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धर्मवीरो गुरुरर्जुनदेवः [१५७१-१६१४ ई०]
यो धर्ममार्गादू विचचाल नैव, सेहे तु कष्टानि भयानकानि।
प्राणाहुतिं धर्ममख्ेऽर्पयन्तं,नमामि भक्त्या गुरुमर्जुनं तम्।।30॥
जिन्होंने भयंकर कष्टों को सहन किया किन्तु जो धर्ममार्ग से कभी
विचलित नहीं हुए, धर्मयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति अर्पित करने
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वाले गुरु अर्जुनदेव जी को मैं भक्ति से नमस्कार करता हूँ।
जना नृशंसा निदधुः कटाहे, प्रक्षिप्तवन्तः स तथाप्यनार्तः।
तैलं तथोष्णं सिकताभियुक्तं, नमामि भक्त्या गुरुमर्जुनं तम्।।31
जिन्हें क्रूर पुरुषों ने तपते कड़ाह में डालकर उन के ऊपर गर्म रेत
और तेल फेंका, तो भी जो व्याकुल नहीं हुए, ऐसे गुरु अर्जुनदेव जी को
मैं भक्ति से नमस्कार करता हूँ।