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| === प्रतापगढ़ === | | === प्रतापगढ़ === |
− | दुर्गम पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी केबुद्धि-चातुर्य तथा शौर्य का प्रत्यक्ष साक्षी है। बीजापुर का शासक शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से बहुत चिन्तित था। उसने अपने सरदार अफजलखां से शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ लाने को कहाँ परन्तु वह धूर्त अपने उद्देश्य में सफल न होकर प्रतापगढ़ के पास एक छोटे से समतल स्थान परअपने ही प्राण दे बैठा। नियत स्थान पर मिलने के समय अफजलखां ने शिवाजी परतलवार से प्रहार किया, परन्तु शिवाजी पहले से ही सचेत थे। उन्होंने अपने बघनखे से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं तथा बिछवां कटार से उसके सीने को भेद कर सदा के लिये ठंडा कर दिया। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने सन् १६६१ ई0 में तुलजा भवानी की प्रतिष्ठा की। भारत के स्वतंत्र हो जाने पर प्रतापगढ़ में शिवाजी का भव्य स्मारक बनाया गया जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने बड़ी होलो हुज्जत के बाद किया।पुरन्दर,चाकन, मकरन्दगढ़, पन्हालागढ़आदि अन्य प्रमुख दुर्ग भी शिवाजी महाराज की शौर्य - कथा सुनते है । | + | दुर्गम पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी केबुद्धि-चातुर्य तथा शौर्य का प्रत्यक्ष साक्षी है। बीजापुर का शासक शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से बहुत चिन्तित था। उसने अपने सरदार अफजलखां से शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ लाने को कहाँ परन्तु वह धूर्त अपने उद्देश्य में सफल न होकर प्रतापगढ़ के पास एक छोटे से समतल स्थान परअपने ही प्राण दे बैठा। नियत स्थान पर मिलने के समय अफजलखां ने शिवाजी परतलवार से प्रहार किया, परन्तु शिवाजी पहले से ही सचेत थे। उन्होंने अपने बघनखे से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं तथा बिछवां कटार से उसके सीने को भेद कर सदा के लिये ठंडा कर दिया। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने सन् १६६१ ई0 में तुलजा भवानी की प्रतिष्ठा की। भारत के स्वतंत्र हो जाने पर प्रतापगढ़ में शिवाजी का भव्य स्मारक बनाया गया जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने बड़ी होलो हुज्जत के बाद किया।पुरन्दर,चाकन, मकरन्दगढ़, पन्हालागढ़आदि अन्य प्रमुख दुर्ग भी शिवाजी महाराज की शौर्य - कथा सुनाते है । |
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− | महाबलेश्वरम् | + | === महाबलेश्वरम् === |
| + | पर्वतमाला के पश्चिमी ढाल पर स्थित महाबलेश्वरम् अति प्राचीन शैव तीर्थ है।भगवान् विष्णुने अतिबल तथा आदिमाया ने महाबल नामक दैत्यों का वध यहीं किया था। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने लोकमंगल के लिए यहाँतपस्या कीथी। कृष्णा नदी का उद्गम स्थान यही है। महाबलेश्वर,अतिबलेश्वर तथा कोटीश्वर ये तीन मन्दिर तो यहाँ हैं ही, कृष्णा बाई व बलसोम नामक मन्दिर भी हैं। अहिल्याबाई द्वारा निर्मित रुद्रेश्वर तथा समर्थ रामदास द्वारा श्रीमारुति की प्रतिष्ठा भी यहाँ की गयी हैं । |
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− | पर्वतमाला के पश्चिमी ढाल पर स्थित महाबलेश्वरम् अति प्राचीन शैव
| + | === मुम्बई (बम्बई) === |
| + | वर्तमान महाराष्ट्र की राजधानी,प्रमुखतम पत्तन तथा औद्योगिक नगरी मुम्बई। पश्चिमी समुद्र-तट के एक सुरक्षित स्थान पर विद्यमान है। यहाँ मुम्बादेवी का प्राचीन मन्दिर है। यह यहाँ की आराध्या देवी हैं। इनके आधार पर ही इस नगर का नाम मुम्बई पड़ा।मुम्बई के अन्य मुख्य मन्दिरों के नाम इस प्रकार हैं : |
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− | तीर्थ है।भगवान् विष्णुने अतिबल तथा आदिमाया ने महाबल नामक दैत्यों
| + | १ , लक्ष्मीनारायण मन्दिर - माधव बाग में |
