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अपनी सन्तानों की शिक्षा का दायित्व मातापिता का भी है, अतः उन्हें भी इसमें सहभागी बनाया जाय । जिस प्रकार शिशुसंगोपन और भोजन घर की माता के अधीन होता है उसी प्रकार दस वर्ष तक की आयु की शिक्षा मातापिता के अधीन होनी चाहिये । गृहस्थाश्रम चलाने की शिक्षा घर में ही प्राप्त हो सकती है इसलिये घर की शिक्षा को सम्पूर्ण शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग मानकर घर को एक विद्यालय के रूप में स्थापित करने का अभियान चलाना चाहिये । इस प्रकार गृहस्थाश्रम की शिक्षा घर में मातापिता के अधीन और अर्थार्जन की शिक्षा अर्थोत्पादन के क्षेत्र के अधीन कर दी जाय तो केवल ज्ञानार्जन की शिक्षा ही बचेगी जिसे विश्वविद्यालयों के अधीन की जा सकती है। विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र में जितनी जनसंख्या है उतनी जनसंख्या की सम्पूर्ण शिक्षा की जिम्मेदारी ले और सरकार इन्हें बी कोई सहायता न करें। समाज पर आधारित होकर ही विश्वविद्यालय ज्ञानक्षेत्र के विकास का काम करें । तब ज्ञान, संस्कार और अर्थार्जन तीनों मुक्त श्वास लेंगे ।
 
अपनी सन्तानों की शिक्षा का दायित्व मातापिता का भी है, अतः उन्हें भी इसमें सहभागी बनाया जाय । जिस प्रकार शिशुसंगोपन और भोजन घर की माता के अधीन होता है उसी प्रकार दस वर्ष तक की आयु की शिक्षा मातापिता के अधीन होनी चाहिये । गृहस्थाश्रम चलाने की शिक्षा घर में ही प्राप्त हो सकती है इसलिये घर की शिक्षा को सम्पूर्ण शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग मानकर घर को एक विद्यालय के रूप में स्थापित करने का अभियान चलाना चाहिये । इस प्रकार गृहस्थाश्रम की शिक्षा घर में मातापिता के अधीन और अर्थार्जन की शिक्षा अर्थोत्पादन के क्षेत्र के अधीन कर दी जाय तो केवल ज्ञानार्जन की शिक्षा ही बचेगी जिसे विश्वविद्यालयों के अधीन की जा सकती है। विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र में जितनी जनसंख्या है उतनी जनसंख्या की सम्पूर्ण शिक्षा की जिम्मेदारी ले और सरकार इन्हें बी कोई सहायता न करें। समाज पर आधारित होकर ही विश्वविद्यालय ज्ञानक्षेत्र के विकास का काम करें । तब ज्ञान, संस्कार और अर्थार्जन तीनों मुक्त श्वास लेंगे ।
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यह काम सरल तो नहीं ही है परन्तु असम्भव भी तो नहीं है । एक एक गाँव में ऐसे शिक्षकों से निवेदन किया जाय
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यह काम सरल तो नहीं ही है परन्तु असम्भव भी तो नहीं है । एक एक गाँव में ऐसे शिक्षकों से निवेदन किया जाय तो गाँव के बच्चों की शिक्षा की चिन्ता करे और मातापिता को भी अपने बच्चों की शिक्षा की चिन्ता करने में सहयोग करे।
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कदाचित प्रथम ऐसा करना पड़ेगा कि मातापिताओं के लिये विद्यालयों का प्रारम्भ करना पड़े क्योंकि बच्चों का संगोपन उनके लिये भी कठिन विषय बन गया है। साथ ही शिक्षकों के लिये विद्यालय शुरू किये जाय । शिक्षक और मातापिता को विद्यालय और घर चलाने के बारे में सक्षम बनाया जाय । धर्मकेन्द्र ऐसे विद्यालयों की जिम्मेदारी उठायें ।
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यह भारत के अनुरूप व्यवस्था होगी। अभी विचार करने में तो यह विचित्र और असम्भव सा लगता है परन्तु भारत के अन्तरंग में अभी भी भारत ही जिन्दा है इसलिये बहुत जल्दी इसका स्वीकार हो जायेगा । प्रजा के अन्तःकरण को सुख का अनुभव होगा और आशा पल्लवित होगी।
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विश्वविद्यालय के अध्यापकों की जिम्मेदारी सबसे अधिक होगी। उनकी वेतन की सुरक्षा समाप्त हो जायेगी। उन्हें समाज पर भरोसा रखना होगा । इतिहास कहता है और वर्तमान भी कहता है कि समाज गुरुओं को सम्मान और समृद्धि देने से कभी चूकता नहीं है परन्तु सरकार के जैसा लिखित करार यह नहीं हो सकता । लिखित करार की चाह रखने वाले के प्रति सम्मान नहीं हो सकता । भरोसा रखना ही एकमात्र उपाय है । परन्तु इससे कच्चे अध्यापक अपने आप क्षेत्र छोड देंगे । तब क्षेत्र की शुद्धि ही होगी।
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इस प्रकार अनेक पहलुओं पर एक साथ विचार कर, सम्बन्धित सभी पक्षों ने साथ मिलकर विचार कर शिक्षा को स्वतन्त्र और स्वायत्त बनाने की आवश्यकता है। ब्रिटीश शासन से मुक्ति तो तभी मिलेगी जब शिक्षा मुक्त होगी। तब तक हमारी स्वाधीनता भी तान्त्रिक (टेकनिकल) स्वाधीनता है, सार्थक नहीं।
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==== ४. अर्थनिर्पेक्ष शिक्षा ====
    
==References==
 
==References==
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