तेनाली रामा जी - गलत कर्म छुपते नहीं

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एक दिन महाराज कृष्णदेव राय के महल में एक व्यापारी आया | उस व्यापारी के हाथ में एक लोहे का संदूक था | व्यापारी ने महाराज से कहा की," मै उत्तर भारत की यात्रा पर जा रहा हूँ | यह जो मेरे हाथ में संदूक है इस में मेरे पूर्वजो का खजाना है | क्या आप मेरे आने तक संदूक में रखे खजाने की देख भाल कर सकते है क्या ?" महाराज ने कहा की "ठीक है |"

महाराज ने अपने एक सैनिक को बुलाया और कहा की ,"इस व्यापारी के हाथ में जो संदूक है उसे राज कोष में रख दो |" तो महाराज के एक दरबारी ने कहा," की राज्य की न्याय अवश्था कसी और की वास्तु को राज कोष में रखने नरे अनुमति नहीं देतता | आप चाहे तो आप तेनालीरामा को अपने घर पे संदूक कखने को दे सकते है |"

कुछ महीने के बाद वह व्यपारी वापस महल आया और महाराज से कहा की," मै तीर्थ यात्रा से वापस आ गया हूँ आप मुझे मेरा संदूक दे देदिगिये |" महाराज ने तेनालीरामा से कहा की, तेनालीरामा घर जा कर के व्यपारी का संदूक व्यापारी को ला कर दे दो |"

तेनालीरामा अपने घर पे जा कर के जैसे ही संदूक को उठाया तो वो आश्चर्य चकित हो गए की ये संदूक इतना हलका हो गया है | तो तेनालीरामा महाराज से जा कर कहा की मेरे घर पे इस व्यापारी के पूर्वज आएं हैं | वो मुझे संदूक लाने से रोक रहे है | व्यापारी बोले महाराज तेनालीरामा मेरा खजाना लेना चाहते है | महाराज ने तेनालीरामा से कहा की अगर ये बात असत्य निकली तो तुमे दंड मिले गा |

ऐसा कह कर महाराज अपने सैनिक्को के साथ तेनालीरामा के घर पर जाने के लिए निकल गए | जैसे ही महाराज तेनालीरामा के घर पे पौछे और संदूक को तो उसके पास बहुत सारी चुटियाँ थी | महाराज ने कहा इस संदूक में क्या है | जैसे ही तेनालीरामा ने संदूक खोला तो देखा की उसमे मिठाई थी |

महाराज ने व्यापारी से पुचा की मुझे दोखा क्यों दिया ? व्यापारी बोला मुझे आप के इन दो मंत्रयो ने मुझे करने को कहा | महाराज ने सैनिको कोआदेश दिया की दोनों मंत्री और व्यापारी को बंधी बनालो |