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यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा
 
यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा
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के भारतीयकरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब
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के धार्मिककरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब
    
आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ
 
आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ
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दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से
 
दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से
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उसने व्यापार शुरु किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन
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उसने व्यापार आरम्भ किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन
    
और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं
 
और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं
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से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
 
से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगोंं को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
    
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
 
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
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शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास शुरू किये । उनका तीसरा उद्देश्य था
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शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास आरम्भ किये । उनका तीसरा उद्देश्य था
    
भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था ।
 
भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था ।
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यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं ।
 
यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं ।
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भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व शुरू हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा
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भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा
    
रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास
 
रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास
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हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है ।
 
हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है ।
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आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु भारतीय शिक्षा की नहीं । अर्थात्‌ एक छोटा वर्ग है जो
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आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु धार्मिक शिक्षा की नहीं । अर्थात्‌ एक छोटा वर्ग है जो
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भारतीय शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा
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धार्मिक शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा
    
के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री
 
के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री
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अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय,
 
अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय,
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महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । भारतीय शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों
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महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । धार्मिक शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों
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की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और
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की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और
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योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु
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योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु
    
देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं ।
 
देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं ।
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जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग भारतीय शिक्षा के
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जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग धार्मिक शिक्षा के
    
प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता
 
प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता
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एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का,
 
एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का,
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उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और भारतीय शिक्षा दोनों के
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उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और धार्मिक शिक्षा दोनों के
    
पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की
 
पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की
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आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है ।
 
आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है ।
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शिक्षा का भारतीयकरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का
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शिक्षा का धार्मिककरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का
    
विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो
 
विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो
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वर्तमान ढाँचे में ही भारतीय जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये
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वर्तमान ढाँचे में ही धार्मिक जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये
    
प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन
 
प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन
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पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें
 
पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें
   −
बहुत पुरुषार्थ करना पडेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात्‌ पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर
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बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात्‌ पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर
    
का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा
 
का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा
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की भारतीय संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें
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की धार्मिक संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें
    
कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की
 
कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की
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हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से
 
हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से
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शिक्षा को मुक्त कर उसे भारतीय बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के भारतीयकरण
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शिक्षा को मुक्त कर उसे धार्मिक बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के धार्मिककरण
    
का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा ।
 
का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा ।
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एक बार भारतीय शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका
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एक बार धार्मिक शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका
    
है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण
 
है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण
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पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक
 
पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक
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ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो भारतीय जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत
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ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो धार्मिक जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत
    
के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में
 
के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में
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में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है ।
 
में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है ।
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इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के भारतीय करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है ।
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इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के धार्मिक करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है ।
    
3.
 
3.
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ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
 
ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगों तक पहुंचना हुआ । इसी
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगोंं तक पहुंचना हुआ । इसी
    
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
 
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
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प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल भारतीय स्तर
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प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल धार्मिक स्तर
    
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आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
 
आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगों की सूची भी इतनी लम्बी है कि
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगोंं की सूची भी इतनी लम्बी है कि
    
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
 
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
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v.
 
v.
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यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । फिर भी कुछ स्पष्टताओं की
+
यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । तथापि कुछ स्पष्टताओं की
    
आवश्यकता है ।
 
आवश्यकता है ।
   −
-. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है ।
+
-. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है ।
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-. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है ।
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-. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है ।
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-. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के भारतीय प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती
+
-. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के धार्मिक प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती
    
है ।
 
है ।
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-. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को भारतीय संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप
+
-. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को धार्मिक संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप
    
Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है ।
 
Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है ।
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हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है ।
 
हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है ।
   −
-. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से भारतीय मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने
+
-. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से धार्मिक मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने
    
का प्रयास करती है ।
 
का प्रयास करती है ।
   −
अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का भारतीयकरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की
+
अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का धार्मिककरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की
    
चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों
 
चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों
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पाठ्यक्रमों की चर्चा नहीं होती क्योंकि उनके विषय में तो उन उन विषयों के शास्त्रों के जानकार विद्वानों की भूमिका होती
 
