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१६. '''जनस्थान :''' नासिक पंचवटी मेंभद्रकाली मन्दिरभी शक्तिपीठ है। यहाँ भगवती देवी भ्रामरी भद्रकाली रूप में प्रतिष्ठित हैं।  
 
१६. '''जनस्थान :''' नासिक पंचवटी मेंभद्रकाली मन्दिरभी शक्तिपीठ है। यहाँ भगवती देवी भ्रामरी भद्रकाली रूप में प्रतिष्ठित हैं।  
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१७. '''अमरनाथ :''' अमरनाथ (गुफ) में देवी महामाया रूप में स्थित है। यहाँ पर सती का कंठ गिरा था |
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१७. '''अमरनाथ :''' अमरनाथ (गुफ) में देवी महामाया रूप में स्थित है। यहाँ पर सती का कंठ गिरा था
    
१८. '''नन्दीपुर :'''पश्चिम बंगाल प्रान्त में सैथिया संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) के पास एक वट वृक्ष के नीचेशक्तिपीठअवस्थित है।इस स्थान का नाम नंदपुर है। यहाँ कोई मन्दिर नहीं है। वट वृक्ष के   
 
१८. '''नन्दीपुर :'''पश्चिम बंगाल प्रान्त में सैथिया संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) के पास एक वट वृक्ष के नीचेशक्तिपीठअवस्थित है।इस स्थान का नाम नंदपुर है। यहाँ कोई मन्दिर नहीं है। वट वृक्ष के   
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३४. '''यशोर :''' बांगला देश के खुलना जिले में एक ईश्वरपुर नामक ग्राम है।इसी का पुराना नाम यशोर(यशोदर) है। यहीं पर देवी यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।  
 
३४. '''यशोर :''' बांगला देश के खुलना जिले में एक ईश्वरपुर नामक ग्राम है।इसी का पुराना नाम यशोर(यशोदर) है। यहीं पर देवी यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।  
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३५. '''प्रयाग :''' अक्षयवट के पास ललितादेवी मन्दिर शक्तिपीठ हैं, यद्यपि प्रयाग नगर में एक और ललितादेवी मंदिर भी है |
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३५. '''प्रयाग :''' अक्षयवट के पास ललितादेवी मन्दिर शक्तिपीठ हैं, यद्यपि प्रयाग नगर में एक और ललितादेवी मंदिर भी है
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३६. '''उत्कल - विराजा क्षेत्र :''' पवित्र धाम जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर में विमला देवी मंदिर है, यह शक्तिपीठ है | कुछ विद्वान याजपुर के विरजा देवी के मंदिर को शक्तिपीठ मानते है |  
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३६. '''उत्कल - विराजा क्षेत्र :''' पवित्र धाम जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर में विमला देवी मंदिर है, यह शक्तिपीठ है कुछ विद्वान याजपुर के विरजा देवी के मंदिर को शक्तिपीठ मानते है  
    
३७. '''कांची :''' सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में कांची के शिवकांची का काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी देवगभी रूप में विद्यमान है।
 
३७. '''कांची :''' सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में कांची के शिवकांची का काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी देवगभी रूप में विद्यमान है।
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४४. '''त्रिपुरा :''' त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है।   
 
४४. '''त्रिपुरा :''' त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है।   
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४५. '''विभाष :''' पं. बंगाल के मिदनापुर जिले में तमलुक का काली मन्दिर शक्तिपीठ है| यहाँ देवी कपालिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।  
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४५. '''विभाष :''' पं. बंगाल के मिदनापुर जिले में तमलुक का काली मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी कपालिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।  
    
४६. '''कुरुक्षेत्र :''' कुरुक्षेत्र में हैपायन सरोवर के पास यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी सावित्री रूप में स्थाणु भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।  
 
४६. '''कुरुक्षेत्र :''' कुरुक्षेत्र में हैपायन सरोवर के पास यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी सावित्री रूप में स्थाणु भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।  
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४७. '''लंका  :''' यह शक्तिपीठ लंका में है, यहाँ (अशोक वाटिका में) देवी मन्दिर में प्रतिष्ठित है। सती का नूपुर यहाँ गिरा था। यहाँ देवी इन्द्राक्षी रूप में राक्षसेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित मानी जाती  
 
