तेनाली रामा जी - विजय नगर में तेनालीरामा का प्रवेश

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आप सभी राजा कृष्णदेवराय और उनके प्रिय मित्र एवं मार्गदर्शक तेनालीरामा जी से परिचित है | तेनालीरामा और कृष्णदेवराय की जोड़ी की निर्मिती किस प्रकार होती है इस घटना को कहानी रूप में आपके समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ |

विजयनगर राज्य के नजदीकी गावं तेनाली में रामाकृष्णा नाम का पंडित रहता था | वह पंडित बहुत ही चतुर एवं बुद्धिमान था | रामाकृष्णा के बुद्धिकौशल एवं शांत मित्र स्वभाव के कारण उनके नाम के आगे गाव का नाम लगा दिया इस कारण रामाकृष्ण तेनालीरामा के नाम से प्रसिद्ध होने लगे | तेनालीरामा की कार्यकुशलता एवं राष्ट्र प्रेम बुद्धि कौशल को देख गाँव वालो ने रामाकृष्णा को महाराज की सेवा में जाने का सुझाव दिया |

तेनालीरामा ने महाराज कृष्णदेव राय की निति ,प्रजा के प्रति प्रेम एवं राज्य के प्रति निष्ठां के बारे में सुना था | तेनालीरामा ने निश्चिय किया की वे महाराज कृष्णदेव राय से मिलकर अपनी योग्यता अनुसार कार्य देने का आग्रह करेंगे | तेनालीरामा महाराज कृष्णदेव राय से मिलने के लिए यात्रा पर निकल पड़े |

विजयनगर पहुचते ही तेनालीरामा को राजगुरु के बारे में जानकारी मिलाती है की राजगुरु महाराज के निकटतम है | बाजार में राजगुरु भ्रमण कर रहे थे तेनालीरामा राजगुरु के निकट पहुंचकर राजगुरु को प्रणाम करते है और अपना परिचय देते है की मै पंडित रामाकृष्णा हूँ और तेनाली गावं से आया हूँ | मै महाराज से भेट करने आया हूँ ! क्या आप मुझे महाराज से भेट करवा सकते है ? राजगुरु की तेनालीरामा बहुत प्रशंसा करते है राजगुरु तेनालीरामा के सुन्दर वचनों से प्रसन्न हो जाते है और कहते हैं कल तुम राज महल में आना मै तुम्हे महाराज से से भेट करवाऊंगा | तेनालीरामा ने राजगुरु को धन्यवाद किया |

अगले दिन तेनालीरामा महल के ओर जा रहे थे तभी राजगुरु ने देखा तो घबरा गये | राजगुरु ने तेनालीरामा की चतुराई एवं बुद्धिकौशल को समझ लिया था की अगर इसकी भेट महाराज से हो गई तो मेरा सारा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा | राजगुरु ने द्वार पर खड़े सैनिक को बुलाया और तेनालीरामा की ओर इशारा करते हुए कहा की यह जो व्यक्ति आ रहा है वह चोर हैं इसे अन्दर प्रवेश ना दे | तेनालीरामा जब महल के द्वार पर पहुंचे तब द्वार पर खडे सैनिक ने तेनालीरामा को महल के अन्दर जाने से रोक दिया| तेनाली रामा ने सैनिक से कहा मेरा नाम रामा कृष्राणा है मुझे राजगुरु ने बुलाया है | सैनिक ने गुस्जसे में कहा गुरु के आदेश का पालन करते हुए सैनिक ने तेनालीरामा को भगा दिया |

तभी तेनालीरामा निराश नही हुए और कुछ दिन तक विजयनगर में भटकते रहे | एक दिन तेनालीरामा ने राजगुरु को नदी में स्नान करते हुए दिखाई दिए | तभी तेनालीरामा ने राजगुरु के वस्त्र अपने पास रख लिए | तभी राजगुरु ने तेनालीरामा से कहा की हमारे वस्त्र दे दीजिये | तेनालीरामा ने कहा मेरी एक शर्त है की आप हमे राजमहल तक अपने कंधे पर ले जायेंगे और राजगुरु तैयार हो गये |तेनालीरामा ने राजगुरु के कंधे पर बैठकर राजमहल की ओर आने लगा| तभी राजा कृष्णदेव राय ने सैनिक को बुलाकर कहा सामने जो व्यक्ति राजगुरु के कंधे पर बैठकर आ रहा हैं उसे दंडित कीजिये और राजगुरु को सम्मान सहित राजमहल में लाइए | तेनालीरामा ने महाराज को क्रोध में अपने सैनिक को बोलते हुए देकर समझ गये की महाराज मुझे दंडित करेंगे |

तुरंत तेनालीरामा एक योजना बनाई वो राजगुरु के कंधे से उतर कर राजगुरु से क्षमा मांगी और उनका गुणगान किया | राजगुरु प्रसन्न हो गये तभी तेनालीरामा ने राजगुरु से कहा अभी मै आप को कंधे पर बैठकर राजमहल ले जाऊंगा | तभी तेनालीरामा राजगुरु को अपने कंधे पर बैठकर राजमहल की ओर ले जा रहे थे उसी ओर से सैनिक भी आ रहा था | सैनिक ने तेनालीरामा और राजगुरु को रोका और अपने महाराज की आज्ञा का पालन करने लगा | तभी राजगुरु ने कहा आप हमे पहचानते नही हो | सैनिक क्रोधित होकर दंडित करने लगा | सैनिक तेनालीरामा को सम्मान पूर्वक महाराज के पास ले गया |

महाराज ने तेनालीरामा से पूछा की आप कौन हो और राजगुरु कहाँ है ? तेनालीरामा ने उत्तर दिया की महाराज मै रामाकृष्णा तेनाली गाँव से आया हूँ | मुझे आप से मिलना चाहताथा इसलिय