पाठ्यक्रमों की चर्चा नहीं होती क्योंकि उनके विषय में तो उन उन विषयों के शास्त्रों के जानकार विद्वानों की भूमिका होती
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है शिक्षाशास्र विषय के अध्यापकों की नहीं । आश्चर्य की बात यह है कि शिक्षाशास्त्र अपने आपको अध्ययन और
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है शिक्षाशास्त्र विषय के अध्यापकों की नहीं । आश्चर्य की बात यह है कि शिक्षाशास्त्र अपने आपको अध्ययन और
    
अध्यापन तक सीमित रखता है, क्या पढाना है उसके विषय में अपने आपको जिम्मेदार नहीं मानता । अर्थात्‌ शिक्षा
 
अध्यापन तक सीमित रखता है, क्या पढाना है उसके विषय में अपने आपको जिम्मेदार नहीं मानता । अर्थात्‌ शिक्षा
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शिक्षा के भारतीयकरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है
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शिक्षा के धार्मिककरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है
    
और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से
 
और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से
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विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
 
विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगों तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगोंं तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
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पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुट्म्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
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पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
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है इसलिये भारतीयकरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
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है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
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अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
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अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगोंं को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
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साथ साथ विचार करना होगा । भारतीयकरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
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साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
    
इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है ।
 
इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है ।
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यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है फिर भी यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है ।
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यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है तथापि यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है ।
    
इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु
 
इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु
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सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
 
सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
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इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का भारतीय शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
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इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगोंं का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
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जो भारतीय शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
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जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
    
प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की
 
प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की
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हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी ।
 
हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी ।
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शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के भारतीयकरण के
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शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के धार्मिककरण के
    
प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर
 
प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर
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जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य
 
जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य
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पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । भारतीय शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की
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पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । धार्मिक शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की
    
दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह
 
दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह
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हम सबका सौभाग्य है कि इस ग्रन्थमाला का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघवालक
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माननीय मोहनजी भागवत के करकमलों से हो रहा है ।
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पुनश्च सभी परामर्शकों, मार्गदर्शकों, सहभागियों, सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह ग्रन्थमाला पाठकों
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के हाथों सौंप रहे हैं ।
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ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन, निरूपण शैली, रचना, भाषाशुद्धि की दृष्टि से दोष रहे ही होंगे । सम्पादकों की मर्यादा
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समझकर पाठक इसे क्षमा करें, स्वयं सुधार कर लें और उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें यही निवेदन हैं ।
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इति शुभम्‌ ।
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व्यासपूर्णिमा सम्पादकमण्डल
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युगाब्दू ५११८
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९ जुलाई २०२१७
      
श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य
 
श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य
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से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं
 
से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं
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अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पडे और
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अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पड़े और
    
गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके
 
गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके
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त्रिस्तरीय कार्य का यथार्थ बोध होता है ।
 
त्रिस्तरीय कार्य का यथार्थ बोध होता है ।
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इस अंक यन्त्र में ज्ञानशक्ति सांख्यब्रह्म है । बीच के स्तर में वलयांकित रेखाओं से जुड़े हुए अंक क्रियाशक्ति के हलचल
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इस अंक यन्त्र में ज्ञानशक्ति सांख्यब्रह्म है । मध्य के स्तर में वलयांकित रेखाओं से जुड़े हुए अंक क्रियाशक्ति के हलचल
    
की दिशा स्पष्ट करते हैं । चक्राकार एवं वलयांकित रेखाएँ शक्ति के केंद्रीकरण की सूचक हैं, जो समग्रता का संकेत होकर
 
की दिशा स्पष्ट करते हैं । चक्राकार एवं वलयांकित रेखाएँ शक्ति के केंद्रीकरण की सूचक हैं, जो समग्रता का संकेत होकर
Line 488: Line 468:  
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की
 
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की
   −
आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का
+
आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का
    
दायित्व, अनुप्रश्न
 
दायित्व, अनुप्रश्न
Line 500: Line 480:  
और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण
 
और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण
   −
'विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१
+
'विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१
    
