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== पाठ्यक्रम में भारतीय विद्याओं को जोड़ना ==
 
== पाठ्यक्रम में भारतीय विद्याओं को जोड़ना ==
व्यक्ति को लायक बनाने के लिये अनेक भारतीय विद्यायें हैं जिन्हें आज हमने या तो भुला दिया है या उपेक्षित कर दिया है या उनका विकृतिकरण किया है। इन विषयों का प्रथम तो स्वरूप ठीक कर उन्हें पाठ्यक्रमों का अंग बनाना चाहिये । ये विषय हैं योग, आयुर्वेद, गृहशास्त्र, धर्मशास्त्र, उद्योग और संस्कृति। इन सबको व्यावहारिक और आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना चाहिये यह निर्विवाद है | विकृतिकरण का जो मुद्दा है वह भी समझने जैसा है । योग का हमने स्वीकार तो किया हुआ है परन्तु उसे शारीरिक शिक्षा का अंग बना दिया है जबकी वह मनोविज्ञान का अंग होना चाहिये। वास्तव में योग ही भारतीय मनोविज्ञान है । आयुर्वेद को एलोपथी के मापदण्डों के अनुसार ढाल लिया है जबकि वह अध्यात्म शास्त्र और योग के साथ सुसंगत होना चाहिये | गृह शास्त्र को हमने व्यवसाय की तरह स्वीकार कर लिया है और घर को उपेक्षित कर दिया है। संस्कृति को कल्चर के रूप में अपना कर उसे अर्थहीन बना दिया है | ऐसे अनेक विषय हैं जो व्यक्तिगत से लेकर राष्ट्रजीवन के लिये अनिवार्य हैं परन्तु सिखाये नहीं जाते । अत: पाठ्यक्रमों को बनाते समय हमें बहुत कुछ विचार में लेना होगा । पाठ्यक्रम को अध्ययनक्रम के रूप में बदलना चाहिये । विद्यार्थी को स्वयं अध्ययन करना है और शिक्षक को उसमें सहायता करना है इस बात को ध्यान में रखकर विद्यार्थी का स्तर देखकर पाठ्यक्रम बनाना चाहिये । अर्थात्‌ वह इस प्रकार से लचीला होना चाहिये कि हर विद्यार्थी उसे अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग में ले सके | यह सिद्धांत छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं में लागू होता है। पाठ्यक्रम शिक्षक को पूर्ण नहीं करना है, विद्यार्थी को पूर्ण करना है, वह भी अपनी गति से इस बात का ध्यान रखनाचाहिये । हर विषय का दूसरे विषय के साथ संबंध है यह समझकर और वे सभी अध्यात्मशासत्र के अंग हैं यह समझकर पाठ्यक्रम बनने चाहिये यह प्रथम आवश्यकता है | हर विषय का सांस्कृतिक स्वरूप ध्यान में लेकर वे बनने चाहिए यह दूसरा मुद्दा है और हर विषय को आयु की अवस्था को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम में नियोजित करने चाहिये यह तीसरी आवश्यकता है ।
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व्यक्ति को लायक बनाने के लिये अनेक भारतीय विद्यायें हैं जिन्हें आज हमने या तो भुला दिया है या उपेक्षित कर दिया है या उनका विकृतिकरण किया है। इन विषयों का प्रथम तो स्वरूप ठीक कर उन्हें पाठ्यक्रमों का अंग बनाना चाहिये । ये विषय हैं योग, आयुर्वेद, गृहशास्त्र, धर्मशास्त्र, उद्योग और संस्कृति। इन सबको व्यावहारिक और आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना चाहिये यह निर्विवाद है | विकृतिकरण का जो मुद्दा है वह भी समझने जैसा है । योग का हमने स्वीकार तो किया हुआ है परन्तु उसे शारीरिक शिक्षा का अंग बना दिया है जबकी वह मनोविज्ञान का अंग होना चाहिये। वास्तव में योग ही भारतीय मनोविज्ञान है । आयुर्वेद को एलोपथी के मापदण्डों के अनुसार ढाल लिया है जबकि वह अध्यात्म शास्त्र और योग के साथ सुसंगत होना चाहिये | गृह शास्त्र को हमने व्यवसाय की तरह स्वीकार कर लिया है और घर को उपेक्षित कर दिया है। संस्कृति को कल्चर के रूप में अपना कर उसे अर्थहीन बना दिया है | ऐसे अनेक विषय हैं जो व्यक्तिगत से लेकर राष्ट्रजीवन के लिये अनिवार्य हैं परन्तु सिखाये नहीं जाते । अत: पाठ्यक्रमों को बनाते समय हमें बहुत कुछ विचार में लेना होगा । पाठ्यक्रम को अध्ययनक्रम के रूप में बदलना चाहिये । विद्यार्थी को स्वयं अध्ययन करना है और शिक्षक को उसमें सहायता करना है इस बात को ध्यान में रखकर विद्यार्थी का स्तर देखकर पाठ्यक्रम बनाना चाहिये । अर्थात्‌ वह इस प्रकार से लचीला होना चाहिये कि हर विद्यार्थी उसे अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग में ले सके | यह सिद्धांत छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं में लागू होता है। पाठ्यक्रम शिक्षक को पूर्ण नहीं करना है, विद्यार्थी को पूर्ण करना है, वह भी अपनी गति से इस बात का ध्यान रखनाचाहिये । हर विषय का दूसरे विषय के साथ संबंध है यह समझकर और वे सभी अध्यात्मशास्त्र के अंग हैं यह समझकर पाठ्यक्रम बनने चाहिये यह प्रथम आवश्यकता है | हर विषय का सांस्कृतिक स्वरूप ध्यान में लेकर वे बनने चाहिए यह दूसरा मुद्दा है और हर विषय को आयु की अवस्था को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम में नियोजित करने चाहिये यह तीसरी आवश्यकता है ।
    
== पाठ्यक्रम पढ़ाना पाठ्यपुस्तक नहीं ==
 
== पाठ्यक्रम पढ़ाना पाठ्यपुस्तक नहीं ==

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