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दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से
 
दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से
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उसने व्यापार शुरु किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन
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उसने व्यापार आरम्भ किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन
    
और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं
 
और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं
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से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
 
से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगोंं को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
    
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
 
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
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शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास शुरू किये । उनका तीसरा उद्देश्य था
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शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास आरम्भ किये । उनका तीसरा उद्देश्य था
    
भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था ।
 
भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था ।
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यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं ।
 
यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं ।
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भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व शुरू हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा
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भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा
    
रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास
 
रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास
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पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें
 
पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें
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बहुत पुरुषार्थ करना पडेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात्‌ पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर
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बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात्‌ पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर
    
का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा
 
का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा
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ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
 
ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगों तक पहुंचना हुआ । इसी
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगोंं तक पहुंचना हुआ । इसी
    
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
 
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
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आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
 
आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगों की सूची भी इतनी लम्बी है कि
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगोंं की सूची भी इतनी लम्बी है कि
    
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
 
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
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v.
 
v.
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यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । फिर भी कुछ स्पष्टताओं की
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यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । तथापि कुछ स्पष्टताओं की
    
आवश्यकता है ।
 
आवश्यकता है ।
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विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
 
विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगों तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगोंं तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
    
पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
 
पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
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है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
 
है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
   −
अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
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अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगोंं को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
    
साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
 
साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
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इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है ।
 
इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है ।
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यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है फिर भी यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है ।
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यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है तथापि यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है ।
    
इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु
 
इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु
Line 308: Line 308:  
सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
 
सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
   −
इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
+
इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगोंं का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
    
जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
 
जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
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हम सबका सौभाग्य है कि इस ग्रन्थमाला का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघवालक
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माननीय मोहनजी भागवत के करकमलों से हो रहा है ।
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पुनश्च सभी परामर्शकों, मार्गदर्शकों, सहभागियों, सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह ग्रन्थमाला पाठकों
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के हाथों सौंप रहे हैं ।
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ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन, निरूपण शैली, रचना, भाषाशुद्धि की दृष्टि से दोष रहे ही होंगे । सम्पादकों की मर्यादा
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समझकर पाठक इसे क्षमा करें, स्वयं सुधार कर लें और उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें यही निवेदन हैं ।
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इति शुभम्‌ ।
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व्यासपूर्णिमा सम्पादकमण्डल
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युगाब्दू ५११८
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९ जुलाई २०२१७
      
श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य
 
श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य
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से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं
 
से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं
   −
अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पडे और
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अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पड़े और
    
गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके
 
गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके
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सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की
 
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की
   −
आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का
+
आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का
    
दायित्व, अनुप्रश्न
 
दायित्व, अनुप्रश्न
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8.
 
8.
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७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम,
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७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम,
    
विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) ,
 
विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) ,
Line 1,168: Line 1,148:  
यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है ।
 
यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है ।
   −
कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त इसलिए है
+
कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त अतः है
    
क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है ।
 
क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है ।
Line 1,293: Line 1,273:  
अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन
 
अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन
   −
को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । इसलिए हमने
+
को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । अतः हमने
    
शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट
 
शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट
Line 1,378: Line 1,358:  
उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका
 
उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका
   −
वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या
+
वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या
    
चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात्‌ असत्य है । ये सारे
 
चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात्‌ असत्य है । ये सारे
Line 1,668: Line 1,648:  
नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी
 
नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी
   −
भी प्रकार से शुरू हो भी गई हो तो भी समय के साथ
+
भी प्रकार से आरम्भ हो भी गई हो तो भी समय के साथ
    
अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है
 
अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है
Line 1,724: Line 1,704:  
और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है,
 
और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है,
   −
प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से
+
प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से
    
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Line 1,730: Line 1,710:  
we : १ तत्त्वचिन्तन
 
we : १ तत्त्वचिन्तन
   −
परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं
+
परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं
    
है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना
 
है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना
Line 1,736: Line 1,716:  
अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे
 
अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे
   −
उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी
+
उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी
    
है।
 
है।
Line 1,746: Line 1,726:  
प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित
 
प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित
   −
होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात्‌ चेतन
+
होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात्‌ चेतन
   −
और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब
+
और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब
    
दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ
 
दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ
   −
भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि
+
भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि
    
ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है ।
 
ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है ।
Line 1,772: Line 1,752:  
oft. rai. at. 23/28
 
oft. rai. at. 23/28
   −
चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन
+
चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन
    
प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप
 
प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप
Line 2,160: Line 2,140:  
समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
 
समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
   −
के सामान्य लोगों के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
+
के सामान्य लोगोंं के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
    
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
 
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
Line 2,186: Line 2,166:  
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
 
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
   −
में सर्वसामान्य लोगों से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
+
में सर्वसामान्य लोगोंं से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
    
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
 
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
Line 2,208: Line 2,188:  
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
 
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
   −
वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगों को
+
वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगोंं को
    
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
 
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
Line 2,242: Line 2,222:  
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
 
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
   −
लोगों की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
+
लोगोंं की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
    
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
 
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
Line 2,250: Line 2,230:  
आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर
 
आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर
   −
ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण शुरू किया...
+
ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण आरम्भ किया...
    