४७. '''लंका  :''' यह शक्तिपीठ लंका में है, यहाँ (अशोक वाटिका में) देवी मन्दिर में प्रतिष्ठित है। सती का नूपुर यहाँ गिरा था। यहाँ देवी इन्द्राक्षी रूप में राक्षसेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित मानी जाती  
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४८. '''युगाद्या :''' वर्द्धवान् संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) से 35 कि.मी. उत्तर में क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी भूतधात्री रूप में अधिष्ठित है।  
 
४८. '''युगाद्या :''' वर्द्धवान् संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) से 35 कि.मी. उत्तर में क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी भूतधात्री रूप में अधिष्ठित है।  
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=== पंजा साहिब ===
 
=== पंजा साहिब ===
तक्षशिला के समीप स्थित इस स्थान की गुरु नानक देव ने यात्रा की तथा पीरअली कन्धारी नामक धर्मान्ध मुस्लिम पीर के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाकर अजस्त्रधारा जल की उत्पत्ति की। पीर अली ने क्रोधित होकर एक विशाल पर्वतखण्ड गुरु नानक की ओर धकेल दिया।अपनी ओर पर्वतखण्ड को आता देख श्री नानकदेव ने अपना पंजा अड़ाकर उसे रोक दिया। आज भी वह पंजा और उसकी रेखाएँ यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विधर्मी लोगों द्वारा खोदने पर पंजा पुन: वैसा ही हो जाता है। यहाँ पवित्र गुरुद्वारा तथा तालाब है। वैशाख मास की प्रथम तिथि को यहाँ मेला लगता था,परन्तुआजकल सीमित संख्या में ही तीर्थयात्री यहाँ पहुँच पाते हैं |
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तक्षशिला के समीप स्थित इस स्थान की गुरु नानक देव ने यात्रा की तथा पीरअली कन्धारी नामक धर्मान्ध मुस्लिम पीर के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाकर अजस्त्रधारा जल की उत्पत्ति की। पीर अली ने क्रोधित होकर एक विशाल पर्वतखण्ड गुरु नानक की ओर धकेल दिया।अपनी ओर पर्वतखण्ड को आता देख श्री नानकदेव ने अपना पंजा अड़ाकर उसे रोक दिया। आज भी वह पंजा और उसकी रेखाएँ यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विधर्मी लोगों द्वारा खोदने पर पंजा पुन: वैसा ही हो जाता है। यहाँ पवित्र गुरुद्वारा तथा तालाब है। वैशाख मास की प्रथम तिथि को यहाँ मेला लगता था,परन्तुआजकल सीमित संख्या में ही तीर्थयात्री यहाँ पहुँच पाते हैं
    
=== साधुवेला तीर्थ ===
 
=== साधुवेला तीर्थ ===
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=== मुलस्थान  (मुल्तान) ===
 
=== मुलस्थान  (मुल्तान) ===
पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित यह नगर दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म-स्थान है। यहीं पर नृसिंह अवतारलेकर भगवान् ने निरंकुश हिरण्यकशिपु का वध किया।भगवान् नूसिंह काभव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंआज भी है। नृसिंह चतुर्दशों को यहाँ मेला लगता था। पास में ही सूर्यकुण्ड सरोवर है वहाँ पर माघ शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को भी मेला लगता था, परन्तु आज सब अस्त - व्यस्त है | प्रहलादपुरी इसका पुराना नाम था।
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पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित यह नगर दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म-स्थान है। यहीं पर नृसिंह अवतारलेकर भगवान् ने निरंकुश हिरण्यकशिपु का वध किया।भगवान् नूसिंह काभव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंआज भी है। नृसिंह चतुर्दशों को यहाँ मेला लगता था। पास में ही सूर्यकुण्ड सरोवर है वहाँ पर माघ शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को भी मेला लगता था, परन्तु आज सब अस्त - व्यस्त है प्रहलादपुरी इसका पुराना नाम था।
    
=== लवपुर (लाहौर) ===
 
=== लवपुर (लाहौर) ===
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=== जयपुर ===
 
