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| पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें | | पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें |
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− | बहुत पुरुषार्थ करना पडेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर | + | बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर |
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| का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा | | का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा |
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| v. | | v. |
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− | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । फिर भी कुछ स्पष्टताओं की | + | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । तथापि कुछ स्पष्टताओं की |
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| आवश्यकता है । | | आवश्यकता है । |
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| इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । | | इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । |
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− | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है फिर भी यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । | + | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है तथापि यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । |
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| इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु | | इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु |
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− | हम सबका सौभाग्य है कि इस ग्रन्थमाला का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघवालक
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− | माननीय मोहनजी भागवत के करकमलों से हो रहा है ।
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− | पुनश्च सभी परामर्शकों, मार्गदर्शकों, सहभागियों, सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह ग्रन्थमाला पाठकों
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− | के हाथों सौंप रहे हैं ।
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− | ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन, निरूपण शैली, रचना, भाषाशुद्धि की दृष्टि से दोष रहे ही होंगे । सम्पादकों की मर्यादा
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− | समझकर पाठक इसे क्षमा करें, स्वयं सुधार कर लें और उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें यही निवेदन हैं ।
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− | इति शुभम् ।
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− | व्यासपूर्णिमा सम्पादकमण्डल
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− | युगाब्दू ५११८
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− | ९ जुलाई २०२१७
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| श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य | | श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य |
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| से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं | | से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं |
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− | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पडे और | + | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पड़े और |
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| गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके | | गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके |
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| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की |
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− | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का | + | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का |
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| दायित्व, अनुप्रश्न | | दायित्व, अनुप्रश्न |
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| 8. | | 8. |
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− | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, | + | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, |
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| विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , | | विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , |
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| उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका | | उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका |
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− | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या | + | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या |
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| चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे | | चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे |
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| और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, | | और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, |
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− | प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से | + | प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से |
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| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
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− | परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं | + | परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं |
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| है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना | | है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना |
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| अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे | | अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे |
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− | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी | + | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी |
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| है। | | है। |
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| प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित | | प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित |
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− | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात् चेतन | + | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात् चेतन |
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− | और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब | + | और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब |
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| दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ | | दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ |
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− | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि | + | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि |
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| ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । | | ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । |
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| oft. rai. at. 23/28 | | oft. rai. at. 23/28 |
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− | चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन | + | चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन |
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| प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप | | प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप |
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| ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये | | ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये |
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− | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी | + | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । तथापि |
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| शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण | | शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण |
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| तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... | | तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... |
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− | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है फिर भी मेरा | + | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है तथापि मेरा |
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| मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । | | मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । |