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| से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति | | से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति |
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− | के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को | + | के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगोंं को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को |
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| ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को | | ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को |
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| पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें | | पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें |
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− | बहुत पुरुषार्थ करना पडेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर | + | बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर |
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| का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा | | का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा |
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| ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया | | ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया |
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− | गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगों तक पहुंचना हुआ । इसी | + | गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगोंं तक पहुंचना हुआ । इसी |
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| प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन | | प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन |
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| आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस | | आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस |
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− | प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगों की सूची भी इतनी लम्बी है कि | + | प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगोंं की सूची भी इतनी लम्बी है कि |
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| उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का | | उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का |
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| v. | | v. |
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− | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । फिर भी कुछ स्पष्टताओं की | + | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । तथापि कुछ स्पष्टताओं की |
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| आवश्यकता है । | | आवश्यकता है । |
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| विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज | | विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज |
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− | का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगों तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के | + | का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगोंं तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के |
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| पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया | | पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया |
Line 292: |
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| है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । | | है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । |
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− | अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में | + | अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगोंं को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में |
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| साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । | | साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । |
Line 298: |
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| इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । | | इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । |
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− | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है फिर भी यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । | + | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है तथापि यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । |
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| इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु | | इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु |
Line 308: |
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| सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । | | सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । |
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− | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है | + | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगोंं का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है |
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| जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और | | जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और |
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− |
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− | हम सबका सौभाग्य है कि इस ग्रन्थमाला का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघवालक
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− |
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− | माननीय मोहनजी भागवत के करकमलों से हो रहा है ।
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− |
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− | पुनश्च सभी परामर्शकों, मार्गदर्शकों, सहभागियों, सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह ग्रन्थमाला पाठकों
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− |
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− | के हाथों सौंप रहे हैं ।
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− |
| |
− | ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन, निरूपण शैली, रचना, भाषाशुद्धि की दृष्टि से दोष रहे ही होंगे । सम्पादकों की मर्यादा
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− |
| |
− | समझकर पाठक इसे क्षमा करें, स्वयं सुधार कर लें और उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें यही निवेदन हैं ।
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− |
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− | इति शुभम् ।
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− |
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− | व्यासपूर्णिमा सम्पादकमण्डल
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− |
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− | युगाब्दू ५११८
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− |
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− | ९ जुलाई २०२१७
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| श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य | | श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य |
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Line 362: |
| से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं | | से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं |
| | | |
− | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पडे और | + | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पड़े और |
| | | |
| गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके | | गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके |
Line 488: |
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| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की |
| | | |
− | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का | + | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का |
| | | |
| दायित्व, अनुप्रश्न | | दायित्व, अनुप्रश्न |
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| 8. | | 8. |
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− | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, | + | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, |
| | | |
| विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , | | विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , |
Line 1,378: |
Line 1,358: |
| उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका | | उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका |
| | | |
− | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या | + | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या |
| | | |
| चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे | | चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे |
Line 1,724: |
Line 1,704: |
| और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, | | और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, |
| | | |
− | प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से | + | प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से |
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Line 1,730: |
Line 1,710: |
| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
| | | |
− | परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं | + | परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं |
| | | |
| है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना | | है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना |
Line 1,736: |
Line 1,716: |
| अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे | | अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे |
| | | |
− | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी | + | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी |
| | | |
| है। | | है। |
Line 1,746: |
Line 1,726: |
| प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित | | प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित |
| | | |
− | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात् चेतन | + | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात् चेतन |
| | | |
− | और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब | + | और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब |
| | | |
| दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ | | दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ |
| | | |
− | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि | + | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि |
| | | |
| ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । | | ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । |
Line 1,772: |
Line 1,752: |
| oft. rai. at. 23/28 | | oft. rai. at. 23/28 |
| | | |
− | चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन | + | चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन |
| | | |
| प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप | | प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप |
Line 2,160: |
Line 2,140: |
| समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत | | समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत |
| | | |