समन्वित विकास
 
समन्वित विकास
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समावर्तन उपदेश, जीवन का अधिष्ठान सत्य और धर्म, गृहस्थ के
 
समावर्तन उपदेश, जीवन का अधिष्ठान सत्य और धर्म, गृहस्थ के
   −
कार्य अथर्जिन एवं सन्तानोत्पत्ति, अध्ययन प्रयोग से परिपक्क होता
+
कार्य अर्थार्जन एवं सन्तानोत्पत्ति, अध्ययन प्रयोग से परिपक्क होता
    
है, व्यवहार जीवन के अवरोध, संस्कार देने के कौशल, अपने
 
है, व्यवहार जीवन के अवरोध, संस्कार देने के कौशल, अपने
Line 671: Line 651:  
३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत
 
३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत
   −
में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. भारतीय वातावरण में शिशुशिक्षा
+
में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. धार्मिक वातावरण में शिशुशिक्षा
    
का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति
 
का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति
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8.
 
8.
   −
७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम,
+
७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम,
    
विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) ,
 
विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) ,
Line 892: Line 872:  
३. चलना, ४. उठना, ४. सोना, २ (क) ज्ञानिन्द्रियाँ, १. आँख,
 
३. चलना, ४. उठना, ४. सोना, २ (क) ज्ञानिन्द्रियाँ, १. आँख,
   −
२. कान, ३. नाक, ४. जिद्दा, ५. त्वचा, २ (ख) कर्मेन्ट्रियाँ,
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२. कान, ३. नाक, ४. जिद्दा, ५. त्वचा, २ (ख) कर्मेन्द्रियाँ,
    
हाथ, १, फैंकना, ३. शारीरिक संतुलन व संचालन, ४. शरीर
 
हाथ, १, फैंकना, ३. शारीरिक संतुलन व संचालन, ४. शरीर
Line 1,023: Line 1,003:  
६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey
 
६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey
   −
पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं भारतीय दृष्टिकोण,
+
पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं धार्मिक दृष्टिकोण,
   −
पाश्चात्य दृष्टिकोण, भारतीय दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी
+
पाश्चात्य दृष्टिकोण, धार्मिक दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी
    
का सम्बन्ध
 
का सम्बन्ध
Line 1,077: Line 1,057:  
महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान,
 
महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान,
   −
१, हम है भारतीय गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर,
+
१, हम है धार्मिक गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर,
    
अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय
 
अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय
Line 1,136: Line 1,116:  
तत्त्वचिन्तन
 
तत्त्वचिन्तन
   −
भारतीय ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की
+
धार्मिक ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की
   −
प्रस्तुति यहाँ की गई है । भारतीय ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी
+
प्रस्तुति यहाँ की गई है । धार्मिक ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी
    
अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं
 
अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं
Line 1,144: Line 1,124:  
होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण
 
होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण
   −
भारतीय जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह
+
धार्मिक जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह
   −
होता है कि भारत का जनजीवन अभारतीय ज्ञानधारा से आप्लावित होता है ।
+
होता है कि भारत का जनजीवन अधार्मिक ज्ञानधारा से आप्लावित होता है ।
    
इससे बचना चाहिये । बचने का उपाय शिक्षा में ही प्राप्त हो सकता है । कारण
 
इससे बचना चाहिये । बचने का उपाय शिक्षा में ही प्राप्त हो सकता है । कारण
Line 1,162: Line 1,142:  
तत्त्वचिन्तन के इस खण्ड में समग्र विकास प्रतिमान की शब्दावली की
 
तत्त्वचिन्तन के इस खण्ड में समग्र विकास प्रतिमान की शब्दावली की
   −
व्याख्या की गई है । जहाँ आवश्यक है वहाँ अभारतीय अर्थ भी बताया गया
+
व्याख्या की गई है । जहाँ आवश्यक है वहाँ अधार्मिक अर्थ भी बताया गया
   −
है । परन्तु अभारतीय व्याख्याओं का विवेचन करना यह मुख्य लक्ष्य नहीं है ।
+
है । परन्तु अधार्मिक व्याख्याओं का विवेचन करना यह मुख्य लक्ष्य नहीं है ।
    
यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है ।
 
यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है ।
   −
कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त इसलिए है
+
कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त अतः है
    
क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है ।
 
क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है ।
Line 1,188: Line 1,168:  
३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83
 
३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83
   −
४... विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१
+
४... विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१
    
५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥
 
५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥
Line 1,213: Line 1,193:  
हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु,
 
हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु,
   −
भारतीय ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने
+
धार्मिक ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने
    
हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और
 
हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और
Line 1,219: Line 1,199:  
कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा
 
कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा
   −
भारतीय ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग
+
धार्मिक ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग
    
प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के
 
प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के
Line 1,229: Line 1,209:  
वर्षों की उसकी ज्ञानपर््परा । सर्व शास्त्रों के ज्ञाता,
 
वर्षों की उसकी ज्ञानपर््परा । सर्व शास्त्रों के ज्ञाता,
   −
जगत्कल्याणकारी ज्ञान के उपासक और ज्ञानपरम्परा को
+
जगतकल्याणकारी ज्ञान के उपासक और ज्ञानपरम्परा को
    
अक्षुण्ण रखने हेतु समर्थ शिष्यों का अध्यापन करने वाले
 
अक्षुण्ण रखने हेतु समर्थ शिष्यों का अध्यापन करने वाले
Line 1,273: Line 1,253:  
हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता
 
हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता
   −
है जो शत प्रतिशत भारतीय हो । शिक्षा का भारतीयकारण
+
है जो शत प्रतिशत धार्मिक हो । शिक्षा का धार्मिककारण
    
करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन
 
करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन
Line 1,293: Line 1,273:  
अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन
 
अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन
   −
को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । इसलिए हमने
+
को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । अतः हमने
    
शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट
 
शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट
Line 1,303: Line 1,283:  
में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक
 
में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक
   −
पक्ष का विचार करने से शिक्षा का भारतीयकरण नहीं
+
पक्ष का विचार करने से शिक्षा का धार्मिककरण नहीं
    
होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी
 
होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी
Line 1,309: Line 1,289:  
सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों
 
सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों
   −
पक्षों के भी भारतीयकरण की आवश्यकता है। ऐसी
+
पक्षों के भी धार्मिककरण की आवश्यकता है। ऐसी
   −
भारतीय व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे
+
धार्मिक व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे
    
शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया
 
शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया
Line 1,378: Line 1,358:  
उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका
 
उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका
   −
वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या
+
वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या
    
चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात्‌ असत्य है । ये सारे
 
चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात्‌ असत्य है । ये सारे
Line 1,388: Line 1,368:  
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है
 
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है
   −
भारतीय विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत
+
धार्मिक विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत
    
और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई
 
और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई
Line 1,394: Line 1,374:  
यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो
 
यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो
   −
मानती ही हैं । परन्तु भारतीय विचार विशेष रूप से यह
+
मानती ही हैं । परन्तु धार्मिक विचार विशेष रूप से यह
    
कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई
 
कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई
Line 1,668: Line 1,648:  
नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी
 
नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी
   −
भी प्रकार से शुरू हो भी गई हो तो भी समय के साथ
+
भी प्रकार से आरम्भ हो भी गई हो तो भी समय के साथ
    
अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है
 
अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है
Line 1,724: Line 1,704:  
और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है,
 
और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है,
   −
प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से
+
प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से
    
............. page-23 .............
 
............. page-23 .............
Line 1,730: Line 1,710:  
we : १ तत्त्वचिन्तन
 
we : १ तत्त्वचिन्तन
   −
परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं
+
परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं
    
है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना
 
है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना
Line 1,736: Line 1,716:  
अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे
 
अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे
   −
उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी
+
उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी
    
है।
 
है।
Line 1,746: Line 1,726:  
प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित
 
प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित
   −
होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात्‌ चेतन
+
होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात्‌ चेतन
   −
और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब
+
और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब
    
दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ
 
दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ
   −
भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि
+
भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि
    
ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है ।
 
ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है ।
Line 1,772: Line 1,752:  
oft. rai. at. 23/28
 
oft. rai. at. 23/28
   −
चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन
+
चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन
    