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
 
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
   −
शिक्षित लोगों की है और शिक्षित लोगों द्वारा निर्मित भी है ।
+
शिक्षित लोगोंं की है और शिक्षित लोगोंं द्वारा निर्मित भी है ।
   −
कारण यह है कि परम्परा से लोगों को जो दृष्टि प्राप्त होती है
+
कारण यह है कि परम्परा से लोगोंं को जो दृष्टि प्राप्त होती है
    
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
 
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
Line 2,294: Line 2,274:  
सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
 
सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
   −
का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगों की
+
का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगोंं की
    
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Line 2,328: Line 2,308:  
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
 
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
   −
युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगों की समझ
+
युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगोंं की समझ
   −
और मानस, लोगों की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
+
और मानस, लोगोंं की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
    
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
 
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
Line 2,342: Line 2,322:  
विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
 
विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
   −
लोगों तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
+
लोगोंं तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
    
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
 
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
Line 2,348: Line 2,328:  
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
 
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
   −
किया । सर्वसामान्य लोगों के दैनंदिन जीवन की छोटी से
+
किया । सर्वसामान्य लोगोंं के दैनंदिन जीवन की छोटी से
    
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
 
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
Line 2,392: Line 2,372:  
०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
 
०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
   −
व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगों को
+
व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगोंं को
    
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
 
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
Line 2,440: Line 2,420:  
माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये
 
माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये
   −
सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस
+
सारी बातें परम्परा के रूप में लोगोंं के व्यवहार में और मानस
    
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Line 2,450: Line 2,430:  
लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
 
लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
   −
व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगों में
+
व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगोंं में
   −
इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगों की स्थिति
+
इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगोंं की स्थिति
    
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
 
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
   −
हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
+
हैं परन्तु शिक्षित लोगोंं ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
    
नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
 
नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
Line 2,594: Line 2,574:  
धार्मिकों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
 
धार्मिकों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
   −
मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना शुरू किया । परिवर्तन की यह
+
मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना आरम्भ किया । परिवर्तन की यह
    
प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है ।
 
प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है ।
Line 2,628: Line 2,608:  
ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये
 
ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये
   −
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी
+
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । तथापि
   −
शिक्षित लोगों को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
+
शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
    
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
 
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
Line 2,640: Line 2,620:  
2 ५.
 
2 ५.
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शिक्षित लोगों के सहयोग की
+
शिक्षित लोगोंं के सहयोग की
    
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
 
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
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कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
 
कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
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था। कुछ लोगों ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
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था। कुछ लोगोंं ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
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व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगों को अपने
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व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगोंं को अपने
    
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
 
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
Line 2,753: Line 2,733:  
की योजना बननी ही चाहिये |
 
की योजना बननी ही चाहिये |
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प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा शुरू हुई ।
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प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा आरम्भ हुई ।
    
कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने
 
कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने
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विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास
 
विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास
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दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? कया
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दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? क्या
    
यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की
 
यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की
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का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर
 
का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर
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विकासशील देश कहना शुरू हुआ है । परन्तु शब्द
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विकासशील देश कहना आरम्भ हुआ है । परन्तु शब्द
    
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उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं
 
उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं
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अपनी बात शुरू की ... शताब्दी में यूरोप में शुरू हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन
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अपनी बात आरम्भ की ... शताब्दी में यूरोप में आरम्भ हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन
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आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से शुरू हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत
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आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से आरम्भ हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत
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यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... शुरू है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ
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यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... आरम्भ है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ
    
मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन्‍्स ने गॉड पार्टिकल की भी
 
मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन्‍्स ने गॉड पार्टिकल की भी
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वे कहने लगे...
 
वे कहने लगे...
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वेद हमेशा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार
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वेद सदा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार
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धनधान्य से हमेशा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का
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धनधान्य से सदा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का
    
आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास
 
आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास
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ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है ।
 
ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है ।
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मनुष्य भी हमेशा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के
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मनुष्य भी सदा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के
    
लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न,
 
लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न,
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हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा
 
हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा
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है, हमेशा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है
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है, सदा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है
    
परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी
 
परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी
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a |
 
a |
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लोगों के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
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लोगोंं के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
    
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
 
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
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उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
 
उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
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लोगों की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
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लोगोंं की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
    
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
 
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
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तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ...
 
तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ...
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मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है फिर भी मेरा
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मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है तथापि मेरा
    
मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है ।
 
मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है ।
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इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
 
इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
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को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगों ने
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को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगोंं ने
    
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
 
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
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दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े
 
दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े
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आठ बजे सभा शुरू हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना
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आठ बजे सभा आरम्भ हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना
    
स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान
 
स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान
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नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही
 
नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही
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प्रस्तुति शुरू की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता
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प्रस्तुति आरम्भ की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता
    
धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी
 
धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी
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इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
 
इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगों ने भाग लिया
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगोंं ने भाग लिया
    
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में
 
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में

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