Difference between revisions of "पाठ्यक्रम - कक्षा ७ से कक्षा ९"

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कक्षा 7 से 9 : आयु 13 से 15:- बुद्धि के साथ-साथ अहंकार का विकास | “मैं भी कुछ हूँ' ऐसा भाव। जिम्मेदारियोँ लेना और निभाना , चुनौतियाँ
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कक्षा 7 से 9 : आयु 13 से 15:- बुद्धि के साथ-साथ अहंकार का विकास “मैं भी कुछ हूँ' ऐसा भाव। जिम्मेदारियोँ लेना और निभाना , चुनौतियाँ लेना और निभाना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमताओं का विकास अंतस्फूर्ति, ब्रह्मचर्यपालन, ओज-तेज का विकास स्व' भाव ओर क्षमताओं को समझना आदि।
 
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# मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष, मुक्ति, स्वतंत्रता, स्वावलंबन, अहंकार पर विजय, परमेष्ठिगत विकास का बुद्धियुक्त समर्थन
लेना और निभाना | शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमताओं का विकास | अंतस्फूर्ति, ब्रह्मचर्यपालन, ओज-तेज का विकास | स्व' भाव ओर क्षमताओं को
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# अभारतीय जीवनदृष्टि से तुलना। चराचर में व्याप्त एकात्मता, जीवन की समग्रता, ओर धर्माधिष्ठित जीवन के प्रतिमान को समझना । जीवन को भारतीय बनाने का संकल्प करना
 
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# स्त्रीपुरुष मे भिन्नता, समानता, पूरकता समझना। समाज जीवन में दोनों की भूमिका
समझना आदि।
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# धर्म की सर्वोपरिता को समझना। धर्मरक्षा एवं अधर्मनाश का संकल्प। “शत्रुबुद्धर्विनाशाय' को समझना
 
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# स्वभाव, वर्ण के अनुसार काम। शुद्धि और वृद्धि की व्यवस्था के लिए मार्गदर्शन। कौटुंबिक उद्योगों का महत्व समझाना। जाति व्यवस्था, ग्रामकुल, कुटुंब, आश्रम व्यवस्था की बुद्धियुक्त पृष्ठभूमि समझना । इस संदर्भ में अपने भावी जीवन का नियोजन के लिए मार्गदर्शन करना।
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# अपने स्वभाव के अनुसार क्षमतावान शिक्षक, रक्षक, पोषक बनने का संकल्प और उपकम करना
 
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# संस्कृति, कुटुंब, ग्राम जनपद, प्रांत, देश, धर्म, समाज, सामाजिक संगठन, सामाजिक व्यवस्थाएँ, राष्ट्र एवं आंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रति अपने कर्तव्य की स्पष्टता घर व अन्य कामों की जिम्मेदारि्यो लेना ओर कुशलता से निभाना।
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# अब उज्वल इतिहास निर्माण की चर्चा हो ऐसे इतिहास के निर्माण के लिए स्वभाव ओर क्षमताओं के अनुसार मार्गदर्शन ओर प्रेरणा । प्रेरणादायी भारत का दर्शन करना।
 
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# भावी जीवन के पहलू- स्वभाव-क्षमता के आधार परः श्रेष्ठ संतान को जन्म देने की क्षमता, श्रेष्ठता से घर चलाने की क्षमता, अर्थार्जन की क्षमता, सामाजिक जिम्मेदारियोँ निभाने की क्षमता, अनुरूप जीवनसाथी, जीवन में क्या/ कैसा बनना है
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# भावी राष्ट्र जीवन में अपनी भूमिका, चिरंजीवी राष्ट्र के स्वरूप का आकलन, होने की प्रकिया, अपने स्वभाव ओर सामर्थ्य के अनुसार भूमिका
 
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# संकल्प
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# पूर्वकक्षाओं में किया हुआ/ सीखा हुआ आगे की कक्षाओं में चालू रखना
 
 
मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष, मुक्ति, स्वतंत्रता, स्वावलंबन, अहंकार पर विजय, परमेष्ठिगत विकास का बुद्धियुक्त समर्थन |
 
 
 
अभारतीय जीवनदृष्टि से तुलना। चराचर मँ व्याप्त एकात्मता, जीवन की समग्रता, ओर धर्माधिष्ठित जीवन के प्रतिमान को समझना । जीवन
 
 
 
को भारतीय बनाने का संकल्प करना |
 
 
 
. स्त्रीपुरुष मे भिन्नता, समानता, पूरकता समञ्चना। समाज जीवन म॑ दोनों की भूमिका |
 
 
 
. धर्म की सर्वोपरिता को समझना |धर्मरक्षा एवं अधर्मनाश का संकल्प | “शत्रुबुद्धर्विनाशाय' को समझना |
 
 
 
. स्वभाव, वर्ण के अनुसार काम | शुद्धि और वृद्धि की व्यवस्था के लिए मार्गदर्शन। कौटुंबिक उद्योगों का महत्व समझाना। जाति व्यवस्था,
 
 
 
ग्रामकुल, कुटुंब, आश्रम व्यवस्था की बुद्धियुक्त पृष्ठभूमि समझना । इस संदर्भ में अपने भावी जीवन का नियोजन के लिए मार्गदर्शन करना।|
 
