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→‎समाज के लिये शिक्षा: लेख सम्पादित किया
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== समाज के लिये शिक्षा ==
 
== समाज के लिये शिक्षा ==
समाज के लिये शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं
+
समाज के लिये शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
 
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* सामाजिक समरसता
०... सामाजिक समरसता
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* सामाजिक सम्मान
 
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* सामाजिक सुरक्षा
सामाजिक सम्मान
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* सामाजिक समृद्धि
 
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* सामाजिक अस्मिता
सामाजिक सुरक्षा
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सामाजिक समृद्धि
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सामाजिक अस्मिता
      
=== सामाजिक समरसता ===
 
=== सामाजिक समरसता ===
समाज की स्चना, समाज की व्यवस्था बहुत जटिल
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समाज की स्चना, समाज की व्यवस्था बहुत जटिल और अटपटी होती है । कितने भिन्न भिन्न स्वभाव वाले लोग होते हैं । सबका अपना अपना स्वार्थ, अपनी अपनी महत्त्वाकांक्षायें, इच्छायें होती हैं । सब अपने अपने तरीके से इन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं । कोई सज्जन तो कोई दुर्जन, कोई चतुर तो कोई भोले, कोई गरीब तो कोई अमीर, कोई सीधे तो कोई टेढ़े, कोई बलशाली तो कोई दुर्बल, कोई सत्ताधीश तो कोई मजदूर, कोई बुद्धिमान तो कोई बुद्ध, ऐसे अनेक प्रकार के लोग समाज में रहते हैं । ये तो केवल व्यक्तिगत भेद हुए । सामुदायिक भेद भी तो कम नहीं होते हैं। अमीरों का एक वर्ग है तो गरीबों का दूसरा, शिक्षितों का एक वर्ग तो अशिक्षितों का दूसरा, राजनेताओं का एक वर्ग तो कर्मचारियों का दूसरा ऐसे अनेक वर्ग होते हैं। मजहबी संप्रदाय तो अनेक होते हैं । अलग अलग जातियाँ, अलग अलग भाषायें, अलग अलग राजकीय पक्ष ऐसे अनेक वर्ग समाज में होते हैं । इन सबके हित एकदूसरे से टकराते हैं । संस्कारों के अभाव में, समझ के अभाव में, कभी जानबूझकर, कभी अज्ञानवनश, कभी भय से कभी विवशता से, कभी स्वार्थ से कभी लालच से लोग एकदूसरे को, एक समुदाय दूसरे समुदाय को परेशान करता है और संघर्ष होता है । समाज में विद्वेष फैलता है । दंगे होते हैं, मारामारी होती है, खून भी होते हैं । भ्रष्टाचार और बलात्कार होते हैं। सही या गलत हेतुओं से प्रेरित होकर विभिन्न  
 
