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[[File:Bharat man1.jpg|center|thumb]]<blockquote>'''उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।'''</blockquote><blockquote>'''वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।'''</blockquote>हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।  
 
[[File:Bharat man1.jpg|center|thumb]]<blockquote>'''उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।'''</blockquote><blockquote>'''वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।'''</blockquote>हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।  
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इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके | इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है |
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इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है
    
'''पुण्यभूमि भारत का परिचय निम्नलिखित बिन्दुओ द्वारा :-'''  
 
'''पुण्यभूमि भारत का परिचय निम्नलिखित बिन्दुओ द्वारा :-'''  
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# मध्य भारत  
 
# मध्य भारत  
 
# दक्षिण भारत  
 
# दक्षिण भारत  
आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को  विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे |
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आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को  विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे
    
= पवित्र नदियाँ =
 
= पवित्र नदियाँ =
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=== सरस्वती ===
 
=== सरस्वती ===
वेदों में उल्लिखित यह पवित्र नदी हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान, गुजरात प्रदेशों को सींचती हुई सिन्धुसागर में मिलती थी। कालान्तर में भूगर्भित हलचलों के कारण अम्बाला के आस-पास का क्षेत्र ऊंचा हो गया, जिससे इस नदी का जल अन्य सरेिताओं में मिल गया और यह नदी विलुप्त हो गयी। एक अन्य खोज के अनुसार इस नदी का जल रिस-रिसकर पृथ्वी के अन्दर चला गया। आज भी हरियाणा तथा राजस्थान प्रदेशों में पृथ्वी के अन्दर ही अन्दर प्रवाहित हो रही है। गुजरात के कच्छ के रण में विलीन होने वाली लूनी नदी को इसका अवशेष कहा जा सकता है। वेदों की रचना इस नदी के आसपास के प्रदेश (सारस्वत प्रदेश) में हुई। मनु के अनुसार पृथूदक (पेहव) इसी नदी के तट पर बसा था | <blockquote>"सरस्वत्यश्च तीथॉनि तीर्थभ्यश्च पृथूदकम्। </blockquote><blockquote>पृथूदकात् पुण्यतमं नान्यत तीर्थ नरोत्तम।" (महाभारत वनपर्व) </blockquote>ऋग्वेद में सरस्वती का वर्णन केवल नदी के रूप में नहीं , वाणी व विद्या की देवी के रूप में भी हुआ है। यह सत्य तथा अच्छाई की प्रेरणा देती है। गंगा के समान इसके तट पर अनेक तीर्थों का विकास हुआ है। महाभारत, स्कन्द व पद्म पुराण, देवी भागवत आदि ग्रन्थों में इसका वर्णन बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ किया गया है। सरस्वती हिमालय से निकल कर पृथूदक, कुरूक्षेत्र, विराट, पुष्कर, अर्बुदारण्य, सिद्धपुर, प्रभास आदि स्थानों से होते हुए सागर से मिलती है।  
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वेदों में उल्लिखित यह पवित्र नदी हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान, गुजरात प्रदेशों को सींचती हुई सिन्धुसागर में मिलती थी। कालान्तर में भूगर्भित हलचलों के कारण अम्बाला के आस-पास का क्षेत्र ऊंचा हो गया, जिससे इस नदी का जल अन्य सरेिताओं में मिल गया और यह नदी विलुप्त हो गयी। एक अन्य खोज के अनुसार इस नदी का जल रिस-रिसकर पृथ्वी के अन्दर चला गया। आज भी हरियाणा तथा राजस्थान प्रदेशों में पृथ्वी के अन्दर ही अन्दर प्रवाहित हो रही है। गुजरात के कच्छ के रण में विलीन होने वाली लूनी नदी को इसका अवशेष कहा जा सकता है। वेदों की रचना इस नदी के आसपास के प्रदेश (सारस्वत प्रदेश) में हुई। मनु के अनुसार पृथूदक (पेहव) इसी नदी के तट पर बसा था <blockquote>"सरस्वत्यश्च तीथॉनि तीर्थभ्यश्च पृथूदकम्। </blockquote><blockquote>पृथूदकात् पुण्यतमं नान्यत तीर्थ नरोत्तम।" (महाभारत वनपर्व) </blockquote>ऋग्वेद में सरस्वती का वर्णन केवल नदी के रूप में नहीं , वाणी व विद्या की देवी के रूप में भी हुआ है। यह सत्य तथा अच्छाई की प्रेरणा देती है। गंगा के समान इसके तट पर अनेक तीर्थों का विकास हुआ है। महाभारत, स्कन्द व पद्म पुराण, देवी भागवत आदि ग्रन्थों में इसका वर्णन बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ किया गया है। सरस्वती हिमालय से निकल कर पृथूदक, कुरूक्षेत्र, विराट, पुष्कर, अर्बुदारण्य, सिद्धपुर, प्रभास आदि स्थानों से होते हुए सागर से मिलती है।  
    