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− | का वध यहीं किया था। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा, विष्णु व
| + | २ . महालक्ष्मी- परेल से दक्षिण में समुद्रतट पर |
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− | महेश ने लोकमंगल के लिए यहाँतपस्या कीथी। कृष्णा नदी का उद्गम
| + | ३ . हनुमान जी - माटूगा में |
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− | स्थान यही है।
| + | ४ , कालबादेवी - स्वदेशी बाजार में कालबा रोड पर |
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− | महाबलेश्वर,अतिबलेश्वर तथा कोटीश्वर ये तीन मन्दिर तो यहाँ हैंही,
| + | तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी हैं। ये छत्रपति शिवाजी की परमाराध्या हैं। स्वयं तुलजा भवानी ने शिवाजी को खड्ग प्रदान कर आशीर्वाद दिया था। मूल तुलजा भवानी शोलापुर से ४० किमी. दूर तुलजापुरमें विराजमान हैं। शिवाजी ने प्रतापगढ़ व रायगढ़ में भी इनको प्रतिष्ठित कराया । |
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− | कृष्णा बाई व बलसोम नामक मन्दिर भी हैं। अहिल्याबाई द्वारा निर्मित
| + | ५ , द्वारिकाधीश- ६ विभिन्न व एक पारसी मन्दिर। |
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− | रुदेश्वर तथा समर्थ रामदास द्वारा श्रीमारुति की प्रतिष्ठा भी यहाँ की गयी
| + | धारापुरी (एलिफेंट) में मुम्बई के पास द्वीप पर स्थिति अनेक गुफा मन्दिरएलोरा शैली में बनाये गए हैं।शिवरात्रि के पर्व पर धारापुरी में मेला लगता है। |
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− | हैं ।<sub>मुम्बई (बम्बई)</sub>
| + | === देवगिरी ( दौलताबाद ) === |
| + | यादववंश की प्राचीन राजधानी देवगिरेि ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ एक प्राचीन किला है। किले में एक बच्चे स्थान पर जनार्दन स्वामी की समाधि है। मुस्लिम आक्रमणों के समय इस नगर के वैभव को बड़ा धक्का लगा। मुस्लिम आक्रमणकारी तुगलक ने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य दूढ़ करने के उद्देश्य से देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया, परन्तु वह सफल न हो सका और वापिस लौट आया, तभी से देवगिरि का नाम दौलताबाद पडा। |
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− | वर्तमान महाराष्ट्र की राजधानी,प्रमुखतम पत्तन तथा औद्योगिक नगरी
| + | === पैठण === |
| + | यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र हैं तथा यहाँ शालिवाहन राजाओं की राजधानी थी।पुराने खण्डहरआज भी यहाँ विद्यमान हैं। प्राचीन विद्याकेन्द्र के रूप में भी पैठण को मान्यता प्राप्त थी। सन्त एकनाथ यहीं रहकर भगवत्भक्ति में लीन रहते थे। उनका निवास आदिआज भी सुरक्षित है। एकनाथ जी की समाधि गोदावरी तट पर बनी है। प्रसिद्ध सन्त श्री कृष्णदयार्णव का निवास व समाधि भी यहाँ विद्यमान हैं। सन्त ज्ञानेश्वर ने पैठण में ही भैंसे के मुख से वेद-मंत्र उच्चारित कराये थे। ढोलकेश्वर तथा सिद्धेश्वर यहाँ के प्राचीन मन्दिर हैं। औरंगजेब ने छोलकश्वर मन्दिर को ध्वस्त करने का विफल प्रयास किया था। मूर्ति में जंजीर बांधने के निशान आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसका पुराना नाम प्रतिष्ठान है। |
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− | मुम्बई। पश्चिमी समुद्र-तट के एक सुरक्षित स्थान पर विद्यमान है। यहाँ
| + | === पंढरपुर === |
| + | पवित्र भीमा नदी के तटपर स्थित यह पवित्र स्थान महाराष्ट्र का प्रमुख तीर्थ है। सन्त नामदेव, तुकाराम, नरहरि, भक्त पुण्डरीक आदि ने यहाँ निवास किया और धर्म-प्रसार किया। श्री विट्ठल मन्दिर पंढरपुर का विशाल व प्रमुखतम मन्दिर है। भगवान् पंढरीनाथ यहाँ आराध्यदेव हैं। सन्त नामदेवजी की समाधि श्री विट्ठल मन्दिर के परिसर में ही है। |
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− | मुम्बा देवी का प्राचीन मन्दिर है। यह यहाँ की आराध्या देवी हैं। इनके
