पुण्यभूमि भारत - दक्षिण भारत

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भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की त्रिवेणी, नामदेव, तुकाराम, नारायण गुरु, एकनाथ आदिशंकर जैसे सन्तों की जन्मभूमि, शिवाजी, कृष्णदेवराय, राजेन्द्र चोल आदि पराक्रमी वीरों की शौर्य-स्थली दक्षिण भारत में हिन्दू संस्कृति प्रचुरता से फली-फूली और अपनी यश सुरभि से विश्व को सुवासित करने की क्षमता धारण करने वाली बनी। "हमारी संस्कृति एक है"- इस चिरंतन सत्य के दर्शन यहाँ के कण-कण में होते हैं। आर्य व द्रविड़ का भेद फूट डालने की एक घृणित चालमात्र है। हमारे शास्त्र एक हैं, आचार्य एक हैं और आराध्य देव भी एक ही हैं। दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुण्यस्मरण से यह बात और अधिक पुष्ट होगी। दक्षिण भारत में पवित्र तीर्थों की परम्परा अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक ज्ञान की गांग यहाँ अविरल बहती रही है। मध्य भारत का वर्णन करने के बाद हम आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक प्रदेश के तथा पाण्ड्यचेरी, द्वीप समूह व श्रीलंका के स्थलों की झलक प्राप्त कर लें।

विजय नगर

महान् विजयनगर साम्राज्य की स्थापना विद्यारण्य स्वामी (माधवाचार्य) के मार्गदर्शन में हरिहर और बुक्कराय नामक दो वीर बंधुओं ने की थी, जिसकी यह राजधानी थी। उन्होंने इसे युगाब्द ४४३८ (सन् १३३६) में बसाया। अपने गुरु विद्यारण्य स्वामी के नाम पर उन्होंने इसे विद्यासागर नाम दिया था, किन्तु बाद में यह विजय नगर नाम से ही प्रसिद्ध हुआ। यह ऐतिहासिक नगर दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा है। उद्देश्य था। विजयनगरमें साम्राज्य-संस्थापक संगमवंश के पश्चात् सालूव वंश औरतुलुव वंश के जैसे प्रतापी राजवंशों का भी आधिपत्य रहा। तुलव वंश के वीर पुरुष कृष्णदेव राय ने विजयनगर साम्राज्य का पर्याप्त उत्कर्ष किया और मुसलमानों द्वारा ध्वस्त किये गये मन्दिरों का जीणोद्धार किया। विजयनगर का साम्राज्य युगाब्द 4438 से 4667 (ई. १३३६ से १५६५) तक उत्कर्ष पर रहा। उसके विदेशों से भी दौत्य सम्बन्ध थे। इसका एक नाम हम्पी भी है। विजयनगर तथा आसपास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मन्दिर तथा ऐतिहासिक स्थल हैं। विरूपाक्ष मन्दिर सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर हैजो नगर के लगभग मध्य भाग में हैं। स्वामी विद्यारण्य की समाधि भी यहाँ है। भगवान् श्रीराम लक्ष्मण के साथ यहाँ पधारे थे और पास की पहाड़ी में निवास किया। ऋष्यमूक, किष्किन्धा, पप्पा सरोवर, अंजनी पर्वत आदि रामायणकालीन ऐतिहासिक स्थल हैं।

श्रृंगेरी

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रमुख पीठों में से श्रृंगेरी एक है। यह तुगभद्रा नदी के तट पर छोटा सा नगर है। नदी के तट पर पक्के घाट हैंऔर घाट के ऊपर श्री शांकराचार्यजी का पीठ है। एक विशाल मठ के घेरे में श्री शारदा जी और विद्यातिीर्थ महेश्वर के मन्दिर हैं। प्राचीन काल में यहाँ पर श्रृंगी ऋषि के पिता महर्षि विभाण्डक का आश्रमथा। यह स्थान नदी-तट पर एक पहाड़ी के ऊपर है। उनके द्वारा स्थापित विभाण्डकेश्वर शिव आज भी हैं। श्रृंगी ऋषि का जन्म भी यहीं पास की एक पर्वत उपत्यका में हुआ। इसे श्रृंगागिरि नाम से पुकारते हैं। सम्भवत: इसी के कारण इस नगर का नाम श्रृंगेरी हुआ। श्रृंगेरी का आज भी आध्यात्मिक जगत् में महत्वपूर्ण स्थान है।