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=== जगन्नाथ पुरी ===
 
=== जगन्नाथ पुरी ===
 
जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में गांगा सागर तट पर स्थित पावन तीर्थ स्थान है। यह शैव, वैष्णव तथा बौद्ध सम्प्रदाय के भक्तों का श्रद्धा-कन्द्र है। यह चारपावन धामों तथा 51शक्तिपीठोंमें सेएक है। पुराणोंमेंपुरुषोत्तम तीर्थ नाम से इसका वर्णन किया गया है। स्कन्द व ब्रह्मपुराण के अनुसारइसकी जगन्नाथ मन्दिर गांगवंशीय राजा अनंग भीमदेव ने 12वीं शताब्दी में बनवाया। 16वीं शताब्दी में बंगाल के मुसलमान शासक हुसेनशाह तथा पठान काला पहाड़ ने पुरी के मन्दिर को क्षतिग्रस्त किया। मराठों ने जगन्नाथ मन्दिर की व्यवस्था के लिए वार्षिक 27 हजार रुपये की राशि अनुदान के रूप में स्वीकृत की। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की काष्ठ-मूर्तियाँ मन्दिरमें प्रतिष्ठित हैं। इन मूर्तियों को रथयात्रा केअवसर पर निकाल कर रथोंमें स्थापित कर समुद्रतट-स्थित मौसी जी के मन्दिर में 10 दिन रखा जाता है। यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मूतियों की वापसीभी बड़ेधूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ सम्पन्न होती है। इस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहाँ किसी प्रकार के जाति-भेद को कोई स्थान नहीं है। इस संबंध में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हो गयी है : <blockquote>'''"जगन्नाथ का भात, जगत् पसारे हाथ, पूछे जात न पात।"'''</blockquote>जगन्नाथपुरी में कई पवित्र स्थल स्नान के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनमें महोदधि, रोहिणीकुण्ड, शवेत गांग, लोकनाथ सरोवर तथा चक्रतीर्थ प्रमुख हैं। गुंडीचा मन्दिर (मौसी का मन्दिर),श्री लोकनाथ मन्दिर, सिद्धि-विनायक मन्दिर यहाँ के अन्य मन्दिर हैं। जगन्नाथपुरी से 18 कि.मी. दूर साक्षी गोपाल मन्दिर है,इसके दर्शन के बिना जगन्नाथपुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।आदि शांकराचार्य ने इस पवित्र स्थान की यात्रा की और गोवर्धन पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य और रामानन्द ने भी इस क्षेत्र की यात्रा की। रामानन्द जी के प्रमुख शिष्य कबीर ने समता का संदेश प्रचारित किया। आज भी बड़ी संख्या कबीरपंथी पुरी में रहते हैं तथा भगवान्ज गन्नाथ की रथयात्रा में बढ़चढ़कर भागीदारी करते हैं। मलूक दास, चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ पधारे।   
 
जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में गांगा सागर तट पर स्थित पावन तीर्थ स्थान है। यह शैव, वैष्णव तथा बौद्ध सम्प्रदाय के भक्तों का श्रद्धा-कन्द्र है। यह चारपावन धामों तथा 51शक्तिपीठोंमें सेएक है। पुराणोंमेंपुरुषोत्तम तीर्थ नाम से इसका वर्णन किया गया है। स्कन्द व ब्रह्मपुराण के अनुसारइसकी जगन्नाथ मन्दिर गांगवंशीय राजा अनंग भीमदेव ने 12वीं शताब्दी में बनवाया। 16वीं शताब्दी में बंगाल के मुसलमान शासक हुसेनशाह तथा पठान काला पहाड़ ने पुरी के मन्दिर को क्षतिग्रस्त किया। मराठों ने जगन्नाथ मन्दिर की व्यवस्था के लिए वार्षिक 27 हजार रुपये की राशि अनुदान के रूप में स्वीकृत की। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की काष्ठ-मूर्तियाँ मन्दिरमें प्रतिष्ठित हैं। इन मूर्तियों को रथयात्रा केअवसर पर निकाल कर रथोंमें स्थापित कर समुद्रतट-स्थित मौसी जी के मन्दिर में 10 दिन रखा जाता है। यात्रा में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मूतियों की वापसीभी बड़ेधूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ सम्पन्न होती है। इस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहाँ किसी प्रकार के जाति-भेद को कोई स्थान नहीं है। इस संबंध में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हो गयी है : <blockquote>'''"जगन्नाथ का भात, जगत् पसारे हाथ, पूछे जात न पात।"'''</blockquote>जगन्नाथपुरी में कई पवित्र स्थल स्नान के लिए महत्वपूर्ण हैं जिनमें महोदधि, रोहिणीकुण्ड, शवेत गांग, लोकनाथ सरोवर तथा चक्रतीर्थ प्रमुख हैं। गुंडीचा मन्दिर (मौसी का मन्दिर),श्री लोकनाथ मन्दिर, सिद्धि-विनायक मन्दिर यहाँ के अन्य मन्दिर हैं। जगन्नाथपुरी से 18 कि.मी. दूर साक्षी गोपाल मन्दिर है,इसके दर्शन के बिना जगन्नाथपुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।आदि शांकराचार्य ने इस पवित्र स्थान की यात्रा की और गोवर्धन पीठ की स्थापना की। रामानुजाचार्य और रामानन्द ने भी इस क्षेत्र की यात्रा की। रामानन्द जी के प्रमुख शिष्य कबीर ने समता का संदेश प्रचारित किया। आज भी बड़ी संख्या कबीरपंथी पुरी में रहते हैं तथा भगवान्ज गन्नाथ की रथयात्रा में बढ़चढ़कर भागीदारी करते हैं। मलूक दास, चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ पधारे।   
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= मोक्षदायिनी सप्त पुरी =
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<blockquote>'''अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।''' </blockquote><blockquote>'''पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।''' </blockquote>अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है।
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=== अयोध्या ===
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भगवान् श्री राम का जन्म-स्थानअयोध्या सरयू के तटपर स्थित अति प्राचीन नगर है। स्वयं मनु ने इस नगर को स्थापित किया।" स्कन्दपुराण के अनुसार यह सुदर्शन पर बसी है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति को समझाते हुए स्कन्द पुराण कहता है कि अयोध्या शत्रुद्वारा अविजित है। अत: अयोध्या ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है।" सूष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की यात्रा की और ब्रह्मकुण्ड की स्थापना की। इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
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" श्री राम-जन्मभूमि होने का श्रेय पाने के कारण अयोध्या साकेत हो गयी। मर्यादापुरुषोत्तम के साथ अयोध्या के समस्त प्राणी उनके दिव्य धाम को चले गये, तब श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे पुन: बसाया।अयोध्या के इतिहास से पता चलता है कि वर्तमान अयोध्या सम्राट विक्रमादित्य की बसायी हुई है।
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उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये | सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया। यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है। यह कसौटी के ८४ स्तम्भों के ऊपर आधारित था। मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने सन १५२८ ई. में इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया औरइसके अवशेषों से अधूरी मस्जिद (बिना मीनार के तीन गुम्बद)बनवा दी। रामभक्तों ने जन्म-स्थान परपूजा का अधिकार कभी नहीं छोड़ा और न ही उस पर विधर्मियों के अधिकार को स्वीकार किया। अत: सतत संघर्ष करते रहे।इस संघर्ष में 7 युद्धों में तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
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इसी संघर्ष की कड़ी में संवत २०४६ वि. में देवोत्थान एकादशी को नये मन्दिर के निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्य सम्पन्न हुआ। सन २०४७ को देवोत्थान एकादशी को मन्दिर-निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतीक रूप में कार्य सेवा का श्रीगणेश हुआ। तत्कालीन मुस्लिमपरस्त सरकार ने लाख रुकावटें खड़ीं की परन्तु रामभक्तों के ज्वार को न रोक सकी। सरकार ने खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली उक्ति को चरितार्थ कर निहत्थे रामभक्तों पर गोली बरसायी जिससेअनेक बलिदान हुए और सैकड़ों घायल होकर राम-मन्दिर निर्माण के लिए होने वाली कार सेवा' में भाग लेने को उत्सुक हैं। अयोध्या न केवल वैष्णव सम्प्रदाय वरन् शैव,शाक्त, बौद्ध, जैन सभी मतमतान्तरों का पवित्र स्थानहै। दशम गुरु श्री गोविन्दसिंह ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का प्रयास किया था।
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यहाँ पर हनुमानगढ़ी मन्दिर, कनक भवन, सीता रसोई, नागेश्वर मन्दिर, दर्शनेश्वर शिव मन्दिर आदि धार्मिक स्थान विद्यमान हैं। रामघाट, स्वर्गद्वार, ऋणमोचन,जानकी घाट, लक्ष्मण घाट आदि सरयू-तट पर बने घाट हैं जहाँ डुबकी लगाकर तीर्थयात्री धन्य हो उठता है।
    
==References==
 
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