Difference between revisions of "तेनाली रामा जी - महाराज की मुद्रिका की खोज"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
m (Text replacement - "हमेशा" to "सदा")
Tags: Mobile edit Mobile web edit
m (Text replacement - "कथाए" to "कथाएँ")
 
Line 15: Line 15:
 
दूसरे दिन सभा में चोर को प्रस्तुत किया गया। महाराज ने तेनालीरामा से पूछा कि आपने कैसे पहचाना कि यही अंगरक्षक चोर है । तेनालीरामा ने उत्तर दिया <nowiki>''</nowiki>महाराज मैंंने मंदिर के पुजारी को देवी माँ के चरणों में सुगंधित द्रव्य लगाने को कहा था।"
 
दूसरे दिन सभा में चोर को प्रस्तुत किया गया। महाराज ने तेनालीरामा से पूछा कि आपने कैसे पहचाना कि यही अंगरक्षक चोर है । तेनालीरामा ने उत्तर दिया <nowiki>''</nowiki>महाराज मैंंने मंदिर के पुजारी को देवी माँ के चरणों में सुगंधित द्रव्य लगाने को कहा था।"
  
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]
+
[[Category:बाल कथाएँ एवं प्रेरक प्रसंग]]

Latest revision as of 22:30, 12 December 2020

महाराज कृष्णदेवराय जी के पास एक बहुत ही सुन्दर एवं मनमोहक मुद्रिका थी जिसे वे सदा धारण करते थे कभी भी उस मुद्रिका को अपने से दूर नहीं करते थे। महाराज की दृष्टि सदा उस मुद्रिका को देखती रहती। सभा में सभी मंत्री गणों एवं सभासदों को मुद्रिका दिखाते रहते और उस मुद्रिका की सुन्दरता की प्रसंशा करते रहते।

एक दिन महाराज कृष्णदेवराय उदास अपने आसन पर बैठे थे। तभी वहां तेनालीरामा आए। उन्होंने महाराज को उदास देखकर पूछा - "महाराज आप उदास क्यों है? क्या कोई चिंता का विषय है? मुझे बताइए, मैं उसका समाधान करने का प्रयास करता हूँ।"

महाराज ने अपनी उदासी का पूरा वृतांत तेनालीरामा को सुनाया - "मेरी प्रिय मुद्रिका मिल नही रही है। मैंंने मुद्रिका खोजने का पूरा प्रयास किया, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरी मुद्रिका चोरी हो गई है। तेनालीरामा ने महाराज से पूछा "महाराज आप को किसी पर संदेह है जो आपकी की मुद्रिका चोरी कर सकता है?"

महाराज ने तेनालीरामा से कहा - "मुझे अपने निजी अंगरक्षकों पर संदेह है क्योंकि मेरे निजी कक्ष मे केवल वे ही लोग आ सकते हैं। दूसरे किसी को आने की आज्ञा नही है।" महाराज की बातें सुनने के बाद तेनालीरामा ने कहा "महाराज आप चिता मत कीजिए, चोर जल्द से जल्द पकड़ा जायेगा। महाराज आप अपने निजी अंगरक्षको बुलवाइए और जैसा तेनालीरामा कहते है वैसा करने का आदेश दीजिये।"

महाराज ने तेनालीरामा की बात मानकर सभी अंगरक्षकों को आने का आदेश दिया। सभी अठारह अंगरक्षक उपस्थित हुए। तेनालीरामा ने सभी से कहा हमें दर्शन करने के लिए मंदिर चलना है। सभी अंगरक्षक और महाराज मंदिर पहुँचे। वहां पर तेनालीरामा ने बताया कि महाराज की प्रिय मुद्रिका चोरी हो गई है मुझे देवी माता रात्रि स्वप्न मे चोर के बारे में बताएंगी। अतः आप सभी एक एक कर के देवी का दर्शन चरण स्पर्श करके तुरंत बाहर आ जाइए। तेनालीरामा ने मन्दिर के पुजारी के कान में धीरे से कुछ कहा और बाहर आ गये।

सभी अंगरक्षक दर्शन करने लगे जैसे ही अंगरक्षक बाहर आते तुरंत तेनालीरामा उनके हाथो को चूम लेते थे। सभी अंगरक्षकों ने देवी का दर्शन कर लिया। तब महाराज ने तेनालीरामा से पूछा "इन सभी अंगरक्षकों का क्या करना है? सभी को आज कारागार मे रखना पड़ेगा क्योंकि चोर की जानकारी देवी माता आपको आज रात्रि स्वप्न में बताएगी।"

तेनालीरामा ने तुरंत उत्तर दिया "नही महाराज! चोर के बारे मे जानकारी मुझे हो गई है। जो ग्यारहवे क्रमांक पर अंगरक्षक खड़ा है, वही चोर है। अंगरक्षक ने तुरंत भागने का प्रयास किया पर सभी ने उसे पकड़ लिया ।

दूसरे दिन सभा में चोर को प्रस्तुत किया गया। महाराज ने तेनालीरामा से पूछा कि आपने कैसे पहचाना कि यही अंगरक्षक चोर है । तेनालीरामा ने उत्तर दिया ''महाराज मैंंने मंदिर के पुजारी को देवी माँ के चरणों में सुगंधित द्रव्य लगाने को कहा था।"