसार हैं। तो भी यहाँ कई गर्म पानी के कुण्ड हैं। कई कुण्डों का जल तो इतना गरम है कि पोटली में आलू,चावल बांध कर थोड़ी देर पानी में डुबो देने से पक जाते हैं। बराबर में ही कनिन्दगिरि है जहाँ से हिम पिघल-पिघल कर यमुना में बहता जाता है।अत: यमुना का एक नाम कालिन्दी भी है। एक गर्म जल का झरना भी यमुना जी के मन्दिर के पास है। यमुना जी के मन्दिर में यमुना जी की प्रतिमा विराजमान है। हिमालय के गांगोत्री-यमुनोत्री क्षेत्र से उत्तर में तिब्बत जाने के लिए कई संकरे दरें हैं। नीति, माणा और शिप किला इनमें प्रमुख हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से यह अति महत्व का क्षेत्र है।
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देवापग, पतित-पावनी गंगा का उद्गम गंगोत्री है। गांगोत्री शिखर समुद्रतल से लगभग ६५०० मीटर ऊँचा है। यहाँ सदैव हिमपात होता रहता है, अत: सारा प्रदेश हिमाच्छादित रहता है। पर्वतीय ढालों पर हिमानियाँ फिसलती हैं। ऐसी ही एक हिमानी गांगोत्री के नाम से जानी जाती है तथा इसके पिघलने से गंगा सदा स्वच्छ जल से आपूरित रहती है। यहाँ का मुख्य मन्दिर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित है। इस मन्दिरमें गांगा मैया की भव्य प्रतिमा है। पास में ही सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड तथा भागीरथ शिला है। जाड़ोंमें जब शीत का प्रकोप बहुत बढ़ जाता हैं तो पुजारी गंगा जी लिए बन्द हो जाता है। गंगोत्री के समान ही यमुनोत्री पवित्र शिखरहै। यह यमुना का उद्गम स्थान हैं। यद्यपि सारा क्षेत्र हिमाचछादित है. हिमानियों का सर्वत्र प्रसार हैं। तो भी यहाँ कई गर्म पानी के कुण्ड हैं। कई कुण्डों का जल तो इतना गरम है कि पोटली में आलू,चावल बांध कर थोड़ी देर पानी में डुबो देने से पक जाते हैं। बराबर में ही कनिन्दगिरि है जहाँ से हिम पिघल-पिघल कर यमुना में बहता जाता है।अत: यमुना का एक नाम कालिन्दी भी है। एक गर्म जल का झरना भी यमुना जी के मन्दिर के पास है। यमुना जी के मन्दिर में यमुना जी की प्रतिमा विराजमान है। हिमालय के गांगोत्री-यमुनोत्री क्षेत्र से उत्तर में तिब्बत जाने के लिए कई संकरे दरें हैं। नीति, माणा और शिप किला इनमें प्रमुख हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से यह अति महत्व का क्षेत्र है।
    
=== नन्दादेवी ===
 
=== नन्दादेवी ===

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