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[[File:Bharat man1.jpg|center|thumb]]<blockquote>'''उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।'''</blockquote><blockquote>'''वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।'''</blockquote>हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।  
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[[File:Bharat man1.jpg|center|thumb]]<blockquote>'''उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।'''</blockquote><blockquote>'''वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।'''</blockquote>हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, तथापि माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।  
    
इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके । इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है ।  
 
इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके । इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है ।  
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उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत ऐतिहासिक दृष्टि से एवं अनादीकाल के प्रवास से अध्यात्म एवं वैदिक कालखंड के बहुत से धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल इस क्षेत्र में उपस्थित है इसलिए लोग अध्यात्मिक एवं पुरातन इतिहास की खोज में यहाँ पधारते है |  
 
उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत ऐतिहासिक दृष्टि से एवं अनादीकाल के प्रवास से अध्यात्म एवं वैदिक कालखंड के बहुत से धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल इस क्षेत्र में उपस्थित है इसलिए लोग अध्यात्मिक एवं पुरातन इतिहास की खोज में यहाँ पधारते है |  
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'''उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत के [[उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत|विस्तृत लेख]] देखे'''
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'''उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत पर यह [[उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत|विस्तृत लेख]] देखें ।'''
    
= पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत =
 
= पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत =
 
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अति समृद्ध यह क्षेत्र बंगाल, असम,अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा तक विस्तृत है।आज का बर्मा (मायन्मार) सांस्कृतिक भारत का ब्रह्मा देश है। अति बलिष्ठ हाथियों (ऐरावत) के लिए प्रसिद्ध इरावती (ऐरावती) नदी इसी क्षेत्र में बहती है।
 
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अति समृद्ध यह क्षेत्र बंगाल, असम,अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा तक विस्तृत है।आज का बर्मा (मायन्मार) सांस्कृतिक भारत का ब्रह्मा देश है। अति बलिष्ठ हाथियों (ऐरावत) के लिए प्रसिद्ध इरावती (ऐरावती) नदी इसी क्षेत्र में बहती है।
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'''पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत के [[पुर्वोत्तेर एवं पूर्वी भारत|विस्तृत लेख]] देखे'''
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'''पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत पर यह [[पुर्वोत्तेर एवं पूर्वी भारत|विस्तृत लेख]] देखें ।'''
    
= मध्य भारत =
 
= मध्य भारत =
भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हरदयंगम करने का प्रयत्न करेंगे। उपर्युक्त विवेचन में यद्यपि वर्तमान राजनीतिक इकाइयों को ध्यान में रखते हुए विषय का प्रस्तुतीकरण किया है, परन्तु कहीं-कहीं सामीप्यता के कारण दो राजनीतिक इकाइयों के स्थानों का वर्णन एक साथ कर दिया है। उद्देश्य एक ही रहा है कि तारतम्यता बनी रहे और कोई महत्त्वपूर्ण स्थल छूट न जाये।
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भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हरदयंगम करने का प्रयत्न करेंगे।  
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एक और महत्त्व की बात यह है कि पुनरुक्ति से बचने का प्रयत्न किया
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'''मध्य भारत पर [[पुण्यभूमि भारत - मध्य भारत|विस्तृत लेख]] यहाँ देखे |'''
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गया है। अतः कहीं-कहीं ऐसा लग सकता है कि कुछ स्थान छूट गये हैं।
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== दक्षिण भारत ==
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दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुण्यस्मरण से यह बात और अधिक पुष्ट होगी। दक्षिण भारत में पवित्र तीर्थों की परम्परा अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक ज्ञान की गांग यहाँ अविरल बहती रही है। मध्य भारत का वर्णन करने के बाद हम आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक प्रदेश के तथा पाण्ड्यचेरी, द्वीप समूह व श्रीलंका के स्थलों की झलक प्राप्त कर लें।
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पवित्र नदियों अथवा पर्वतों आदि की महिमा का प्रतिपादन करते समय
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'''दक्षिण भारत पर [[पुण्यभूमि भारत - दक्षिण भारत|विस्तृत लेख]] यहाँ देंखे |'''
 
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कुछ स्थलों का विवरण भी आ गया है, अतः व्यर्थ ही पुस्तक के आकार
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में वृद्धि से बचने के लिए स्थानों के वर्णन में उन्हें छोड़ दिया गया है। आगे
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भी इसी बात को ध्यान में रखकर विषय का प्रतिपादन करेंगे।
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शुवनेश्वर
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यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन
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उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर
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सू-
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है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के
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है)
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विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर
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और
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रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर
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खदेड़ दिया।
      
==References==
 
==References==
 
<references />
 
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[[Category:बाल-शिक्षा पाठ्यक्रम]]
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[[Category: पुण्यभूमि भारत ]]

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