=== जयपुर ===
जयुपर राजस्थान की वर्तमान राजधानी व प्रसिद्ध नगर है। इसकी स्थापना महाराजा जयसिंह ने की थी। नगर के भवन प्राय: गुलाबी पत्थर के बने हैं। नगर के चारों ओर चारदीवारी बनायी गयी हैं, जिसमें सात द्वार बनाये गये हैं। नगर में कई दर्शनीय व पूजनीय स्थान है। हवामहल, सिटी पैलेस, राम बाग, जन्तर-मन्तर, केन्द्रीय संग्रहालय प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं।आमेर का किला, नाहरगढ़ का किला जयपुर के पास पुराने किले हैं। श्री गोविन्द देव, श्री गोकुलनाथ जी नामक पवित्र मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में स्थापित प्रतिमाओं को औरंगजेब के शासनकाल में वृन्दावन से यहाँ लाया गया था। इनके अतिरिक्त विश्वेश्वर महादेव, राधा-दामोदर अन्य प्रमुख मन्दिर हैं। जयपुर का जन्तर-मन्तर ज्योतिष तथा खगोलीय ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है |  
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जयुपर राजस्थान की वर्तमान राजधानी व प्रसिद्ध नगर है। इसकी स्थापना महाराजा जयसिंह ने की थी। नगर के भवन प्राय: गुलाबी पत्थर के बने हैं। नगर के चारों ओर चारदीवारी बनायी गयी हैं, जिसमें सात द्वार बनाये गये हैं। नगर में कई दर्शनीय व पूजनीय स्थान है। हवामहल, सिटी पैलेस, राम बाग, जन्तर-मन्तर, केन्द्रीय संग्रहालय प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं।आमेर का किला, नाहरगढ़ का किला जयपुर के पास पुराने किले हैं। श्री गोविन्द देव, श्री गोकुलनाथ जी नामक पवित्र मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में स्थापित प्रतिमाओं को औरंगजेब के शासनकाल में वृन्दावन से यहाँ लाया गया था। इनके अतिरिक्त विश्वेश्वर महादेव, राधा-दामोदर अन्य प्रमुख मन्दिर हैं। जयपुर का जन्तर-मन्तर ज्योतिष तथा खगोलीय ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है  
    
=== अजमेर ( अजयमेरु ) ===
 
=== अजमेर ( अजयमेरु ) ===
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=== बाड़मेर, बीकानेर, और जैसलमेर ===
 
=== बाड़मेर, बीकानेर, और जैसलमेर ===
 
ये तीनों नगर मरुस्थलीय क्षेत्र के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं। यहाँ मन्दिर व खण्डहरों में हमारे संघर्ष का इतिहास बिखरा पड़ा है। जैसलमेर में कई प्राचीन व भव्य जैन मन्दिरहैं। यहाँ पर एक पुराना किला भी है जो अब स्थान-स्थान पर टूट रहा है। बाड़मेरऔर बीकानेर में भी कई जैन मन्दिर हैं। बीकानेर के पासअशोक के पौत्र का बनवाया हुआ मन्दिरआज भी विद्यमान है। लोककला की दृष्टि से ये नगर समृद्ध हैं। यहाँ पर कई मेले और उत्सव प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं।  
 