  −
और अटपटी होती है । कितने भिन्न भिन्न स्वभाव वाले लोग
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होते हैं । सबका अपना अपना स्वार्थ, अपनी अपनी
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महत्त्वाकांक्षायें, इच्छायें होती हैं । सब अपने अपने तरीके से
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इन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं । कोई सज्जन तो
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कोई दुर्जन, कोई चतुर तो कोई भोले, कोई गरीब तो कोई
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अमीर, कोई सीधे तो कोई टेढ़े, कोई बलशाली तो कोई
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दुर्बल, कोई सत्ताधीश तो कोई मजदूर, कोई बुद्धिमान तो
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कोई बुद्ध, ऐसे अनेक प्रकार के लोग समाज में रहते हैं । ये
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तो केवल व्यक्तिगत भेद हुए । सामुदायिक भेद भी तो कम
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नहीं होते हैं । अमीरों का एक वर्ग है तो गरीबों का दूसरा,
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शिक्षितों का एक वर्ग तो अशिक्षितों का दूसरा, राजनेताओं
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का एक वर्ग तो कर्मचारियों का दूसरा ऐसे अनेक वर्ग होते
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हैं । मजहबी संप्रदाय तो अनेक होते हैं । अलग अलग
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जातियाँ, अलग अलग भाषायें, अलग अलग राजकीय पक्ष
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ऐसे अनेक वर्ग समाज में होते हैं । इन सबके हित एकदूसरे
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से टकराते हैं । संस्कारों के अभाव में, समझ के अभाव में,
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कभी जानबूझकर, कभी अज्ञानवनश, कभी भय से कभी
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विवशता से, कभी स्वार्थ से कभी लालच से लोग एकदूसरे
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को, एक समुदाय दूसरे समुदाय को परेशान करता है और
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संघर्ष होता है । समाज में विट्रेष फैलता है । दंगे होते हैं,
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मारामारी होती है, खून भी होते हैं । भ्रष्टाचार और बलात्कार
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होते हैं। सही या गलत हेतुओं से प्रेरित होकर विभिन्न
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आन्दोलन होते हैं जो हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकार के... सीमा से बाहर सब एक हो जाते थे,
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होते हैं । समाज में असुरक्षा का वातावरण फैलता है । जातिरहित हो जाते थे, एक ही जाती के हो जाते थे । वह
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ऐसे मामलों को निपटाने के लिये कानून, न्यायालय, जाती होती थी तीर्थयात्रियों की । सौ वर्ष पूर्व के भारतीय
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पुलिस आदि व्यवस्थायें होती हैं । परंतु ये मामले कानून से... समाज की यह स्थिति थी । आज जातिभेद रोटीबेटी का
  −
 
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निपटने वाले होते नहीं हैं ऐसा हमारा सबका अनुभव है ।... निषेध और अस्पृश्यता के रूप में कदाचित दिखाई नहीं देता
  −
 
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भावात्मक बातें कानून से सुलझती ही नहीं हैं । मन के. है, परंतु वह कानून, नौकरियाँ, होटल, सिनेमा, वाहनों से
  −
 
  −
कारण से निर्मित समस्‍यायें मन के स्तर पर उपाय करने से ही... यात्रा आदि के कारण विवशता हो जाने के कारण से है ।
  −
 
  −
सुलझती हैं । वास्तव में इन सब विद्वेषों का मूल भेदभाव. मन में से वह गया नहीं है । शिक्षा के कारण जाती, वर्ण,
  −
 
  −
को बढ़ावा देने में ही होता है । इसलिए उसका उपाय... व्यवसाय आदि की अज्ञानजनित उपेक्षा के कारण भेद नहीं
  −
 