=== गण्डकी ===
 
=== गण्डकी ===
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=== रेवा (नर्मदा ) ===
 
=== रेवा (नर्मदा ) ===
अमरकोश के अनुसार रेवा नर्मदा का ही दूसरा नाम है | रेवा को मैकाल - कन्या के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि मैकाल से इसका एक स्त्रोत प्रारंभ होता है जबकि दूसरा भाग अमरकोटक से उद्भूत होता है और फिर दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। नर्मदा मध्य भारत में गंगा के समान वन्दनीय है। अमरकंटक से पश्चिम दिशा में बहते हुए भड़ौच के पास खंभात की खाड़ी के समुद्र में मिल जाती है। नर्मदा के तट के साथ असंख्य तीर्थों का प्रादुर्भाव हुआ है। रुद्र के अंश से उत्पन्न होने के कारण यह जड़-चेतन सबको पवित्र करने में समर्थ है। इसका नाम रुद्र कन्या भी है। इसके तट पर ओंकारेश्वर, मान्धाता, शुक्ल तीर्थ, भेड़ाघाट, जबलपुर, अमरकण्टक, कपिलधारा आदि पावन स्थल व नगर स्थापित हैं। व्यास व शुकदेव ने बरकेल नामक स्थान पर आकर नर्मदा में स्नान किया। बरकेल आज भी सामवेदी ब्राह्मणों के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर व्यासजी का मन्दिर व शुकदेव महादेव के मन्दिर बने हैं। सती अनसूया का मन्दिर भी पास हो बना है। नर्मदा की कुल लम्बाई १३०० कि.मी. है।
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अमरकोश के अनुसार रेवा नर्मदा का ही दूसरा नाम है रेवा को मैकाल - कन्या के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि मैकाल से इसका एक स्त्रोत प्रारंभ होता है जबकि दूसरा भाग अमरकोटक से उद्भूत होता है और फिर दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। नर्मदा मध्य भारत में गंगा के समान वन्दनीय है। अमरकंटक से पश्चिम दिशा में बहते हुए भड़ौच के पास खंभात की खाड़ी के समुद्र में मिल जाती है। नर्मदा के तट के साथ असंख्य तीर्थों का प्रादुर्भाव हुआ है। रुद्र के अंश से उत्पन्न होने के कारण यह जड़-चेतन सबको पवित्र करने में समर्थ है। इसका नाम रुद्र कन्या भी है। इसके तट पर ओंकारेश्वर, मान्धाता, शुक्ल तीर्थ, भेड़ाघाट, जबलपुर, अमरकण्टक, कपिलधारा आदि पावन स्थल व नगर स्थापित हैं। व्यास व शुकदेव ने बरकेल नामक स्थान पर आकर नर्मदा में स्नान किया। बरकेल आज भी सामवेदी ब्राह्मणों के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर व्यासजी का मन्दिर व शुकदेव महादेव के मन्दिर बने हैं। सती अनसूया का मन्दिर भी पास हो बना है। नर्मदा की कुल लम्बाई १३०० कि.मी. है।
    
=== गोदावरी ===
 
=== गोदावरी ===
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=== विन्दु सरोवर ===
 
