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=== कटक ===
 
=== कटक ===
उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र | यह महानदी के तट पर विद्यमान है | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था | नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है | महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है |
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उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र यह महानदी के तट पर विद्यमान है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है
    
=== याजपुर  (जाजातिपुर) ===
 
=== याजपुर  (जाजातिपुर) ===
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=== चिल्काझील ===
 
=== चिल्काझील ===
उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है,वाही प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है | चिल्का झील इसका उदहारण है | यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल ११०० वर्ग कि.मी. है।  
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उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है,वाही प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है चिल्का झील इसका उदहारण है यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल ११०० वर्ग कि.मी. है।  
    
=== बालनगिरि ===
 
=== बालनगिरि ===
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=== छतरपुर ===
 
=== छतरपुर ===
चिल्का झील के दक्षिण में स्थित छतरपुर प्रमुख तटीय नगर है |
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चिल्का झील के दक्षिण में स्थित छतरपुर प्रमुख तटीय नगर है
    
=== फूलवनी ===
 
=== फूलवनी ===
पूर्वी उड़ीसा का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है |
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पूर्वी उड़ीसा का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है
    
=== अमरकंटक ===
 
=== अमरकंटक ===
अमरकंटक मैकाल या मिकुल पर्वत का उच्च शिखर हैं | नर्मदा (रेवा ) का उद्गम स्थान अमरकंटक पर स्थित एक कुण्ड है, इस कुण्ड का नाम कोटितीर्थ है | समुद्रतल से अमरकंटक लगभग १००० मीटर ऊँचा है | अमरकंटक शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व अमरकंटकेश्वर के मंदिर बने है | यहाँ पर कई शैव व् वैष्णव मंदिर तथा पवित्र सरोवर व् कुण्ड है | केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मंदिर प्रमुख है | मार्कंडेय आश्रम, भृगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के प्रसिद्ध स्थान अमरकंटक के आसपास ही है | कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूत ' में इसे आम्रकुट नाम दिया गया है | शोणभद्र  और महानदी के उद्गम स्थान अमरकंटक के पूर्वी भाग में है | महात्मा कबीर ने अमरकंटक के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी |  
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अमरकंटक मैकाल या मिकुल पर्वत का उच्च शिखर हैं नर्मदा (रेवा ) का उद्गम स्थान अमरकंटक पर स्थित एक कुण्ड है, इस कुण्ड का नाम कोटितीर्थ है समुद्रतल से अमरकंटक लगभग १००० मीटर ऊँचा है अमरकंटक शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व अमरकंटकेश्वर के मंदिर बने है यहाँ पर कई शैव व् वैष्णव मंदिर तथा पवित्र सरोवर व् कुण्ड है केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मंदिर प्रमुख है मार्कंडेय आश्रम, भृगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के प्रसिद्ध स्थान अमरकंटक के आसपास ही है कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूत ' में इसे आम्रकुट नाम दिया गया है शोणभद्र  और महानदी के उद्गम स्थान अमरकंटक के पूर्वी भाग में है महात्मा कबीर ने अमरकंटक के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी  
    
=== जबलपुर ===
 
=== जबलपुर ===
नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर| प्राचीन काल में नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती ने भी इसे अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट (संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का प्राचीन मन्दिर बना है।
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नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर। प्राचीन काल में नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती ने भी इसे अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट (संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का प्राचीन मन्दिर बना है।
    
=== गढ़मंडला ===
 
=== गढ़मंडला ===
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एक अन्य विवरण के अनुसार खम्भात की व्युत्पत्ति स्कम्भ से हुई। स्कम्भ शिव का प्रतीक है। खम्भात पुराना शैव तीर्थ है, अत: स्कम्भ से खम्भात बन गया। वल्लभी और सोलंकी शासनकाल में खम्भात भारत का सबसे विशाल पत्तन था।अरब यात्रियों ने इसे बौद्ध तीर्थ के रूप में पाया। चालुक्य काल में यहाँ जैन तीर्थों का विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी ने यहीं दीक्षा ली। सुरक्षा की दृष्टि से भी खम्भात महत्वपूर्ण रहा। सोलंकी शासकों ने यहाँ सुदूढ़ नौसैनिक बेड़ा व सेना का आधार (छावनी) बनाया। परन्तु कालक्रम से सब नष्ट हो गया- विशेषत: विदेशी विधर्मी लुटेरों के कारण। ये मुस्लिम आक्रान्ता मन्दिरों को अपना निशाना बनाते थे, अत: शिखरयुक्त मन्दिरों का निर्माण बन्द हो गया। परिणामत: आज के मन्दिर घरों में ही बने हैं, बाहर से उनका पता नहीं चलता।  
 