  −
समरसता निर्माण करना ही होता है । दिखाता है परंतु मन में से भेद्भाव गया नहीं है, वह भिन्न
     −
=== समरसता का स्वरूप ===
+
''आन्दोलन होते हैं जो हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकार के''
स्वरूपों में प्रकट होता है । इसको मिटाने के लिये शिक्षा को
     −
समाज में भेद तो रहेंगे ही । एक पदार्थ दूसरे से भिन्न... उहुँत गम्भीर प्रयास करने चाहिए । शिक्षित समाज समरस
+
''... सीमा से बाहर सब एक हो जाते थे,''
   −
होता है । यह हकीकत है की एक वृक्ष के असंख्य पत्तों में... समाज होता है इसलिए समरसता के अभाव को एक चुनौती
+
''होते हैं । समाज में असुरक्षा का वातावरण फैलता है । जातिरहित हो जाते थे, एक ही जाती के हो जाते थे । वह''
   −
भी एक पत्ता दूसरे पत्ते जैसा नहीं होता अतः समाज में हर के रूप में स्वीकार करना चाहिए ।
+
''ऐसे मामलों को निपटाने के लिये कानून, न्यायालय, जाती होती थी तीर्थयात्रियों की सौ वर्ष पूर्व के भारतीय''
   −
प्रकार की भिन्नता तो रहने ही वाली है समरसता के अभाव के दो सबसे भीषण कारक आज
+
''पुलिस आदि व्यवस्थायें होती हैं । परंतु ये मामले कानून से... समाज की यह स्थिति थी । आज जातिभेद रोटीबेटी का''
   −
भिन्नना को भेदभाव का कारण नहीं बनाना अपितु. प्रवर्तमान हैं । एक है अस्पृश्यता और दूसरा है साम्प्रदायिक
+
''निपटने वाले होते नहीं हैं ऐसा हमारा सबका अनुभव है ... निषेध और अस्पृश्यता के रूप में कदाचित दिखाई नहीं देता''
   −
उसका स्वीकार करना यह पहली शिक्षा है। भेद अथवा... संकुचितता । अस्पृश्यता सभ्य समाज का कलंक है|
+
''भावात्मक बातें कानून से सुलझती ही नहीं हैं । मन के. है, परंतु वह कानून, नौकरियाँ, होटल, सिनेमा, वाहनों से''
   −
भिन्नता होना स्वाभाविक है, भेद विविधता है, विविधता... वास्तव में विगत दो तीन सौ वर्षों में अस्पृश्यता ने समाज पर
+
''कारण से निर्मित समस्‍यायें मन के स्तर पर उपाय करने से ही... यात्रा आदि के कारण विवशता हो जाने के कारण से है ।''
   −
सुन्दरता की जनक है ऐसी दृष्टि विकसित करना महत्त्वपूर्ण... कहर ढाया है । वास्तव में भारत की परंपरागत वर्णव्यवस्था
+
''सुलझती हैं । वास्तव में इन सब विद्वेषों का मूल भेदभाव. मन में से वह गया नहीं है । शिक्षा के कारण जाती, वर्ण,''
   −
शिक्षा है । मन को इसके लिये साधना होता है । जीवन की... में शूद्र वर्ण कभी अस्पृश्य नहीं रहा है । उल्टे समाज की
+
''को बढ़ावा देने में ही होता है । इसलिए उसका उपाय... व्यवसाय आदि की अज्ञानजनित उपेक्षा के कारण भेद नहीं''
   −
सर्व अवस्थाओं में भेद को, अलगता को स्वीकार करने की .... आर्थिक समृद्धि कृषकों और कारीगरों पर ही निर्भर थी ।
+
''समरसता निर्माण करना ही होता है । दिखाता है परंतु मन में से भेद्भाव गया नहीं है, वह भिन्न''
   −
शिक्षा मन की शिक्षा का अंग होना चाहिए भिन्नता को न... कृषक वैश्य और कारीगर शूद्र वर्ण के थे । अस्पृश्य माने भी
+
=== ''समरसता का स्वरूप'' ===
 +
''स्वरूपों में प्रकट होता है इसको मिटाने के लिये शिक्षा को''
   −