=== विन्दु सरोवर ===
विन्दु सरोवर दो हैं : 1. भुवनेश्वर के मुख्य बाजार में स्थित 2. विन्दु सरोवर सिद्धपुर। देश की एकात्मता की दृष्टि सेपूर्व दिशा स्थित भुवनेश्वर का विन्दुसरोवर अधिक महत्वपूर्ण है। यह एक सुविस्तृत सरोवर है। सरोवर के मध्य एकविशाल मन्दिरहै। इसमेंभगवान् नारायण,शिव-पार्वती, गणेश की सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। सरोवर केचारों ओर बहुत सेमन्दिरबने हैं। इस सरोवर में समस्त तीथों का जल लाकर डाला हुआ है,अतः यह परम पवित्र माना जाता हैं। भारतवर्ष में पितृश्राद्ध के लिए गया प्रसिद्ध है तो मातृश्राद्ध के लिए सिद्धपुर स्थित विन्दुसरोवर की मान्यता है। इसे मातृगया भी कहा जाता है| प्राचीन नाम श्रीस्थल है। पवित्र सरस्वती से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर दूरएक सरोवरहै। लगभग 12 मीटर लम्बा व 12मीटरचौड़ा यह सरोवर कर्दम ऋषि, कपिल मुनि, समुद्र-मन्थन औरभगवान परशुराम की कथाओं से सम्बद्ध है। सरोवर के पास गोविन्द माधव मन्दिर विद्यमान है। तीर्थयात्री सरोवरमें स्नान कर मातृ-श्राद्ध करते हैं। दक्षिणी छोरपर बने मन्दिर में महर्षि कर्दम, देवहूति और महर्षि कपिल की मूर्तियाँ हैं। इसके अतिरिक्त राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण, सिद्धेश्वरमहादेव के मन्दिर,ज्ञानवापी(बावली) तथा वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक यहाँ विद्यमान है।  
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विन्दु सरोवर दो हैं : 1. भुवनेश्वर के मुख्य बाजार में स्थित 2. विन्दु सरोवर सिद्धपुर। देश की एकात्मता की दृष्टि सेपूर्व दिशा स्थित भुवनेश्वर का विन्दुसरोवर अधिक महत्वपूर्ण है। यह एक सुविस्तृत सरोवर है। सरोवर के मध्य एकविशाल मन्दिरहै। इसमेंभगवान् नारायण,शिव-पार्वती, गणेश की सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। सरोवर केचारों ओर बहुत सेमन्दिरबने हैं। इस सरोवर में समस्त तीथों का जल लाकर डाला हुआ है,अतः यह परम पवित्र माना जाता हैं। भारतवर्ष में पितृश्राद्ध के लिए गया प्रसिद्ध है तो मातृश्राद्ध के लिए सिद्धपुर स्थित विन्दुसरोवर की मान्यता है। इसे मातृगया भी कहा जाता है। प्राचीन नाम श्रीस्थल है। पवित्र सरस्वती से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर दूरएक सरोवरहै। लगभग 12 मीटर लम्बा व 12मीटरचौड़ा यह सरोवर कर्दम ऋषि, कपिल मुनि, समुद्र-मन्थन औरभगवान परशुराम की कथाओं से सम्बद्ध है। सरोवर के पास गोविन्द माधव मन्दिर विद्यमान है। तीर्थयात्री सरोवरमें स्नान कर मातृ-श्राद्ध करते हैं। दक्षिणी छोरपर बने मन्दिर में महर्षि कर्दम, देवहूति और महर्षि कपिल की मूर्तियाँ हैं। इसके अतिरिक्त राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण, सिद्धेश्वरमहादेव के मन्दिर,ज्ञानवापी(बावली) तथा वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक यहाँ विद्यमान है।  
    
=== नारायणसरोवर ===
 
=== नारायणसरोवर ===
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= चार धाम =
 
= चार धाम =
भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है।विशाल द्वीप पर यह एक पवित्र स्थल स्थापित है। यह भारत के अत्यन्तइसकी एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चारधामों के द्वारा और अधिकआदरणीय तीर्थस्थानों में से एक है। अति प्राचीन काल से यह मन्दिर पुष्ट हुई है। धुर दक्षिण में स्थिति रामेश्वर धाम में अधिष्ठित प्रतिमा काअत्यन्त पवित्र मान्यतायुक्त और सभी वगों के द्वारा पूजित रहा है। इसकी अभिषेक गंगाजल से किया जाता है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है | देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है |    
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भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है।विशाल द्वीप पर यह एक पवित्र स्थल स्थापित है। यह भारत के अत्यन्तइसकी एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चारधामों के द्वारा और अधिकआदरणीय तीर्थस्थानों में से एक है। अति प्राचीन काल से यह मन्दिर पुष्ट हुई है। धुर दक्षिण में स्थिति रामेश्वर धाम में अधिष्ठित प्रतिमा काअत्यन्त पवित्र मान्यतायुक्त और सभी वगों के द्वारा पूजित रहा है। इसकी अभिषेक गंगाजल से किया जाता है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है    
    
=== बद्री नाथ ===
 
=== बद्री नाथ ===
बद्रीनाथ धाम भारत का सबसे प्राचीन तीर्थ क्षेत्र है। इसकी स्थापना सत्ययुग में हुई थी | सत्ययुग में नर और नारायण ने, त्रेता में भगवान दत्तात्रेय ने, द्वापर में वेद-व्यास और कलियुग में शंकराचार्य ने इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा बढायी | बद्रीनाथ का मंदिर नारायण पर्वत की तलहटी में अलकनंदा के दायें किनारे पर स्थित है | यह स्थान माना दर्रे से ४० कि.मी. दक्षिण में है| नीति दर्रा यहाँ से कुछ दूर है| आदिशंकराचार्य ने इसके महत्वा को समझकर मंदिर में उस प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराइ जो नारद कुण्ड में गिरकर खो गई थी| चंद्रवंशी गडवाल-नरेश ने विशार्ल मंदिर का निर्माण करवाया | महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर पर सोने का शिखर चढ़वाया जो आज भी अपनी चमक बनाये हुए है | मन्दिर के समीप पांच तीर्थ ऋषि गंगा , कुर्मधारा, प्रहलाद धरा , तप्त कुण्ड और नारद कुण्ड स्थापित है बद्रीनाथ धाम में मार्कण्डेय शिला, नृसिंह शिला, गरुड़ शिला नाम से पवित्र शिलाएँ स्थापित है |
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बद्रीनाथ धाम भारत का सबसे प्राचीन तीर्थ क्षेत्र है। इसकी स्थापना सत्ययुग में हुई थी सत्ययुग में नर और नारायण ने, त्रेता में भगवान दत्तात्रेय ने, द्वापर में वेद-व्यास और कलियुग में शंकराचार्य ने इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा बढायी बद्रीनाथ का मंदिर नारायण पर्वत की तलहटी में अलकनंदा के दायें किनारे पर स्थित है यह स्थान माना दर्रे से ४० कि.मी. दक्षिण में है। नीति दर्रा यहाँ से कुछ दूर है। आदिशंकराचार्य ने इसके महत्वा को समझकर मंदिर में उस प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराइ जो नारद कुण्ड में गिरकर खो गई थी। चंद्रवंशी गडवाल-नरेश ने विशार्ल मंदिर का निर्माण करवाया महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर पर सोने का शिखर चढ़वाया जो आज भी अपनी चमक बनाये हुए है मन्दिर के समीप पांच तीर्थ ऋषि गंगा , कुर्मधारा, प्रहलाद धरा , तप्त कुण्ड और नारद कुण्ड स्थापित है बद्रीनाथ धाम में मार्कण्डेय शिला, नृसिंह शिला, गरुड़ शिला नाम से पवित्र शिलाएँ स्थापित है । बद्रीनाथ से थोडा उत्तर में अलकनंदा के तट पर ब्रह्मपाल नामक पुण्यक्षेत्र है । यहाँ पर पूर्वजो का श्राद्ध करने से उन्हें अमित संतोष मिलाता है । आठ मील दूर पर वसुधारा तीर्थ है जहाँ आठ वसुओं ने अपनी मुक्ति के लिए तप किया था। सदीं के दिनों में इस मन्दिर के कपाट बन्द रहते हैं तथा गर्मी आने पर पुन: खुल जाते हैं। जोशीमठ में शीतकाल में बद्रीनाथ की चल प्रतिमा लाकर स्थापित की जाती है और यहीं पर इसकी पूजा-अर्चना की जाती हैं। 
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=== रामेश्वरम् धाम ===
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तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में रामेश्वरम् नामक एक विशाल द्वीप पर यह एक पवित्र स्थल स्थापित हैं | यह भारत के अत्यंत आदरणीय तीर्थस्थानों में से एक है | अति प्राचीन काल से यह मन्दिर अत्यंत पवित्र मान्यतायुक्त और सभी वर्गों के द्वारा पूजित रहा है | इसकी स्थापना श्रीराम ने की थी अतः इसका नाम रामेश्वर पड़ा | स्कन्द पुराण ',रामायण , रामचरित मानस , शिव पुराण नामक ग्रंथो में रामेश्वरम् की महिमा का वर्णन किया गया है |  
    