| + | === नांदेढ़ === |
| + | यहाँ गुरु गोविन्द सिंहजी की समाधि और विशाल गुरुद्वारा है। बन्दा वैरागी यहीं जंगलों में तपस्यारत मिले। गुरु गोविन्द सिंह ने उन्हे देश की परिस्थिति से अवगत कराकर उनके हृदय में कर्तव्यबोध जाग्रत कराया तब वे देश परआये संकट से जूझने और आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए संघर्षरत हुए। यहीं परएक मुसलमान युवक ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह पर कटारी से प्रहार किया जो उनके लिए प्राणघातक सिद्ध हुआ। यहाँ पहले चारोंओर जंगल ही जंगल था,परन्तुआज पवित्र तीर्थ स्थान बन गया है। |
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− | आधार परहीइस नगर का नाम मुम्बई पड़ा।मुम्बई के अन्य मुख्य मन्दिरों
| + | === बादामी === |
| + | यह कर्नाटक का ऐतिहासिक नगर है।चालुक्यवंशी सम्राट पुलकेशन ने इसे अपनी राजधानी बनाया। दो पहाड़ियों के बीच बसी यह नगरी बाह्य आक्रमणों से सरलता से निपटने में समर्थ है।इसके पूर्वोत्तर में एक किला है जो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। किले में ५ गुफा-मन्दिर हैं। इसका प्राचीन नाम वातापि हैं। |
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− | के नाम इस प्रकार हैं : | + | === विदर === |
| + | यह भी पुरानी बस्ती है। भारत दर्शन के दौरान गुरु नानकदेव यहाँ पधारे थे। उसी समय यहाँ जलसंकट पैदा हो गया। द्रवित होकर गुरुजी ने एक झरने का प्रादुर्भाव किया और त्रस्त लोगों को पानी मिला। वह झरना आज भी है। इसी स्थान पर गुरुद्वारा बना है जो झरना साहब गुरुद्वारा नाम से प्रसिद्ध है। झरने के पास पापनाशन शिवमन्दिर है। |
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− | 1, लक्ष्मीनारायण मन्दिर - माधव बाग में
| + | === कोल्हापुर === |
− | | + | यह पुराणों में वर्णित करवीर क्षेत्र है। देवी के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कोल्हापुर में है। यहाँ सती के नेत्र गिरेथे। महिषमर्दिनी ही यह पीठ है। यह एक जाग्रत पीठ है। महालक्ष्मी यहाँ नित्य निवास करती हैं। महालक्ष्मी मन्दिर यहाँ प्रमुख मन्दिर है। जैन मतावलम्बी इसे अपनी इष्ट देवी मानते हैं। नगर में शिवाजी व शांभाजी से सम्बन्धित स्थान भी विद्यमान हैं। |
− | 2. महालक्ष्मी- परेल से दक्षिण में समुद्रतट पर
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− | 3. हनुमान जी - माटूगा में
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− | 4, कालबादेवी - स्वदेशी बाजार में कालबा रोड पर
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− | तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी हैं। ये छत्रपति शिवाजी की
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− | परमाराध्या हैं। स्वयं तुलजा भवानी ने शिवाजी को खड्ग प्रदान कर
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− | आशीर्वाद दिया था। मूल तुलजा भवानी शोलापुर से 40 किमी. दूर
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− | तुलजापुरमें विराजमान हैं। शिवाजी ने प्रतापगढ़ व रायगढ़ में भीइनको
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− | प्रतेिटित कराया ।
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− | 5, द्वारिकाधीश- 6 विभिन्न व एक पारसी मन्दिर।
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− | धारापुरी (एलिफेंट) में मुम्बई के पास द्वीप पर स्थिति अनेक गुफा
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− | मन्दिरएलोरा शैली में बनाये गए हैं।शिवरात्रि के पर्व पर धारापुरी मेंमेला
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− | भी शिवाजी महाराज की शौर्य-कथा सुनाते हैं। <sup>लगता है।</sup> | |
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| ==References== | | ==References== |
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