ये तीनों नगर मरुस्थलीय क्षेत्र के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं। यहाँ मन्दिर व खण्डहरों में हमारे संघर्ष का इतिहास बिखरा पड़ा है। जैसलमेर में कई प्राचीन व भव्य जैन मन्दिरहैं। यहाँ पर एक पुराना किला भी है जो अब स्थान-स्थान पर टूट रहा है। बाड़मेरऔर बीकानेर में भी कई जैन मन्दिर हैं। बीकानेर के पासअशोक के पौत्र का बनवाया हुआ मन्दिरआज भी विद्यमान है। लोककला की दृष्टि से ये नगर समृद्ध हैं। यहाँ पर कई मेले और उत्सव प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं।  
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=== अमृतसर ===
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पंजाब का धार्मिक-ऐतिहासिक नगर जो सिख पन्थ का प्रमुख तीथ-स्थान है। उसकी नींव सिख पन्थ के चौथे गुरु रामदास ने युगाब्द ४६७९ (सन् १५७७ ई.) में डाली। मन्दिर का निर्माण-कार्य आरम्भ होने से  पूर्व उसके चारों ओर एक सरेवर बनवाया। मन्दिर-निर्माण का कार्य उनके पुत्र तथा पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव ने हरिमन्दिर (स्वर्णमन्दिर) बनवाकर पूरा किया। सरोवर एवं हरिमन्दिर के पूर्ण होने पर गुरु अर्जुनदेव ने कहा भगवान् की कृपा से ही यह कार्य पूर्ण हो सका है। जो भी इस सरोवर में स्नान करेगा उसे भारत के 64 तीर्थों के स्नान का पुण्य मिलेगा। महाराजा रणजीत सिंह ने मन्दिर कीशोभा बढ़ाने के लिए बहुत धन व्यय किया । अंग्रेजी दासता के काल में 13अप्रैल 1919 को स्वर्ण मन्दिर से लगभग दो फलॉग की दूरी पर जलियांवाला बाग में स्वतंत्रता की माँग कर रही एक शान्ति-पूर्ण सभा पर जनरल डायर ने गोलीचलाकर भीषण नरसंहार किया था। डेढ़ हजार व्यक्ति घायल हुए अथवा मारे गयेथे। वहाँ पर उन आत्म बलिदानियों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। बाग की दीवार पर उस बर्बरतापूर्ण घटना की साक्षीरूप गोलियों के निशान आज भी विद्यमान हैं। नगर में स्वर्ण मन्दिर केअतिरिक्त दुग्र्याणा मन्दिर, सत्य नारायण मन्दिर तथा लक्ष्मीनारायण मन्दिर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। 
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=== ज्वालामुखी ===
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हिमाचल प्रदेश के अन्तर्गत ज्वालामुखीदेवी प्रमुख शक्तिपीठ है। सती की जिहुवा इस स्थान पर गिरी थी। ज्वालामुखी देवी का ऊपरी भाग स्वर्णमण्डित है। मन्दिर के भीतरी भाग में कई स्थानों से अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं। मन्दिर की पिछली दीवार से भी कई प्रकाश-पुंज निकलते हैं मन्दिर के सामने एक कुओं तथा एक कुण्ड है। आस-पास मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त देवी-दर्शन के लिए यहाँ आते रहते हैं।
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=== नैना देवी  ===
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आनन्दपुर साहिब से लगभग ३५ कि.मी. दूर एक मनोरम पहाड़ी पर भगवती नैना देवी का मन्दिर है। यह तीर्थ विलासपुर के समीप स्थित है। दशवें गुरु गोविन्दसिंह जी ने यहाँ चण्डी यज्ञ तथा तपश्चर्या की थी। नैना देवी एक सिद्धपीठहै।प्रतिवर्ष श्रावण शुक्लप्रतिपदा से नवमी तक यहाँ मेला लगता है। नवरात्र में असंख्य तीर्थयात्री यहाँ देवी-दर्शन को आते हैं।
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=== आनन्दपुर साहिब ===
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आनन्दपुर साहिब एक ऐतिहासिक व धार्मिक नगरहै। इसकी स्थापना नवें गुरु तेगबहादुर जी ने की थी। यहाँ पर कई प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं। यथा-श्री केशवगढ़ साहिब, लौहगढ़ तथा आन्नदगढ़ साहिब । कशगढ़ साहिब गुरुद्वारे के स्थान पर गुरु गोविन्दसिंह ने वैशाखी के पावन पर्व पर 'पंच प्यारों को दीक्षा देकर खालसा पंथ का श्रीगणेश किया तथा हिन्दू धर्म की रक्षा का दायित्व पूरा करने के लिए सैनिक वेश (पाँच कक्के)धारण करने का आदेश दिया । स्मरण रहे कि पंच प्यारे भारत के विभिन्न प्रान्तों के तथा भिन्न-भिन्न जातियों से लिये गये थे। यहाँ पर वैशाखी, होली के पर्वो पर  बुहद् समागम आयोजित किये जाते हैं।
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=== सरहिन्द ===
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पंजाब प्रान्त के पटियाला जिले में सरहिन्द नामक स्थान सिख पंथ के अनुयायी जनों का प्रमुख प्रेरणा-स्रोत है। जब दशम् गुरु आततायियों से लोहा ले रहे थे, उस समय उनके पुत्र भी उनके साथ योगदान कर रहे थे। सरहिन्द के मुसलमान शासक ने गुरु गोविन्द सिंहपर दबाव डालने के लिए उनके सुकुमार पुत्रोंफतेह सिंह व जोरावर सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया। मुसलमानों ने उन बच्चों को तौबा करने और इस्लाम कबूल करने के लिए अनेक लालच दिये। जब वे "स्वधर्म निधनों श्रेय: परधामों भयावह" केअनुसार टस सेमस नहीं हुए तो उन निर्दय विधर्मियों ने दोनों को किले की दीवार में जिन्दा चुनवा दिया। हरिसिंह नलवा के बाद में सरहिन्द के नवाब से गुरुपुत्रों की क्रूर हत्या का बदला लिया। आज देवी, काली अर्जुन देवी तथा अन्य कई मन्दिरहैं। नवरात्र में यहाँ विशाल सरहिन्द में स्थापित पवित्र गुरुद्वारा गुरुपुत्रों की शहादत का स्मारक बना हुआ है ।
    
==References==
 
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