केवल सहना अपितु उसका आदर करना सिखाना चाहिए । ... जाते थे तो केवल सफाई करने वाले लोग थे चांडाल
+
''समाज में भेद तो रहेंगे ही एक पदार्थ दूसरे से भिन्न... उहुँत गम्भीर प्रयास करने चाहिए शिक्षित समाज समरस''
   −
किसी भी व्यवसाय को a नहीं मानना, गरीबी की शरम अस्पृश्य थे ऐसा भगवान शंकराचार्य के समय का भी उल्लेख
+
''होता है । यह हकीकत है की एक वृक्ष के असंख्य पत्तों में... समाज होता है इसलिए समरसता के अभाव को एक चुनौती''
   −
नहीं मानना, धन, बल, सत्ता, शिक्षा आदि के मद में आकर... है परंतु यह अस्पृश्यता विट्रेष का कारण नहीं बनती थी
+
''भी एक पत्ता दूसरे पत्ते जैसा नहीं होता । अतः समाज में हर के रूप में स्वीकार करना चाहिए ''
   −
किसी की अवमानना नहीं करनी चाहिए किसीकी इन बातों .... क्योंकि वेदाध्ययन का अधिकार शूद्रों को भी था, तपश्चर्या
+
''प्रकार की भिन्नता तो रहने ही वाली है समरसता के अभाव के दो सबसे भीषण कारक आज''
   −
को देखकर दबना भी नहीं चाहिए | के परिणामस्वरूप वे उच्च वर्ण के भी हो सकते थे शूटर
+
''भिन्नना को भेदभाव का कारण नहीं बनाना अपितु. प्रवर्तमान हैं एक है अस्पृश्यता और दूसरा है साम्प्रदायिक''
   −
हमारी गाँव की परंपरा में जातिगत भेद भुलाने की... और अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों में सन्त भी हुए हैं
+
''उसका स्वीकार करना यह पहली शिक्षा है। भेद अथवा... संकुचितता । अस्पृश्यता सभ्य समाज का कलंक है|''
   −
बहुत अच्छी व्यवस्था थी । लोग जबतक गाँव के अन्दर. जिन्हें सर्व वर्ण के लोग आदर देते हैं । आत्मसाक्षात्कारी
+
''भिन्नता होना स्वाभाविक है, भेद विविधता है, विविधता... वास्तव में विगत दो तीन सौ वर्षों में अस्पृश्यता ने समाज पर''
   −
होते थे और अपने अपने व्यवसाय करते थे तबतक तो... महात्मा सभी वर्णों में थे । ऐसा होते हुए भी विगत तीन सौ
+
''सुन्दरता की जनक है ऐसी दृष्टि विकसित करना महत्त्वपूर्ण... कहर ढाया है । वास्तव में भारत की परंपरागत वर्णव्यवस्था''
   −
जातियाँ भिन्नता रखती थीं, परंतु जब वे तीर्थयात्रा पर जाते... वर्षों में अस्पृश्यो को दलित, पीडीत, पीछड़े आदि कहा
+
''शिक्षा है । मन को इसके लिये साधना होता है । जीवन की... में शूद्र वर्ण कभी अस्पृश्य नहीं रहा है । उल्टे समाज की''
   −
थे तब गाँव की सीमा से बाहर निकलते ही सब जातिभेद्‌ .. गया, उन पर अमानुषी अत्याचार किये गए और उन्हें अनेक
+
''सर्व अवस्थाओं में भेद को, अलगता को स्वीकार करने की .... आर्थिक समृद्धि कृषकों और कारीगरों पर ही निर्भर थी ।''
   −
भुला देते थे अर्थात मानते नहीं थे गाँव में जातिभेद के... अच्छी बातों से वंचित रखा गया समाज के तथाकथित
+
''शिक्षा मन की शिक्षा का अंग होना चाहिए भिन्नता को न... कृषक वैश्य और कारीगर शूद्र वर्ण के थे अस्पृश्य माने भी''
   −
कारण वे एकदूसरे की रोटी नहीं खाते थे या पानी भी नहीं. उच्च वर्णों के मद के कारण ही यह सब हुआ अब आज
+
''केवल सहना अपितु उसका आदर करना सिखाना चाहिए । ... जाते थे तो केवल सफाई करने वाले लोग थे । चांडाल''
   −
