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उपासना जीवन का ऐसा अनिवार्य अंग है कि वह इष्टदेवता बन व्यक्ति के साथ, कुलदेवता बन कुल के साथ, ग्रामदेवता बन पूरे गाँव के साथ जुड़ गया। विभिन्न समूहों के विभिन्न सम्प्रदाय बने। सदाचार, सद्गुण, सहयोग, सेवाकार्य, उत्सव, मेले, सत्संग, कथा, कीर्तन, यात्रा, मन्दिर आदि के रूप में यह सम्प्रदायधर्म समाजव्यापी है। आचारधर्म का अन्य एक आयाम दान, अन्नसत्र, धर्मशाला, प्याऊ, जलाशयों का निर्माण आदि भी व्यापक रूप में प्रचलित हैं ।
 
उपासना जीवन का ऐसा अनिवार्य अंग है कि वह इष्टदेवता बन व्यक्ति के साथ, कुलदेवता बन कुल के साथ, ग्रामदेवता बन पूरे गाँव के साथ जुड़ गया। विभिन्न समूहों के विभिन्न सम्प्रदाय बने। सदाचार, सद्गुण, सहयोग, सेवाकार्य, उत्सव, मेले, सत्संग, कथा, कीर्तन, यात्रा, मन्दिर आदि के रूप में यह सम्प्रदायधर्म समाजव्यापी है। आचारधर्म का अन्य एक आयाम दान, अन्नसत्र, धर्मशाला, प्याऊ, जलाशयों का निर्माण आदि भी व्यापक रूप में प्रचलित हैं ।
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आज अन्य अच्छी बातों की तरह उपासना या सम्प्रदाय को भी विकृत बनाया गया है और विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है और विवाद का विषय बना दिया जाता है। जीवन धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता, यह बहुत सीधी सादी समझ की बात है परन्तु उसके बावजूद धर्मनिरपेक्षता का नारा दिया जाता है। इस नारे के लिए देश के संविधान की दुहाई दी जाती है परन्तु संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं है, पंथनिरपेक्ष शब्द है। फिर भी धर्म के नाम पर वाद विवाद खड़ा कर कोलाहल मचाया जाता है। पंथ अर्थात्‌ सम्प्रदाय भी हेय नहीं है परन्तु सर्वपंथसमादर का विवेक और सौजन्य छोड़कर उनके नाम पर झगड़े किए जाते हैं और सार्वजनिक वार्तालाप में उसे नकारा जाता है। यह स्थिति बहुत घातक है, इसका उपाय करने की आवश्यकता है।
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आज अन्य अच्छी बातों की तरह उपासना या सम्प्रदाय को भी विकृत बनाया गया है और विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है और विवाद का विषय बना दिया जाता है। जीवन धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता, यह बहुत सीधी सादी समझ की बात है परन्तु उसके बावजूद धर्मनिरपेक्षता का नारा दिया जाता है। इस नारे के लिए देश के संविधान की दुहाई दी जाती है परन्तु संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं है, पंथनिरपेक्ष शब्द है। तथापि धर्म के नाम पर वाद विवाद खड़ा कर कोलाहल मचाया जाता है। पंथ अर्थात्‌ सम्प्रदाय भी हेय नहीं है परन्तु सर्वपंथसमादर का विवेक और सौजन्य छोड़कर उनके नाम पर झगड़े किए जाते हैं और सार्वजनिक वार्तालाप में उसे नकारा जाता है। यह स्थिति बहुत घातक है, इसका उपाय करने की आवश्यकता है।
    
धर्मपुरुषार्थ साधना का विषय है। वह शिक्षा का मुख्य सन्दर्भ है। वह काम और अर्थ को नियंत्रित करता है और उन्हें प्रतिष्ठा देता है। यह मनुष्य का सर्व प्रकार से उन्नयन करता है। वह जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर मनुष्य को अग्रसर बनाता है। ऐसे धर्म की रक्षा करनी चाहिए। जब इसकी रक्षा हम करते हैं तो ऐसा धर्म फिर हमारी रक्षा करता है। धर्म की रक्षा करना हर मनुष्य का कर्तव्य है। महाभारत में बार बार अनेक मुखों से कहा गया है “यतोधर्मस्ततोजय:' अर्थात जहाँ धर्म है वहीं जय है। ऐसा यह सर्वदा सर्वरक्षक धर्म है जो मनुष्य के लिए सारी शक्ति लगाकर आचरणीय है ।
 
धर्मपुरुषार्थ साधना का विषय है। वह शिक्षा का मुख्य सन्दर्भ है। वह काम और अर्थ को नियंत्रित करता है और उन्हें प्रतिष्ठा देता है। यह मनुष्य का सर्व प्रकार से उन्नयन करता है। वह जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर मनुष्य को अग्रसर बनाता है। ऐसे धर्म की रक्षा करनी चाहिए। जब इसकी रक्षा हम करते हैं तो ऐसा धर्म फिर हमारी रक्षा करता है। धर्म की रक्षा करना हर मनुष्य का कर्तव्य है। महाभारत में बार बार अनेक मुखों से कहा गया है “यतोधर्मस्ततोजय:' अर्थात जहाँ धर्म है वहीं जय है। ऐसा यह सर्वदा सर्वरक्षक धर्म है जो मनुष्य के लिए सारी शक्ति लगाकर आचरणीय है ।

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