लंका परचढ़ाई से पूर्व भगवान् राम ने यहाँ शिवपूजन कर आशीर्वाद  
 
लंका परचढ़ाई से पूर्व भगवान् राम ने यहाँ शिवपूजन कर आशीर्वाद  
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बद्रीनाथ सेथोड़ा उत्तर मेंअलकनन्दा के तटपरब्रह्मपाल नामक पुण्यक्षेत्र  
 
बद्रीनाथ सेथोड़ा उत्तर मेंअलकनन्दा के तटपरब्रह्मपाल नामक पुण्यक्षेत्र  
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1, अस्ति रामेश्वरम् नाम रामसेती पवित्रतम्। है।यहाँ परपूर्वजों का श्राद्ध करने से उन्हें अमित सन्तोष मिलता है। आठ <sub>क्षेत्राणमपि सर्वेषां तीथॉनमपि चोत्तममे। (स्कन्द ब्राह्मखण्ड)</sub>  
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1, अस्ति रामेश्वरम् नाम रामसेती पवित्रतम्। है।यहाँ परपूर्वजों का श्राद्ध करने से उन्हें अमित सन्तोष मिलता है। आठ <sub>क्षेत्राणमपि सर्वेषां तीथॉनमपि चोत्तममे। (स्कन्द ब्राह्मखण्ड)</sub>
 
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मील दूर पर वसुधारा तीर्थ है जहाँ आठ वसुओं ने अपनी मुक्ति के लिए तप किया था। सदीं के दिनों में इस मन्दिर के कपाट बन्द रहते हैं तथा गर्मी आने पर पुन: खुल जाते हैं। जोशीमठ में शीतकाल में बद्रीनाथ की चल प्रतिमा लाकर स्थापित की जाती है और यहीं पर इसकी पूजा-अर्चना की जाती हैं।
      
द्वारिका धाम   
 
द्वारिका धाम   
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चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शांकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया ।महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण,भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया। कृष्ण ने पापी कांस का वध मथुरा में किया, उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकरमथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँउन्होंने सुदूढ़दुर्ग का निर्माण कियाऔरद्वारिका की स्थापना की। कृष्णा के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी।आज द्वारिका एक छोटा नगरअवश्य है, परन्तुअपनेअन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिरमें स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुईथी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिरहै। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर)पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये|
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चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शांकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया ।महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण,भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया। कृष्ण ने पापी कांस का वध मथुरा में किया, उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकरमथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँउन्होंने सुदूढ़दुर्ग का निर्माण कियाऔरद्वारिका की स्थापना की। कृष्णा के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी।आज द्वारिका एक छोटा नगरअवश्य है, परन्तुअपनेअन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिरमें स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुईथी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिरहै। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर)पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये।
    
छब्जाथपुरी  
 
छब्जाथपुरी  
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