बन्दर की दुकान

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एक समय की बात है | जंगल में दो बन्दर रहते थे | दोनों बहुत ही अच्छे और घनिष्ट मित्र थे परन्तु दोनों के स्वभाव में बहुत ही अंतर था | एक बन्दर दुसरो को परेशान करने में और झूठ बोलने में अपनी वाह - वाही समझाता था | वही दूसरा बन्दर स्वभाव में बहुत ही शील एवं सहायक स्वभाव का था | हमेश लोगो की मदत करने के लिए अग्रसर रहता था | दोनों बैठकर एक दिन बात कर रहे थे की अब अपने लिए और अपने जीवनयापन के लिए कुछ किया जाए | दोनों ने बहुत सोच विचार करने के बाद यह निर्णय लिया की क्यों न एक दूकान खोली जाये क्यों की नजदीक में कोई दुकान नहीं है जिसके कारण लोगो को बहुत दूर जाना पड़ता है | लोगो की मदत भी हो जाएगी और घर खर्च भी निकल जायेगा |

है न एक बन्दर ने एक दुकान खोली | थोड़े समय बाद वहा एक बिल्ली बन्दर के दुकान पर आई और बोली मुझे एक चूहा चाहिए ,उसका मूल्य बताइए ? बन्दर बोला पांच सौ  चूहे का मूल्य है | तो बिल्ली बोली एक चूहा दे दो | जैसे ही बन्दर ने चूहे को बिल्ली के थैले में डाला वैसे ही चूहा निकल कर भागने लगा | बिल्ली उसका पीछा  करते हुए वहा से चली गई |

थोड़े समय के बाद वहा एक भालू आया और बन्दर से कहा मुझे एक डिब्बा शहद चाहिए | बन्दर ने कहा पहले मूल्य चुकाओ उसके बाद शहद दूंगा | भालू ने शहद का मूल्य चुकाया और मैदान में बैठकर शहद खाने लगा |

वहा से एक लोमड़ी जा रही थी तो उसने बन्दर की दुकान देखी | तो उसने बन्दर से कहा की मुझे एक डिब्बा मांस दे दो | तो बन्दर ने कहा पहले मूल्य चुकाओ | तो लोमड़ी बोली हाँ रुको मई देती हूँ | जैसे ही लोमड़ी ने अपने जेब में हाथ डाला तो उसे मालूम पड़ा की उसकी जेब फटी है |

तो यह सब लोमड़ी ने बन्दर को बताया तो बन्दर ने क्रोध से कहा की अभी मेरी दुकान को बंद करने का समय हो गया है |