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=== [[तत्त्व एवं व्यवहार का सम्बन्ध]] ===
 
=== [[तत्त्व एवं व्यवहार का सम्बन्ध]] ===
अमूर्त और मूर्त का अन्तर, तत्त्व के अनुसार व्यवहार, व्यवहार हमेशा तत्त्व का अनुसरण करता है, तत्त्व सिद्धान्त है, व्यवहार उसका उदाहरण, व्यापक सन्दर्भ में जो करना चाहिये वह तत्त्व होता है, जो किया जाता है वह व्यवहार होता है, तत्त्व को छोड़कर व्यवहार करने के उदाहरण
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अमूर्त और मूर्त का अन्तर, तत्त्व के अनुसार व्यवहार, व्यवहार सदा तत्त्व का अनुसरण करता है, तत्त्व सिद्धान्त है, व्यवहार उसका उदाहरण, व्यापक सन्दर्भ में जो करना चाहिये वह तत्त्व होता है, जो किया जाता है वह व्यवहार होता है, तत्त्व को छोड़कर व्यवहार करने के उदाहरण
    
=== [[युगानुकूल और देशानुकूल]] ===
 
=== [[युगानुकूल और देशानुकूल]] ===
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== पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार ==
 
== पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार ==
इस ग्रन्थमाला में बार बार इस सूत्र का प्रतिपादन होता रहा है कि शिक्षा के दोकेन्द्र होते हैं । एक होता है विद्यालय और दूसरा घर । विद्यालय में शिक्षक औरविद्यार्थी मिलकर ज्ञानसाधना करते हैं और घर में दो पीढ़ियों में संस्कृति के हस्तान्तरण का कार्य होता है । इन दोनों केन्द्रों का भी परस्पर सम्बन्ध होता है । इन दो केन्द्रों का सम्बन्ध जोडने का माध्यम विद्यार्थी है जो घर में रहता है और विद्यालय में आता है । इन तथ्यों का कुछ विश्लेषणात्मक विचार इस पर्व में किया गया है । विद्यार्थी और शिक्षक के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम कौन से हैं, शिक्षक और विद्यार्थी के सम्बन्ध का आन्तरिक और बाह्य स्वरूप कैसे होता है, शिक्षा और शिक्षाकेन्द्र में शिक्षक का महत्त्व कितना है और उसके साथ शिक्षा से सम्बन्धित अन्य लोगों ने कैसा व्यवहार करना चाहिये, विद्यालय के सन्दर्भ में अपनी भूमिका कैसे निभानी चाहिये इसका विचार इस पर्व में किया गया है । यह केवल तात्तिक चर्चा नहीं है मुख्य रूप से व्यावहारिक ही है । शिक्षा के भारतीयकरण का स्वरूप किन प्रक्रियाओं से बनता है इसकी ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास यहाँ किया गया है ।
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इस ग्रन्थमाला में बार बार इस सूत्र का प्रतिपादन होता रहा है कि शिक्षा के दोकेन्द्र होते हैं । एक होता है विद्यालय और दूसरा घर । विद्यालय में शिक्षक औरविद्यार्थी मिलकर ज्ञानसाधना करते हैं और घर में दो पीढ़ियों में संस्कृति के हस्तान्तरण का कार्य होता है । इन दोनों केन्द्रों का भी परस्पर सम्बन्ध होता है । इन दो केन्द्रों का सम्बन्ध जोडने का माध्यम विद्यार्थी है जो घर में रहता है और विद्यालय में आता है । इन तथ्यों का कुछ विश्लेषणात्मक विचार इस पर्व में किया गया है । विद्यार्थी और शिक्षक के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम कौन से हैं, शिक्षक और विद्यार्थी के सम्बन्ध का आन्तरिक और बाह्य स्वरूप कैसे होता है, शिक्षा और शिक्षाकेन्द्र में शिक्षक का महत्त्व कितना है और उसके साथ शिक्षा से सम्बन्धित अन्य लोगोंं ने कैसा व्यवहार करना चाहिये, विद्यालय के सन्दर्भ में अपनी भूमिका कैसे निभानी चाहिये इसका विचार इस पर्व में किया गया है । यह केवल तात्तिक चर्चा नहीं है मुख्य रूप से व्यावहारिक ही है । शिक्षा के भारतीयकरण का स्वरूप किन प्रक्रियाओं से बनता है इसकी ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास यहाँ किया गया है ।
    
=== [[शिक्षा का केन्द्रबिन्दु विद्यार्थी]] ===
 
=== [[शिक्षा का केन्द्रबिन्दु विद्यार्थी]] ===
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=== [[शिक्षक का शिक्षकत्व है|शिक्षक का शिक्षकत्व]] ===
 
=== [[शिक्षक का शिक्षकत्व है|शिक्षक का शिक्षकत्व]] ===
विद्यार्थियों का भविष्य, कुछ चिन्ताजनक बातें, हमारे प्रयासों का स्वरूप, माता-पिता को क्या करना चाहिए, शिक्षकों का दायित्व, शिक्षकों को क्या करना चाहिये ?, शिक्षक प्रबोधन, बेचारा शिक्षक !, जड की नहीं चेतन की प्रतिष्ठा हो, शिक्षक के मन को पुनर्जीवित करना, शिक्षक प्रबोधन के बिन्दु व चरण, आदर्श शिक्षक, विद्यालय को अच्छे शिक्षक कैसे मिलेंगे, जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा, ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ?
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विद्यार्थियों का भविष्य, कुछ चिन्ताजनक बातें, हमारे प्रयासों का स्वरूप, माता-पिता को क्या करना चाहिए, शिक्षकों का दायित्व, शिक्षकों को क्या करना चाहिये ?, शिक्षक प्रबोधन, बेचारा शिक्षक !, जड़ की नहीं चेतन की प्रतिष्ठा हो, शिक्षक के मन को पुनर्जीवित करना, शिक्षक प्रबोधन के बिन्दु व चरण, आदर्श शिक्षक, विद्यालय को अच्छे शिक्षक कैसे मिलेंगे, जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा, ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ?
    
=== [[विद्यालय का सामाजिक दायित्व]] ===
 
=== [[विद्यालय का सामाजिक दायित्व]] ===

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