 
 
अपने स्वभाव के अनुसार क्षमतावान शिक्षक, रक्षक, पोषक बनने का संकल्प और उपकम करना |
 
 
 
. संस्कृति, कुटुंब, ग्राम जनपद, प्रांत, देश, धर्म, समाज, सामाजिक संगठन, सामाजिक व्यवस्थाएँ, राष्ट्र एवं आंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रति अपने
 
 
 
कर्तव्य की स्पष्टता | घर व अन्य कामों की जिम्मेदारि्यो लेना ओर कुशलता से निभाना |
 
 
 
. अब उज्वल इतिहास निर्माण की चर्चा हो| एसे इतिहास कि निर्माण के लिए स्वभाव ओर क्षमताओं के अनुसार मार्गदर्शन ओर प्रणा | प्ररणादायी
 
 
 
भारत का दर्शन करना।
 
 
 
. भावी जीवन के पहलू- स्वभाव-क्षमता कं आधार परः श्रेष्ठ संतान को जन्म दने की क्षमता, श्रेष्ठता से घर चलाने की क्षमता, अर्थार्जन की
 
 
 
क्षमता सामाजिक जिम्मेदारियोँ निभाने की क्षमता, अनुरूप जीवनसाथी, जीवन में क्या/ कैसा बनना है इ.
 
 
 
भावी राष्ट्र जीवन में अपनी भूमिका, चिरंजीवी राष्ट्र के स्वरूप का आकलन, होने" की प्रकिया, अपने स्वभाव ओर सामर्थ्यं के अनुसार भूमिका |
 
 
 
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11. पूर्वकक्षाओं में किया हुआ/ सीखा हुआ आगे की कक्षाओं में चालू रखना |
 

Revision as of 11:09, 30 April 2021

कक्षा 7 से 9 : आयु 13 से 15:- बुद्धि के साथ-साथ अहंकार का विकास । “मैं भी कुछ हूँ' ऐसा भाव। जिम्मेदारियोँ लेना और निभाना , चुनौतियाँ लेना और निभाना । शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमताओं का विकास । अंतस्फूर्ति, ब्रह्मचर्यपालन, ओज-तेज का विकास । स्व' भाव ओर क्षमताओं को समझना आदि।

  1. मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष, मुक्ति, स्वतंत्रता, स्वावलंबन, अहंकार पर विजय, परमेष्ठिगत विकास का बुद्धियुक्त समर्थन ।
  2. अभारतीय जीवनदृष्टि से तुलना। चराचर में व्याप्त एकात्मता, जीवन की समग्रता, ओर धर्माधिष्ठित जीवन के प्रतिमान को समझना । जीवन को भारतीय बनाने का संकल्प करना ।
  3. स्त्रीपुरुष मे भिन्नता, समानता, पूरकता समझना। समाज जीवन में दोनों की भूमिका ।
  4. धर्म की सर्वोपरिता को समझना। धर्मरक्षा एवं अधर्मनाश का संकल्प। “शत्रुबुद्धर्विनाशाय' को समझना ।
  5. स्वभाव, वर्ण के अनुसार काम। शुद्धि और वृद्धि की व्यवस्था के लिए मार्गदर्शन। कौटुंबिक उद्योगों का महत्व समझाना। जाति व्यवस्था, ग्रामकुल, कुटुंब, आश्रम व्यवस्था की बुद्धियुक्त पृष्ठभूमि समझना । इस संदर्भ में अपने भावी जीवन का नियोजन के लिए मार्गदर्शन करना।
  6. अपने स्वभाव के अनुसार क्षमतावान शिक्षक, रक्षक, पोषक बनने का संकल्प और उपकम करना ।
  7. संस्कृति, कुटुंब, ग्राम जनपद, प्रांत, देश, धर्म, समाज, सामाजिक संगठन, सामाजिक व्यवस्थाएँ, राष्ट्र एवं आंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रति अपने कर्तव्य की स्पष्टता । घर व अन्य कामों की जिम्मेदारि्यो लेना ओर कुशलता से निभाना।
  8. अब उज्वल इतिहास निर्माण की चर्चा हो ऐसे इतिहास के निर्माण के लिए स्वभाव ओर क्षमताओं के अनुसार मार्गदर्शन ओर प्रेरणा । प्रेरणादायी भारत का दर्शन करना।
  9. भावी जीवन के पहलू- स्वभाव-क्षमता के आधार परः श्रेष्ठ संतान को जन्म देने की क्षमता, श्रेष्ठता से घर चलाने की क्षमता, अर्थार्जन की क्षमता, सामाजिक जिम्मेदारियोँ निभाने की क्षमता, अनुरूप जीवनसाथी, जीवन में क्या/ कैसा बनना है ।
  10. भावी राष्ट्र जीवन में अपनी भूमिका, चिरंजीवी राष्ट्र के स्वरूप का आकलन, होने की प्रकिया, अपने स्वभाव ओर सामर्थ्य के अनुसार भूमिका ।
  11. संकल्प
  12. पूर्वकक्षाओं में किया हुआ/ सीखा हुआ आगे की कक्षाओं में चालू रखना ।