पीते थे, कदाचित अस्पृश्यता भी मानते थे परंतु गाँव की... कानून के कारण, नीतियों के कारण और ऊपर वर्णित की
+
''किसी भी व्यवसाय को a नहीं मानना, गरीबी की शरम अस्पृश्य थे ऐसा भगवान शंकराचार्य के समय का भी उल्लेख''
   −
गई है ऐसी व्यावहारिक विवशताओं के... व्यावसायिकों को निमंत्रित किया जाता था उनकी वस्तु
+
''नहीं मानना, धन, बल, सत्ता, शिक्षा आदि के मद में आकर... है परंतु यह अस्पृश्यता विट्रेष का कारण नहीं बनती थी''
   −
कारण अस्पृश्यता ऊपर से तो दिखाई नहीं देती है परंतु लोगों... केवल खरीदी नहीं जाती थी, उनका प्रथम सम्मान किया
+
''किसी की अवमानना नहीं करनी चाहिए । किसीकी इन बातों .... क्योंकि वेदाध्ययन का अधिकार शूद्रों को भी था, तपश्चर्या''
   −
के मनों में वह है । शिक्षा में अस्पृश्यता को मिटाने का, .... जाता था जिसके घर में विवाह होता था उसके घर की
+
''को देखकर दबना भी नहीं चाहिए | के परिणामस्वरूप वे उच्च वर्ण के भी हो सकते थे शूटर''
   −
वर्णद्वेष मिटाने का, जातिगत ट्रेष मिटाने का प्रावधान होना... स्थिति के हिसाब से सम्मानित किया जाता था । बाद में
+
''हमारी गाँव की परंपरा में जातिगत भेद भुलाने की... और अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों में सन्त भी हुए हैं''
   −
चाहिए मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, धर्मशिक्षा, अध्यात्मशिक्षा .. वस्तु ली जाती थी रिवाज तो ऐसा था की विवाह के
+
''बहुत अच्छी व्यवस्था थी लोग जबतक गाँव के अन्दर. जिन्हें सर्व वर्ण के लोग आदर देते हैं आत्मसाक्षात्कारी''
   −
आदि विषयों में इसके संबंध में पाठ्यविषय होने चाहिए । ये... अवसर पर गाँव के कम से कम पाँच व्यावसायिकों का तो
+
''होते थे और अपने अपने व्यवसाय करते थे तबतक तो... महात्मा सभी वर्णों में थे । ऐसा होते हुए भी विगत तीन सौ''
   −
केवल बौद्धिक स्वरूप के होना पर्याप्त नहीं है, वे. सम्मान होना ही चाहिए । तात्पर्य यह है की गाँव में
+
''जातियाँ भिन्नता रखती थीं, परंतु जब वे तीर्थयात्रा पर जाते... वर्षों में अस्पृश्यो को दलित, पीडीत, पीछड़े आदि कहा''
   −
व्यावहारिक स्वरूप के भी होने चाहिए | व्यवसाय कितना भी छोटा हो सब सम्मान के अधिकारी थे ।
+
''थे तब गाँव की सीमा से बाहर निकलते ही सब जातिभेद्‌ .. गया, उन पर अमानुषी अत्याचार किये गए और उन्हें अनेक''
   −
साम्प्रदायिक संकुचितता असहिष्णुता का रूप लेती we सामाजिक सम्मान मनुष्य की. मानसिक
+
''भुला देते थे अर्थात मानते नहीं थे । गाँव में जातिभेद के... अच्छी बातों से वंचित रखा गया । समाज के तथाकथित''
   −
है । अपने संप्रदाय का अनुसरण तो आग्रहपूर्वक करना... आवश्यकता है समाज में हमारी प्रतिष्ठा है, लोग हमें
+
''कारण वे एकदूसरे की रोटी नहीं खाते थे या पानी भी नहीं. उच्च वर्णों के मद के कारण ही यह सब हुआ अब आज''
   −
चाहिए परन्तु दूसरे संप्रदायों को हेय नहीं मानना चाहिए, बुलाते हैं, याद करते हैं, अपने कार्यक्रमों में सहभागी बनाते
+
''पीते थे, कदाचित अस्पृश्यता भी मानते थे परंतु गाँव की... कानून के कारण, नीतियों के कारण और ऊपर वर्णित की''