एक अन्य विवरण के अनुसार खम्भात की व्युत्पत्ति स्कम्भ से हुई। स्कम्भ शिव का प्रतीक है। खम्भात पुराना शैव तीर्थ है, अत: स्कम्भ से खम्भात बन गया। वल्लभी और सोलंकी शासनकाल में खम्भात भारत का सबसे विशाल पत्तन था।अरब यात्रियों ने इसे बौद्ध तीर्थ के रूप में पाया। चालुक्य काल में यहाँ जैन तीर्थों का विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी ने यहीं दीक्षा ली। सुरक्षा की दृष्टि से भी खम्भात महत्वपूर्ण रहा। सोलंकी शासकों ने यहाँ सुदूढ़ नौसैनिक बेड़ा व सेना का आधार (छावनी) बनाया। परन्तु कालक्रम से सब नष्ट हो गया- विशेषत: विदेशी विधर्मी लुटेरों के कारण। ये मुस्लिम आक्रान्ता मन्दिरों को अपना निशाना बनाते थे, अत: शिखरयुक्त मन्दिरों का निर्माण बन्द हो गया। परिणामत: आज के मन्दिर घरों में ही बने हैं, बाहर से उनका पता नहीं चलता।  
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पालिताणा ( शत्रुंजय )  
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=== पालिताणा ( शत्रुंजय ) ===
 
   
पालिताणा व शत्रुजय अविभाज्य हैं। पालिताणा मुख्यरूप से आवासीय क्षेत्र है,जबकि शत्रुंजय पूर्ण रूप से मन्दिरों का परिसर है। यह मणिकांचन संयोग विश्व मेंअद्वितीय है। मन्दिरों का परिसर शत्रुंजय ६०० मीटर ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है। पहाड़ी में ८६० से अधिक मन्दिर, ११००० प्रतिमाएँ और लगभग ९00 पादुकाएँ (चरणचिह्न) हैं। इनमें १०६ बड़े मन्दिर हैं। सम्पूर्ण देश और विदेश से भी तीर्थ-यात्रियों का तांता लगा रहता है। सबसे प्रमुख मन्दिरों में आदिनाथ, विमलशाह, चौमुख, सम्प्राप्तिराजा, हनुमान, हिंगलाज माता मन्दिर हैं। पालिताणा शब्द का उद्भव पादलिप्त या पालित से हुआ है। योगी नागार्जुन ने अपने गुरु पादलिप्त की स्मृति में पालिताणा की स्थापना की थी। यहाँ का चौमुख मन्दिरइतना विशाल है कि ४० किमी. दूरी से भी दिखाई देता है।  
 
पालिताणा व शत्रुजय अविभाज्य हैं। पालिताणा मुख्यरूप से आवासीय क्षेत्र है,जबकि शत्रुंजय पूर्ण रूप से मन्दिरों का परिसर है। यह मणिकांचन संयोग विश्व मेंअद्वितीय है। मन्दिरों का परिसर शत्रुंजय ६०० मीटर ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है। पहाड़ी में ८६० से अधिक मन्दिर, ११००० प्रतिमाएँ और लगभग ९00 पादुकाएँ (चरणचिह्न) हैं। इनमें १०६ बड़े मन्दिर हैं। सम्पूर्ण देश और विदेश से भी तीर्थ-यात्रियों का तांता लगा रहता है। सबसे प्रमुख मन्दिरों में आदिनाथ, विमलशाह, चौमुख, सम्प्राप्तिराजा, हनुमान, हिंगलाज माता मन्दिर हैं। पालिताणा शब्द का उद्भव पादलिप्त या पालित से हुआ है। योगी नागार्जुन ने अपने गुरु पादलिप्त की स्मृति में पालिताणा की स्थापना की थी। यहाँ का चौमुख मन्दिरइतना विशाल है कि ४० किमी. दूरी से भी दिखाई देता है।  
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जूनागढ़  
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=== जूनागढ़ ===
 
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नरसी भक्त का जन्म जूनागढ़ में हुआ था। यह नगर गिरनारपर्वत की तलहटी में अवस्थित है। पूर्व में गिरनार पर्वत है, अत: इसका नाम गिरिनगर भी है। नगर में कई धर्मशालाएँ व देव-मन्दिर हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य की निवास भूमि यही नगर है। नगर के पास पर्वतीय चढ़ाई पर ऊपरकोट नामक पुराना किला है। इसमें अनेक बौद्ध प्रतिमाएँ तथा हनुमानजी की विशाल मूर्ति है। वामनेश्वर शिव, मुचकुन्द महादेव, नेमिनाथ,अम्बिका शिखरआदि प्रमुख मन्दिर व धर्मस्थल हैं।चढ़ाई पर भर्तृहरि गुफा भी विद्यमान हैं।
नरसीभक्त का जन्म जूनागढ़ मेंहुआ था। यह नगर गिरनारपर्वत की  
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तलहटी में अवस्थित है। पूर्व में गिरनार पर्वत है, अत: इसका नाम
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=== पोरबन्दर ( सुदामापुरी ) ===
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भगवान् श्री कृष्ण के परम मित्र विप्र सुदामा का जन्म पोरबन्दर में हुआ था,अत: यह पवित्र तीर्थ बन गया और सुदामापुरी कहलाया। यह एकदम समुद्रतट पर स्थित है। विगत शताब्दी में महात्मा गाँधी का जन्म भी पोरबन्दर में ही हुआ,अत:इसका महत्व और भी बढ़ गया। गांधीजी के जन्म-स्थान को कीर्ति मन्दिर के रूप में संवारा गया है। इस नगर में सुदामा मन्दिर के अतिरिक्त श्रीराम मन्दिर, राधाकृष्ण मन्दिर, पंचमुखी महादेव और अन्नपूर्णा मन्दिर हैं।
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गिरिनगर भी है। नगर में कई धर्मशालाएँ देव-मन्दिर हैं। महाप्रभु
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=== कर्णावती  (अहमदाबाद) ===
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साबरमती नदी के तटपर गुजरात राज्य का यह सबसे बड़ा नगर है। इसका पुराना नाम कर्णावती है।भारत में वस्त्र उद्योग का मुम्बई के बाद यह सबसे बड़ा केन्द्र है। अनेक वर्षों तक यह गुजरात की राजधानी रहा महात्मा गांधी का साबरमती आश्रम यहीं है। इसी आश्रम से गाँधीजी ने ऐतिहासिक दांडी यात्रा प्रारम्भ की थी। नगर में अनेक धार्मिक ऐतिहासिक स्थल हैं।दुधारेश्वर, नृसिंह, हनुमान, भद्रकाली के मन्दिर यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। दधीचि ऋषि का आश्रम यहीं साबरमती के तट पर था । 
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वल्लभाचार्य की निवास भूमि यही नगर है। नगर के पास पर्वतीय चढ़ाई
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छत्रपति शिवाजी महाराज की कर्मभूमि मुख्य रूप से सह्याद्रि पर्वतमाला के आसपास का क्षेत्र रहा है। यहाँ उनके कार्य से सम्बन्धित अनेक दुर्ग एवं ऐतिहासिक स्थान हैं। इस प्रकार के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं। 
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पर ऊपरकोट नामक पुराना किला है। इसमें अनेक बौद्ध प्रतिमाएँ तथा  
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=== रायगढ़  ===
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यहअति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दुर्ग है।यहाँ पर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। शिवाजी महाराज की समाधि भी इसी दुर्ग में है। यह कोलाबा जिले के अन्तर्गत पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि शिवाजी तथा समर्थ स्वामी रामदास द्वारा स्थापित एवं पूजित देव-विग्रह भी यहाँ प्रतिष्ठित है। शिवाजी महाराज के समय के अनेक भवन, सभाग्रह, सरोवर तथा मन्दिर आज भी विद्यमान हैं। मुख्य मन्दिर भवानी मन्दिर व श्री जगदीश्वर मन्दिर हैं। मन्दिर के पश्चिमी द्वार के पास स्वामी रामदास द्वारा स्थापित महावीर हनुमान् की मूर्ति है। दुर्ग के प्रारम्भिक भाग में तोपखाने का स्थान तथा तोपखाना-प्रमुख मदारशाह की कब्र है। वैशाख शुक्ल द्वितीया (शिवाजी जयन्ती) तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी(राज्याभिषेक दिवस% हिन्दू साम्राज्य दिवस) केअवसर पर बृहत् उत्सव मनाये जाते हैं।
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हनुमानजी की विशाल मूर्तिहै। वामनेश्वर शिव, मुचकुन्द महादेव, नेमिनाथ,  
