Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎व्यवस्था: लेख सम्पादित किया
Line 130: Line 130:     
== व्यवस्था ==
 
== व्यवस्था ==
हम विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाओं की बात नहीं
+
हम विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाओं की बात नहीं कर रहे हैं । उनकी भी चर्चा करना आवश्यक है ही । उनके बारे में भी बहुत अलग प्रकार से विचार करने की आवश्यकता है । तथापि हम यहाँ शैक्षिक व्यवस्था की ही बात कर रहे हैं ।
   −
कर रहे हैं । उनकी भी चर्चा करना आवश्यक है ही । उनके
+
विचार करने लायक कुछ बिंदु इस प्रकार हैं:
 
+
* सबसे पहली है बैठकव्यवस्था । सभी शास्त्र कहते हैं कि बैठने के लिये मेजकुरसी और बेच और डेस्क उचित व्यवस्था नहीं है । वह शरीर, मन, बुद्धि के लिये अनुकूल नहीं है । जिस व्यवस्था में शरीर का नीचे का हिस्सा बन्द करके नहीं रखा जाता वहाँ शरीर बिना कारण के थकता है, मन सरलता से एकाग्र नहीं हो पाता और बुद्धि को ऊर्जा कम पड़ती है। इसलिए बैठक व्यवस्था का ध्यान रखना आवश्यक है । खड़े खड़े पढ़ाने की स्थिति भी ठीक नहीं है ।
बारे में भी बहुत अलग प्रकार से विचार करने की
+
* जूते पहनकर अध्ययन अध्यापन करना पवित्रता की भारतीय भावना से विपरीत ही है ।
 
+
* दिन में दोपहर का समय अध्ययन अध्यापन के लिये प्रतिकूल है ।
आवश्यकता है । तथापि हम यहाँ शैक्षिक व्यवस्था कि ही
+
* तीस, पैंतीस या चालीस मिनट का कालांश और सभी विषयों के लिये समान अवधि भी यांत्रिक व्यवस्था का ही एक नमूना है और अध्ययन प्रक्रिया के लिये अवरोधरूप ही है । इन सभी विषयों की विस्तार से चर्चा “भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम' ग्रंथ में की गई है इसलिए यहाँ इन बातों का उल्लेख मात्र किया है ।जैसे जैसे हम व्यावहारिक बातों की ओर बढ़ते हैं परिस्थिति के अनुकूल सबकुछ करना होता है । केवल सिद्धान्त से काम नहीं चलता । परन्तु सिद्धान्त को छोड़ने या उससे समझौता करने को व्यवहार नहीं कहते इतना ध्यान रखने की आवश्यकता है ।
 
  −
बात कर रहे हैं ।
  −
 
  −
विचार करने लायक कुछ बिंदु इस प्रकार हैं ...
  −
 
  −
०... सबसे पहली है बैठकव्यवस्था । सभी शास्त्र कहते हैं
  −
 
  −
कि बैठने के लिये मेजकुरसी और बेच और डेस्क
  −
 
  −
उचित व्यवस्था नहीं है । वह शरीर, मन, बुद्धि के
  −
 
  −
लिये अनुकूल नहीं है । जिस व्यवस्था में शरीर का
  −
 
  −
नीचे का हिस्सा बन्द करके नहीं रखा जाता वहाँ
  −
 
  −
शरीर बिना कारण के थकता है, मन सरलता से
  −
 
  −
एकाग्र नहीं हो पाता और बुद्धि को ऊर्जा कम पड़ती
  −
 
  −
है। इसलिए बैठक व्यवस्था का ध्यान रखना
  −
 
  −
आवश्यक है । खड़े खड़े पढ़ाने की स्थिति भी ठीक
  −
 
  −
नहीं है ।
  −
 
  −
०... जूते पहनकर अध्ययन अध्यापन करना पवित्रता की
  −
 
  −
भारतीय भावना से विपरीत ही है ।
  −
 
  −
०... दिन में दोपहर का समय अध्ययन अध्यापन के लिये
  −
 
  −
प्रतिकूल है ।
  −
 
  −
e तीस, पैंतीस या चालीस मिनट का कालांश और
  −
 
  −
सभी विषयों के लिये समान अवधि भी यांत्रिक
  −
 
  −
व्यवस्था का ही एक नमूना है और अध्ययन प्रक्रिया
  −
 
  −
के लिये अवरोधरूप ही है ।
  −
 
  −
इन सभी विषयों की विस्तार से चर्चा “भारतीय शिक्षा
  −
 
  −
के व्यावहारिक आयाम' ग्रंथ में की गई है इसलिए यहाँ इन
  −
 
  −
बातों का उल्लेख मात्र किया है ।जैसे जैसे हम व्यावहारिक
  −
 
  −
बातों की ओर बढ़ते हैं परिस्थिति के अनुकूल सबकुछ
  −
 
  −
करना होता है । केवल सिद्धान्त से काम नहीं चलता ।
  −
 
  −
परन्तु सिद्धान्त को छोड़ने या उससे समझौता करने को
  −
 
  −
व्यवहार नहीं कहते इतना ध्यान रखने की आवश्यकता है ।
      
==References==
 
==References==

Navigation menu