   −
उनका भी आदर करना चाहिए । यह मुद्दा संस्कृति विषयक... हैं यह सबके लिये संतोष देने वाली बात होती है इससे जो
+
''गई है ऐसी व्यावहारिक विवशताओं के... व्यावसायिकों को निमंत्रित किया जाता था उनकी वस्तु''
   −
पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए । सद्धाव निर्माण होता है उसमें से सामाजिक लज्जा का जन्म
+
''कारण अस्पृश्यता ऊपर से तो दिखाई नहीं देती है परंतु लोगों... केवल खरीदी नहीं जाती थी, उनका प्रथम सम्मान किया''
   −
अस्पृश्यता और जातिगत विट्रेषों को मिटाने के लिये होता है । यह लज्जा अनेक अनिष्टों को पैदा ही नहीं होने
+
''के मनों में वह है । शिक्षा में अस्पृश्यता को मिटाने का, .... जाता था । जिसके घर में विवाह होता था उसके घर की''
   −
कभी कभी जाती और वर्ण को मिटाने का आग्रह किया... देती अनेक अनाचार इससे रुक जाते हैं और समाज की
+
''वर्णद्वेष मिटाने का, जातिगत ट्रेष मिटाने का प्रावधान होना... स्थिति के हिसाब से सम्मानित किया जाता था बाद में''
   −
जाता है परन्तु भेदभाव मिटाने के लिये भेद मिटाये नहीं. संस्कारिता बनी रहती है
+
''चाहिए मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, धर्मशिक्षा, अध्यात्मशिक्षा .. वस्तु ली जाती थी रिवाज तो ऐसा था की विवाह के''
   −
जाते , विद्रेष मिटाने के लिये जाती और वर्णों को मिटाया इसका एक लाभ और होता है किसी भी प्रकार के
+
''आदि विषयों में इसके संबंध में पाठ्यविषय होने चाहिए ये... अवसर पर गाँव के कम से कम पाँच व्यावसायिकों का तो''
   −
नहीं जा सकता क्योंकि ये स्वभावगत होते हैं परन्तु व्यवस्था. व्यवसाय को करने वाले के मन में अपने व्यवसाय के प्रति
+
''केवल बौद्धिक स्वरूप के होना पर्याप्त नहीं है, वे. सम्मान होना ही चाहिए । तात्पर्य यह है की गाँव में''
   −
अवश्य बदलनी चाहिए | धर्मशास्त्र और समाजशास््र के. हीनता का भाव नहीं आता अपना व्यवसाय छोड़ने का भी
+
''व्यावहारिक स्वरूप के भी होने चाहिए | व्यवसाय कितना भी छोटा हो सब सम्मान के अधिकारी थे ''
   −
आचार्यों ने इस विषय पर अध्ययन और अनुसंधान कर नई. मन नहीं करता । अपने ही व्यवसाय में महारत प्राप्त करने के
+
''साम्प्रदायिक संकुचितता असहिष्णुता का रूप लेती we सामाजिक सम्मान मनुष्य की. मानसिक''
   −
स्मृति का निर्माण करना चाहिए । विश्वविद्यालयों का काम... लिये वह प्रयासरत रहता है और अपने काम में उत्कृष्टता
+
''है । अपने संप्रदाय का अनुसरण तो आग्रहपूर्वक करना... आवश्यकता है । समाज में हमारी प्रतिष्ठा है, लोग हमें''
   −
ही यह है । धर्माचार्यों और प्राध्यापकों ने मिलकर यह कार्य... लाने का प्रयास करता है । इसका लाभ समाज को होता है ।
+
''चाहिए परन्तु दूसरे संप्रदायों को हेय नहीं मानना चाहिए, बुलाते हैं, याद करते हैं, अपने कार्यक्रमों में सहभागी बनाते''
   −
करने की आवश्यकता है । हमारे देश का कारीगरी का इतिहास बताता है कि कारीगरी
+
''उनका भी आदर करना चाहिए । यह मुद्दा संस्कृति विषयक... हैं यह सबके लिये संतोष देने वाली बात होती है । इससे जो''