प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप
 
प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप
Line 2,088: Line 2,068:  
वृत्त बनता है वह विस्तृत होतेहोते
 
वृत्त बनता है वह विस्तृत होतेहोते
   −
वसुधैव कुट्म्बकम्‌ तक पहुँचता है । समग्रता की दृष्टि से
+
वसुधैव कुटुम्बकम्‌ तक पहुँचता है । समग्रता की दृष्टि से
    
जब अर्थव्यवस्था बनती है तब वह समाज की समृद्धि का
 
जब अर्थव्यवस्था बनती है तब वह समाज की समृद्धि का
Line 2,100: Line 2,080:  
समृद्धि का रक्षण और संवर्धन उसका लक्ष्य रहता है।
 
समृद्धि का रक्षण और संवर्धन उसका लक्ष्य रहता है।
   −
समग्रता की दृष्टि से जब व्यक्ति अथर्जिन करता है तब वह
+
समग्रता की दृष्टि से जब व्यक्ति अर्थार्जन करता है तब वह
    
समाज के लिये उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन को माध्यम
 
समाज के लिये उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन को माध्यम
Line 2,108: Line 2,088:  
किसीकी रोजगारी और स्वतन्त्रता का हरण न हो इसकी
 
किसीकी रोजगारी और स्वतन्त्रता का हरण न हो इसकी
   −
चिन्ता करता है, दान को अथर्जिन का अंग बनाता है।
+
चिन्ता करता है, दान को अर्थार्जन का अंग बनाता है।
    
समग्रता की दृष्टि से जब वह पंचमहाभूतों की ओर देखता है
 
समग्रता की दृष्टि से जब वह पंचमहाभूतों की ओर देखता है
Line 2,160: Line 2,140:  
समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
 
समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
   −
के सामान्य लोगों के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
+
के सामान्य लोगोंं के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
    
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
 
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
Line 2,186: Line 2,166:  
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
 
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
   −
में सर्वसामान्य लोगों से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
+
में सर्वसामान्य लोगोंं से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
    
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
 
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
Line 2,208: Line 2,188:  
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
 
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
   −
वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगों को
+
वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगोंं को
    
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
 
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
Line 2,242: Line 2,222:  
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
 
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
   −
लोगों की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
+
लोगोंं की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
    
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
 
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
Line 2,250: Line 2,230:  
आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर
 
आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर
   −
ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण शुरू किया...
+
ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण आरम्भ किया...
    
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
 
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
   −
शिक्षित लोगों की है और शिक्षित लोगों द्वारा निर्मित भी है ।
+
शिक्षित लोगोंं की है और शिक्षित लोगोंं द्वारा निर्मित भी है ।
   −
कारण यह है कि परम्परा से लोगों को जो दृष्टि प्राप्त होती है
+
कारण यह है कि परम्परा से लोगोंं को जो दृष्टि प्राप्त होती है
    
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
 
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
Line 2,294: Line 2,274:  
सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
 
सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
   −
का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगों की
+
का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगोंं की
    
............. page-27 .............
 
............. page-27 .............
Line 2,328: Line 2,308:  
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
 
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
   −
युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगों की समझ
+
युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगोंं की समझ
   −
और मानस, लोगों की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
+
और मानस, लोगोंं की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
    
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
 
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
Line 2,342: Line 2,322:  
विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
 
विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
   −
लोगों तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
+
लोगोंं तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
    
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
 
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
Line 2,348: Line 2,328:  
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
 
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
   −
किया । सर्वसामान्य लोगों के दैनंदिन जीवन की छोटी से
+
किया । सर्वसामान्य लोगोंं के दैनंदिन जीवन की छोटी से
    
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
 
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
Line 2,384: Line 2,364:  
इईंधनविवेक, समयविवेक, भावविवेक आदि सभी
 
इईंधनविवेक, समयविवेक, भावविवेक आदि सभी
   −
बातों का विचार किया । ब्रत, उपवास, स्वादसंयम,
+
बातों का विचार किया । व्रत, उपवास, स्वादसंयम,
    
अतिथिसत्कार, अन्नदान, उत्सव, त्योहार आदि
 
अतिथिसत्कार, अन्नदान, उत्सव, त्योहार आदि
Line 2,392: Line 2,372:  
०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
 
