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− | धर्मवीरो लेखराम: (1858-1897 ई०) | + | धर्मवीरो लेखराम: <ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref>(1858-1897 ई०)<blockquote>वैदोदितो धर्म इहास्त्यभीष्टः, लोकस्य सर्वस्य हिताय नूनम्।</blockquote><blockquote>तस्य प्रचारे सततं प्रसक्तः, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्॥</blockquote>सारे संसार के कल्याण के लिये निश्चय से वेद में कहा गया धर्म अभीष्ट है, ऐसा समझकर वेद धर्म के प्रचार में निरन्तर लगे हुये श्री लेखराम जी सब के पूजनीय थे।<blockquote>अभ्यस्य भाषां यवनादिकानाम्, अधीत्य तेषां मतपुस्तकानि।</blockquote><blockquote>सत्यं विभीकः प्रथयन् यथार्थ, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्॥</blockquote>यवनादियों की भाषा को सीख कर और उन के मत की पुस्तकें पढ़कर निडर होकर यथार्थ सत्य का प्रचार करने वाले श्री लेखराम जी सब क पूज्य थे।<blockquote>छलस्य नामापि विवेद नासौ, भीतेर्लवोऽप्यास न तस्य चित्ते।</blockquote><blockquote>पाखण्डमुग्रं खलु खण्डयन् सः, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्॥</blockquote>वे छल के नाम तक से अपरिचित थे, उन के मन में लेश मात्र भी डर नहीं था, उन्होंने तीव्र रूप से पाखण्डों का खण्डन किया; ऐसे श्री लेखराम जी सब के पूज्य थे।<blockquote>लिलेख लेखान् स यथार्थनामा, तर्कस्य तर्कु सततं दधानः।</blockquote><blockquote>चरन् विशङ्को नरकेसरीव, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्॥</blockquote>उन्होंने अपने नाम को सार्थक करते हुये, तर्क रूप चाकू का प्रयोग निरन्तर कर कई लेख लिखे। नृसिंह (मनुष्यों में सिंह) के समान निर्भय होकर विचरण करने वाले श्री लेखराम जी सबके पूज्य थे।<blockquote>चचार भूमावभयः सुधीरः, सुखं न दुःखं गणयन् न चाभूत्।</blockquote><blockquote>धर्मप्रचारं विदधच्छूमेण, श्री लेखरामो महनीय आसीत्॥</blockquote>भारत भूमि में उन्होंने निर्भय होकर विचरण किया और सुख दुःख की परवाह नहीं की। उत्तम धैर्य से कष्ट सहते हुये,श्रमपूर्वक, धर्म का प्रचार करने वाले श्री लेखराम जी सबके पूज्य थे।<blockquote>व्यापादितो लवपुरे छुरिकारप्रहारैधूर्तेन केनचिदहो यवनेन यूना।</blockquote><blockquote>पराप्तोऽमरत्वपदवीं बलिदानतोऽसौ,,श्रीलेखरामविबुधो महनीय आसीत्॥</blockquote>पर, हा! दुःख है कि उन्हें किसी धूर्त, मत से अन्धे मुसलमान युवक ने लाहौर में छुरे से मार डाला। अपने बलिदान से अमर होने वाले वे विद्वान् लेखराम जी सबके पूज्य थे। |
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− | वैदोदितो धर्म इहास्त्यभीष्टः, लोकस्य सर्वस्य हिताय नूनम्। | |
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− | तस्य प्रचारे सततं प्रसक्तः, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्।। 38।। | |
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− | सारे संसार के कल्याण के लिये निश्चय से वेद में कहा गया | |
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− | धर्म अभीष्ट है, ऐसा समझकर वेद धर्म के प्रचार में निरन्तर लगे हुये | |
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− | श्री लेखराम जी सब के पूजनीय थे। | |
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− | अभ्यस्य भाषां यवनादिकानाम्, अधीत्य तेषां मतपुस्तकानि। | |
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− | सत्यं विभीकः प्रथयन् यथार्थ, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्।।३9॥। | |
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− | यवनादियों की भाषा को सीख कर और उन के मत की पुस्तकें पढ़कर | |
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− | निडर होकर यथार्थ सत्य का प्रचार करने वाले श्री लेखराम जी सब क पूज्य | |
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− | थे। | |
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− | छलस्य नामापि विवेद नासौ, भीतेर्लवोऽप्यास न तस्य चित्ते। | |
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− | पाखण्डमुग्रं खलु खण्डयन् सः, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्।।40॥ | |
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− | बे छल के नाम तक से अपरिचित थे, उन के मन में लेश मात्र
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− | भी डर नहीं था, उन्होंने तीव्र रूप से पाखण्डों का खण्डन किया; ऐसे | |
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− | श्री लेखराम जी सब के पूज्य थे। | |
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− | 'लिलेख लेखान् स यथार्थनामा, तर्कस्य तर्कु सततं दधानः।
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− | चरन् विशङ्को नरकेसरीव, श्रीलेखरामो महनीय आसीत्।।41। | |
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− | उन्होंने अपने नाम को सार्थक करते हुये, तर्क रूप चाकू का | |
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− | प्रयोग निरन्तर कर कई लेख लिखे। नृसिंह (मनुष्यों में सिंह) के समान निर्भय | |
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− | होकर विचरण करने वाले श्री लेखराम जी सबके पूज्य थे। | |
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− | चचार भूमावभयः सुधीरः, सुखं न दुःखं गणयन् न चाभूत्। | |
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− | धर्मप्रचारं विदधच्छूमेण, श्री लेखरामो महनीय आसीत्।।42।। | |
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− | भारत भूमि में उन्होंने निर्भय होकर विचरण किया और सुख दुःख | |
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− | की परवाह नहीं की। उत्तम धैर्य से कष्ट सहते हुये,श्रमपूर्वक, धर्म का प्रचार | |
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− | करने बाले श्री लेखराम जी सबके पूज्य थे। | |
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− | व्यापादितो लवपुरे छुरिकारप्रहारैधूर्तेन केनचिदहो यवनेन यूना। | |
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− | पराप्तोऽमरत्वपदवीं बलिदानतोऽसौ,,श्रीलेखरामविबुधो महनीय आसीत्।।4३॥। | |
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− | पर, हा! दुःख है कि उन्हें किसी धूर्त, मत से अन्धे जवान मुसलमान | |
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− | ने लाहौर में छुरे से मार डाला। अपने बलिदान से अमर होने वाले वे विद्वान् | |
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− | लेखराम जी सबके पूज्य थे। | |
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| ==References== | | ==References== |