   −
=== सामाजिक सम्मान ===
+
''पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए । सद्धाव निर्माण होता है उसमें से सामाजिक लज्जा का जन्म''
के अनेक क्षेत्रों में भारत ने उत्कृष्टता के जो नमूने दीये हैं वे
     −
भारतीय समाज में सामाजिक सम्मान की बहुत अच्छी... आज भी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलते हैं । ढाका की
+
''अस्पृश्यता और जातिगत विट्रेषों को मिटाने के लिये होता है । यह लज्जा अनेक अनिष्टों को पैदा ही नहीं होने''
   −
व्यवस्था की गई थी यह सम्मान केवल व्यवसाय के प्रकार. मलमल की या दिली के लोहस्तम्भ की बराबरी आज के
+
''कभी कभी जाती और वर्ण को मिटाने का आग्रह किया... देती अनेक अनाचार इससे रुक जाते हैं और समाज की''
   −
और अथर्जिन की अधिकता के कारण नहीं था । सामाजिक... विश्व के सर्वश्रेष्ठ यन्त्र भी नहीं कर सकते हैं शिल्प,
+
''जाता है । परन्तु भेदभाव मिटाने के लिये भेद मिटाये नहीं. संस्कारिता बनी रहती है ''
   −
ढांचे में स्वीकार्यता के कारण था उदाहरण के लिये गाँव में... स्थापत्य, मीनाकारी के अद्भुत नमूने आज भी भारत के
+
''जाते , विद्रेष मिटाने के लिये जाती और वर्णों को मिटाया इसका एक लाभ और होता है किसी भी प्रकार के''
   −
किसी व्यक्ति के घर विवाह का अवसर है तो गाँव के... अलावा अन्यत्र मिलना कठिन है । इस उत्कृष्टता के मूल में
+
''नहीं जा सकता क्योंकि ये स्वभावगत होते हैं परन्तु व्यवस्था. व्यवसाय को करने वाले के मन में अपने व्यवसाय के प्रति''
   −
FIR व्यवसाय करने वाले लोग अपने अपने व्यवसाय के... सामाजिक सम्मान एवं उसमें से सहज निष्पन्न होने वाली
+
''अवश्य बदलनी चाहिए | धर्मशास्त्र और समाजशास््र के. हीनता का भाव नहीं आता । अपना व्यवसाय छोड़ने का भी''
   −
कारण ही उसमें निमंत्रित किये जाते थे । पूरे गाँव में विवाह... आश्चस्ति है और इसका परिणाम काम करने में आनन्द है ।
+
''आचार्यों ने इस विषय पर अध्ययन और अनुसंधान कर नई. मन नहीं करता । अपने ही व्यवसाय में महारत प्राप्त करने के''
   −
का न्यौता देना गाँव के नाई का काम था । निमंत्रण पत्र. समाज का मानसिक स्वास्थ्य इससे बना रहता है । सभ्यता
+
''स्मृति का निर्माण करना चाहिए । विश्वविद्यालयों का काम... लिये वह प्रयासरत रहता है और अपने काम में उत्कृष्टता''
   −
छपवाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी विवाह के... के विकास के लिये यह बहुत ही आवश्यक बात है ।
+
''ही यह है धर्माचार्यों और प्राध्यापकों ने मिलकर यह कार्य... लाने का प्रयास करता है । इसका लाभ समाज को होता है ।''
   −
समय मंडप बांधने के लिये सुथार को, मटकी के लिये
+
''करने की आवश्यकता है । हमारे देश का कारीगरी का इतिहास बताता है कि कारीगरी''
   −
कुम्हार को तथा ऐसे ही अन्यान्य कामों के लिये अन्यान्य
+
=== ''सामाजिक सम्मान'' ===
 +
''के अनेक क्षेत्रों में भारत ने उत्कृष्टता के जो नमूने दीये हैं वे''
   −
=== सामाजिक सुरक्षा ===
+