०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
   −
व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगों को
+
व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगोंं को
    
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
 
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
Line 2,400: Line 2,380:  
०... मनःसंयम, पर्यावरणसुरक्षा और सामाजिकता को एक
 
०... मनःसंयम, पर्यावरणसुरक्षा और सामाजिकता को एक
   −
साथ लेकर ब्रतों और त्योहारों की स्वना की ।
+
साथ लेकर व्रतों और त्योहारों की स्वना की ।
    
© आचारमूलक मूल्यव्यवस्था बनाई |
 
© आचारमूलक मूल्यव्यवस्था बनाई |
Line 2,438: Line 2,418:  
शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का
 
शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का
   −
माध्यम होती है । जब तक भारत में भारतीय शिक्षा चली ये
+
माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये
   −
सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस
+
सारी बातें परम्परा के रूप में लोगोंं के व्यवहार में और मानस
    
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Line 2,450: Line 2,430:  
लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
 
लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
   −
व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगों में
+
व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगोंं में
   −
इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगों की स्थिति
+
इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगोंं की स्थिति
    
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
 
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
   −
हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
+
हैं परन्तु शिक्षित लोगोंं ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
   −
नहीं देता । इसलिये भारतीय व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
+
नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
    
देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है |
 
देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है |
Line 2,504: Line 2,484:  
है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य
 
है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य
   −
होगा कैसे ? शिक्षा तो भारतीय बनाकर समाज को ठीक
+
होगा कैसे ? शिक्षा तो धार्मिक बनाकर समाज को ठीक
    
करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और
 
करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और
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we : १ तत्त्वचिन्तन
 
we : १ तत्त्वचिन्तन
   −
भारतीयों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
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धार्मिकों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
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मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना शुरू किया । परिवर्तन की यह
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मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना आरम्भ किया । परिवर्तन की यह
    
प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है ।
 
प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है ।
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परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष
 
परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष
   −
के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी भारतीय बनकर ही
+
के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी धार्मिक बनकर ही
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जी रहे हैं। भारतीय प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो
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जी रहे हैं। धार्मिक प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो
    
ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है ।
 
ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है ।
   −
परन्तु सामान्य जन अभी भी भारतीय मानस के साथ ही जी
+
परन्तु सामान्य जन अभी भी धार्मिक मानस के साथ ही जी
    
रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की
 
रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की
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ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये
 
ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये
   −
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी
+
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । तथापि
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शिक्षित लोगों को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
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शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
    
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
 
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
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2 ५.
 
2 ५.
   −
शिक्षित लोगों के सहयोग की
+
शिक्षित लोगोंं के सहयोग की
    
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
 
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
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कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
 
कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
   −
था। कुछ लोगों ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
+
था। कुछ लोगोंं ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
   −
व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगों को अपने
+
व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगोंं को अपने
    
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
 
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
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की योजना बननी ही चाहिये |
 
की योजना बननी ही चाहिये |
   −
प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा शुरू हुई ।
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प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा आरम्भ हुई ।
    
कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने
 
कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने
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विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास
 
विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास
   −
दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? कया
+
दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? क्या
    
यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की
 
यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की
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का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर
 
का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर
   −
विकासशील देश कहना शुरू हुआ है । परन्तु शब्द
+
विकासशील देश कहना आरम्भ हुआ है । परन्तु शब्द
    
............. page-32 .............
 
............. page-32 .............
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उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं
 
उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं
   −
अपनी बात शुरू की ... शताब्दी में यूरोप में शुरू हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन
+
अपनी बात आरम्भ की ... शताब्दी में यूरोप में आरम्भ हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन
   −
आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से शुरू हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत
+
आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से आरम्भ हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत
   −
यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... शुरू है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ
+
यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... आरम्भ है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ
    
मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन्‍्स ने गॉड पार्टिकल की भी
 
मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन्‍्स ने गॉड पार्टिकल की भी
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अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने
 
अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने
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भारतीय पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव
+
धार्मिक पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव
    
में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी
 
में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी
Line 3,141: Line 3,121:  
वे कहने लगे...
 
