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तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।
 
तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।
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== वर्तमान का वास्तव ==
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== वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सुख  ==
 
मानव के सभी क्रियाकलापों का उद्देश्य सुख की प्राप्ति ही होता है। लेकिन जब मानव के सुख को या संतोष को भी वैज्ञानिकता की कसौटी पर तौला जाता है, तब समस्याएँ खडीं होतीं हैं। वर्तमान में सारे विश्व में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ का बोलबाला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आतंक है यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मनुष्य सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणि माना जाता है। लेकिन वर्तमान शिक्षा के कारण वह सुविधाओं को ही सुख समझने लग गया है। सुविधाओं को याने शारीरिक सुख को वह मन के सुख से याने प्रेम, ममता, परोपकार, सहानुभूति आदि भावनाओं से या बुद्धि के सुख याने ज्ञान प्राप्ति के सुख आदि से अधिक श्रेष्ठ मानने लग गया है। गत २५०-३०० वर्षों में सायंस ने जो प्रगति की है वह आँखों को चौंधियाने वाली है। इस प्रगति की व्याप्ति चहुँमुखी है। मानव जीवन का कोई पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है। हमारे सुबह (नींद से) उठने से लेकर दूसरे दिन फिर से सुबह उठने तक के हमारे दैनंदिन जीवन का विचार करें तो समझ में आएगा कि हमारे जीवन में तन्त्रज्ञान  की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण बन गई है।
 
मानव के सभी क्रियाकलापों का उद्देश्य सुख की प्राप्ति ही होता है। लेकिन जब मानव के सुख को या संतोष को भी वैज्ञानिकता की कसौटी पर तौला जाता है, तब समस्याएँ खडीं होतीं हैं। वर्तमान में सारे विश्व में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ का बोलबाला है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आतंक है यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मनुष्य सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणि माना जाता है। लेकिन वर्तमान शिक्षा के कारण वह सुविधाओं को ही सुख समझने लग गया है। सुविधाओं को याने शारीरिक सुख को वह मन के सुख से याने प्रेम, ममता, परोपकार, सहानुभूति आदि भावनाओं से या बुद्धि के सुख याने ज्ञान प्राप्ति के सुख आदि से अधिक श्रेष्ठ मानने लग गया है। गत २५०-३०० वर्षों में सायंस ने जो प्रगति की है वह आँखों को चौंधियाने वाली है। इस प्रगति की व्याप्ति चहुँमुखी है। मानव जीवन का कोई पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है। हमारे सुबह (नींद से) उठने से लेकर दूसरे दिन फिर से सुबह उठने तक के हमारे दैनंदिन जीवन का विचार करें तो समझ में आएगा कि हमारे जीवन में तन्त्रज्ञान  की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण बन गई है।
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== विविध क्षेत्रों में तन्त्रज्ञान  की छलांग ==
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=== विविध क्षेत्रों में तन्त्रज्ञान  की छलांग ===
    
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