''भारतीय समाज में सामाजिक सम्मान की बहुत अच्छी... आज भी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलते हैं । ढाका की''
जिस समाज में लोगों को अपने अपने हित की रक्षा
     −
के लिये हमेशा सावध नहीं रहना पड़ता वह समाज संस्कारी
+
''व्यवस्था की गई थी । यह सम्मान केवल व्यवसाय के प्रकार. मलमल की या दिली के लोहस्तम्भ की बराबरी आज के''
   −
समाज कहा जाता है जहां अपने हित की रक्षा के लिये
+
''और अथर्जिन की अधिकता के कारण नहीं था सामाजिक... विश्व के सर्वश्रेष्ठ यन्त्र भी नहीं कर सकते हैं । शिल्प,''
   −
हमेशा सावध रहना पड़ता है वह असंस्कारी समाज है जिस
+
''ढांचे में स्वीकार्यता के कारण था उदाहरण के लिये गाँव में... स्थापत्य, मीनाकारी के अद्भुत नमूने आज भी भारत के''
   −
समाज में स्त्री सुरक्षित है, छोटे बच्चे सुरक्षित हैं, दुर्बल
+
''किसी व्यक्ति के घर विवाह का अवसर है तो गाँव के... अलावा अन्यत्र मिलना कठिन है । इस उत्कृष्टता के मूल में''
   −
सुरक्षित हैं वह समाज संस्कारी समाज है । सामाजिक सुरक्षा
+
''FIR व्यवसाय करने वाले लोग अपने अपने व्यवसाय के... सामाजिक सम्मान एवं उसमें से सहज निष्पन्न होने वाली''
   −
के लिये कानून, पुलिस और न्यायालय की व्यवस्था होती
+
''कारण ही उसमें निमंत्रित किये जाते थे । पूरे गाँव में विवाह... आश्चस्ति है और इसका परिणाम काम करने में आनन्द है ।''
   −
है। परन्तु यह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है । इसके साथ यदि
+
''का न्यौता देना गाँव के नाई का काम था । निमंत्रण पत्र. समाज का मानसिक स्वास्थ्य इससे बना रहता है । सभ्यता''
   −
अच्छाई की शिक्षा न दी जाय और लोगों के मन सद्धावपूर्ण
+
''छपवाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी । विवाह के... के विकास के लिये यह बहुत ही आवश्यक बात है ।''
   −
और नीतिमात्तायुक्त न बनाए जाय तो केवल कानून किसी
+
''समय मंडप बांधने के लिये सुथार को, मटकी के लिये''
   −
की रक्षा नहीं कर सकता । मनोविज्ञान के ज्ञाता एक
+
''कुम्हार को तथा ऐसे ही अन्यान्य कामों के लिये अन्यान्य''
   −
सुभाषितकार का कथन है
+
=== ''सामाजिक सुरक्षा'' ===
 +
जिस समाज में लोगों को अपने अपने हित की रक्षा के लिये हमेशा सावध नहीं रहना पड़ता वह समाज संस्कारी समाज कहा जाता है । जहां अपने हित की रक्षा के लिये हमेशा सावध रहना पड़ता है वह असंस्कारी समाज है । जिस समाज में स्त्री सुरक्षित है, छोटे बच्चे सुरक्षित हैं, दुर्बल सुरक्षित हैं वह समाज संस्कारी समाज है । सामाजिक सुरक्षा के लिये कानून, पुलिस और न्यायालय की व्यवस्था होती है। परन्तु यह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है । इसके साथ यदि अच्छाई की शिक्षा न दी जाय और लोगों के मन सद्धावपूर्ण और नीतिमात्तायुक्त न बनाए जाय तो केवल कानून किसी की रक्षा नहीं कर सकता । मनोविज्ञान के ज्ञाता एक सुभाषितकार का कथन है
   −
कामातुराणाम्‌ भयम AT OTT |
+
कामातुराणां भयं न लज्जा
    
अर्थातुराणाम्‌ न गुरुर्न बंधु: ।।
 
अर्थातुराणाम्‌ न गुरुर्न बंधु: ।।

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