वे कहने लगे...
   −
वेद हमेशा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार
+
वेद सदा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार
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धनधान्य से हमेशा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का
+
धनधान्य से सदा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का
    
आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास
 
आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास
Line 3,149: Line 3,129:  
ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है ।
 
ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है ।
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मनुष्य भी हमेशा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के
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मनुष्य भी सदा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के
    
लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न,
 
लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न,
Line 3,237: Line 3,217:  
कम उत्पादन, रोजगार का
 
कम उत्पादन, रोजगार का
   −
अभाव, शिक्षितों को अथर्जिन के अवसरों का अभाव,
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अभाव, शिक्षितों को अर्थार्जन के अवसरों का अभाव,
    
पर्यावरण का प्रदूषण, झुग्गी झोंपड़ियों की संख्या में वृद्धि
 
पर्यावरण का प्रदूषण, झुग्गी झोंपड़ियों की संख्या में वृद्धि
Line 3,249: Line 3,229:  
हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा
 
हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा
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है, हमेशा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है
+
है, सदा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है
    
परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी
 
परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी
Line 3,267: Line 3,247:  
a |
 
a |
   −
लोगों के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
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लोगोंं के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
    
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
 
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
Line 3,273: Line 3,253:  
उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
 
उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
   −
लोगों की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
+
लोगोंं की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
    
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
 
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
Line 3,347: Line 3,327:  
तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ...
 
तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ...
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मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है फिर भी मेरा
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मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है तथापि मेरा
    
मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है ।
 
मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है ।
Line 3,443: Line 3,423:  
इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
 
इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
   −
को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगों ने
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को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगोंं ने
    
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
 
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
Line 3,485: Line 3,465:  
श्रीपति कल धर्म, संस्कृति और संस्कार का पक्ष रखेंगे ।
 
श्रीपति कल धर्म, संस्कृति और संस्कार का पक्ष रखेंगे ।
   −
आप सब्से निवेदन है कि आप भी इस विषय में चिन्तन
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आप सबसे निवेदन है कि आप भी इस विषय में चिन्तन
    
करें ।
 
करें ।
Line 3,495: Line 3,475:  
दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े
 
दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े
   −
आठ बजे सभा शुरू हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना
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आठ बजे सभा आरम्भ हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना
    
स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान
 
स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान
Line 3,537: Line 3,517:  
की संख्या कम थी परन्तु उनकी गुणवत्ता और प्रभाव बहुत. विश्वनियम हैं । इन विश्वनियमों को ही धर्म कहते हैं । आज
 
की संख्या कम थी परन्तु उनकी गुणवत्ता और प्रभाव बहुत. विश्वनियम हैं । इन विश्वनियमों को ही धर्म कहते हैं । आज
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था । वेद, दर्शनशाख्र और उपनिषदों में उनकी श्रद्धा थी ।... हमने निहित स्वार्थों और अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत
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था । वेद, दर्शनशास्त्र और उपनिषदों में उनकी श्रद्धा थी ।... हमने निहित स्वार्थों और अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत
    
उन शास्त्रों को ही वे प्रमाण मानते थे । परम्परा में उनकी... ज्ञान के चलते केवल सम्प्रदायों को धर्म कहकर उसे कलह
 
उन शास्त्रों को ही वे प्रमाण मानते थे । परम्परा में उनकी... ज्ञान के चलते केवल सम्प्रदायों को धर्म कहकर उसे कलह
Line 3,555: Line 3,535:  
विश्वनियम बनकर सृष्टि की धारणा करता है उसी प्रकार वह
 
विश्वनियम बनकर सृष्टि की धारणा करता है उसी प्रकार वह
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शाख्रनियम और लोकनियम बनकर समाज की धारणा करता
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शास्त्रनियम और लोकनियम बनकर समाज की धारणा करता
    
नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही
 
नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही
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प्रस्तुति शुरू की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता
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प्रस्तुति आरम्भ की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता
    
धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी
 
धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी
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इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
 
इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगों ने भाग लिया
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगोंं ने भाग लिया
    
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में
 
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में
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[[Category:धार्मिक शिक्षा ग्रंथमाला 2: शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान]]

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