− | के सामान्य लोगों के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की | + | के सामान्य लोगोंं के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की |
| | | |
| दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान | | दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान |
Line 2,186: |
Line 2,166: |
| हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर | | हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर |
| | | |
− | में सर्वसामान्य लोगों से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि | + | में सर्वसामान्य लोगोंं से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि |
| | | |
| शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित | | शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित |
Line 2,208: |
Line 2,188: |
| शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने | | शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने |
| | | |
− | वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगों को | + | वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगोंं को |
| | | |
| मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी | | मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी |
Line 2,242: |
Line 2,222: |
| अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित | | अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित |
| | | |
− | लोगों की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
| + | लोगोंं की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ? |
| | | |
| हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब | | हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब |
Line 2,254: |
Line 2,234: |
| आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या | | आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या |
| | | |
− | शिक्षित लोगों की है और शिक्षित लोगों द्वारा निर्मित भी है । | + | शिक्षित लोगोंं की है और शिक्षित लोगोंं द्वारा निर्मित भी है । |
| | | |
− | कारण यह है कि परम्परा से लोगों को जो दृष्टि प्राप्त होती है | + | कारण यह है कि परम्परा से लोगोंं को जो दृष्टि प्राप्त होती है |
| | | |
| उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से | | उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से |
Line 2,294: |
Line 2,274: |
| सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग | | सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग |
| | | |
− | का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगों की | + | का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगोंं की |
| | | |
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Line 2,328: |
Line 2,308: |
| आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर | | आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर |
| | | |
− | युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगों की समझ | + | युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगोंं की समझ |
| | | |
− | और मानस, लोगों की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन | + | और मानस, लोगोंं की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन |
| | | |
| हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था | | हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था |
Line 2,342: |
Line 2,322: |
| विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें | | विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें |
| | | |
− | लोगों तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
| + | लोगोंं तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह |
| | | |
| कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं | | कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं |
Line 2,348: |
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| था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य | | था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य |
| | | |
− | किया । सर्वसामान्य लोगों के दैनंदिन जीवन की छोटी से | + | किया । सर्वसामान्य लोगोंं के दैनंदिन जीवन की छोटी से |
| | | |
| छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना | | छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना |
Line 2,392: |
Line 2,372: |
| ०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe, | | ०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe, |
| | | |
− | व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगों को | + | व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगोंं को |
| | | |
| कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों | | कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों |
Line 2,440: |
Line 2,420: |
| माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये | | माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये |
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− | सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस | + | सारी बातें परम्परा के रूप में लोगोंं के व्यवहार में और मानस |
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Line 2,450: |
Line 2,430: |
| लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा | | लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा |
| | | |
− | व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगों में | + | व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगोंं में |
| | | |
− | इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगों की स्थिति | + | इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगोंं की स्थिति |
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| ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते | | ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते |
| | | |
− | हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने | + | हैं परन्तु शिक्षित लोगोंं ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने |
| | | |
| नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई | | नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई |
Line 2,628: |
Line 2,608: |
| ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये | | ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये |
| | | |
− | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी | + | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । तथापि |
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− | शिक्षित लोगों को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण | + | शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण |
| | | |
| यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो | | यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो |
Line 2,640: |
Line 2,620: |
| 2 ५. | | 2 ५. |
| | | |
− | शिक्षित लोगों के सहयोग की | + | शिक्षित लोगोंं के सहयोग की |
| | | |
| आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत | | आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत |
Line 2,715: |
Line 2,695: |
| कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया | | कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया |
| | | |
− | था। कुछ लोगों ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में | + | था। कुछ लोगोंं ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में |
| | | |
− | व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगों को अपने | + | व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगोंं को अपने |
| | | |
| देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ | | देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ |
Line 3,141: |
Line 3,121: |
| वे कहने लगे... | | वे कहने लगे... |
| | | |
− | वेद हमेशा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार | + | वेद सदा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार |
| | | |
− | धनधान्य से हमेशा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का | + | धनधान्य से सदा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का |
| | | |
| आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास | | आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास |
Line 3,149: |
Line 3,129: |
| ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है । | | ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है । |
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− | मनुष्य भी हमेशा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के | + | मनुष्य भी सदा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के |
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| लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न, | | लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न, |
Line 3,249: |
Line 3,229: |
| हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा | | हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा |
| | | |
− | है, हमेशा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है | + | है, सदा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है |
| | | |
| परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी | | परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी |
Line 3,267: |
Line 3,247: |
| a | | | a | |
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− | लोगों के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
| + | लोगोंं के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों |
| | | |
| में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है, | | में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है, |
Line 3,273: |
Line 3,253: |
| उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त | | उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त |
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− | लोगों की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
| + | लोगोंं की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती |
| | | |
| है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा | | है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा |
Line 3,347: |
Line 3,327: |
| तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... | | तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... |
| | | |
− | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है फिर भी मेरा | + | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है तथापि मेरा |
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| मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । | | मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । |
Line 3,443: |
Line 3,423: |
| इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास | | इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास |
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− | को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगों ने | + | को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगोंं ने |
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| आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित | | आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित |
Line 3,641: |
Line 3,621: |
| इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो | | इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो |
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− | रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगों ने भाग लिया | + | रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगोंं ने भाग लिया |
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| था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में | | था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में |