Difference between revisions of "धार्मिक शिक्षा ग्रंथमाला 5: पर्व 2: विश्वस्थिति का आकलन - प्रस्तावना"
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प्रथम पर्व में हमने एक प्रकार की संकलित जानकारी देखी । अभी इस पर्व में समाज और सृष्टि की संकटग्रस्त स्थिति का आकलन विभिन्न विषयों के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत हुआ है । यान्त्रिक आकलन एक बात दर्शाता है और वैचारिक आकलन दूसरी । इस स्थिति में दोनों का क्या करना इसका विचार करने की आवश्यकता है। | प्रथम पर्व में हमने एक प्रकार की संकलित जानकारी देखी । अभी इस पर्व में समाज और सृष्टि की संकटग्रस्त स्थिति का आकलन विभिन्न विषयों के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत हुआ है । यान्त्रिक आकलन एक बात दर्शाता है और वैचारिक आकलन दूसरी । इस स्थिति में दोनों का क्या करना इसका विचार करने की आवश्यकता है। | ||
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− | + | धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे | |
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विश्व के सारे देश एकदूसरे को प्रभावित करते हुए ही अपना राष्ट्रजीवन चलाते हैं । संचार माध्यमों के कारण यह कार्य अत्यन्त तेजी से होता है । इसके परिणाम स्वरूप छोटी मोटी अनेक बातें झट से आन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप धारण कर लेती हैं, यहाँ तक कि वस्त्रों के फैशन और खानपान के स्वाद आन्तर्राष्ट्रीय बन जाते हैं । साथ ही गम्भीर बातों को फैलने में भी सुविधा बन जाती है । विश्व के अनेक संकट कहीं एक स्थान पर जन्मे और विश्वभर में फैल गये हैं। आज की गति, अकर्मण्यता, यन्त्रवाद आदि ने अनिष्टों को व्यापक और प्रभावी बनाने में बड़ा योगदान दिया है।
प्रथम पर्व में हमने एक प्रकार की संकलित जानकारी देखी । अभी इस पर्व में समाज और सृष्टि की संकटग्रस्त स्थिति का आकलन विभिन्न विषयों के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत हुआ है । यान्त्रिक आकलन एक बात दर्शाता है और वैचारिक आकलन दूसरी । इस स्थिति में दोनों का क्या करना इसका विचार करने की आवश्यकता है।
References
धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे