तेनाली रामा जी - गलत कर्म छुपते नहीं

From Dharmawiki
Revision as of 18:12, 19 September 2020 by Sunilv (talk | contribs) (लेख सम्पादित किया)
Jump to navigation Jump to search

एक दिन महाराज कृष्णदेव राय के महल में एक व्यापारी आया | उस व्यापारी के हाथ में एक लोहे का संदूक था | व्यापारी ने महाराज से कहा की मै उत्तर भारत की यात्रा पर जा रहा हूँ | यह जो मेरे हाथ में संदूक है इस में मेरे पूर्वजो का खजाना है | क्या आप मेरे आने तक संदूक में रखे खजाने की देख भाल कर सकते है क्या ? महाराज ने कहा की ठीक है |

महाराज ने अपने एक सैनिक को बुलाया और कहा की इस व्यापारी के हाथ में जो संदूक है उसे राज कोष में रख दो | तो महाराज के एक दरबारी ने कहा की राज्य की न्याय अवश्था कसी और की वास्तु को राज कोष में रखने नरे अनुमति नहीं देतता | आप चाहे तो आप तेनालीरामा को अपने घर पे संदूक कखने को कह सकते है |

कुछ महीने के बाद वह व्यपारी वापस महल आया और महाराज से कहा की मै तोरथ यात्रा से वापस आ गया हूँ आप मुझे मेरा संदूक दे देदिगिये | महाराज ने तेनालीरामा से कहा की तेनालीरामा घर जा कर के व्यपारी का संदूक व्यापारी को ला कर दे दो |