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=== पुणे ===
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शिवाजी महाराज और पेशवाओं के शौर्य की गाथा कहने वाला पुणे नगर महाराष्ट्र का प्रसिद्ध नगर है। औरंगजेब के घमण्डी सेनापति शाइस्ताखां को यहीं पर शिवाजी की चमत्कारिक शक्ति का आभास हुआ था, जिसके कारण रात को ही अपनी अंगुलियाँ गाँवाकर उसे भागना पड़ा था।पुणे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कीभी कर्मभूमि है। तिलक द्वारा है। अब पास में ही नयी राजधानी गांधीनगर का निर्माण किया गया है। स्थापित कई संस्थाएँ व विद्यामन्दिरआज भी कार्यरत हैं।श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, जैन मन्दिर, पार्वती मन्दिर, पेशवा काल के भवन, शिवाजी महाराज कीअश्वारूढ़ प्रतिमा पुणे के मुख्य आकर्षण केन्द्र हैं। ज्ञानेश्वरी के रचयिता सन्त ज्ञानेश्वर की समाधि (आलंदी) और सन्त तुकाराम का जन्म स्थान देहू पुणे के पास ही हैं। 
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अम्बिका शिखरआदि प्रमुख मन्दिर व धर्मस्थल हैं।चढ़ाईपर भर्तृहरि गुफा
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=== शिवनेरी ===
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यद्यपि शिवनेरी दुर्ग बहुत पुराना है, परन्तु शिवाजी महाराज का जन्म स्थान होने का सौभाग्य भी इसे मिला है अत: इसकी प्रसिद्धि और महत्व भी बढ़ गया है। किले में शिवाई देवी का मन्दिर है। इनकी आराधना से ही जीजाबाई ने शिवाजी जैसा पुत्ररत्न प्राप्त किया। यहीं पर बालक शिवा ने प्रारम्भिक संस्कार प्राप्त किये।
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भी विद्यमान हैं।
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=== सिंहगढ़  ===
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पूणे से २५-२६ कि. मी. दूरी पर इतिहास-प्रसिद्ध सिंहगढ़ स्थित है। इसका पुराना नाम कोंडाना था।शिवाजी के वीर सेनापति तानाजी मालसुरे ने आत्म बलिदान के कारण ही इसका नाम सिंहगढ़ हुआ।
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पोरबन्दर (मुदामापुरी)
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=== प्रतापगढ़ ===
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दुर्गम पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी केबुद्धि-चातुर्य तथा शौर्य का प्रत्यक्ष साक्षी है। बीजापुर का शासक शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से बहुत चिन्तित था। उसने अपने सरदार अफजलखां से शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ लाने को कहाँ परन्तु वह धूर्त अपने उद्देश्य में सफल न होकर प्रतापगढ़ के पास एक छोटे से समतल स्थान परअपने ही प्राण दे बैठा। नियत स्थान पर मिलने के समय अफजलखां ने शिवाजी परतलवार से प्रहार किया, परन्तु शिवाजी पहले से ही सचेत थे। उन्होंने अपने बघनखे से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं तथा बिछवां कटार से उसके सीने को भेद कर सदा के लिये ठंडा कर दिया। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने सन् १६६१ ई0 में तुलजा भवानी की प्रतिष्ठा की। भारत के स्वतंत्र हो जाने पर प्रतापगढ़ में शिवाजी का भव्य स्मारक बनाया गया जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने बड़ी होलो हुज्जत के बाद किया।पुरन्दर,चाकन, मकरन्दगढ़, पन्हालागढ़आदि अन्य प्रमुख दुर्ग भी शिवाजी महाराज की शौर्य - कथा सुनाते है ।
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भगवान् श्री कृष्ण के परम मित्र विप्र सुदामा का जन्म पोरबन्दर में हुआ
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=== महाबलेश्वरम् ===
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पर्वतमाला के पश्चिमी ढाल पर स्थित महाबलेश्वरम् अति प्राचीन शैव तीर्थ है।भगवान् विष्णुने अतिबल तथा आदिमाया ने महाबल नामक दैत्यों का वध यहीं किया था। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने लोकमंगल के लिए यहाँतपस्या कीथी। कृष्णा नदी का उद्गम स्थान यही है। महाबलेश्वर,अतिबलेश्वर तथा कोटीश्वर ये तीन मन्दिर तो यहाँ हैं ही, कृष्णा बाई व बलसोम नामक मन्दिर भी हैं। अहिल्याबाई द्वारा निर्मित रुद्रेश्वर तथा समर्थ रामदास द्वारा श्रीमारुति की प्रतिष्ठा भी यहाँ की गयी हैं ।
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था,अत: यह पवित्र तीर्थ बन गया और सुदामापुरी कहलाया। यहएकदम
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=== मुम्बई (बम्बई) ===
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वर्तमान महाराष्ट्र की राजधानी,प्रमुखतम पत्तन तथा औद्योगिक नगरी मुम्बई। पश्चिमी समुद्र-तट के एक सुरक्षित स्थान पर विद्यमान है। यहाँ मुम्बादेवी का प्राचीन मन्दिर है। यह यहाँ की आराध्या देवी हैं। इनके आधार पर ही इस नगर का नाम मुम्बई पड़ा।मुम्बई के अन्य मुख्य मन्दिरों के नाम इस प्रकार हैं :  
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समुद्रतट पर स्थित है। विगत शताब्दी में महात्मा गाँधी का जन्म भी
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१ , लक्ष्मीनारायण मन्दिर - माधव बाग में  
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पोरबन्दर में ही हुआ,अत:इसका महत्व और भी बढ़ गया। गांधीजी के
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२ . महालक्ष्मी- परेल से दक्षिण में समुद्रतट पर
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जन्म-स्थान को कीर्ति मन्दिर के रूप में संवारा गया है। इस नगर में  
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३ . हनुमान जी - माटूगा में  
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सुदामा मन्दिर के अतिरिक्त श्रीराम मन्दिर, राधाकृष्ण मन्दिर, पंचमुखी
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, कालबादेवी - स्वदेशी बाजार में कालबा रोड पर
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महादेव और अन्नपूर्णा मन्दिर हैं।  
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तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी हैं। ये छत्रपति शिवाजी की परमाराध्या हैं। स्वयं तुलजा भवानी ने शिवाजी को खड्ग प्रदान कर आशीर्वाद दिया था। मूल तुलजा भवानी शोलापुर से ४० किमी. दूर तुलजापुरमें विराजमान हैं। शिवाजी ने प्रतापगढ़ व रायगढ़ में भी इनको प्रतिष्ठित कराया ।
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कणविर्ती (अहमदाबाद)
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५ , द्वारिकाधीश- ६ विभिन्न व एक पारसी मन्दिर।
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साबरमती नदी के तटपर गुजरात राज्य का यह सबसे बड़ा नगरहै।
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धारापुरी (एलिफेंट) में मुम्बई के पास द्वीप पर स्थिति अनेक गुफा मन्दिरएलोरा शैली में बनाये गए हैं।शिवरात्रि के पर्व पर धारापुरी में मेला लगता है।
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इसका पुराना नाम कर्णावती है।भारत में वस्त्र उद्योग का मुम्बई के बाद
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=== देवगिरी ( दौलताबाद ) ===
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यादववंश की प्राचीन राजधानी देवगिरेि ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ एक प्राचीन किला है। किले में एक बच्चे स्थान पर जनार्दन स्वामी की समाधि है। मुस्लिम आक्रमणों के समय इस नगर के वैभव को बड़ा धक्का लगा। मुस्लिम आक्रमणकारी तुगलक ने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य दूढ़ करने के उद्देश्य से देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया, परन्तु वह सफल न हो सका और वापिस लौट आया, तभी से देवगिरि का नाम दौलताबाद पडा। 
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यह सबसे बड़ा केन्द्र है। अनेक वर्षों तक यह गुजरात की राजधानी रहा
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=== पैठण ===
