Difference between revisions of "बन्दावीरः - महापुरुषकीर्तन श्रंखला"

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बन्दावीरः
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बन्दावीरः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref><blockquote>विरक्तो यो वीरः, सकलखलनाशोद्धतकरः, जहौ प्राणान्‌ धर्मे न हि परमसौ धर्ममजहात्‌।</blockquote><blockquote>चकम्पे यच्छक्तेर्यवननिवहो जम्बुक इव, नमामो बन्दाख्यं प्रथितमपि योगे सुकृतिनम्‌॥</blockquote>जिस वीर ने वैराग्ययुक्त होकर भी दुष्टों के नाश के लिये हाथ में तलवार पकड़ी, जिसने धर्म के लिये अपने प्राणों का परित्याग कर दिया किन्तु धर्म को नहीं छोड़ा, जिस की शक्ति से यवनसमूह गीदड़ की तरह कांपता था, ऐसे प्रसिद्ध योगी पुण्यात्मा बन्दा वैरागी को हम नमस्कार करते हैं।
 
 
विरक्तो यो वीरः, सकलखलनाशोद्धतकरः,
 
 
 
जहौ प्राणान्‌ धर्मे न हि परमसौ धर्ममजहात्‌।
 
 
 
चकम्पे यच्छक्तेर्यवननिवहो जम्बुक इव,
 
 
 
नमामो बन्दाख्यं प्रथितमपि योगे सुकृतिनम्‌।।37॥।
 
 
 
जिस वीर ने वैराग्ययुक्त होकर भी दुष्टों के नाश के लिये हाथ
 
 
 
में तलवार पकड़ी, जिसने धर्म के लिये अपने प्राणों का परित्याग कर
 
 
 
दिया किन्तु धर्म को नहीं छोड़ा, जिस की शक्ति से यवनसमूह गीदड़
 
 
 
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नमस्कार करते हैं।
 
  
 
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Latest revision as of 03:14, 6 June 2020

बन्दावीरः[1]

विरक्तो यो वीरः, सकलखलनाशोद्धतकरः, जहौ प्राणान्‌ धर्मे न हि परमसौ धर्ममजहात्‌।

चकम्पे यच्छक्तेर्यवननिवहो जम्बुक इव, नमामो बन्दाख्यं प्रथितमपि योगे सुकृतिनम्‌॥

जिस वीर ने वैराग्ययुक्त होकर भी दुष्टों के नाश के लिये हाथ में तलवार पकड़ी, जिसने धर्म के लिये अपने प्राणों का परित्याग कर दिया किन्तु धर्म को नहीं छोड़ा, जिस की शक्ति से यवनसमूह गीदड़ की तरह कांपता था, ऐसे प्रसिद्ध योगी पुण्यात्मा बन्दा वैरागी को हम नमस्कार करते हैं।

References

  1. महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078