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यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र हैं तथा यहाँ शालिवाहन राजाओं की राजधानी थी।पुराने खण्डहरआज भी यहाँ विद्यमान हैं। प्राचीन विद्याकेन्द्र के रूप में भी पैठण को मान्यता प्राप्त थी। सन्त एकनाथ यहीं रहकर भगवत्भक्ति में लीन रहते थे। उनका निवास आदिआज भी सुरक्षित है। एकनाथ जी की समाधि गोदावरी तट पर बनी है। प्रसिद्ध सन्त श्री कृष्णदयार्णव का निवास व समाधि भी यहाँ विद्यमान हैं। सन्त ज्ञानेश्वर ने पैठण में ही भैंसे के मुख से वेद-मंत्र उच्चारित कराये थे। ढोलकेश्वर तथा सिद्धेश्वर यहाँ के प्राचीन मन्दिर हैं। औरंगजेब ने छोलकश्वर मन्दिर को ध्वस्त करने का विफल प्रयास किया था। मूर्ति में जंजीर बांधने के निशान आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसका पुराना नाम प्रतिष्ठान है।
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महात्मा गांधी का साबरमती आश्रम यहीं है। इसी आश्रम से गाँधीजी ने  
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=== पंढरपुर  ===
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पवित्र भीमा नदी के तटपर स्थित यह पवित्र स्थान महाराष्ट्र का प्रमुख तीर्थ है। सन्त नामदेव, तुकाराम, नरहरि, भक्त पुण्डरीक आदि ने यहाँ निवास किया और धर्म-प्रसार किया। श्री विट्ठल मन्दिर पंढरपुर का विशाल व प्रमुखतम मन्दिर है। भगवान् पंढरीनाथ यहाँ आराध्यदेव हैं। सन्त नामदेवजी की समाधि श्री विट्ठल मन्दिर के परिसर में ही है।
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ऐतिहासिक दांडी यात्रा प्रारम्भ की थी। नगर में अनेक धार्मिक व
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=== नांदेढ़ ===
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यहाँ गुरु गोविन्द सिंहजी की समाधि और विशाल गुरुद्वारा है। बन्दा वैरागी यहीं जंगलों में तपस्यारत मिले। गुरु गोविन्द सिंह ने उन्हे देश की परिस्थिति से अवगत कराकर उनके हृदय में कर्तव्यबोध जाग्रत कराया तब वे देश परआये संकट से जूझने और आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए संघर्षरत हुए। यहीं परएक मुसलमान युवक ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह पर कटारी से प्रहार किया जो उनके लिए प्राणघातक सिद्ध हुआ। यहाँ पहले चारोंओर जंगल ही जंगल था,परन्तुआज पवित्र तीर्थ स्थान बन गया है।
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ऐतिहासिक स्थल हैं।दुधारेश्वर, नृसिंह, हनुमान, भद्रकाली के मन्दिरयहाँ
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=== बादामी ===
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यह कर्नाटक का ऐतिहासिक नगर है।चालुक्यवंशी सम्राट पुलकेशन ने इसे अपनी राजधानी बनाया। दो पहाड़ियों के बीच बसी यह नगरी बाह्य आक्रमणों से सरलता से निपटने में समर्थ है।इसके पूर्वोत्तर में एक किला है जो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। किले में ५ गुफा-मन्दिर हैं। इसका प्राचीन नाम वातापि हैं।
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के प्रमुख मन्दिरहैं। दधीचि ऋषि का आश्रम यहीं साबरमती के तट पर
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=== विदर ===
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यह भी पुरानी बस्ती है। भारत दर्शन के दौरान गुरु नानकदेव यहाँ पधारे थे। उसी समय यहाँ जलसंकट पैदा हो गया। द्रवित होकर गुरुजी ने एक झरने का प्रादुर्भाव किया और त्रस्त लोगों को पानी मिला। वह झरना आज भी है। इसी स्थान पर गुरुद्वारा बना है जो झरना साहब गुरुद्वारा नाम से प्रसिद्ध है। झरने के पास पापनाशन शिवमन्दिर है।
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=== कोल्हापुर  ===
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यह पुराणों में वर्णित करवीर क्षेत्र है। देवी के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कोल्हापुर में है। यहाँ सती के नेत्र गिरेथे। महिषमर्दिनी ही यह पीठ है। यह एक जाग्रत पीठ है। महालक्ष्मी यहाँ नित्य निवास करती हैं। महालक्ष्मी मन्दिर यहाँ प्रमुख मन्दिर है। जैन मतावलम्बी इसे अपनी इष्ट देवी मानते हैं। नगर में शिवाजी व शांभाजी से सम्बन्धित स्थान भी विद्यमान हैं।
    
==References==
 
==References==
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